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बनारसः गंगा में फिर बड़ा हादसा, 34 सैलानियों से भरी नाव पलटी, पति-पत्नी गंभीर

"ज़्यादातर नौकाओं पर न लाइफ़ जैकेट मिलता है और न ही बचाव के ट्यूब वग़ैरह का कोई पुख़्ता इंतज़ाम होता है। सिस्टम के नाकारापन के चलते गंगा में डूबकर मरने वालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।"
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पीएम नरेंद्र मोदी के बनारस में पुलिस, प्रशासन की ढिलाई और नाविकों की मनमानी शनिवार को दक्षिण भारत से आए 34 सैलानियों की जान पर बन आई। दशाश्वमेध घाट के पास अहिल्याबाई घाट के सामने सैलानियों से खचाखच भरी नाव अचानक गंगा में डूबने लगी। नाव पर सवार सैलानी चीखने लगे। गंगा घाटों पर नहा रहे लोग भी चिल्लाने लगे। एनडीआरएफ़ और जल पुलिस के जवान मौक़े पर पहुंचते, इससे पहले आस पास के लोगों ने डूब रहे लोगों को नदी से बाहर निकालना शुरू कर दिया। काफ़ी जद्दोजहद के बाद हादसे के शिकार सभी सैलानियों को गंगा से बाहर निकाला गया। नौका हादसे में दो लोगों को गंभीर चोटें आई हैं, जिन्हें पहले कबीरचौरा स्थित मंडलीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। बाद में बेहतर उपचार के लिए उन्हें बीएचयू हॉस्पिटल रेफर कर दिया गया।

बनारस में नौका हादसा ऐसे समय में हुआ है जब दक्षिण भारत के लोगों को लुभाने के लिए सरकार बंपर पब्लिसिटी कर रही है और काशी-तमिल संगमम के नाम पर धड़ल्ले से टैक्स पेयर का पैसा भी ख़र्च कर रही है। प्रधानमंत्री ने इसी महीने की 19 तारीख़ को तमिल संगमम महोत्सव का उद्घाटन करते हुए इस कार्यक्रम को यादगार बनाने का ऐलान किया था। काशी-तमिल संगमम के समय अफ़सरों की बैठक में पुलिस और प्रशासन को सख़्त हिदायत दी गई थी कि गंगा में चलने वाली सभी नावों की जांच करा ली जाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि बिना बचाव के उपकरणों के गंगा में कोई नाव न चलने पाए। सरकारी मशीनरी नींद में थी और बिना लाइफ़ जैकट व अन्य उपकरणों के नौकाएं चलती रहीं। नौका हादसे के बाद पुलिस और प्रशासनिक अफ़सर पिछली कहानी दोहरा रहे हैं कि भविष्य में बिना सुरक्षा उपकरणों के गंगा में नावें नहीं चलने दी जाएंगी।

नौका हादसे के बाद अस्पताल में भर्ती कराए गए दक्षिण भारत के पर्यटक

तड़के हुआ बड़ा हादसा

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक़, शनिवार की सुबह क़रीब सात बजे नौका हादसा हुआ। हादसे के समय दशाश्वमेध सहित आसपास के सभी घाटों पर बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे। नौका डूबते ही चीख-पुकार मच गई। जिस समय नाव में पानी भरा, तभी नाविक अमित साहनी ने छलांग लगा दी और मौक़े से फ़रार हो गया। इलाक़े के लोग अपने संसाधानों के साथ दौड़े। बारी-बारी से सैलानियों को नदी से बाहर निकाले जाने का सिलसिला शुरू हुआ। हालांकि, दो लोग नाव से कूदने की वजह से चोटिल हो गए। बड़ी मुश्किल से इन्हें ढूंढ़कर निकाला गया। दोनों ही घायल आदि नारायणा और ओपी विजया (पति-पत्नी) आंध्रप्रदेश के राजामंद्री ज़िले के निवासी हैं।

लखनऊ से बनारस आए राजेश तिवारी ने बताया कि आंध्र प्रदेश से आए 34 श्रद्धालु केदार घाट से नाव पर सवार हुए थे। सभी लोगों को मणिकर्णिका घाट पर जाकर धार्मिक अनुष्ठान को संपन्न करना था।

