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ख़बरों के आगे-पीछे : रेलवे की गड़बड़ी पर लीपापोती के लिए सीबीआई जांच और अन्‍य ख़बरें

हालांकि जांच का नतीजा जो भी निकले लेकिन यह जरूर है कि सीबीआई जांच की घोषणा से दुर्घटना के पीछे साजिश होने की चर्चा शुरू हो जाती है और रेल मंत्रालय की गड़बड़ी पर से ध्यान हट जाता है।
CBI INTESTIGATION
फोटो :PTI

बालेश्वर (बालासोर) रेल दुर्घटना की सीबीआई जांच शुरू हो गई है। उससे पहले अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। उसी एफआईआर के आधार पर सीबीआई की जांच शुरू हुई है। लेकिन सवाल है कि सीबीआई जांच से होगा क्या? क्योंकि इससे पहले हुई रेल दुर्घटनाओं में सीबीआई की जांच का नतीजा कोई खास नहीं रहा है। ममता बनर्जी ने याद दिलाया है कि उन्होंने एक दशक से ज्यादा समय पहले रेलमंत्री रहते हुए ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस और सैंथिया ट्रेन हादसे की सीबीआई जांच शुरू करवाई थी लेकिन आज तक दोनों मामलों में कुछ भी हासिल नहीं हुआ। 12 साल बीत जाने के बाद भी सीबीआई दोनों मामलों में आरोपपत्र दाखिल नहीं कर सकी है। इसी आधार पर ममता बनर्जी की तरह कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी सीबीआई जांच पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि सीबीआई के पास ट्रेन दुर्घटना की जांच करने का कौशल नही है। हालांकि जांच का नतीजा जो भी निकले लेकिन यह जरूर है कि सीबीआई जांच की घोषणा से दुर्घटना के पीछे साजिश होने की चर्चा शुरू हो जाती है और रेल मंत्रालय की गड़बड़ी पर से ध्यान हट जाता है। बालासोर हादसे के बाद रेलवे की गड़बड़ियों पर फोकस था लेकिन अब साजिश की चर्चा हो रही है।

एक हजार के नोट की हो सकती है वापसी

भारतीय रिजर्व बैंक ने दो हजार के नोट वापस लेने की अधिसूचना जारी कर दी है। हालांकि अधिसूचना में कई कमियां हैं, जिन्हें धीरे-धीरे दूर किया जाएगा। पहली नोटबंदी यानी आठ नवंबर 2016 के बाद भी ऐसा हुआ था। बहरहाल, रिजर्व बैंक ने कहा है कि 30 सितंबर तक दो हजार के नोट बैंक में बदले जा सकते हैं। केंद्रीय बैंक ने दो हजार के नोट को चलन से बाहर करने की अधिसूचना जारी की है लेकिन साथ ही कहा है कि ये नोट कानूनी मुद्रा बने रहेंगे। कब तक बने रहेंगे, इसकी कोई समय सीमा नहीं बताई गई है। बड़ा सवाल यह भी है कि क्या एक हजार रुपए के नोट की वापसी होगी? भारत में आठ नवंबर 2016 से पहले पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट चलते थे। जब उनको बंद किया गया तो पांच सौ का नया नोट जारी हुआ। लेकिन उसके साथ ही दो हजार और दो सौ रुपए के नए नोट भी आए। हालांकि उस समय दो हजार के नोट को लेकर बड़ी आलोचना हुई थी क्योंकि उसकी कोई उपयोगिता नहीं थी। बाद में भी वह नोट सिर्फ जमा करने के लिए रह गया था। अब उसे बंद कर दिया गया है तो क्या सरकार एक हजार का नोट वापस लाएगी? जब एक हजार के नोट चलन में थे तब उनकी काफी उपयोगिता थी। देश में जिस तरह से महंगाई बढ़ी है और सामानों के दाम आसमान पर पहुंचे हैं उसे देखते हुए एक बड़े मूल्य की मुद्रा की जरूरत है। सो, संभव है कि दो हजार के नोट चलन से हटने और बैंकों में वापस लौट जाने के बाद सरकार एक हजार रुपए मूल्य के नोट जारी करे। अगर ऐसा होता है तो एक चक्र पूरा हो जाएगा।

