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बिहार: कोसी क्षेत्र के लोगों को बाढ़ से बचाने में अब भी नाकाम हैं केंद्र व राज्य सरकार

अभी ठीक से बारिश की बूंदे भी नहीं पड़ी हैं और कोसी तटबंध क्षेत्र में बाढ़ ने फिर एक बार तबाही मचानी शुरू कर दी है। बाढ़ से बड़ी संख्या में कोसी नदी क्षेत्र में रहने वाले परिवारों के घर नदी में बह गए हैं। साथ ही खेत में लगी फसल भी बर्बाद हो गई है।
बिहार: कोसी क्षेत्र के लोगों को बाढ़ से बचाने में अब भी नाकाम हैं केंद्र व राज्य सरकार

मानसून ने बिहार में दस्तक दे दी है। यहां अखबार बाढ की खबरों से पटे रहेंगे। हर वर्ष कोसी की एक ही कहानी रहती हैं कि बांध का टूटना, खेतों का बर्बाद होना, लोगों और जानवरों का जिंदा जल समाधि होना। हजारों लोगों का बाढ़ की वजह से विस्थापन और बाढ़ राहत के नाम पर सरकारों द्वारा राहत पैकेज की बात की चर्चा होगी। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी कोसी तटबंध के भीतर के गांव के लोग तबाही के डर के साए में जी रहे हैं। लोगों के मन में बांध टूटने का डर समाया रहता है। अब तक कोसी नदी क्षेत्र के लोगों के इस परेशानी को दूर करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों की ओर से कोई ठोस काम नहीं किए गए जिससे इनके परिवार और बच्चों के सामने हर साल आने वाली परेशानियों से बचाया जा सके।
 

बिहार: कोसी क्षेत्र के लोगों को बाढ़ से बचाने में अब भी नाकाम हैं केंद्र व राज्य सरकार

80 से ज़्यादा घर नदी में बह चुके, प्रशासन खामोश

अभी ठीक से बारिश की बूंदे भी नहीं पड़ी हैं और कोसी तटबंध क्षेत्र में बाढ़ ने फिर एक बार तबाही मचानी शुरू कर दी है। सुपौल जिला के दुबियाही पंचायत के वार्ड 9 बेला गोठ गांव में एक सप्ताह से कोसी ने अपना कहर बरपाना शुरू कर दिया है।

गांव के देव नारायण सदा बताते हैं कि, "एक सप्ताह पहले 30 से 35 घर कोसी में अचानक बहने लगा। नदी की स्थिति देखकर हम लोगों को पहले से अंदाजा हो गया था। इसलिए जान-माल का कोई नुकसान नहीं हुआ। प्रशासन के पास खबर गई लेकिन प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। अभी तक 80 से ज्यादा घर बह चुका है। लगभग चार से पांच एकड़ लगा फसल भी कोसी में बह गया।"

गांव के देबू सदा बताते हैं, "कुछ लोग गांव के सरकारी स्कूल में पनाह लिए हुए हैं वहीं कुछ लोगों को जहां विस्थापन की जमीन मिली है, वहीं जा कर रह रहे हैं। अगले साल बाढ़ के समय भी कटाव निरोधी काम के लिए प्रशासन से गुहार लगाई गई थी लेकिन इस दिशा में कोई पहल नहीं की गई। जल संसाधन विभाग द्वारा समय रहते कटाव निरोधी काम नहीं किया गया तो लगभग 650परिवार का घर कट कर नदी में बह जाएगा।"

गांव के भुवनेश्वर यादव का भी घर और दो कट्ठे में लगा फसल बह गया है। वो बताते हैं कि, "प्रशासन की ओर से सिर्फ पॉलिथीन उपलब्ध कराया गया है। अब तक न तो सूखा राशन और न शुद्ध पेयजल की व्यवस्था की गई है। छोटे-छोटे बच्चे को भी खाने के लाले पड़ रहे हैं। लगातार घर कटने से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है लेकिन प्रशासन सिर्फ कागज पर ही कोरम पूरा कर रहा है।"

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नदी का बढ़ा जलस्तर, उफान पर कई नदियां