राजेश ने न्यूज़क्लिक को बताया, "मैं घटना का प्रत्यक्षदर्शी हूं। जिस समय नौका हादसा हुआ उस समय मैं घाट के सामने उस पार गंगा में नहा रहा था। नाव में पानी भर गया था और वह पलटी तो नाविक उससे छलांग लगा कर भाग निकला। दूसरे नाविक और हम सभी घटना स्थल की ओर दौड़े। घटना के बाद दशाश्वमेध घाट पर मौजूद लोगों में अफ़रा-तफ़री का माहौल था। सुरक्षित बाहर निकाले गए लोग अपने परिजनों से लिपट कर रो रहे थे और एक-दूसरे को ढांढस भी बंधा रहे थे। संयोग अच्छा था कि समय पर उन्हें मदद मिल गई और सभी लोग बच गए।"

फिर उजागर हुई लापरवाही

शुरुआती जांच-पड़ताल से नौका हादसे के लिए जहां नाविक की लापरवाही उजागर हुई, वहीं एनडीआरएफ़ और जल पुलिस की चौकसी की भी कलई खुल गई। काशी-तमिल संगमम से पहले ही जल पुलिस, एनडीआरएफ़ और नगर निगम को हिदायत दी गई थी कि सुरक्षा मानकों की अनदेखी किसी भी सूरत में न होने दिया जाए। जिस नौका में 34 सैलानी सवार हुए थे, उसमें सुरक्षा के कोई उपकरण नहीं थे। फिलहाल, पुलिस, प्रशासन और नाविक की लापरवाही को प्रारंभिक तौर पर ज़िम्‍मेदार माना जा रहा है। नाव पुरानी और जीर्ण हालत में थी। अधिक सवारियों को बैठाए जाने की वजह से उसके नीचे का पटरा बोझ न सह पाने की वजह से टूट गया। बैलेंस बिगड़ने की वजह से नौका में पानी भरने लगा और हादसे में 34 लोग नदी में डूबने लगे। हादसे में ज़ख़्मी आदि नारायणा और ओपी विजया का इलाज चल रहा है। नौका हादसे के बाद से सभी सैलानी भयभीत हैं।

सुरक्षा के साथ खिलवाड़

बनारस में सैलानियों की सुरक्षा के साथ लंबे समय से खिलवाड़ होता आ रहा है। पहले भी नौका हादसों में नाविकों के साथ साथ जल पुलिस और गंगा में गश्त करने वाले एनडीआरएफ़ की लापरवाही सामने आई है। हर नौका हादसे के बाद एक ही कहानी सामने आती है कि सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया गया। हर बार की तरह इस मर्तबा भी हादसे के ज़िम्‍मेदार नौका चालक अमित साहनी के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करने की तैयारी में जुटी है।

हादसे की सूचना पाकर फोर्स के साथ घटनास्थल पर एसीपी दशाश्वमेध अवधेश कुमार पांडेय पहुंचे और सैलानियों से बातचीत की। शुरुआती जांच से पता चला है कि जिस नाव से हादसा हुआ वह केदार घाट निवासी अमित साहनी की है। पुलिस उसे गिरफ़्तार करने में जुटी है।

एसीपी दशाश्वमेध के मुताबिक़, "नाव जर्जर थी और सवारी अधिक होने की वजह से उसका नीचे का पटरा फट गया। इस वजह से वह असंतुलित होकर पलट गई। नाव पर जो भी सैलानी मौजूद थे उनका काशी-तमिल संगमम् से कोई सरोकार नहीं है। नाव में लाइफ़ जैकेट और बचाव के उपकरण नहीं होने की वजह से यह हादसा हुआ है।"

