Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

बनारस सीरियल ब्लास्टः आज भी आंखों में पसर जाती है धमाके की दहशत, घूमने लगता है अपनों का चेहरा

16 बरस बाद बनारस सीरियल ब्लास्ट के एक आरोपी को फांसी की सज़ा सुनाई गई है। 7 मार्च 2006 को यहां हुए सीरियल धमाकों से पूरा देश दहल गया था।
Banaras Serial Blast
बनारस ब्लास्ट के आरोपी को मिली फांसी की सज़ा, दशाश्वमेध घाट पर आरती से पहले दो मिनट का मौन रख कर ब्लास्ट में मृतक लोगों को दी गयी श्रद्धांजलि।

सोलह बरस पहले उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुए सीरियल बम ब्लास्ट में जो लोग मारे गए हैं उनके परिजनों के चेहरे पर दहशत और अपनों के बिछड़ने का दर्द अब तक साल रहा है। 7 मार्च 2006 को पहले संकटमोचन मंदिर में दहशतगर्दों ने बम ब्लास्ट किया और बाद में कैंट रेलवे स्टेशन पर। इस वारदात में 18 लोगों का मौत हो गई थी और 76 लोग घायल हुए थे। इस वारदात के आरोपी वलीउल्लाह उर्फ टुंडा को गाजियाबाद के न्यायाधीश जितेंद्र सिन्हा ने सजा-ए-मौत सुनाई है।

बम धमाके का मास्टरमाइंड कहा जाने वाला आतंकी मोहम्मद जुबैर कश्मीर में हुई एक मुठभेड़ में मारा जा चुका है, जबकि बांग्लादेश के तीन आतंकी जकारिया, मुस्तकीम और बशीर बांग्लादेश में छिपे हुए बताए जाते हैं। मुस्तकीम, जकारिया के अलावा चंदौली के लौंदा झांसी गांव का शमीम भी इस सीरियल ब्लास्ट का आरोपी था। वलीउल्लाह के बाद जांच एजेंसियां किसी को गिरफ्तार नहीं कर पाईं।

बनारस में सीरियल बम ब्लास्ट की पहली वारदात शाम के वक्त प्रसिद्ध संकटमोचन मंदिर में हुई थी।

महंत पंडित विशंभरनाथ मिश्र

इस मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र कहते हैं,"घटना के समय का मंजर कभी भूलता ही नहीं है। मंगलवार का दिन था और शाम के समय भीड़ भी बहुत अधिक थी। इसी दौरान तेज धमाके के साथ विस्फोट हुआ था। मैं अपने पिताजी महंत प्रो. वीरभद्र मिश्र के साथ मौके पर पहुंचा। घटना के मंजर को देख हम अवाक रह गए। उस समय मंदिर परिसर में धुआं फैला हुआ था। जहां-तहां लोगों के सामान बिखरे हुए थे। मंदिर में दर्शन-पूजन करने आए कुछ लोग घायलों की मदद में जुट गए थे। जख्मी लोगों को अस्पताल पहुंचाने की तैयारी की जा रही थी। हनुमत कृपा से अधिक जन-धन की हानि नहीं हुई। जिन लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया, उनमें सभी ठीक होकर घर लौट आए।"

प्रो.मिश्र कहते हैं, "बम धमाके के दोषी वलीउल्लाह को फांसी की सजा सुनाकर कोर्ट ने न्याय किया है। दहशतगर्द वलीउल्लाह की फांसी के बाद संभव है कि हादसे के पीड़ितों के घाव पर कुछ तो मरहम लग सकेगा। यह जो फैसला आया है वह जल्दी आ गया होता तो अच्छा रहता। 16 बरस बीत चुके हैं, लेकिन बहुत से लोग हैं जिनके दिलों का जख्म अभी तक नहीं भर पाया है। धार्मिक स्थानों पर आतंकी हादसे वैमनस्यता फैलाने का काम करते हैं।"

संकटमोचन ब्लास्ट के बाद से ही अब इस मंदिर में वैवाहिक कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जाते। जिस समय मंदिर में बम धमाका हुआ, उस समय वहां शादियां हो रही थीं। घटना के वक्त यज्ञ व हवन पूजन चल रहा था। फोटोग्राफर हरीश बिजलानी वेडिंग फोटोग्राफी कर रहे थे। इस हादसे में वह भी मारे गए थे। बम ब्लास्ट से पहले संकटमोचन मंदिर में कई तरह के आयोजन होते थे। गरीब तबके के लोग इसी मंदिर में शादियां कर लिया करते थे। अब यहां वैवाहिक कार्यक्रम पर पूरी तरह पाबंदी है। पास-पड़ोस के लोग दूसरे मंदिरों में शादियां करने लगे हैं। महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र कहते हैं, "सुरक्षा कारणों से शादियों पर प्रतिबंध लगाया गया है। इस मंदिर में अब हर वक्त कड़ी चौकसी रखी जाती है। आतंकी वारदात के बाद से संकटमोचन मंदिर परिसर में सुरक्षा के इंतजाम कड़े कर दिए गए हैं। अब मंदिर परिसर में कोई मोबाइल अथवा अन्य इलेक्ट्रानिक गैजेट लेकर नहीं जा सकता है।"