यूपी में अपराधियों को निबटाने का नया मॉडल

उत्तर प्रदेश में पुलिस एनकाउंटर में किसी भी अपराधी या आरोपी को मार दिया जाना आम बात है। लेकिन अब लग रहा है कि वहां अपराधियों को निबटाने का एक नया मॉडल उभर रहा है। अब बड़े गैंगेस्टर और माफिया को पुलिस नहीं मार रही है, बल्कि पुलिस के सामने कोई दूसरा गिरोह या कोई दूसरा अपराधी उनको मार दे रहा है। हैरानी की बात है कि अपराधियों की हत्या करने वाले कभी पत्रकार बन कर पहुंच रहे हैं तो कभी वकील बन कर। कुछ दिन पहले ही प्रयागराज (इलाहबाद) के एक अस्पताल परिसर में पत्रकार बन कर पहुंचे तीन लोगों ने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस हिरासत में हत्या कर दी थी। पूरे घटनाक्रम में अपराधी गोलियां बरसाते रहे और पुलिस तमाशा देखती रही। बाद में पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर लिया। ठीक इसी तरह की घटना 7 जून को लखनऊ में हुई, जहां एक व्यक्ति वकील बन कर अदालत में पहुंचा और उसने मुख्तार अंसारी गैंग से जुड़े रहे संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की गोली मार कर हत्या कर दी। इस मामले में भी पुलिस तमाशबीन बनी रही और बाद में उसने गोली मारने वाले विजय यादव नाम के व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया। चाहे अतीक की हत्या हो या संजीव माहेश्वरी की, दोनों मामलों में एक खास बात यह देखने को मिली कि इसे जंगलराज बताने की बजाय यह कह कर इसका जश्न मनाया गया कि अपराधियों का खात्मा हो रहा है। भाजपा के विधायकों तक ने ट्विट करके इस घटना की तारीफ की।

ममता को मायावती बनाना आसान नहीं 

आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाजा से बिहार, कर्नाटक और महाराष्ट्र के अलावा भाजपा के लिए सबसे ज्यादा चिंता वाला प्रदेश पश्चिम बंगाल है। पिछली बार वहां उसे 18 सीटें मिल गई थीं। यह छप्पर फाड़ जीत थी। दो से सीधे 18 सीट पर पहुंची थी भाजपा। सो, इस बार इन सीटों को बचाने और इसमें बढ़ोतरी करने की बड़ी चुनौती भाजपा के सामने है। पर सवाल है कि यह काम ममता बनर्जी के परिवार को परेशान करके कैसे होगा? शायद भाजपा यह सोच रही है कि ममता बनर्जी को भी मायावती की तरह घर बैठाया जा सकता है। मगर सवाल है कि अगर केंद्रीय एजेंसियां ममता के परिवार को परेशान करती हैं तो क्या इससे बांग्ला अस्मिता और बाहरी-भीतरी की लड़ाई बनाने में ममता बनर्जी को मदद नहीं मिलेगी? आखिर इसी एजेंडे पर ममता ने विधानसभा चुनाव में भाजपा को हरा कर बड़ी जीत हासिल की थी। वे केंद्रीय एजेंसियों की ऐसी कार्रवाइयों को फिर मुद्दा बना सकती हैं। गौरतलब है कि प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने पिछले दिनों ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी की पत्नी रूजिरा बनर्जी और उनके दो बच्चों को कोलकाता में हवाईअड्डे पर दुबई जाने से रोक दिया। उन्हें लुकआउट नोटिस दिखाया गया और वहीं पर उनको समन जारी कर दिया कि आठ जून को वे कोयला तस्करी के मामले में पूछताछ के लिए हाजिर हो। केंद्रीय एजेंसियां पहले भी रूजिरा से पूछताछ कर चुकी हैं। पिछले दिनों शिक्षक भर्ती घोटाले में अभिषेक बनर्जी से भी पूछताछ की गई। गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव से पहले जब पहली बार एजेंसी अभिषेक के घर पूछताछ के लिए पहुंची थी तो उससे पहले ममता वहां से अभिषेक के बच्चे को गोद में लेकर निकली थी। अब उस बच्चे और उसकी मां को हवाईअड्डे पर रोका गया है। जाहिर है कि यह बांग्ला भद्रलोक के लिए भावनात्मक मुद्दा बनेगा।

मध्य प्रदेश में कर्नाटक फॉर्मूला लागू नहीं होगा

भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश में कर्नाटक, गुजरात या उत्तराखंड का फॉर्मूला नहीं लागू करने जा रही है। पार्टी न तो मुख्यमंत्री बदल रही है और न ही एंटी इन्कम्बैंसी दूर करने के नाम पर बड़े पैमाने पर मंत्रियों और विधायकों के टिकट काटने का फॉर्मूला लागू करेगी। उल्टे कर्नाटक से सबक लेकर भाजपा नाराज नेताओं को मनाने में लगी है और जिन लोगों को पार्टी से निलंबित किया गया है उन सबकी वापसी कराई जा रही है। इतना ही नहीं पार्टी के बड़े नेताओं के खिलाफ टिप्पणी करने या आंतरिक मतभेद को बढ़ाने वाला काम करने वालों पर कड़ी कार्रवाई भी हो रही है। इस बीच पार्टी के प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे ने संकेत दिया है कि 75 साल की अघोषित उम्र सीमा को मध्य प्रदेश में नहीं लागू किया जाएगा। यानी इस आधार पर पार्टी किसी की टिकट नहीं काटेगी कि वह 75 साल का हो गया है। उन्होंने कहा है कि टिकट देने का एकमात्र पैमाना चुनाव जीतने की क्षमता है। जो भी नेता चुनाव जीतने की स्थिति में होगा, उसकी टिकट नहीं काटेगी। पिछली बार कई लोगों के टिकट काट दिए गए थे। इस बार भी टिकट कटने की आशंका मे गौरीशंकर बिसेन, कुसुम मेहदेले जैसे कई लोग पहले से सक्रिय हो गए थे। लेकिन पार्टी ने सबको भरोसा दिलाया है कि उम्र के आधार पर किसी का टिकट नहीं कटेगा। 

उत्तरप्रदेश में भाजपा की चुनावी तैयारी तेज हुई

आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा उम्मीदें उत्तर प्रदेश से है, लिहाजा वहां उसने चुनावी तैयारी अभी से तेज कर दी है। भाजपा का लक्ष्य अपनी मौजूदा 62 सीटों में बढ़ोतरी करने का है। पिछले चुनाव में भाजपा की सीटें 71 से घट कर 62 रह गई थीं। उसके सहयोगी अपना दल ने दो सीटें जीती थीं। सपा को पांच और बसपा को 10 सीटें मिली थीं और एक सीट कांग्रेस ने जीती थी। इस बार भाजपा का लक्ष्य 2014 की तरह नतीजे हासिल करने का है। उस समय भाजपा को 71 और अपना दल को दो सीटें मिली थीं। सपा ने पांच और कांग्रेस ने दो सीट जीती थी। सीट बढ़ाने के लक्ष्य को ध्यान में रख कर भाजपा हर लोकसभा सीट पर तीन-तीन महीने में सर्वेक्षण करा रही है। पार्टी के एक नेता के मुताबिक राजनीतिक स्थिति तेजी से बदल रही है। देश की हर घटना का असर हर सीट पर पड़ता है। इसलिए पार्टी तीन महीने में सर्वेक्षण करा कर फीडबैक ले रही कि लोगों का क्या मूड है, वे किस बात से नाराज है या किस बात को लेकर भाजपा के प्रति उनका रवैया सकारात्मक है। इसके अलावा उम्मीदवार के नाम पर भी फीडबैक लिया जा रहा है। भाजपा इस बात का भी आकलन करा रही है कि बसपा अगर बहुत आक्रामक तरीके से नहीं लड़ती है या तालमेल नहीं करती है तो भाजपा को उसका कितना फायदा होगा। इन तिमाही सर्वेक्षणों के आधार पर भाजपा अपने उम्मीदवार तय करेगी और रणनीति भी बनाएगी।

