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बिहार मनरेगा: 393 करोड़ की वित्तीय अनियमितता, 11 करोड़ 79 लाख की चोरी और वसूली केवल 1593 रुपये

बिहार सरकार के सामाजिक अंकेक्षण समिति ने बिहार के तकरीबन 30% ग्राम पंचायतों का अध्ययन कर बताया कि मनरेगा की योजना में 393 करोड रुपए की वित्तीय अनियमितता पाई गई और 11 करोड़ 90 लाख की चोरी हुई जबकि वसूली केवल 1593 रुपए ही हुई।
MNREGA
Image courtesy : The Hindu

ग्रामीण भारत की रीढ़ कहे जाने वाले मनरेगा कार्यक्रम में बिहार से एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है जहां 393 करोड रुपए की वित्तीय अनियमितता पाई गई जबकि चोरी हुई 11 करोड़ 79 लाख रुपए की और वसूली हुई केवल 1593 रुपए की। बिहार सरकार की सामाजिक अंकेक्षण समिति यानी सोशल ऑडिट सोसायटी साल 2017 से अब तक सोशल ऑडिट कर रही है लेकिन अभी तक पूरे बिहार का सोशल ऑडिट नहीं कर पाई है। केवल 30% ग्राम पंचायतों का सोशल ऑडिट ही हुआ है।

इन 30% ग्राम पंचायतों के सोशल ऑडिट से यह बात निकलकर सामने आ रही है कि इन 30% ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत 353 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता हुई है। तकरीबन 11 करोड़ 79 लाख करोड़ की चोरी हुई है। आसान शब्दों में समझें तो बात यह है कि जब बिहार की सोशल ऑडिट कमिटी ने लोगों से पूछताछ की। फाइलों को खंगाला और लाभार्थियों से मुलाकात की तो 353 करोड रुपए का हिसाब किताब नहीं पाया। वह कैसे खर्च हुआ किस तरह से खर्च हुआ? इसको लेकर ढेर सारे सवाल हैं। बाकी 11 करोड़ 79 लाख कहां चला गया इसकी कोई जानकारी नहीं मिली।

इस पूरे प्रकरण को थोड़ा और स्पष्ट करके समझें तो बात यह निकल सकती है कि मनरेगा में 2970 करोड़ रुपए बिहार के सभी ग्राम पंचायत को आवंटित किया गया है। इसमें से 30% ग्राम पंचायत की आवंटन की राशि तकरीबन 891 करोड रुपए बनती है। मतलब अगर हम मोटे तौर पर अनुमान लगाकर चलें बात यह है कि तकरीबन 900 करोड रुपए में से 353 करोड रुपए वित्तीय अनियमितता से जुड़े हुए हैं। (केवल मुद्दे को समझने के लिए उदाहरण दिया गया है, पुख्ता तौर पर यह बात पता नहीं है कि 30% पंचायतों में मनरेगा का कितना पैसा आवंटित किया गया।)

इन सब में सबसे अधिक चौंकाने वाली बात जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय नामक संस्था के प्रेस रिलीज से पता चलती है। इस प्रेस रिलीज में बताया गया है कि मनरेगा आयुक्त के बार-बार जिलाधिकारियो और सह जिला कार्यक्रम पदाधिकारियों को पत्र लिखने के बाद भी चोरी के 11 करोड़ 79 लाख की राशि में वसूली केवल 1593 रुपए की हुई।

नेशनल अलाइंस फॉर पीपल मूवमेंट के सदस्य विद्याकर झा का कहना है कि अगर आप ध्यान से रिपोर्ट को पढ़ेंगे तो दिखेगा कि ग्राम पंचायत में जितना बकाया है उससे बहुत ज्यादा रुपए की वित्तीय अनियमितता सामने आई है। लेकिन फिर भी इतनी राशि की वसूली नहीं हुई जिससे कम से कम बकाया चुकाया जा सके। मनरेगा आयुक्त सीपी खंडूजा ने बार-बार पत्र लिखा लेकिन फिर भी वित्तीय अनियमितता और चोरी की राशि का ठीक से पता नहीं चल पाया। चोरी की राशि में से केवल 1593 रुपए की वसूली हुई है। यह साफ तौर पर इस ओर इशारा करता है कि मनरेगा जैसी योजना की धांधली में ग्राम पंचायत से लेकर जिलाधिकारी तक वह सारे अधिकारी शामिल हैं जो कहीं ना कहीं मनरेगा से जुड़े हुए हैं। यह भारत में भ्रष्टाचार का एक और बड़ा उदाहरण है।

अब पूरे भारत में थोड़ा मनरेगा का हाल देख लेते हैं। दिसंबर 2021 तक मनरेगा के तहत तकरीबन दो करोड़ परिवारों को रोजगार मिला था। कोरोना के वक्त का आंकड़ा बढ़कर चार करोड़ परिवारों का हो गया था। कुल मिला कर कहा जाए तो औसतन तकरीबन 10 करोड़ लोगों के जीवन जीने की लागत का खर्चा निकालने का सहारा मनरेगा है। ऐसे समय में जब महंगाई रुकने का नाम नहीं ले रही है तब +मनरेगा के तहत मिलने वाले एक दिन के काम के लिए औसतन तकरीबन ₹200 दिया जाता है। इतना कम पैसा देने के बाद भी मनरेगा के तहत काम करने वालों की मांग बहुत ज्यादा है। मनरेगा से जुड़े कार्यकर्ताओं की हर बार यह शिकायत रहती है कि बजट में मनरेगा को लेकर जितना पैसा आवंटित किया जाना चाहिए उतना पैसा आवंटित नहीं किया जाता। जितना पैसा मांगा जाता है उसका आधा पैसा भी नहीं मिलता है।

मनरेगा संघर्ष मोर्चा का कहना है कि उनकी मांग थी कि मनरेगा के लिए बजट में सरकार तकरीबन 3 लाख 64 करोड रुपए का प्रावधान करे लेकिन प्रावधान केवल 73 हजार करोड रुपए का हुआ है। यह इतना कम है कि मनरेगा में रजिस्टर्ड सभी कामगारों को अगर लगातार 16 दिन का काम दे दिया जाए तो यह पूरा पैसा खत्म हो जाएगा। मनरेगा को लेकर हर साल की प्रवत्ति बन गई है कि मनरेगा के तहत जितने लोग काम मांगते हैं उतने लोगों को काम नहीं मिलता है। बजट में आवंटित किया गया पैसा वित्त वर्ष खत्म होने से पहले ही खत्म हो जाता है। फिर अगले साल जो पैसा आवंटित किया जाता है वह पिछले साल से कम होता है। उसका भी बड़ा हिस्सा पिछले साल का बकाया देने में खर्च हो जाता है। ऐसे में 11 करोड़ रुपये की खुल्लम खुल्ला धांधली के सामने आने और सरकारी अधिकारी के पत्र लिखने पर भी केवल 1593 रुपए की वसूली हो पा रही हो तो सोचा जा सकता है कि मनरेगा के भीतर की स्थिति कितनी जर्जर होगी?

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