बिहार की कई नदियां उफान पर है। मुजफ्फरपुर के औराई कटरा की कई नदियां उफान पर हैं। वहीं लखनदेई नदी के जलस्तर में भी वृद्धि जारी है। जल संसाधन विभाग के मुताबिक राज्य की आठ प्रमुख नदियों का जलस्तर कई जगहों पर लगातार बढ़ रहा है। व्यवस्था के नाम पर कुछ नया नहीं किया जा रहा है। हर साल बाढ़-बारिश से निपटने के लाख दावे किए जाते है लेकिन हालात हर साल एक जैसे ही दिखाई देते हैं।

मई से ही ख़तरे का अंदेशा

जब मार्च-अप्रैल में गर्मी अपना रिकॉर्ड तोड़ रहा था तभी भारत-नेपाल सीमा पर परिहार प्रखंड क्षेत्र में नेपाल से निकलने वाली हरदी नदी में सोमवार को अचानक बाढ़ आ गया था। नदी में जलस्तर इतना ज्यादा बढ़ गया कि पानी सड़कों से उफनकर बहने लगा था। विशेषज्ञों के मुताबिक ऊंचाई पर बसे नेपाल के पानी से बिहार की हरदी नदी उफना गई थी।

सुपौल के रहने वाले विपुल झा बताते हैं, "आपदा प्रबंधन विभाग बिहार और मंत्री संजय झा के सोशल मीडिया आईडी से एक बार भी सुपौल में कट रहे घर का चर्चा नहीं की गई है। जबकि बार-बार ग्रामीण क्षेत्र में बाढ़ से सुरक्षा के उपाय का पोस्ट किया जा रहा है।"

नदी विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्रा बताते हैं कि, "जुलाई महीने में जब जल संसाधन विभाग के लोग बयान देंगे कि इस बार बाढ़ समय से पहले आ गयी है।"

बिहार: कोसी क्षेत्र के लोगों को बाढ़ से बचाने में अब भी नाकाम हैं केंद्र व राज्य सरकार

2019 के बाढ़ पीड़ितों को अब तक नहीं मिला मुआवज़ा

"2019 के बाढ में पूरी पांच एकड़ जमीन नदी के कटाव की भेंट चढ़ गई थीं। सरकारी बाबू ने वादा किया था कि 4100 रुपए घर बनाने के लिए और और 6000 रुपए महीना जीवनयापन के लिए देंगे। लेकिन अभी तक कोई मुआवजा नहीं मिला है। इसलिए मजदूरी करने कभी पंजाब चल जाता हूं तो कभी दिल्ली।" यह कहते कहते बिहार के सुपौल जिले के परसामाधो गांव के लखन भावुक हो जाते हैं।

परसामाधो गांव के ही हरिहर यादव बताते हैं कि, "गांव के सिर्फ 40% व्यक्ति को 6000 रुपये प्रति महीने का मुआवजा मिल रहा है। उन्हें भी लगभग 7 महीने से नहीं मिल रहा है। बाढ़ के नाम पर सिर्फ सरकारी अधिकारियों और नेताओं का खाउ पकाउ चलता रहता है।" बाढ़ पीड़ित परिवारों को आपदा राहत कोष से प्रति परिवार 6000 रुपए की सहायता राशि देने का प्रावधान है।

वहीं सुपौल जिला नौआबाखर पंचायत के 2019 में ही 62 परिवार का घर कोसी में कट गया था। वहीं 2021 में 17 निजी आवास के साथ स्कूल का भवन भी कोसी नदी में बह गया। नौआबाखर पंचायत के मुखिया रामप्रसाद साह बताते हैं कि, "2019 और 2021 के किसी भी पीड़ित को सहायता राशि मुहैया नहीं कराया गया है। स्थिति यह हैं कि 2019 के पीड़ित परिवार अभी तक अंचल कार्यालय का चक्कर काट रहे हैं। पता नहीं 2021 के पीड़ित को कब मुआवजा मिलेगा?"

