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कोविड-19 : बिहार के डॉक्टरों की सुरक्षा उपकरण की मांग पर प्रशासन ने दी क़ानूनी कार्रवाई की धमकी

भागलपुर के जेएनएमसी में नियुक्त जूनियर डॉक्टरों को कथित तौर पर पीपीई के बजाय एचआईवी किट दी गई है।
कोविड-19

भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन की मियाद से गुज़र रहे देश के लोगों से 5 अप्रैल(रविवार) को रात 9 बजे घर की सभी लाइट बंद करके नोवेल कोरोना वायरस के प्रकोप के ख़िलाफ़ सामूहिक राष्ट्रीय लड़ाई के लिए सांकेतिक पहचान के लिए दिया या मोमबत्ती या मोबाइल का फ्लैशलाईट जलाने को कहा लेकिन इस लड़ाई के मोर्चे पर कई लोग (डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मचारी) सुरक्षात्मक उपकरण किट दिए जाने की मांग कर रहे हैं।

बिहार के भागलपुर में स्थित जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (जेएनएमसीएच) के जूनियर डॉक्टरों ने हाल ही में कहा है कि अगर उन्हें पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) या हजमत सूट (हैजरडस मौटरियल सूट), सैनिटाइज़र और सामान्य और एन-95 मास्क मुहैया नहीं कराई जाती है तो वे काम करने में "असमर्थ" हैं।

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सुरक्षात्मक सामग्रियों के लिए अपनी लगातार मांग की ओर प्रधानमंत्री का ध्यान खींचते हुए और बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी निर्देश के मद्देनजर जूनियर डॉक्टरों ने 30 मार्च को अपने चिकित्सा अधीक्षक को एक पत्र लिखा था कि, "... सविनय निवेदन है कि उपर्युक्त विषय नंबर 1 और 2 (जूनियर और सीनियर डॉक्टरों के साथ सुरक्षा उपकरणों और अनुभवी डॉक्टरों की नियुक्ति के संबंध में) सुनिश्चित हो जाए तब हमलोगों को ड्यूटी पर जाने की सूचना दी जाए। अन्यथा, हमलोग जान को जोखिम में दे कर कार्य करने से असमर्थ रहेंगे।”

राज्य सरकार ने 27 मार्च को अपने निर्देश में राज्य के सभी मेडिकल कॉलेजों को सीनियर और जूनियर रेजिडेंड्स के साथ पर्याप्त अनुभव रखने वाले डॉक्टरों की तैनाती सुनिश्चित करने का आदेश दिया था। अतिरिक्त सचिव (स्वास्थ्य) कौशल किशोर के दस्तखत वाले आदेश में लिखा गया है, “हमारे संज्ञान में आया है कि मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (रोगियों के) इलाज के लिए केवल पीजी (पोस्ट-ग्रेजुएट) छात्रों/जुनियर रेजिडेंट्स की सेवा ले रहे हैं। पर्याप्त अनुभव वाले डॉक्टरों की तैनाती सुनिश्चित की जानी चाहिए।“

हालांकि, ज़िला प्रशासन ने शिकायतों को निपटाने के बजाय जेएनएमसीएच के अधीक्षक को एक पत्र लिखा है जिसमें क़ानून प्रवर्तन सेल को जूनियर डॉक्टरों के सभी विवरण देने के लिए कहा गया है जिन्होंने पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट के अभाव में काम करने में असमर्थता व्यक्त की थी ताकि भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) की धारा 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश देने की अवज्ञा), बिहार महामारी रोग की धारा19, COVID-19 नियमन 2020 और महामारी रोग अधिनियम 1897 की धारा 3 के तहत मामला दर्ज किया जा सके।