नौका संचालक की ओर से नाव में हर यात्री के साथ लाइफ़ जैकेट अनिवार्य तौर पर होना चाहिए। हादसे की सूरत में लोगों की जान की रक्षा के लिए नाव पर लाइफ़ गार्ड की भी मौजूदगी अनिवार्य है। इसके साथ ही नौका की फ़िटनेस भी ठीक नहीं होने की वजह से पटरा टूटने की बात सामने आई है। लेकिन, इन प्रारंभिक सुरक्षा उपायों पर भी नौका चालक ने कोई ध्‍यान नहीं दिया। ऐसे में सुरक्षा उपायों को धता बताते हुए यात्रियों की जान जोखिम में डालने का भी नौका चालक पर आरोप है। वहीं नाविक के फ़रार होने से भी कई सवाल खड़े हुए हैं। हलांकि दशाश्वमेध थाना प्रभारी अजय मिश्रा ने कहा है कि नाविक अमित साहनी के ख़िलाफ़ रपट दर्ज की जा रही है।

हादसे लिए ज़िम्मेदार कौन?

काशी-तमिल संगमम् के मद्देनज़र नाविकों को पुलिस और प्रशासन की ओर से हाल ही में चेतावनी दी गई थी, लेकिन उसके बावजूद आज सुबह नाविक ने हद दर्जे की लापरवाही की। इससे पहले भी नौका हादसे के बाद हर बार नाविकों को आगाह किया जाता है कि वो अपनी नाव में क्षमता से अधिक सवारी न बैठाएं। लाइफ़ जैकैट और ट्यूब जैसे जीवन रक्षक उपकरण नाव में ज़रूर रखें। इसके बावजूद नाविक कम समय में ज़्यादा कमाई के चक्कर में हमेशा मनमानी करते हैं। जल पुलिस की भी ज़िम्मेदारी है कि वह समय-समय में गंगा में संचालित होने वाली नौकाओं की जांच-पड़ताल करे और सुरक्षा उपकरणों के बग़ैर किसी की दशा में उन्हें नदी में न चलने दिया जाए।

आरोप है कि जल पुलिस नाविकों से सुविधा शुल्क लेकर उन्हें मनमानी करने की छूट देती है। नाविकों को हाल ही में सख़्त चेतावनी दी गई थी। इसके बावजूद नाविक ने लापरवाही बरती और कई ज़िंदगी दांव पर लग गईं। संयोग अच्छा था कि सुबह का वक्त था और मौक़े पर लोग गंगा-स्नान कर रहे थे। नाविकों को लेकर लोग दौड़ पड़े और सभी को बचा लिया गया।

सरकार और सिस्टम की लापरवाही का आलम यह है कि इस साल सिर्फ़ बनारस में गंगा में डूबने वाले 80 से अधिक लोगों के शव निकाले गए हैं। इसी साल 25 मई को मरुधर एक्सप्रेस ट्रेन की पैंट्रीकार में काम करने वाले इमामुद्दीन, अनस और केशव समेत चार लोग डूबकर मर गए थे। उस समय भी नाव में लाइफ़ जैकेट नहीं थी। क़रीब डेढ़ साल पहले लाइफ़ जैकेट न पहने होने की वजह से भदैनी के पास नौका हादसे में चार युवकों की मौत हो गई थी। मृतकों में प्रयागराज के संयुक्त निदेशक (कृषि) रमेश मौर्य का बेटा अभिषेक भी था। अप्रैल 2022 में नई दिल्ली से सात युवक बनारस आए और नौकायन के दौरान केदार घाट के सामने उनकी नाव एक बड़े बजड़े से टकराकर पलट गई। शोर मचाने पर इलाक़ाई मल्लाहों ने सभी को बचाया।

नहीं थम रहा हादसा

लचर सिस्टम के चलते स्मार्ट सिटी बनारस में आए दिन लोग गंगा में डूब रहे हैं। गंगा घाटों पर जल पुलिस तैनात रहती है और एनडीआरएफ़़ के जवान भी। फिर भी मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। सिस्टम की नाकामी का नतीजा है कि नौकायन करने वालों की ज़िंदगी ख़त्म हो रही है और पुलिस बार-बार एक ही कहानी दोहराती आ रही है।

