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ख़बरों के आगे-पीछे : पंजाब में पुलिस कार्रवाई की टाइमिंग पर सवाल

मुख्यमंत्री भगवंत मान ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात कर अमृतपाल को गिरफ़्तार करने पर चर्चा की थी। इसके लिए उन्होंने अर्धसैनिक बलों की ज़रूरत भी बताई थी।
punjab police
प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

पंजाब में खालिस्तान समर्थक संगठन 'वारिस पंजाब दे’ के नेता अमृतपाल सिंह के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई की टाइमिंग हैरान करने वाली है। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर अमृतपाल को गिरफ्तार करने पर चर्चा की थी। इसके लिए उन्होंने अर्धसैनिक बलों की जरूरत भी बताई थी। सूत्रों के मुताबिक उस मुलाकात में तय हुआ था कि अमृतसर में होने वाली जी-20 देशों की बैठक समाप्त होने के बाद कार्रवाई होगी। लेकिन अमृतसर में जी-20 के सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए दुनिया भर के प्रतिनिधियों का पहुंचना शुरू हुआ और उधर दो राज्यों की पुलिस ने अमृतपाल के खिलाफ अभियान छेड़ दिया! अमृतसर में जी-20 से जुड़ा पहला कार्यक्रम शिक्षा पर 15 से 17 मार्च तक चला। इसके बाद 19 और 20 मार्च को श्रम से जुड़ा कार्यक्रम हुआ। जिस दिन यह बैठक शुरू होनी थी उससे एक दिन पहले 18 मार्च को जालंधर और मोगा की पुलिस ने अमृतपाल की गिरफ्तारी के लिए अभियान शुरू कर दिया। दिन में 12 बजे मोबाइल, इंटरनेट और थोक में एसएमएस भेजने की सेवा 24 घंटे के लिए बंद कर दी गई। कई शहरों में धारा 144 लागू हो गई। पुलिस ने अमृतपाल के समर्थकों को गिरफ्तार किया और राज्य के कई हिस्सों में प्रदर्शन शुरू हो गए। हैरानी की बात है कि इतना बड़ा अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल राज्य में था और चारों तरफ पुलिस की कार्रवाई और लोगों का उग्र प्रदर्शन चल रहा था। ऐसे में सवाल है कि राज्य की पुलिस ने खुद ऐसा किया या केंद्र के साथ तालमेल करके किया गया?

पोस्टरों से दहल गई सरकार

बीते मंगलवार को राजधानी दिल्ली सहित उत्तर भारत के कई इलाकों में आए भूकंप के झटकों से भी ज्यादा बड़ा झटका सरकार ने अगले दिन दिल्ली में दीवारों पर लगे पोस्टरों से महसूस किया। भूकंप के झटकों से लोग जितने नहीं दहले उससे कहीं ज्यादा पोस्टरों से सरकार दहल उठी। राजधानी में होने वाले अपराधों और उन्हें अंजाम देने वाले अपराधियों के प्रति बेपरवाह रहने वाली दिल्ली पुलिस तुरंत हरकत में आ गई। सरकार के ढिंढोरची टीवी चैनलों ने चीख-चीख कर बताना शुरू कर दिया कि दिल्ली में प्रधानमंत्री के खिलाफ विवादित और आपत्तिजनक पोस्टर लगाने के मामले में 100 से ज्यादा एफआईआर दर्ज हुई हैं और पुलिस ने कई लोगों गिरफ्तार किया है। किसी भी चैनल ने या पुलिस ने यह नहीं बताया कि 'मोदी हटाओ देश बचाओ’ लिखे पोस्टरों में अश्लील या आपत्तिजनक क्या है। यह तो एक बेहद सामान्य राजनीतिक नारा है, जो पहले भी कई प्रधानमंत्रियों के खिलाफ लगता रहा है, बल्कि इससे भी कई ज्यादा तीखे या आक्रामक नारों वाले पोस्टर लगते रहे हैं लेकिन ऐसे पोस्टर को लेकर सरकार की घबराहट, पुलिस की सक्रियता, लोगों की गिरफ्तारी और मीडिया का मूर्खतापूर्ण विलाप पहली बार देखने को मिला।