धमाके के बाद संकटमोचन मंदिर (फ़ाइल फ़ोटो)

आज भी सालता है ज़ख़्म

संकटमोचन मंदिर में हुए बम ब्लास्ट को याद कर अस्सी निवासी विद्याभूषण मिश्र का परिवार आज भी सिहर उठता है। कोर्ट के फैसले की जानकारी मिलने पर विद्याभूषण मिश्र की आंखें आंसुओं से भर गई। विद्याभूषण बताते हैं, "आज भी कहीं जब कोई आतिशबाजी होती है तो हमारी भतीजी गरिमा सहम उठती और कांपने लगती है। घटना के दिन गरिमा भी संकटमोचन मंदिर में परिजनों के साथ दर्शन-पूजन करने गई थी। इस धमाके में विद्याभूषण की डेढ़ साल की बेटी शिवांगी की मौत हो गई थी और गरिमा व पत्नी सुशीला गंभीर रूप से जख्म हो गई थीं।"

सुशीला के गले में आज भी बारूद जख्मों के गहरे निशान हैं। वह जब कभी अपनी बेटी की तस्वीरों को देखती हैं तो उनकी आंखें आंसुओं से भर जाती हैं और गला रूंध जाता है। सुशीला कहती हैं, "अपनी बेटी की मंगल कामना को लेकर मैं मंदिर में दर्शन के लिए गई थीं। उस समय हमारी डेढ़ साल की मासूम बच्ची शिवांगी गोद मे थी। आखिर हमने आतंकवादियों का क्या बिगाड़ा था? अच्छा हुआ जो आतंकवादी को फांसी हुई है। बम धमाकों में बेगुनाहों की जान लेने वालों को सजा-ए-मौत मिलनी ही चाहिए। बेटी के नहीं रहने का गम हमारा आज तक पीछा करता रहता है।"

सिहर उठती है गरिमा

बनारस में हुए सीरियल ब्लास्ट के मंजर को याद कर गरिमा आज भी सहम जाती हैं। वह कहती हैं, "घटना के समय हमारी उम्र फकत सात साल रही। बम से जख्मी हमारी बड़ी मां सुशीला के जबड़े से खून रिस रहा था। छोटी बहन शिवांगी को लेकर वह बदहवास अस्पताल के गेट पर पहुंची, तभी वह बेहोश हो गईं। डाक्टरों ने उन्हें फौरन अस्पताल में भर्ती किया। वह तो बच गईं, लेकिन हमारी मासूम बहन शिवांगी की मौत हो गई, जिसके सदमें से वह तीन दिन कोमा में रहीं। कई साल तक उनका इलाज चला। इसके बावजूद उनके चेहरे पर धमाके के निशान आज भी मौजूद हैं।"

आतंकी वारदात में बेटी स्वास्तिका की मौत आज भी संतोष शर्मा के रुह को कंपा देती है। वह कहते हैं,"वो मंजर हमें आज भी याद है और जब सोचते हैं तो सिहर उठते हैं। बेटी की याद आज भी परिवार को खलती है। दशाश्वमेध घाट पर हुए ब्लास्ट में बेटी को खोने के बाद हम कई रोज तक सो नहीं पाए थे। जब-तब बेटी स्वास्तिका का चेहरा हमारी आंखों के सामने घूमने लगता है। फैसला देर से आया, लेकिन अच्छा आया। वलीउल्लाह की फांसी के बाद गुनाह को अंजाम देने वाले लोगों को सबक मिलेगी और ऐसी वारदात को अंजाम देने से पहले वो जरूर सोचेंगे।"