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जुनियर डॉक्टर द्वारा लिखे गए पत्र के जवाब में 1 अप्रैल को भागलपुर के जिलाधिकारी द्वारा जेएनएमसी के अधीक्षक को एक पत्र लिखा गया जिसमें कहा गया कि “आपको सूचित करना है कि भागलपुर के मायागंज स्थित जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में जूनियर डॉक्टरों ने एक पत्र के माध्यम से कोरोनावायरस संक्रमित रोगियों का इलाज नहीं करने की धमकी दी है। इसलिए उपरोक्त पत्र का संज्ञान लेते हुए,यदि जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के जूनियर डॉक्टरों ने आईसोलेशन वार्ड में कोरोनोवायरस संक्रमित रोगियों का इलाज करने से इनकार कर दिया तो आपको यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया जाता है कि आप जिला नियंत्रण कक्ष के प्रवर्तन सेल को डॉक्टरों का पूरा विवरण जैसे नाम, पिता का नाम, स्थायी पता, पत्राचार का पता और मोबाइल नंबर देंगे। इसके अलावा, आप उन जूनियर डॉक्टरों की उपस्थिति रजिस्टर की एक सत्यापित प्रतिलिपि उपलब्ध कराएंगे ताकि आईपीसी की धारा 100, बिहार महामारी रोग की धारा 19, COVID-19 विनियमन 2020 और महामारी अधिनियम 1897 की धारा 3 के तहत उचित कानूनी कार्रवाई उनके खिलाफ शुरू की जा सके।“ न्यूज़क्लिक के पास उक्त पत्र की एक प्रति उपलब्ध है।

अब, सामने आकर डॉक्टर पूछ रहे हैं कि क्या वे गुलाम हैं और कि उन्हें बिना सुरक्षात्मक वस्तुओं के काम करने के लिए मजबूर किया जा सकता है।

जेएनएमसीएच के आइसोलेशन वार्ड में तैनात एक जूनियर डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर संक्रमण के ख़तरों के लेकर न्यूजक्लिक को बताया कि "हमारे आवाज उठाने और मीडिया रिपोर्टिंग के बाद प्रशासन ने हमें एचआईवी किट देकर बेवकूफ बनाया जो हमें एरोसोल [(COVID-19 संक्रमित रोगियों) के छींकने और खांसी की बूंद] से नहीं बचा सकता है। केवल कुछ डॉक्टर जो आइसोलेशन वार्डों में नियुक्त किए गए हैं उन्हें एन-95 मास्क दिए गए हैं। जो अन्य विभागों जैसे कि मेडिसिन इमरजेंसी, पेडियाट्रिक्स, ऑर्थोपेडिक्स, गायनोकोलॉजी, इत्यादि में काम कर रहे हैं उनके पास एचाआईवी किट भी इस सच्चाई के बावजूद मौजूद नहीं कि नोवल कोरोनोवायरस से संक्रमित होने के जोखिम ज्यादा है क्योंकि अन्य रोगियों में संक्रमण की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।"

यह पूछे जाने पर कि क्या अस्पताल आने पर मरीजों की स्क्रीनिंग नहीं होती है तो उन्होंने कहा कि उन्हें अंदर जाने से पहले थर्मल स्क्रीनिंग की जाती है और उनका इतिहास लिया जाता है। उन्होंने आगे कहा कि "समस्या यह है कि संदिग्ध में संक्रमण के प्रारंभिक चरण में सभी लक्षणों(बुखार, खांसी और सांस की तकलीफ़) को विकसित नहीं हो पाते है। ये लक्षण संक्रमण के बाद 2-14 दिनों के भीतर प्रकट हो सकते हैं (MERS-CoV वायरस के इनक्यूबेशन पीरियड के आधार पर)। यह भी आवश्यक नहीं है कि जिन लोगों को खांसी और बुखार हो वे संक्रमित हों क्योंकि यह भी वायरल बुखार का मौसम है। लेकिन वे हमारे लिए तो संदिग्ध हैं जो निगेटिव या पॉजिटिव हो सकते हैं। हमें उन्हें ठीक से जांचने के लिए पीपीई, सैनिटाइज़र और अन्य सुविधाओं की ज़रूरत है।"