बड़े जश्न की तैयारी में जुटी मोदी सरकार

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार जश्न मनाने के लिए मशहूर है। वह अपनी कथित उपलब्धियों का ही नहीं बल्कि किसी त्रासदी और देश की तबाही का जश्न मनाने से भी नहीं चूकती है। ऐसे में उसके लिए अपनी सालगिरह का जश्न मनाना तो लाजिमी ही है। मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने जा रहे है। मोदी सरकार दूसरे कार्यकाल की चौथी सालगिरह मई के अंत में है और उस मौके पर बड़ा जश्न मनाने की तैयारी शुरू हो गई है। यह भी कह सकते है कि जश्न शुरू हो गया है। नरेंद्र मोदी का 'मुझे चलते जाना है’ शीर्षक से जारी नया एनिमेटेड वीडियो इसकी मिसाल है। इसमें गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर अभी तक की उनकी यात्रा का ब्योरा है और संकल्प है कि समाज के हर वर्ग के लिए काम करते हुए वे देश को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाएंगे। यह एक तरह से 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी का पहला कदम है। इसी तरह अलग-अलग थीम पर और भी प्रचार सामग्री जारी होती रहेगी। बताया जाता है कि केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों को अपनी-अपनी उपलब्धियों का ब्योरा तैयार करने का निर्देश दिया गया है। इस सिलसिले में कोऑर्डिनेशन के लिए कई मंत्रियों की एक टीम भी बनी है। अगले साल होने वाले चुनाव से पहले यह जश्न आखिरी मौका होगा। इसलिए प्रचार की बेहिसाब सामग्री तैयार होगी। धुआंधार प्रचार होगा। लगातार तीसरी बार जनादेश लेने के मकसद से भाजपा बताएगी कि दो कार्यकाल में उसने देश को कितना बदल दिया है। प्रधानमंत्री के कई कार्यक्रम होंगे। पार्टी के सारे प्रवक्ता और सरकार के मंत्री देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे। पहले एनिमेटेड वीडियो से पार्टी ने यह भी बता दिया है कि मोदी पर विपक्ष के हमलों को केंद्र में रखा जाएगा।

सिंधिया फिर देख रहे हैं मुख्यमंत्री बनने का सपना

मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का ज्योतिरादित्य सिंधिया का ख्वाब पुराना है। कांग्रेस में रहते हुए भी उन्होंने यह ख्वाब देखा था लेकिन पूरा नहीं हुआ। धीरज रखते तो पूरा हो सकता था लेकिन अधीर होकर अपने समर्थक 20-22 विधायकों को लेकर भाजपा में चले गए। उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा उन्हें कांग्रेस की सरकार गिराने के इनाम के तौर पर मुख्यमंत्री बना देगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तात्कालिक तौर पर उन्हें राज्यसभा की सदस्यता और अपने कुछ समर्थक विधायकों को मिले मंत्री पद से संतुष्ट होना पड़ा। हालांकि बाद में वे केंद्रीय मंत्री भी बन गए लेकिन उनकी निगाहें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ही लगी रही। अब जैसे-जैसे विधानसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, उनकी बेचैनी बढती जा रही है। वे अपने समर्थकों को एकजुट करते हुए भाजपा आलाकमान पर दबाव बना रहे हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए। कुछ समय पहले उनके समर्थकों ने तो यह शिगूफा भी छोड़ दिया था कि शिवराज सिंह चौहान को हटा कर सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है। बहरहाल भाजपा नेतृत्व सिंधिया की मनोकामना पूरी करने के मूड में नहीं दिख रहा है। वह न तो मुख्यमंत्री बदलने जा रहा है और न ही उसका कोई ऐसा इरादा है कि किसी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए। पार्टी शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री रख कर ही चुनाव लड़ेगी।

भगत सिंह को भूल गए केजरीवाल

एक साल पहले पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया था कि उनकी पार्टी की सरकारों के दफ्तरों में अब सिर्फ शहीद भगत सिंह और बाबा साहेब आंबेडकर की तस्वीरें लगेंगी। उन्होंने महात्मा गांधी की तस्वीरें हटवा कर उनके स्थान पर भगत सिंह और आंबेडकर की तस्वीरें लगवा दी थी। लेकिन इस साल 23 मार्च को भगत सिंह के शहादत दिवस पर उन्हें भगत सिंह की याद नहीं आई। मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी, दिल्ली सरकार के बजट और राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी पार्टियों का मोर्चा बनाने में लगे केजरीवाल शहीद ए आजम को भूल गए। उनकी सरकार का विज्ञापन का बजट 568 करोड़ रुपया हो गया है, जो शीला दीक्षित के कार्यकाल के आखिरी पूर्ण साल यानी 2012-13 में सिर्फ 15 करोड़ रुपए का था लेकिन केजरीवाल की सरकार ने 23 मार्च को भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की शहादत दिवस के मौके पर कोई विज्ञापन नहीं दिया। आमतौर पर दिल्ली के अखबार दिल्ली सरकार के विज्ञापनों से भरे रहते हैं लेकिन भगत सिंह के शहादत दिवस पर कोई विज्ञापन नहीं छपा। पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार है, जिसके विज्ञापन दिल्ली से लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक तक के अखबारों में छपते रहते हैं, लेकिन पंजाब सरकार का विज्ञापन भी भगत सिंह के शहादत दिवस पर दिल्ली के अखबारों में नहीं छपा। दिल्ली के अखबारों में एक विज्ञापन हरियाणा सरकार का दिखा और दूसरा मध्य प्रदेश सरकार का। न तो केंद्र सरकार ने विज्ञापन दिया और न दिल्ली व पंजाब सरकार का विज्ञापन आया।

