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बिहार : भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में स्वामी सहजानंद सरस्वती की भूमिका

श्री सीताराम आश्रम ट्रस्ट, राघावपुर (बिहटा) की ओर से 'भारत का स्वाधीनता आन्दोलन और स्वामी सहजानन्द सरस्वती ' विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अवकाश प्राप्त प्रोफ़ेसर प्रो अवधेश प्रधान थे।
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मुख्य वक्ता अवधेश प्रधान ने अपने संबोधन में कहा "यह मेरा सौभाग्य है कि मैंने स्वामी जी के इस तीर्थ पर यात्रा की है। बिहार के हर स्कूल के बच्चे को स्वामी सहजानन्द की इस तीर्थ पर आना चाहिए। मैं कल्पना करता हूँ कि यह संस्था एक विश्व स्तर का संस्थान बनेगा। स्वामी जी ने बहुत कम समय मे ऐसा पांडित्य ग्रहण किया जिसका दूसरा उदाहरण नहीं है। प्राचीन भारतीय शास्त्रों पर उन जैसा  कमांड किसी दूसरे का नहीं था। लेकिन उन्होंने शास्त्रों को भुला दिया  फिर उसकी ओर कभी ध्यान नहीं दिया।  वे धीरे-धीरे अंग्रेज़ी पढ़ने के दौरान आज़ादी की लड़ाई में आये। ज्ञान का आना अहंकार और मज़ा होता है। लेकिन स्वामी जी भी अलग हुए। स्वामी सहजानन्द को शंकराचार्य का पद ऑफर किया था लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया था। स्वामी जी और राहुल जी जीवन का सुनहला समय बिहार की मिट्टी को सौंप दिया और उससे एक हो गए। सफल जीवन से सार्थक जीवन बड़ी चीज होती है। स्वामी सहजानन्द को जीवन काल मे समझ लिया था। जवाहर लाल नेहरू को उन्होंने गीता पढ़ाया। उन्होंने कहा श्री सीताराम आश्रम क्रांति का प्रतीक है।"

स्वामी सहजानन्द कोपा गांव, बड़हिया ताल आदि में चले आंदोलनों का उदाहरण देते हुए कहा "दबे कुचले जिनका आत्मविश्वास खो गया था उसे उसका आत्मविश्वास लौटाया। जब बकाश्त संघर्ष में भूमिहार, राजपूत स्त्रियां आन्दोलन में उतर पड़े। जब मर्द जेल में चले गए तो औरतें लड़ाई में आ गई। यदुनन्दन शर्मा ने भेड़  व बकरियों को बाघ बना दिया। स्वामी जी एक एक पैसे का हिसाब दिया करते थे। देश मे हमेशा अंधकार ही नहीं रहेगा वहां दिए भी जलाए जाएंगे। हिंदी प्रदेश के जागरण का काम है। जो आंदोलन करता हैं वे बड़ा काम करते हैं लेकिन जो लोग दस्तावेजीकरण करते हैं  वे और भी बड़ा काम करते हैं। दुनिया के कितने नेताओं ने किसान कैसे करें  ? जैसी किताब लिखी है?  यह किताब एकदम सामान्य भाषा मे लिखा है प्रेमचन्द कहा करते थे कि जो जनसाधरण के राजनीतिक शिक्षण के लिए काम करे। 1936 के जिस पंडाल में   प्रेमचन्द के नेतृत्व में प्रगतिशील लेखक संघ के सथापना हुई उसी में  स्वामी सहजानन्द सरस्वती के न नेतृत्व में किसान सभा की स्थापना हुई।  लोग अपने अधिकारों के लिए डट भी जाएं तो बड़ी बात होती है। गांधी जी ने यही तो काम किया। बाबा नागार्जुन ने कहा स्वामी सहजानन्द मेरे राजनीतिक गुरु है।"

इस व्याख्यान का स्वागत वक्तव्य ट्रस्ट के सचिव डॉ सत्यजीत सिंह ने किया।  उन्होनें कहा, "यह आश्रम हमलोग स्वामी जी के सपनो के अनुसार बनाने की कोशिश करेंगे। स्वामी सहजानन्द दुनिया मे ऐसे उन विरल लोगों में थे  जो सन्यासी होने के साथ-साथ समाजवादीभी बने।"

कैलाश चन्द्र झा ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, "अवधेश प्रधान से परिचय मेरा बहुत पुराना है। इन्होंने ' मेरा जीवन संघर्ष'  का संस्करण प्रकाशित किया था। उसमें स्वतंत्रता आन्दोलन और उनके विचार उसमें निहित हैं। यहीं से स्वाधीनता आन्दोलन और स्वामी जी की विचारधारा की भी यहीं से शुरुआत हुई है। ग्रँथशिल्पी से स्वामी जी के कई किताबें आपने प्रकाशित की।"

व्याख्यान की अध्यक्षता नवल किशोर चौधरी ने की। कार्यक्रम का संचालन जयप्रकाश ने किया और धन्यवाद ज्ञापन ट्रस्ट के अध्यक्ष योगेंद्र प्रसाद सिंह ने किया। 

इस कार्यक्रम में प्रमुख मौजूद लोगों में ट्रस्ट के बुजुर्ग सदस्य योगेंद्र प्रसाद सिंह,  राकेश रंजन, जी एन शर्मा, बिनेश सिंह,  राकेश रंजन, गोपाल शर्मा, कवि चन्द्रबिंद सिंह, अजीत सिंह, हिंदी के प्रोफेसर उदय प्रताप 'उदय', सुनील सिंह, संजेश कुमार, आनन्द कुमार, पटना विश्विद्यालय की प्रोफेसर मंजू शर्मा, रविशंकर उपाध्याय, आशीष झा, विनीत राय, अभिषेक आनन्द, रमाकान्त भगत, चित्रकार प्रमोद, गौतम आंनद, मोनू,  शिवम, दिलीप, तान्या, डॉ अंकित, पुष्पेंद्र शुक्ला, मीर सैफ अली, अभिषेक, राजू कुमार, आई.आई.टी के रजिस्ट्रार त्रिपुरारी, सीपीआई नेता मुन्ना सिंह और सत्या शामिल हुए। 

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