एक अन्य डॉक्टर प्रशासन के व्यवहार से नाराज लग रहे थे, उन्होंने कहा कि इस महामारी को लेकर सुरक्षा की मांग करना अपराध बन गया। उन्होंने आगे कहा, “अपने आरामदायक कार्यालयों और ड्राइंग रूम में बैठकर आप हमारे जीवन को दांव पर लगा रहे हैं। जुमलेबाज़ी और शोशेबाज़ी को छोड़कर सरकारें (केंद्र और राज्य दोनों) महामारी से लड़ने के लिए कम चिंतित है। मैं प्रधानमंत्री जी से पूछना चाहता हूं कि क्या बालकनियों में मोमबत्तियां जलाने से हमारे संक्रमित होने का खतरा कम होगा? हम डॉक्टर हैं, हम रोगियों के सीधे संपर्क में आते हैं और हमारे पास आपके स्वयं के आईसीएमआर (भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद) दिशानिर्देशों के अनुसार सुरक्षा सामग्री नहीं हैं।"

उन्होंने कहा, “क्या हम ग़ुलाम हैं? हमें क़ानूनी कार्रवाई की धमकी क्यों दी जा रही है? क्या यह ब्लैकमेल नहीं है कि यदि आपको डिग्री लेनी है या अपना पंजीकरण बचाना है, तो आपको उनकी बातों पर नाचना होगा -चाहे आप कितने भी जोखिम में क्यों न हों? को विकल्प नहीं बचा है, हम काम कर रहे हैं क्योंकि हमने इस डिग्री को पाने और समाज की सेवा करने के लिए सात साल बिताए हैं। हम सिर्फ इसलिए काम कर रहे हैं क्योंकि हम अपने करियर की बलि नहीं चढ़ा सकते हैं।”

अन्य डॉक्टरों ने कहा कि जेएनएमसीएच इसके 70-80बिस्तरों वाले आइसोलेशन वार्ड में चार मरीज थे। इन सभी रोगियों को बारे में कहा जाता है कि ये वो लोग हैं जो कोरोनावायरस के संक्रमण के पॉजिटिव पाए गए मुंगेर के पहले व्यक्ति के परिवार के सदस्य और रिश्तेदार हैं जिनकी मौत 22 मार्च को पटना के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में हो गया था।

अन्य विभागों में नियुक्त कुछ प्रशिक्षुओं ने भी ऐसी ही चिंता व्यक्त की है। इन प्रशिक्षुओं में से एक ने कहा, “हमारे अस्पताल में रोजाना औसतन COVID-19 के30-40 संदिग्धों को दाखिल किया जा रहा है। जांच के बाद पॉजिटिव पाए जाने वाले मरीजों को भर्ती किया जाता है, जबकि बाकी को वापस भेज दिया जाता है और घर पर सेल्फ आइसोलेशन की सलाह दी जाती है। बड़े शहरों से प्रवासी मजदूरों के वापस आने के बाद बढ़ोतरी देखी गई है।”

एक अन्य प्रशिक्षु ने कहा कि अस्पताल ने संदिग्धों के प्रवेश द्वार को अलग कर दिया है और इसका उपयोग अन्य रोगियों द्वारा नहीं किया जाता है, फिर भी संक्रमण का खतरा डॉक्टरों पर काफी ज्यादा है क्योंकि COVID-19 संक्रमण के "बिना लक्षण" वाले रोगियों के भी उदाहरण हैं।"

उन्होंने कहा कि ''संदिग्धों के प्रवेश द्वार को आम प्रवेश द्वार से अलग कर दिया गया है। लक्षणों और उनके इतिहास को नोट करने वाले दो डॉक्टरों के साथ थर्मल स्क्रीनिंग के लिए मुख्य द्वार पर एक गार्ड की नियुक्ति की गई है। यदि कोई संदिग्ध पाया जाता है, तो उसे एक अलग प्रवेश द्वार के माध्यम से आइसोलेशन वार्ड में ले जाया जाता है। लेकिन कई बिना लक्षण वाले रोगी हैं जो संक्रमण के दो-तीन दिनों के बाद या कई दिनों के बाद कभी भी लक्षण विकसित करते हैं। अगर ऐसी समस्या वाले लोग हमारे पास आते हैं, तो वह डॉक्टरों, अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों और यहां तक कि साथी रोगियों के लिए आत्मघाती हमलावर की तरह होंगे।”