किसी भी सरकार को अपनी आलोचना पसंद नहीं

दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ पोस्टर लगाने वालों पर एफआईआर दर्ज करने और उन्हें गिरफ्तार करने का विवाद चल रहा है। सारी विपक्षी पार्टियों ने इसे मुद्दा बनाते हुए कहा है कि यह तानाशाही है। लेकिन हकीकत यह है कि अगर भाजपा और उसकी सरकारों को प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना बर्दाशत नहीं है तो उसी तरह किसी प्रादेशिक पार्टी के नेता को भी अपनी आलोचना पसंद नहीं है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी से लेकर तमिलनाडु में एमके स्टालिन तक की आलोचना करने वालों के खिलाफ मुकदमे हुए और उनको जेल में डाला गया। लोकतंत्र को खतरे में बताने वाली पार्टियां भी भाजपा की तरह बरताव कर रही हैं। ताजा मामला तमिलनाडु का है, जहां एक प्रदीप नाम के 23 साल के एक युवक को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार कर 15 दिन के लिए जेल भेज दिया, क्योंकि उसने तमिलनाडु सरकार के बजट की आलोचना वाला एक वीडियो शेयर किया था। ममता बनर्जी के बारे में कार्टून शेयर करने पर एक प्रोफ़ेसर की गिरफ्तारी सबको पता है। पिछले दिनों ममता बनर्जी की पुलिस ने कांग्रेस के नेता कौस्तुभ बनर्जी को गिरफ्तार कर लिया क्योंकि उन्होंने ममता की आलोचना की थी। नीतीश कुमार अब तो राजद के साथ आ गए हैं लेकिन कुछ समय पहले जब वे भाजपा के साथ थे तो उनकी शराब नीति की आलोचना करने वाले एक राजद नेता को गिरफ्तार कर लिया गया था। कुछ महीने पहले दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की आलोचना करने वाले भाजपा और कांग्रेस के नेताओं पर पंजाब पुलिस ने मुकदमे दर्ज किए थे।

बिहार में सबकी जरूरत है गठबंधन

बिहार में सभी राजनीतिक पार्टियों की प्राथमिकता गठबंधन की है। कोई भी अकेले लड़ने की जोखिम उठाने को तैयार नहीं है। पिछली बार यानी 2019 में राजद ने कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा था और लोकसभा की एक भी सीट नहीं मिल पाई थी। उससे पहले यानी 2014 में जनता दल (यू) ने अकेले लोकसभा का चुनाव लड़ा था और उसे सिर्फ दो सीटें मिली थीं। भाजपा ने 2015 में बिना जद (यू) के विधानसभा का चुनाव लड़ा था और उसको कुल 54 सीटें मिली थीं। उपेंद्र कुशवाहा ने पिछली बार भाजपा का साथ छोड़ कर राजद के साथ लड़ा और लोकसभा की एक भी सीट नहीं जीत पाए थे। सो, सभी पार्टियां अपने-अपने अनुभव के आधार पर गठबंधन को प्राथमिकता दे रही है। सबको ऐसा गठबंधन बनाना है, जिसमें वे चुनाव जीत सके। इसीलिए राजद नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने अपनी पार्टी के नेताओं को दो टूक संदेश दिया है कि उन्हें गठबंधन के बारे में कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं है। तेजस्वी ने कहा कि न तो नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनने की जल्दी है और न वे खुद मुख्यमंत्री बनने की हड़बड़ी में हैं। तेजस्वी ने कहा कि महागठबंधन में कोई गड़बड़ी नहीं है और सब कुछ ठीक चल रहा है। इस तरह उन्होंने नीतीश कुमार को बेफिक्र कर दिया है। गठबंधन पर कोई खतरा नहीं है। लेकिन जद (यू) के बाकी नेता अपने लिए खतरा महसूस करने लगे हैं। उन्हें लग रहा है कि अगर भाजपा ने मान लिया कि नीतीश कुमार अब उसके साथ नहीं आएंगे तो राजद की तरह ही जद (यू) के नेताओं और उनके करीबियों पर भी केंद्रीय एजेंसियों का शिकंजा कसेगा। इसीलिए नीतीश के कुछ करीबी नेता उन पर राजद से गठबंधन तोड़ने के लिए दबाव बना रहे हैं। 

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