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बिहार : रसोईकर्मियों का मानेदय सहित अन्‍य मांगों को लेकर राज्‍यव्‍यापी प्रदर्शन

देश की आज़ादी के 75 साल हो जाने के बावजूद सरकारों और विभागीय आला-अधिकारियों की अघोषित 'ग़ुलामगिरी' रसोईयाकर्मी अब सहन नहीं करेंगी। यदि उनकी मांगों पर जल्‍द ध्‍यान नहीं दिया गया तो वे 'अनिश्चितकालीन हड़ताल' करेंगीं।
bihar protest

एक बार फिर से बिहार की रसोईकर्मी प्रतिमाह 1650 रु. मानदेय राशि को बढ़ाने व ‘सरकारी कर्मचारी का दर्ज़ा’ दिए जाने समेत अपनी 6 सूत्री मांगों को लेकर सड़कों पर उतरीं हैं। 21 सितम्बर को प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर धरना-प्रदर्शन कार्यक्रमों के माध्यम से सभी रसोईकर्मियों ने राज्य व केंद्र की सरकारों के समक्ष अपनी दयनीय अवस्था से उबारने की गुहार लगाई है। साथ ही यह भी आगाह किया है कि - देश की आज़ादी के 75 साल हो जाने के बावजूद सरकारें और विभागीय आला-अधिकारियों की अघोषित 'ग़ुलामगिरी' अब वे नहीं सहन करेंगी। यदि उनकी मांगों पर ज़ल्द ध्यान नहीं दिया गया तो वे भी आशाकर्मियों' की भांति “अनिश्चितकालीन हड़ताल” करने ले लिए विवश हो जायेंगी।

प्राप्त सूचनाओं में अभी तक ऐसी कोई खबर नहीं आई है कि इनकी मांगों पर सरकार अथवा विभाग ने कोई संज्ञान लिया है।

भारी विडंबना है कि एक ओर तो मौजूदा केंद्र की सरकार पूरे विश्व के सामने बढ़ चढ़कर श्रेय लेती है कि वो अपने देश में ‘मिड डे मिल स्कीम’ (मध्याह्न भोजन योजना) के जरिये ‘दुनिया की सबसे बड़ी स्कूल फीडिंग योजना’ चला रही है। जिसके तहत सभी सरकारी स्कूलों में बच्चों को मुफ्त में 'उच्च स्तरीय भोजन' उपलब्ध करा रही है। लेकिन वहीँ दूसरी ओर, उस आदर्श योजना को अपनी पूरी लगन-मेहनत से सफल बनाकर हर दिन भूखे बच्चों को भोजन उपलब्ध करानेवाली रसोईकर्मियों की दुरावस्था से उसे कोई लेना देना नहीं है। राज्य की सरकारें भी कमोबेश केंद्र का अनुसरण कर अपनी जवाबदेहियों से पल्ला झाड़े हुई हैं।

आये दिन मीडिया में इस बात की ख़बर काफी प्रमुखता के साथ प्रसारित-प्रचारित होती रहती है कि- अमुक स्कूल के ‘मिड डे मिल’ के भोजन में कहीं छिपकली तो कहीं कुछ और गिर जाने से उस भोजन को खानेवाले स्कूली बच्चे प्रभावित हो गए। लेकिन ज़र्ज़र हाल स्कूलों और वहां बच्चों के लिए भोजन बनानेवाले स्थल की कुव्यवस्था की जिम्मेवार सरकारों की चर्चा को साफ़ गायब कर दिया जाता है। दिखावे के तौर पर स्कूल की भोजन-व्यवस्था से जुड़े कुछ लोगों समेत रसोईकर्मियों पर सरकारी गाज़ गिराकर मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है।