कर्नाटक का असर महाराष्ट्र में 

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत का एक बड़ा कारण सिद्धरमैया का चेहरा रहा। वे पिछड़े वर्ग के मजबूत नेता हैं और उनकी वजह से पिछड़ी जातियों के वोट कांग्रेस के साथ जुड़े रहे। इसीलिए महाराष्ट्र में भी भाजपा का फोकस मराठा वोट से ज्यादा ओबीसी वोटों पर बन रहा है, लेकिन इसी बीच मुंडे बहनों ने भाजपा को झटका दिया है। गौरतलब है कि कर्नाटक में भाजपा लिंगायत वोट पर बहुत निर्भर रही थी। वह वोट उसको मिला भी लेकिन वह उससे जीत नहीं सकी। वैसे भी महाराष्ट्र में सबसे ताकतवर मराठा समुदाय भाजपा के साथ नहीं है। इसलिए उसकी नजर ओबीसी वोट पर है। महाराष्ट्र में भाजपा के सबसे कद्दावर ओबीसी नेता गोपीनाथ मुंडे थे। उनके आकस्मिक निधन के बाद उनकी बेटी पंकजा मुंडे विधानसभा का चुनाव लड़ी और जीत कर महत्वपूर्ण मंत्री बनी। उनकी दूसरी बहन प्रीतम मुंडे ने लोकसभा का चुनाव जीता। एक तरह से ये दोनों बहनें भाजपा में ओबीसी चेहरा है। पर पिछले विधानसभा चुनाव में गोपीनाथ मुंडे के भतीजे धनंजय मुंडे पाला बदल कर एनसीपी में चले गए और उन्होंने पंकजा को हरा दिया। उसके बाद से पार्टी ने पंकजा को कुछ दिया नहीं है और वे नाराज चल रही हैं। कर्नाटक के नतीजों के बाद उनकी नाराजगी मुखर हो गई है। उन्होंने कहा है कि वे भाजपा की हैं लेकिन भाजपा उनकी नहीं है। जिस दिन उन्होंने यह बात कही उसी दिन उनकी बहन प्रीतम मुंडे ने दिल्ली मे धरना देने वाली महिला पहलवानों का समर्थन किया और यौन शोषण के आरोपी बृजभूषण शरण सिंह पर कार्रवाई की मांग की। अब लोकसभा चुनाव करीब है और ऐसे में मुंडे बहनों की नाराजगी भाजपा को भाbरी पड़ सकती है।

पुल बनाने वाली कंपनी को कुछ नहीं होगा

बिहार में गंगा नदी पर बन रहे पुल का एक हिस्सा गिर गया है और इस पर जिस तरह की प्रतिक्रिया है और जैसे काम आगे बढ़ रहा है उसे देख कर लग रहा है कि पुल बनाने वाली कंपनी को कुछ नहीं होगा। जितने लोग हरियाणा की एसपी सिंगला कंपनी के खिलाफ कार्रवाई के पक्ष में हैं, उससे ज्यादा लोग कंपनी को बचाने में लगे हैं। इस कंपनी को चुनने और इसके खराब काम करने के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा रहा है। इसके कई कारणों में से एक कारण यह है कि यह पुल बनाने का ठेका दिए जाने के बाद से अब तक राज्य में तीन बार राजनीतिक समीकरण बदल चुके हैं। पहले अकेले जनता दल यू की सरकार थी। उसके बाद जनता दल (यू), राजद और कांग्रेस की सरकार बनी। फिर जनता दल यू और भाजपा की सरकार बनी और अब वापस जनता दल (यू), राजद और कांग्रेस की सरकार है। यानी पुल का ठेका दिए जाने के बाद से अभी तक कोई आठ-नौ साल में जनता दल (यू), भाजपा और राजद तीनों पार्टियों के लोग सड़क और पुल निर्माण के मंत्री रह चुके है। इसलिए सब आरोप लगाने से बच रहे हैं। दूसरे, बिहार में ही इस कंपनी के पास आठ-नौ हजार करोड़ रुपए का काम है। ऐसे में कोई भी कार्रवाई हुई तो सारे काम अटकेंगे। कुछ समय पहले पटना में लोहिया पथ निर्माण के दौरान भी पुल का एक स्लैब गिर गया था, जिसमें एक बच्ची की मौत हो गई थी। लेकिन तब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई थी।

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