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बदलाव: अस्पतालों को चालू करवाने के लिए बिहार के युवा चला रहे अभियान

अब तक जाति, धर्म और दूसरी अस्मिताओं के आधार पर उग्र होने और आंदोलन करने वाले बिहार के युवाओं के बीच यह एक सकारात्मक बदलाव है। वे अब उन मुद्दों को पहचानने लगे हैं, जिनसे उनके जीवन का जुड़ाव है।
बदलाव: अस्पतालों को चालू करवाने के लिए बिहार के युवा चला रहे अभियान

15 मई को बिहार के सबसे पिछड़े माने जाने वाले कोसी क्षेत्र के युवा सोशल मीडिया साइट ट्विटर पर उतरे। वे सहरसा जिले के सबसे बड़े गांव बनगांव के स्वास्थ्य उपकेंद्र को फिर से चालू कराने के लिए अभियान चला रहे थे। 15 मई शाम चार बजे शुरू हुए इस ट्वीट अभियान में इन युवाओं ने 25 हजार से अधिक ट्वीट किये और इस तरह एक वक्त #openbangaonphc बिहार में नंबर वन पर ट्रेंड करने लगा। इसका नतीजा यह हुआ कि 18 मई को बनगांव उप स्वास्थ्य केंद्र को व्यवस्थित कर सरकार ने वहां स्वास्थ्य सेवाओं की शुरुआत कर दी।

इससे पहले नौ मई को पटना जिले के मोकामा के युवाओं ने इसी तरह ट्विटर पर #openmokamanajrath को ट्रेंड कराया था। वे युवा अपने इलाके में सौ एकड़ जमीन पर फैले नाजरथ अस्पताल को फिर से चालू करने का अभियान चला रहे थे। कभी यह 280 बेड का अस्पताल हुआ करता था, अब यह छोटी सी ओपीडी में तब्दील होकर रह गया। इसे फिर से पूरी क्षमता से शुरू कराने के लिए युवाओं ने 2.34 लाख ट्वीट किये और उनका हैशटैग अभियान देश में पहले नंबर पर ट्रेंड करने लगा। फिलहाल इस अस्पताल को फिर से चालू करने के प्रयास चल रहे हैं।

इन दोनों अभियानों की सफलता के बाद युवाओं ने मुजफ्फरपुर के मनियारी अस्पताल को चालू कराने के लिए 18 मई को ट्विटर पर अभियान छेड़ दिया है। #reopenmaniyarihospital के नाम से।

ये तीनों अभियान बताते हैं कि कोरोना काल में जिस बिहार में स्वास्थ्य संसाधनों की बदहाल तसवीर उजागर हुई है, युवाओं के लिए अब यह बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। शहरों ही नहीं गांवों में भी बंद पड़े अस्पतालों को फिर से शुरू करवाने का अभियान चल रहा है।

अब तक जाति, धर्म और दूसरी अस्मिताओं के आधार पर उग्र होने और आंदोलन करने वाले बिहार के युवाओं के बीच यह एक सकारात्मक बदलाव है। वे अब उन मुद्दों को पहचानने लगे हैं, जिनसे उनके जीवन का जुड़ाव है। वे अब समझने लगे हैं कि आपदा औऱ महामारी की स्थिति में उनके जीवन की सुरक्षा इन सरकारी अस्पतालों के जरिये ही मुमकिन है।

पटना जिले के मोकामा स्थित नाजरथ अस्पताल को फिर से चालू करवाने के लिए चलाये जा रहे अभियान के अगुआ सुंदरम सिंह कहते हैं कि मोकामा सिर्फ कहने के लिए पटना जिले में है, यहां से पटना की दूरी 100 किमी है। इस बीच में कोई ढंग का अस्पताल नहीं है। मोकामा के लोगों को हर छोटी बड़ी बीमारी के इलाज के लिए पटना जाना पड़ता है। जबकि सिर्फ 14-15 साल पहले तक मोकामा का यह नाजरथ अस्पताल मोकामा ही नहीं आसपास के कई जिलों का लाइफ लाइन माना जाता था। 1947 में अमेरिका की सिस्टर्स ऑफ चैरिटी द्वारा खोले गये इस अस्पताल को एक जमाने में पीएमसीएच के बाद दूसरा सबसे बड़े अस्पताल की प्रतिष्ठा थी। मगर कई वजहों से यह अस्पताल 2007 में बंद हो गया। 2012 में इसे लेकर एक आंदोलन हुआ तो यहां सिर्फ ओपीडी सेवा शुरू हुई। वे कहते हैं, अगर सरकार मध्यस्थता करे तो यह अस्पताल फिर से पुराने रूप में शुरू हो सकता है, यहां इतनी जगह है कि आराम से 2000 बेड का अस्पताल चलाया जा सकता है। अगर उक्त संस्था इसे चलाने से इनकार करे तो सरकार उसे टेकओवर भी कर सकती है। मगर इतना संसाधन रहते हुए लोगों का बेमौत मरना आपराधिक है। इस कोरोना काल में उनके अपने वार्ड में कई लोगों की मौत कोरोना से हो गयी है। अगर ढंग का अस्पताल होता तो लोगों को बचाया जा सकता था।

सुंदरम कहते हैं कि ट्विटर अभियान के बाद इस मुद्दे पर गंभीरता से बातें होने लगी हैं और बातचीत जिस दिशा में है, मुमकिन है जल्द कुछ सकारात्मक परिणाम आये।

भूसे से भरा बनगांव का उप स्वास्थ्य केन्द्र

बनगांव में अस्पतालों को फिर से चालू कराने के अभियान का संचालन करने वाले उत्पल कहते हैं, पिछले साल कोरोना के दौरान जब वे अपने गांव आये थे तो उन्हें पता चला कि गांव में दो सरकारी अस्पताल हैं, मगर इनमें से एक भी संचालित नहीं होता। उन्होंने इन अस्पतालों को चालू करवाने के लिए अभियान शुरू कर दिया। उनके साथियों ने आरटीआई किया, उन्होंने स्थानीय विधायक आलोक रंजन जो बिहार सरकार में मंत्री भी हैं, उनसे संपर्क किया। बाद में 2021 के मार्च महीने में पटना आकर स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय को भी ज्ञापन दिया। इन लोगों ने वादे तो किये, मगर वादा पूरा नहीं किया।

भूसे से भरा बनगांव का उप स्वास्थ्य केन्द्र।

फिर थकहार कर इन लोगों ने सोशल मीडिया की शरण ली और एक उप स्वास्थ्य केंद्र जिसमें भूसा भरा था, की तस्वीर लेकर उसका मीम्स तैयार किया। वह मीम वायरल हो गया। फिर कई मीडिया वाले पहुंचे। आजतक चैनल के नेशनल प्रोग्राम में वहां की खबर चली। उसके बाद उन लोगों ने ट्विटर पर अभियान चलाया। अंततः वह भूसे वाला अस्पताल चालू हो गया।

बनगांव में आंदोलन के बाद शुरू हुआ उप स्वास्थ्य केन्द्र। पहले यहीं भूसा भरा था।

उत्पल कहते हैं कि अभी एक अस्पताल ही शुरू हो पाया है, दूसरा जिसमें तीन डॉक्टरों की नियुक्ति है, वह अभी भी बंद है। इसलिए वे अपना अभियान चलाते रहेंगे।

इसी तरह अररिया जिले में एक युवा फैसल जावेद अपने जिले के सदर अस्पताल में बुनियादी सुविधाओं के लिए लंबे समय से अभियान चला रहे हैं और इसके लिए वे सोशल मीडिया की मदद ले रहे हैं।

इस बदलते ट्रेंड पर बात करने के लिये जब हमने टाटा इंस्टीटयूट ऑफ़ सोशल साइंस, पटना के प्राध्यापक पुष्पेन्द्र से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि युवाओं का यह अभियान सकारात्मक पहल है।

उन्होंने बताया कि 1946 में देश में जन जन तक स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाने के लिये भोर कमिटी ने जो सुझाव दिये थे और जिसे जनता पार्टी  सरकार के स्वास्थ्य मंत्री राजनारायण ने भी आगे बढ़ाया था, आज वही व्यवस्था देश में चल रही है। इसके तहत पंचायत और प्रखण्ड स्तर की प्राइमरी स्वास्थ्य सुविधा से जिले की सेकेन्डरी स्वास्थ्य सुविधा और बड़े अस्पतालों की टर्सरी स्वास्थ्य सुविधा तक का ढांचा तैयार हुआ था। मगर हाल की सरकारों ने स्वास्थ्य सेवाओं में निजीकरण और बीमा को बढ़ावा देना शुरू किया जिस वजह से पुरानी व्यवस्था ध्वस्त होने लगी। इस कोरोना काल ने निजी और बीमा आधारित व्यवस्था की कमियों को उजागर कर दिया है। ऐसे में अब तक युवा वर्ग जो चकाचौंध भरे बड़े निजी अस्पतालों का कायल था वह पुरानी व्यवस्था के महत्व को समझने लगा है।

(पटना स्थित पुष्यमित्र स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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