मारा जा चुका है मास्टरमाइंड

बनारस के जिला शासकीय अधिवक्ता राजेश चंद्र शर्मा कहते हैं, "7 मार्च 2006 को पहला बम धमाका शाम 6.15 बजे संकटमोचन मंदिर में हुआ था। इस वारदात में सात लोग मारे गए और 26 अन्य गंभीर रूप से घायल हुए थे। यहां हुए बम ब्लास्ट के ठीक 15 मिनट बाद 6.30 बजे दशाश्वमेध मार्ग पर कुकर बम मिला। पुलिस मौके पर पहुंचती, इससे पहले शाम 6.35 बजे कैंट रेलवे स्टेशन पर प्रथम श्रेणी विश्राम कक्ष के सामने हुए धमाके से समूचा इलाका दहल गया। यहां कुल नौ लोग मारे गए और 50 से ज्यादा घायल हुए। सीरियल ब्लास्ट में वलीउल्लाह समेत कुल चार आतंकियों के नाम सामने आए, जिसमें से एक दहशतगर्द मोहम्मद जुबैर को कश्मीर में हुए एक मुठभेड़ में मारा जा चुका है। बांग्लादेश के रहने वाले तीन आतंकी जकारिया, मुस्तकीम और बशीर देश छोड़कर बांग्लादेश भाग चुके हैं।"

धमाके का आरोपी वलीउल्लाह

अधिवक्ता शर्मा के मुताबिक, "फांसी से बचने के लिए वलीउल्लाह ने बहुत कोशिश की। वलीउल्लाह को कैंट रेलवे स्टेशन पर हुए ब्लास्ट में साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया था, लेकिन संकटमोचन मंदिर और अन्य दूसरी वारदात में वह दोषी साबित हो गया। बम स्क्वॉयड ने अदालत को बताया था कि धमाके से 200 वर्गमीटर के दायरे में सब-कुछ तहस नहस हो सकता था। प्रकरण में 16 साल की सुनवाई के दौरान 121 गवाह पेश किए गए।"

सात मार्च 2006 को जब बनारस खून से रंग गया था तब दहशतगर्दों तक पहुंचने के लिए पुलिस के पास कोई क्लू नहीं था। पुलिस ने एसटीएफ की मदद ली और कॉल डिटेल खंगालने पर घटना को अंजाम देने वालों की शिनाख्त होने लगी। भेलूपुर के डिप्टी एसपी रहे त्रिभुवन नाथ त्रिपाठी कहते हैं, "हमने विवेचना के दौरान पाया कि घटना को अंजाम देने से पहले वलीउल्लाह कभी बनारस नहीं आया था। काल डिटेल के आधार पर कड़ियों को जोड़ने की कोशिश की गई तो सारे तार जुड़ते चले गए। सीरियल ब्लास्ट के बाद वलीउल्लाह का नंबर ऐसा था जो बनारस में पहली बार एक्टिव था। इसी आधार पर जांच आगे बढ़ाई तो उसका कनेक्शन सामने आया। फूलपुर (प्रयागराज) के एक मदरसे में मौलवी वल्लीउल्लाह बनारस ब्लास्ट से कुछ साल पहले भी पुलिस के हत्थे चढ़ा था। उसकी लकड़ी की टाल से पुलिस ने छापेमारी कर एके-47, आरडीएक्स सहित अन्य आपत्तिजनक वस्तुएं पकड़ी थीं। साथ ही उसके पास से विस्फोटक, डेटोनेटर और हथियार बरामद किए गए थे। लंबी जांच-पड़ताल के बाद वलीउल्लाह को लखनऊ के पास से गिरफ्तार किया। पूछताछ में उसने अपने इरादों को स्पष्ट कर दिया था। हालांकि काफी कोशिश के बावजूद वारदात में शामिल हूजी कमांडर शमीम सहित तीन आरोपी नहीं पकड़े जा सके।"

आरडीएक्स से किया गया था विस्फोट

सीरियल ब्लास्ट के बाद कैंट स्टेशन पर सबसे पहले पहुंची रामनगर स्थित फोरेंसिक लैब की टीम से जुड़े एक अफसर ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया, "जहां धमाका हुआ उस यात्री हाल के कोने-कोने की जांच की गई। आरडीएक्स के सुबूत मिल रहे थे। एल्यूमिनियम के टुकड़े भी मिले जिससे पता चला कि आतंकी बम बनाने के लिए कूकर का इस्तेमाल किए हैं। कुछ प्लास्टिक के टुकड़े भी मिले जो संकेत दे रहे थे कि विस्फोट का समय तय करने के लिए टाइमर लगाया गया था। संकटमोचन मंदिर में विस्फोट वाले स्थान से लेकर पूरे परिसर की बारीकी की जांच की गई तो यहां भी जो आरडीएक्स व एल्यूमीनियम के टुकड़े मिले। जिस जगह विस्फोटक रखा गया था, वहीं पास में पेड़ था।"

प्रयागराज जिले के फूलपुर का मूल निवासी वलीउल्लाह इस समय गाजियाबाद जेल में है। वाराणसी और प्रयागराज में अधिवक्ताओं ने उसका मुकदमा लड़ने से इनकार कर दिया था। बाद में हाईकोर्ट ने इस मुकदमे को गाजियाबाद की जिला अदालत में ट्रांसफर कर दिया था।

(बनारस स्थित लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest