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आपको याद है?, आज ही के दिन बिस्मिल, अशफ़ाक़ और रोशन सिंह को दी गई थी फांसी

काकोरी कांड के बाद तीनों महान क्रांतिकारियों को ब्रिटिश सरकार ने फांसी की सज़ा सुनाई थी। इन्हें आज ही के दिन अलग-अलग जेलों में फांसी दी गई।
balidan diwas
फ़ोटो साभार: ट्विटर

भारत को आज़ादी दिलाने के लिए अपना सब कुछ न्‍योछावर करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों राम प्रसाद बिस्‍मिल, अशफ़ाक़ उल्‍ला ख़ान और ठाकुर रोशन सिंह को 1927 में 19 दिसंबर के दिन ही फांसी दी गई थी। इस दिन को शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज़ादी के इन मतवालों को काकोरी कांड को अंजाम देने के लिए फांसी दी गई थी।

वर्ष1922 में गोरखपुर में चौरी-चौरा कांड हुआ था जिसके बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था। गांधी जी के इस फ़ैसले से युवा क्रांतिकारी काफ़ी निराश हुए जिसके बाद युवाओं ने ये फ़ैसला लिया कि वो एक पार्टी का गठन करेंगे। इसी क्रम में सचीन्द्रनाश सान्याल के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) की स्थापना हुई। योगेशचन्द्र चटर्जी, रामप्रसाद बिस्मिल, सचिन्द्रनाथ बख़्शी पार्टी के महत्वपूर्ण सदस्यों में शामिल थे। कुछ समय के बाद चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह भी पार्टी में शामिल हुए। पार्टी का मानना था कि देश की आज़ादी के लिए हथियार उठाने होंगे।

काकोरी कांड

हथियार ख़रीदने के लिए पैसे न होने के चलते क्रांतिकारियों ने फ़ैसला लिया कि सरकारी ख़ज़ाना हासिल किया जाए। क्रांतिकारियों ने 9 अगस्त 1925 को सहारनपुर से लखनऊ जा रही ट्रेन को निशाना बनाया। ट्रेन को काकोरी स्टेशन पर रोक गया और क्रांतिकारियों ने सरकारी ख़ज़ाना निकाल लिया। इसमें उन्हें कुल 4,601 रुपये हाथ लगे।

चार क्रांतिकारियों को फांसी की सज़ा

इस घटना से तत्कालीन ब्रिटिश सरकार में हलचल मच गई। क्रांतिकारियों की गिरफ्तारियां होने लगी। हालांकि इस घटना में मात्र दस लोग शामिल थे लेकिन सरकार ने एक महीने के अंदर क़रीब 40 लोगों की गिरफ़्तार कर लिया। क़रीब पौने दो साल के बाद 6 अप्रैल 1927 को फ़ैसला सुनाया गया। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी की सज़ा सुनाई गई। कई क्रांतिकारियों को 14 साल तक की सज़ा दी गई। सरकारी गवाह बनने पर दो लोगों को रिहा कर दिया गया। चंद्रशेखर आज़ाद पुलिस की गिरफ़्त में नहीं आ पाए।

अलग-अलग जेल में फांसी

क्रांतिकारियों को फांसी की सज़ा दिए जाने के फ़ैसले को लेकर भारतीयों ने भारी विरोध किया लेकिन अंग्रेज़ों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। फांसी की सज़ा दिए गए चार क्रांतिकारियों में राजेंद्र लाहिड़ी को सबसे पहले 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जेल में फांसी दी गई। वहीं आज ही के दिन यानी 19 दिसंबर 1927 में रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान को फ़ैज़ाबाद जेल और रोशन सिंह को इलाहाबाद में फांसी दी गई।

राम प्रसाद बिस्मिल

राम प्रसाद बिस्मित भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य सेनानियों में से एक थे। बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर ज़िले में हुआ था। उन्होंने काकोरी कांड में मुख्य भूमिका निभाई थी। वे स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख सेनानी थे। उन्हें 30 वर्ष की उम्र में ब्रिटिश सरकार ने फांसी दे दी। राम प्रसाद बिस्मिल को एक अच्छे शायर और गीतकार के तौर पर भी जाना जाता है। उन्होंने सन् 1916 में 19 वर्ष की आयु में क्रान्तिकारी मार्ग अपनाया। 11 वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया।

अशफ़ाक़ उल्ला खां

अशफाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। काकोरी कांड में इनकी मुख्य भूमिका थी। अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान उर्दू भाषा के शायर थे। अशफ़ाक़ और राम प्रसाद बिस्मिल काफ़ी अच्छे दोस्त थे।

ठाकुर रोशन सिंह

रोशन सिंह का जन्म 22 जनवरी 1892 को शाहजहांपुर के नवादा गांव में हुआ था। इन्होंने भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी।

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