Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में यह क्या हो रहा है!

गुजरात से लेकर हिमाचल, पूर्वोत्तर से लेकर महाराष्ट्र तक की राजनीतिक हलचल और कुछ छूट गईं और कुछ बड़ी ख़बरों का विश्लेषण कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन।
traffic police
तस्वीर केवल प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। 

गुजरात में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले राज्य सरकार ने एक हफ्ते के लिए राज्य के नागरिकों को ट्रैफिक अपराध करने की छूट दी। राज्य के गृह मंत्री ने ऐलान किया था कि 21 से 27 अक्टूबर के बीच ट्रैफिक के नियमों का उल्लंघन करने वालों के चालान नहीं काटे जाएंगे। जब चालान नहीं बनेंगे तो जाहिर है कि मुकदमा भी नहीं होगा। लाइसेंस और गाड़ी जब्त करने तथा जेल भेजने का तो सवाल ही नहीं उठता है। सवाल है कि कोई भी सरकार नागरिकों को इस तरह से अपराध करने की छूट कैसे दे सकती है? ध्यान रहे ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन सिर्फ मोटर व्हीकल एक्ट के तहत ही नहीं, बल्कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत भी अपराध है।

आईपीसी की धारा 279 के तहत गैर जिम्मेदार तरीके से या खतरनाक तरीके से गाड़ी चलाना अपराध है, जिसमें छह महीने तक की सजा का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों- जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने अपने एक आदेश में कहा भी है कि ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन का मामला आईपीसी के तहत भी चलाया जा सकता है। इसके बावजूद राज्य सरकार ने नागरिकों को एक हफ्ते तक अपराध करने की छूट दे दी थी। इस चलन के आधार पर तो सरकार भविष्य में बड़े अपराध करने की भी छूट देने लगेगी। किसी दिन यह घोषणा भी हो सकती है कि अमुक दिन चोरी करने पर किसी को नहीं पकड़ा जाएगा या अमुक दिन हत्या या बलात्कार करने पर कोई सजा नहीं होगी।

हिमाचल में रिवाज बदलना आसान नहीं

हिमाचल प्रदेश में हर पांच साल में सत्ता बदलने का रिवाज है और भाजपा इस रिवाज को बदलने के लिए जी जान से भिड़ी हुई है। राज्य में उसकी मौजूदा सरकार के खिलाफ जबरदस्त एंटी इन्कंबैंसी है, जिसे कम करने के लिए भाजपा ने कई कवायदें की हैं। पहली बार ऐसा हुआ कि उम्मीदवार के नाम तय करने के लिए पार्टी में गुप्त वोटिंग कराई गई और पार्टी में बगावत रोकने के लिए दिग्गज नेता लगे हैं। 12 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की 50 जनसभाएं होनी हैं। दूसरी ओर वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं हैं, फिर भी मुकाबला कांटे का है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जयराम ठाकुर सरकार के खिलाफ जनता में ही नहीं बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं में भी असंतोष है। उनकी सरकार का हाल क्या रहा है यह इस एक तथ्य से जाहिर होता है कि राज्य में पांच साल में छह मुख्य सचिव नियुक्त हुए। इसके अलावा पार्टी में असंतुष्टों की संख्या बहुत बढ़ गई है। टिकट बंटवारे के बाद मुख्यमंत्री के अपने जिले मंडी में बगावत हो गई है। धर्मशाला में भी कई नेताओं ने बागी होकर परचा दाखिल किया है। पार्टी ने एंटी इन्कंबैसी कम करने के लिए कई जगह पार्टी विधायकों के टिकट काट कर उनके परिजनों को टिकट दे दिए गए, जिससे भी पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ी है।