2021 के बाढ़ से सिर्फ किसनपुर प्रखंड में 62 हजार की आबादी प्रभावित हुई है। पूरे सुपौल का आंकड़ा देखा जाए तो लगभग 1 लाख 20 हजार और बिहार के मुख्य बाढ़ प्रभावित 10 जिले में लगभग 6.36 लाख से अधिक लोगों को बाढ़ से हानि हुई है।

बिहार: कोसी क्षेत्र के लोगों को बाढ़ से बचाने में अब भी नाकाम हैं केंद्र व राज्य सरकार

3 सालों से विस्थापित, नहीं हुआ पुनर्वास

बिहार के सुपौल जिले की बौराहा पंचायत की किस्मत यहां से बहने वाली कोसी नदी तय करती है। 3 साल पहले 100 से अधिक घर पक्की सड़क के साथ ही प्राथमिक विद्यालय भी पानी में ढ़ह गया। उस वक्त अंचल के अंचलाधिकारी समेत जिला के वरीय पदाधिकारी ने 79 परिवारों को वासहीन विस्थापित परिवार के रूप में चिन्हित किया था। अब तक तीन साल पहले की परिस्थितियों में छोड़े गये इन लोगों में ज्यादातर की हालत वैसी ही बनी हुई है।

गांव की सुनीता देवी बताती हैं, "आज भी वह दृश्य भुलाए नहीं भूला जा रहा है। जब देखते ही देखते खेती समेत विशाल आवासीय क्षेत्र कोसी नदी में समाहित हो गया था। पति दिल्ली में थे। ऐसे में बच्चों को लेकर रहना बड़ा जोखिम भरा था। सरकार की तरफ से कुछ राहत पैकेज मिला था। लेकिन अभी तक आवास और जमीन नहीं मिला है। 6000 रुपये का सहायता पैकेज भी सिर्फ 6 महीने ही मिला था। पिछले तीन साल से यही सड़क और सड़क किनारे 4×5 की झोपड़ी हम लोगों का एक मात्र ठिकाना है।"

बाढ़ के लिए केंद्र सरकार से बिहार को नहीं मिलती समुचित सहायता

बिहार सरकार के एक पदाधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि, "बिहार का बाढ़ अब सिर्फ अखबार का एक खबर बनकर रह गया है। केंद्र सरकार के द्वारा भी मांग के बावजूद न के बराबर राशि दी जाती है।" 2021 के आंकड़े को देखे तो केंद्र सरकार ने बिहार को बाढ़ से नुकसान की भरपाई के लिए 1038.96 करोड़ की राशि दी थी। जबकि बिहार सरकार ने 5291.29 करोड़ राशि की मांग की थी। इसी तरह 2020 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र से 3328 करोड़ रुपये की मांग की थी जबकि केंद्र ने बिहार को सिर्फ 1255 करोड़ रुपये दिये, वह भी 2021 के फरवरी महीने में। साल 2019 में 4300 करोड़ के बदले सिर्फ 953 करोड़ राशि मिला था। आंकड़े को देखें तो ऐसा लगता है कि बिहार को मिलने वाली सहायता राशि के मामले में केंद्र सरकार का रवैया ठीक नहीं रहा है।

"बिहार में बाढ़ एक घोटाला है"

बिहार में बाढ़ से मुआवजे और राहत कार्यों पर कोसी नवनिर्माण मंच के अध्यक्ष महेंद्र यादव बताते हैं कि, "सालों मरम्मत, नए निर्माण, बाढ़ राहत और बचाव के नाम पर जम कर पैसे का बंदरबांट किया जाता हैं। सुपौल के बीरपुर में कोसी पश्चिमी तटबंध के नेपाल प्रभाग में 15 जून 2020 को 80 करोड़ की लागत से एंटीरोजन कार्य कराया गया था। 9 लाख क्यूसेक पानी का दबाव झेलने का वादा किया गया था लेकिन सिर्फ 2 लाख क्यूसेक से अधिक पानी डिस्चार्ज होने के साथ ही नदी का आक्रामक प्रभाव दिखने लगा है। एस्टिमेट बनता है, लेकिन काम क्या होता है? यदि तटबंधों की मरम्मत और बाढ़ से निपटने की तैयारियां सही ढंग से हो तो वे टूटेंगे कैसे?"

सुपौल के समाजसेवी और कोशी नदी पर विगत 20 सालों से काम कर रहे चंद्रशेखर झा मुआवजे और राहत कार्यों के विषय पर कहते हैं कि, "बिहार में बाढ़ एक घोटाला है।"

बिहार में आख़िर बार-बार क्यों आती है बाढ़?

आज़ादी के बाद ही कोसी की बाढ़ से राहत दिलाने के नाम पर तटबंध बनाकर इसे दो भागों में क़ैद किया गया था और अब लगातार बनते तटबंधों ने नदी को कई भागों में बंद कर दिया है। तटबंध के विस्तारीकरण से कुछ गांवों को बाढ़ से जरूर राहत मिल रही है, लेकिन तटबंध के अंदर स्थित गांवों की हालत और नदियों की स्थिति दिनों दिन खराब होती जा रही हैं। नदी विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्रा बताते हैं कि," सरकार हर साल बाढ़ आने से पहले तैयारी करती है फिर बाढ आती है, तबाही मचाती हैं और सरकार और इंजीनियर नेपाल पर सारा दोष मढ़ देते हैं। बाढ खत्म होते ही सरकारी तंत्र सो जाता है। हमने तटबंध बना कर ढाई दिन के बाढ़ को ढ़ाई महीने में तब्दील कर दिया है। उस वक्त तटबंध बनने का बहुत विरोध हो रहा था। तटबंध खत्म किए बिना बाढ खत्म नहीं हो सकता। कोसी तटबंध कभी भी जनता के हित में नहीं रहा है।"

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SDRF की चार टीम के भरोसे के करोड़ों लोग

बिहार की शोक कहलाने वाली कोसी नदी की गिरफ्त में बिहार के 10 जिले हैं। जिसकी आबादी लगभग 3 करोड़ से ज्यादा होगी। लेकिन इस पूरी आबादी के लिए कोसी नदी क्षेत्रों में एसडीआरएफ की सिर्फ पांच टीमें काम कर रही हैं और वह भी सिर्फ सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया, खगड़िया और मधुबनी में।

कोसी नदी पर काम करने वाले कोसी नवनिर्माण मंच के अध्यक्ष महेंद्र यादव बताते हैं कि, "सुपौल के किसी गांव में अगर बांध टूट जाए तो एसडीआरएफ की टीम को पहुंचने में कम से कम एक घंटे लग जाएंगे। लेकिन अक्सर यह टीम एक दिन बाद आती है। इस वजह से कई बार लोगों के जानमाल का भारी नुकसान हो जाता है।"

बिहार का मिथिलांचल, सीमांचल और कोसी क्षेत्र में नदियों का जाल बिछा हुआ है। हर जिले में कम से कम आधा दर्जन नदियां बहती हैं। जिस वजह से अक्सर बच्चों के डूबने की घटनाएं होती रहती हैं, लेकिन शायद ही कोई मामला ऐसा भी देखने को मिला हो, जिसमें बच्चे को जिंदा सुरक्षित निकाल लिया गया हो। अधिकांश घटनाओं में 24 घंटे के बाद लाश बरामद की जाती हैं। पिछले एक हफ्ते में सीमांचल में कम से कम 15 लोगों से ज्यादा लोगों की नदी व तालाब में डूबने से मौत हो चुकी है।

बिहार में एसडीआरएफ

प्राकृतिक व अप्राकृतिक आपदा के समय तत्काल राहत एवं बचाव आदि कार्यो को त्वरित व प्रभावी रूप से संपादित किये जाने के उद्देश्य से राज्य आपदा प्रतिवादन बल (एस.डी.आर.एफ.) का गठन किया गया था। बिहार में एसडीआरएफ की स्थापना साल 2010 में हुई थी। इसमें पहले चरण में सहरसा, पूर्णिया, भागलपुर, मधुबनी, खगड़िया और सीतामढ़ी में और दूसरे चरण में पटना, वैशाली, मुजफ्फरपुर, मधेपुरा, बेगूसराय, पश्चिमी चंपारण और सारण में सेंटर खोले गये। अभी पूरे बिहार के 13 जिलों में एसडीआरएफ की टीमें काम कर रही हैं। हर सेंटर में 40-40 जवान होते हैं। आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़े के मुताबिक प्रत्येक साल बिहार में बाढ़ से करीब 81 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित होते हैं।

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