उन्होंने कहा कि डॉक्टरों के बारे में तो भूल जाइए। यह पूछे जाने पर कि सरकार स्वच्छता कर्मचारियों और गार्डों के लिए कौन से सुरक्षा उपाय कर रही है जो समान खतरे का सामना करते हैं तो उन्होंने कहा, “थर्मल स्कैनिंग करने वाले गार्ड सर्जिकल दस्ताने और मास्क पहनते हैं। क्या उनकी रक्षा करने के लिए काफी है? क्या तरल कचरे को छूने वाले स्वच्छता कर्मचारियों को सुरक्षा वाली वस्तुएं प्रदान की गई हैं? जवाब नहीं में हैं।”

इस बीच, जेएनएमसीएच और ज़िला प्रशासन दावा कर रहे हैं कि सब ठीक है।

जेएनएमसीएच में COVID -19 के नोडल अधिकारी डॉ.हेमशंकर शर्मा ने इन आरोपों को खारिज कर दिया,उन्होंने दावा किया कि उनके पास आइसोलेशन वार्ड में काम कर रहे डॉक्टरों के लिए 1,000 सुरक्षा किट हैं। उन्होंने न्यूजक्लिक से बात करते हुए कहा, "जो छात्र काम नहीं करना चाहते हैं उनका एक समूह शोर कर रहा है कि उन्हें सुरक्षा के लिए वस्तुएं नहीं दिए जा रहे हैं। वास्तविकता यह है कि हमारे पास 1,000 सेफ्टी किट हैं और जो आइसोलेशन वार्ड में नियुक्त हैं उन्हें दिया ही जाता है। आइसीएमआर के दिशानिर्देशों के अनुसार,अन्य विभागों में डॉक्टरों को इसकी बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है। हम अस्पताल प्रबंधन नियमावली के अनुसार काम कर रहे हैं।”

दिलचस्प बात यह है कि जब बार-बार पूछा गया कि क्या उनके पास पीपीई जैसे सुरक्षा किट हैं तो उन्होंने कहा कि जो सरकार उन्हें दे रही है वह डॉक्टरों को दे रहे हैं। उन्होंने कहा, "सरकार द्वारा हमें आपूर्ति की जा रही सुरक्षा किट उन्हें (डॉक्टरों को) दी जा रही है।"

एक बार फिर से पूछे जाने पर कि क्या सरकार द्वारा आपूर्ति की जा रही सेफ्टी किट COVID-19 संदिग्धों और संक्रमित मरीजों का इलाज करने के लिए पीपीई है या एचआईवी किट जैसा कि जूनियर डॉक्टरों ने आरोप लगाया था, तो उन्होंने जोर देकर कहा, “जो सरकार हमें दे रही है हम डॉक्टरों को मुहैया करा रहे हैं।"

भागलपुर के जिलाधिकारी प्रणव कुमार ने भी यही कहा। उन्होंने कहा, “ज़रूरत की हर चीज उपलब्ध है और डॉक्टर भी काम कर रहे हैं। कोई समस्या नहीं है।”

हालांकि, उन्होंने उस पत्र के संबंध में सवाल को टाल दिया जिसमें उन्होंने उन जूनियर डॉक्टरों का ब्योरा मांगा था जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर काम न करने की धमकी दी थी। उन्होंने कहा, "चिंता करने की कोई बात नहीं है। सब कुछ ठीक है। डॉक्टर काम कर रहे हैं।”

3 अप्रैल को सामने आए दो और COVID-19 पॉजिटिव मामलों के साथ प्रदेश भर में कोरोनावायरस संक्रमित मरीजो की कुल संख्या बढ़कर अब 31 हो गई है। जबकि35 वर्षीय सिवान का निवासी पहला व्यक्ति 21 मार्च को बहरीन से लौटा था, दूसरा व्यक्ति 37 वर्षीय गया निवासी 22 मार्च को दुबई से आया था।

एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि देश या विदेश के अन्य स्थानों से सफर करने वाले 6,681 लोगों को निगरानी में रखा गया है। इनमें से, 512 ने 14-दिवसीय क्वारंटीन अवधि पूरी कर लिया है। जांच के लिए अब तक एकत्र किए गए कुल 1,973 नमूनों में से30 का परीक्षण पॉजिटिव था। चार नमूनों को रिजेक्ट कर दिया गया है जबकि अन्य नेगेटिव पाए गए हैं।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

COVID-19: Bihar Doctors Ask For Safety Gears, Admin Threatens Them With Legal Action

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