पूर्वोत्तर में भाजपा की मुश्किलें बढ़ेंगी

अगले वर्ष पूर्वोत्तर के चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होना हैं और चारों जगह भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। भाजपा मेघालय मे अगले साल फरवरी में होने वाला विधानसभा का चुनाव अकेले लड़ने की तैयारी कर रही है। उसने कहा है कि वह सभी 60 सीटों पर अकेले लड़ेगी। भाजपा ने यह फैसला मजबूरी में किया है, क्योंकि राज्य में सरकार चला रही नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के नेता और मुख्यमंत्री कोनरेड संगमा ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। पिछले चुनाव में भी दोनों पार्टियां अलग अलग लड़ी थीं। तब भाजपा 48 सीटों पर लड़ी थी और सिर्फ दो सीट जीत पाई थी। लेकिन बाद में वह एनपीपी की सरकार का हिस्सा बन गई थी। एनपीपी ने इसकी परवाह नहीं की और वेश्यालय चलाने व अवैध हथियार रखने के मामले में भाजपा नेताओं के खिलाफ कई बड़ी कार्रवाई हुई है। हालांकि एनपीपी अब भी एनडीए में है लेकिन चुनाव साथ नहीं लड़ेगी। इसी तरह भाजपा को त्रिपुरा मे भी मुश्किल होने वाली है। वहां उसकी सरकार है लेकिन उसके और उसकी सहयोगी आईपीएफटी के विधायक और दूसरे नेता साथ छोड़ कर लेफ्ट, कांग्रेस या तृणमूल कांग्रेस मे जा रहे हैं। चुनाव से पहले भाजपा और आईपीएफटी का तालमेल खत्म हो सकता है।

त्रिपुरा और मेघालय के साथ ही नगालैंड में भी अगले साल फरवरी में चुनाव है। हालांकि नगालैंड में भाजपा का कुछ भी दांव पर नहीं है और यथास्थिति बने रहना है। अगले साल के अंत में मिजोरम में चुनाव होगा वहां भी भाजपा मुश्किल में है। पिछली बार वह सिर्फ एक सीट जीत पाई थी। लेकिन सरकार बनने के बाद सत्तारूढ़ मिजो नेशनल फ्रंट एनडीए का हिस्सा बन गया था। अब फ्रंट के नेता और मुख्यमंत्री जोरामथंगा ने कहा है कि वे भाजपा की विचारधारा में भरोसा नहीं करते। जाहिर है कि वे भी एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ेंगे।

गुजरात के साथ होंगे दिल्ली के चुनाव!

पिछले कुछ दिनों में ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनसे संकेत मिला है कि दिल्ली में जल्द ही नगर निगम के चुनाव का ऐलान हो सकता है। केंद्र सरकार ने दिल्ली में नगर निगम की सीटों के परिसीमन को मंजूरी दे दी है और जल्दी ही उसकी अधिसूचना जारी होगी। आम आदमी पार्टी को अंदेशा है कि गुजरात में होने वाले चुनाव की तारीखों के आसपास ही दिल्ली में भी चुनाव कराए जा सकते हैं। गुजरात विधानसभा के चुनाव 30 अक्टूबर के बाद कभी भी घोषित हो सकते हैं। गौरतलब है कि दिल्ली के तीनों नगर निगमों के विलय और परिसीमन की प्रक्रिया की वजह से ही नगर निगम के चुनाव टले थे। ऐन चुनावों की घोषणा के दिन ही चुनाव टाल दिया गया था। लेकिन अब लग रहा है कि जल्दी ही चुनाव की घोषणा होगी। परिसीमन की मंजूरी और आरक्षण की प्रक्रिया तेज होने के साथ साथ राजनीतिक घटनाएं भी तेजी से हो रही है। चुनाव की तत्काल घोषणा मे एक समस्या यह है कि कांग्रेस ने परिसीमन को अदालत में चुनौती दी है।

खबर है कि भाजपा ने दिल्ली के अपने उन तमाम नेताओं को गुजरात और हिमाचल प्रदेश से दिल्ली लौट आने को कहा है, जो वहां प्रचार के लिए गए थे।