45 वर्षीय विधवा आशा देवी (प्राथमिक विद्यालय धनारुवा, पटना जिला) बतातीं हैं, ''विगत कई वर्षों से मैं बिना नागा किये स्कूल शुरू होने से पहले ही सबसे पहले पहुंचकर बच्चों के लिए खाना बनाने के काम में लग जाती हूं। दोपहर में सभी बच्चों को खाना खिलाने के उपरांत छुट्टी होने पर भी सारा काम निपटाने के बाद ही स्कूल से निकलना हो पाता है। फिर भी विभाग के अधिकारीगण और सरकार द्वारा हमें “स्वैछिक कर्मी” कहकर हर महीने मात्र 1650 रु. की मानदेय राशि देकर टरका देते हैं। वह भी साल में महज 10 महीने का ही दिया जाता है। बाकी का दो महीना हमें पूरे परिवार के साथ भूखे रहने के लिए छोड़ दिया जाता है। इतनी भयानक महंगाई में इन चंद रुपयों से घर-परिवार और बच्चों का भरण-पोषण कैसे होगा? हर दिन हमको ताना देकर कहा जाता है चार बजे शाम के बाद तो तुम खाली ही हो जाती हो उसके बाद कमाने के लिए तो स्वतंत्र ही हो, जाओ कमाई करो, किसने रोका है। शाम के चार बजने के बाद हमको कौन काम देगा और हम कहां काम करें।'’ यही कहानी तमाम रसोईकर्मियों की है।

ये सर्वविदित और स्थापित सच है कि देश व सभी प्रदेशों के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में जारी “मध्याह्न भोजन योजना” के सफल संचालन की रीढ़ रसोईकर्मी हैं। जो सरकार घोषित ‘भूख और शिक्षा’ की समस्या से करोड़ों गरीबों के बच्चों को उबारने के लिए अपनी कड़ी मेहनत से समय पर बच्चों को खाना खिलातीं हैं। लेकिन आज तक इन रसोईकर्मियों को न तो एक सरकारीकर्मी का सम्मान दिया गया है और न ही इनके दुःख दर्दों से आज किसी को कोई मतलब है। उलटे कुछ भी बोलने पर स्कूल के शिक्षक-कर्मचारियों से लेकर सभी आला-अफसरों तक की डांट-फटकार और धौंस-धमकी मिलना रोजमर्रे की घटना बनी हुई है गोया कि वे एक ग़ुलाम हों।

21 सितम्बर को बिहार राज्य रसोईया संघ (संबंद्ध एक्टू) के राज्यव्यापी आह्वान पर प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर हुए धरना-प्रदर्शन कार्यक्रमों में शामिल रसोईकर्मियों ने स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से एक बार फिर से अपनी 6 सूत्री मांगें दी हैं। जिनमें ये मांग की गयी है कि- 1. साल में 10 महीने की बजाय 12 महीने काम दिया जाए और प्रतिमाह मिलनेवाले 1650 रुपये मानदेय राशि को बढ़ाकर कम से कम 23,000रुपये प्रतिमाह किया जाए। 2. सभी रसोईकर्मियों को सरकारी कर्मचारी का दर्ज़ा और सेवा-सुविधाएं दी जाएं। 3. सरकार द्वारा प्रस्तावित “नयी केंद्रीकृत किचेन योजना” अविलम्ब वापस लिया जाए यह अघोषित रूप से सभी रसोईकर्मियों को काम से ही हटा देने के लिए लाई गई है। 4.सभी को सामाजिक सुरक्षा की गारंटी की जाए। 5.सभी रसोईकर्मियों को ईपीएफ और ईएसटी की सुविधा दी जाए। 6. मध्याह्न भोजन योजना के एनजीओकरण पर रोक लगाई जाए एवं इसका निजीकरण बंद हो।

सनद रहे कि केंद्र की सरकार के ही हवाले से, ‘मध्याह्न भोजन योजना’ का नाम बदलकर “प्रधानमंत्री पोषण शक्ति योजना” कर दिया गया है इसकी केंद्रीय बजट राशि में भारी कटौती कर दी गई है।

आंदोलनकारी रसोईकर्मी संगठनों के प्रतिनिधियों के अनुसार केंद्र सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि - बजट राशि में की जा रही कटौती के कारण सभी “सोशल वेलफेयर स्कीमों” की आबंटित राशि में हुई इतनी बड़ी गिरावट ने सभी सामाजिक विकास योजनाओं को 20 साल पीछे की बदतर स्थिति में पहुंचा दिया है। जिससे ध्यान हटाने के लिए ही देश के गरीबों को अब तक मदद पहुंचाने वाली इन विकास योजनाओं को “रेवड़ी बांटना” करार दिया जा रहा है। इसका भंडाफोड़ करना अनिवार्य हो गया है।

(लेखक झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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