गंगा निर्मलीकरण के नाम पर अरबों रुपये ख़र्च करने के बावजूद आज तक बनारस में न तो सुरक्षा के कोई इंतज़ाम किए गए, न सफाई व्यवस्था के पुख़्ता इंतज़ाम हैं। बिना लाइफ़ जैकेट के नौकायन प्रतिबंधित है, लेकिन चौथ वसूली की रवायत के चलते क़ायदा-क़ानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। आंकड़े बताते हैं कि साल 2021 में 110 से अधिक लोगों की गंगा में डूबने से मौतें हुई।

हैरानी की बात यह है कि जल पुलिस के रोजनामचे में डूबकर मरने वालों की तादाद दर्जन भर से ज़्यादा नहीं है। बाक़ी लाशें कहां गईं, किसी को नहीं मालूम। घाट किनारे गंगा में डूबकर होने वाली मौतों के आंकड़े तेज़ी से बढ़ रहे हैं। इस साल के अंत तक इन मौतों का ग्राफ़ कहां तक पहुंचेगा, इसका अंदाज़ा लगा पाना बेहद मुश्किल है। नगर निगम के अफ़सर सिर्फ़ एक ही राग अलापते हैं, "समय के अभाव के चलते गंगा घाटों पर जागरुकता अभियान नहीं चलाया जा सका है। नगर निगम की ओर से जल्द ही इस तरह का अभियान शुरू किया जाएगा। हालांकि सभी गंगा घाटों पर सुरक्षा के बाबत निर्देश चस्पा कराए गए हैं, लेकिन स्नान करने वाले सावधानी नहीं बरत रहे हैं।"

पहले चौथ वसूली तो रुके

बनारस में गंगा पर कई रिपोर्ट लिखने वाले पत्रकार पवन मौर्य कहते हैं, "बनारस की गंगा में ज़्यादातर मौतें सिर्फ़ सिस्टम की लापरवाही से ही नहीं, डबल इंजन की सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये के चलते हो रही हैं। ज़्यादातर नौकाओं पर न लाइफ़ जैकेट मिलता है और न ही बचाव के ट्यूब वग़ैरह का कोई पुख़्ता इंतज़ाम। सिस्टम के नाकारापन के चलते गंगा में डूबकर मरने वालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। नौका चालकों पर लगाम कसने के लिए बनारस के घाटों पर भारी-भरकम फोर्स तैनात हैं, जिनमें जल पुलिस कर्मी तो हैं ही, एनडीआरएफ़ के जवान भी गश्त करते हैं। पुलिस की चौथ वसूली और थोड़े से मुनाफ़े के लिए नाविक छोटी नौकाओं पर क्षमता से अधिक सवारियां बैठा लेते हैं। नौकाएं डूबती हैं तो उनके साथ कई और भी ज़िंदगियां डूब जाती हैं।"

राजघाट पर सैलानियों को नौकायन कराने वाले दुर्गा माझी सरकार से नाखुश हैं। वह कहते हैं, "गंगा स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को लेकर डबल इंजन की सरकार गंभीर नहीं है। सिर्फ़ सरकार ही नहीं, ताबड़तोड़ हो रही मौतों के बावजूद प्रशासन तनिक भी चिंतित नहीं है। बनारस में गंगा घाट पर स्नान, दाह-संस्कार, बोटिंग के लिए आने वाले यात्री सुरक्षित नहीं हैं। लोगों को डूबने से बचाने की ज़िम्मेदारी जल पुलिस की है, लेकिन वो कहीं भी पेट्रोलिंग करती नज़र नहीं आती। हम गोताखोरी करते हैं। कोई डूबता है तो बचाने के लिए जल पुलिस खुद पानी में नहीं उतरती। वह हमारे पास ही आती है। घाटों पर सुरक्षा के पुख़्ता इंतज़ाम और पेट्रोलिंग न होने की वजह से गंगा में डूबकर होने वाली मौतों के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं। यह स्थिति काफ़ी गंभीर और चिंताजनक है। मोदी-योगी की सरकार को चाहिए कि वो गंगा के किनारों पर सुरक्षा ज़ंजीर लगाए ताकि लोग उसके सहारे स्नान-ध्यान कर सकें। इस सरकार का हाल भी अजीब है। वह गंगा में डूबने वाले लोगों के परिजनों को न कोई मुआवज़ा देती है और न ही सुरक्षा की गारंटी।"

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