इस बीच भाजपा के शीर्ष नेताओं की दिल्ली में बैठकें शुरू हो गई है। भाजपा के जानकार सूत्रों का कहना है कि अगर अभी दिल्ली में नगर निगम का चुनाव हुआ तो उससे पार्टी को तीन फायदे हैं। पहला फायदा तो यह है कि आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गुजरात छोड़ कर दिल्ली में उलझेंगे। पंजाब के मुख्यमंत्री और दूसरे बड़े नेताओं का भी फोकस दिल्ली पर होगा। दूसरा फायदा यह होगा कि आम आदमी पार्टी अभी दिल्ली में चुनाव के लिए तैयार नहीं है, जबकि भाजपा की तैयारी हो गई है। इसलिए अचानक चुनाव की घोषणा से आप को तैयारी का वक्त नहीं मिलेगा। तीसरा फायदा यह है कि गुजरात के चुनाव से जो हवा बन रही है, उसका लाभ दिल्ली मे मिलेगा। भाजपा गुजरात और हिमाचल का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ रही है और दिल्ली नगर निगम का चुनाव भी पार्टी मोदी के नाम पर लड़ेगी। तभी अमित शाह ने अपने भाषण में कहा कि दिल्ली में भले ही आप की सरकार है, लेकिन ऊपर मोदी जी है इसलिए दिल्ली का काम नहीं रुकेगा।

कांग्रेसी क्षत्रप दिल्ली आना नहीं चाहते

कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने भी टीम बनाने में सबसे बड़ी बाधा यह है कि पार्टी का कोई भी बड़ा नेता प्रदेश छोड़ कर दिल्ली नही आना चाहता। राज्य में सरकार है तब भी और नहीं है तब भी वह राज्य की राजनीति में ही खुश है। उसको लग रहा है कि वह वहां अपने हिसाब से काम कर रहा है और राज्य की सत्ता में आ जाने की संभावना ज्यादा है। सिर्फ उन्हीं राज्यों के नेता कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति में आना चाहते हैं, जहां कांग्रेस की कोई संभावना नहीं दिख रही है या पार्टी आलाकमान से ऐसी नजदीकी है कि प्रदेश में सत्ता मिलने पर सीधे दिल्ली से पैराशूट से राज्य में डॉप कराए जा सके। सवाल यह भी है कि जब कमलनाथ ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया और अशोक गहलोत भी हिचक रहे थे तो भला कौन बड़ा नेता महासचिव या उपाध्यक्ष बनने को राजी होगा? सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार में से कौन बेंगलुरू छोड़ना चाहेगा? क्या भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव में से और अशोक चव्हाण या बाला साहेब थोराट में से कोई दिल्ली आना चाहेगा? क्या भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा छोड़ कर दिल्ली की राजनीति करेंगे? झारखंड और बिहार दोनों के बड़े नेता राज्य में मंत्री है या बनने की जुगाड़ में हैं। सो, कांग्रेस के पास बहुत सीमित विकल्प हैं। पी. चिदंबरम, दिग्विजय सिंह, मुकुल वासनिक, प्रमोद तिवारी, कुमारी शैलजा जैसे कुछ ही चेहरे हैं, जो केंद्र की राजनीति में रुचि रखते हैं।

पात्रा और लालपुरा का इस्तीफा होना चाहिए!

कोई व्यक्ति किसी संवैधानिक या सरकारी पद पर रहते हुए किसी राजनीतिक पार्टी के लिए आधिकारिक तौर पर कैसे काम कर सकता है? आम आदमी पार्टी ने भाजपा के कुछ नेताओं को लेकर यह मुद्दा उठाया है। असल में यह मुद्दा पहले भाजपा ने उठाया कि जास्मिन शाह दिल्ली डायलॉग एंड डेवलपमेंट कमीशन यानी डीडीसी के उपाध्यक्ष हैं और साथ ही आम आदमी पार्टी के लिए भी काम करते हैं। इसके जवाब में आम आदमी पार्टी ने संबित पात्रा और इकबाल सिंह लालपुरा का मुद्दा उठाया। ये दोनों नेता सरकारी पदों पर हैं और इसके बावजूद आधिकारिक रूप से भाजपा के लिए काम करते है। सो, सवाल है कि क्या भाजपा इन दोनों को सरकारी पद या पार्टी का पद छोड़ने के लिए कहेगी? आम आदमी पार्टी की ओर से कहा गया है कि जास्मिन शाह पार्टी में किसी भी आधिकारिक पद पर नही हैं। सो, उनके इस्तीफ़े का सवाल ही नहीं उठता। दूसरी ओर संबित पात्रा भारतीय पर्यटन विकास निगम (आईटीडीसी) के चेयरमैन और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं। वे टेलीविजन चैनलों पर पार्टी के प्रवक्ता की हैसियत से बैठते है और पार्टी की तरफ से प्रेस कांफ्रेन्स भी करते हैं। भाजपा की वेबसाइट पर प्रवक्ताओं की सूची मे उनका नाम शामिल है। इसी तरह पूर्व आईपीएस अधिकारी इकबाल सिंह लालपुरा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हैं और पिछले दिनों उनको भाजपा के संसदीय बोर्ड का सदस्य बनाया गया। आईटीडीसी के चेयरमैन और अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष के पद पर राजनेताओं की नियुक्ति होती रही है लेकिन यह पद अराजनीतिक होता है। इन पदों पर रहते हुए कोई व्यक्ति राजनीतिक दल के लिए काम नहीं कर सकता।

कांग्रेस का महाराष्ट्र संकट सुलझा

कांग्रेस के आला नेता महाराष्ट्र में भारत जोड़ो यात्रा को लेकर आशंकित थे। उन्हें लग रहा था कि दक्षिण के राज्यों में यात्रा को जिस तरह का रिस्पांस मिल रहा है वैसा अगर महाराष्ट्र में नहीं मिला तो माहौल बिगड़ेगा। दरअसल हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है उससे कुछ दिन पहले राहुल गांधी की यात्रा महाराष्ट्र पहुंचेगी। इसलिए कांग्रेस को बड़ी भीड़ जुटाने और बड़ा मैसेज बनवाने की चिंता थी। अभी तक यात्रा चार राज्यों से गुजरी है और चारों जगह बहुत अच्छा रिस्पांस मिला। पांचवें राज्य तेलंगाना में भी यात्रा को जैसा रिस्पांस मिल रहा है, उससे पार्टी के नेता संतुष्ट हैं। कांग्रेस को चिंता उसके बाद महाराष्ट्र को लेकर थी। वहां पार्टी कई गुटों में बंटी है। कांग्रेस विधायकों के टूटने की खबरें अलग है। इसीलिए कांग्रेस के आला नेताओं ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से बात की। बताया जा रहा है कि जब पवार ने यात्रा का समर्थन करने की सहमति दी तब अशोक चव्हाण और बाला साहेब थोराट उनसे मिलने गए और यात्रा में शामिल होने का अनुरोध किया। पवार इसके लिए तैयार हो गए हैं।

सात नवंबर को जब राहुल की यात्रा महाराष्ट्र पहुंचेगी तो पवार और उनकी पार्टी के नेता सीमा पर राहुल का स्वागत करेंगे। एनसीपी के कार्यकर्ताओं में राहुल की यात्रा को समर्थन देने का मैसेज चला गया है। इसके बाद शिव सेना नेता उद्धव ठाकरे भी राहुल की यात्रा का समर्थन करने को तैयार हो गए है। उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले यात्रा में शामिल होंगे। सात नवंबर को जब यात्रा नांदेड पहुंचेगी तो संभव है कि शरद पवार और उद्धव ठाकरे दोनों उसका स्वागत करने के लिए वहां मौजूद रहे। सो, भारत जोड़ो यात्रा बाकी पांच राज्यों के मुकाबले महाराष्ट्र में ज्यादा बड़ी हो सकती है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest