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COVID-19: धीरे-धीरे संभल रहा ईरान, पॉम्पेय का लांछन लगाने का खेल जारी

ईरान में शनिवार को स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा करते हुए कहा कि अब संक्रमण दर कम हो रही है। ऐसा इसलिए संभव हो पाया क्योंकि पहले चरण में 7 करोड़ 80 लाख और दूसरे चरण में 3 करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग की गई।
COVID-19
वियतनाम में 265 मामले सामने आए हैं, अब तक वहां एक भी व्यक्ति की जान संक्रमण के चलते नहीं गई है।

ईरान ने ट्रंप प्रशासन के अहम को बड़ी चोट पहुंचाई है। वहां की सरकार ने 5 मई से देश में कम ख़तरों वाली जगह पर मस्ज़िदों को खोलने का ऐलान किया है।

राष्ट्रपति हसन रूहानी ने कहा कि 'कलर कोडिंग सिस्टम' के तहत 'व्हाइट जोन' की 132 जगहों पर मस्ज़िदों को खोला जाएगा। यह इलाके लंबे वक़्त से कोरोना से प्रभावित नहीं हैं। रूहानी ने कहा, ''जुम्मे की नमाज़ और स्वास्थ्य नियमों का पालन करने वाली मस्ज़िदों को चालू किया जाएगा।'' वहीं दूसरी तरफ अमेरिका में आभासी तरीके से ईस्टर मनाई गई, जबकि मुस्लिम रमज़ान के महीने में मस्जिदों में नमाज़ अदा कर सकेंगे।

ईरान पहले ही शहरों के बीच यातायात और बड़े स्तर की आर्थिक गतिविधियों वाले मॉल्स को खोल चुका है। रूहानी के मुताबिक़, कम ख़तरे वाली जगहों पर 16 मई से स्कूल भी खोले जाएंगे, ताकि परीक्षाओं के पहले एक महीने की पढ़ाई हो सके।

शनिवार को स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि संक्रमण दर अब नीचे जा रही है। ऐसा इसलिए संभव हो पाया क्योंकि पहले चरण में 7.8 करोड़ और दूसरे चरण में 3 करोड़ लोगों में कोरोना लक्षणों की स्क्रीनिंग की गई। 

8 करोड़ 40 लाख की आबादी वाले देश के लिए यह आंकड़े ज़बरदस्त हैं। इसके उलट अमेरिका में अब भी टेस्टिंग कम हो रही है। वहां 20 जनवरी को पहला मामला सामने आने के बाद अब तक 55 लाख लोगों की टेस्टिंग ही हो पाई है।

हार्वर्ड रिसर्च और STAT का हालिया विश्लेषण दिखाता है कि अमेरिका अब अपनी महीने भर की अपनी ग़लतियों के बवंडर से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है। इन ग़लतियों में ग़लत टेस्ट, टेस्ट की कमी और ऐसी गाईडलाइन शामिल हैं, जिनमें कई ऐसे लोगों को छूट दी गई, जिनका महामारी रोकने के लिए टेस्ट किया जाना था। अब अमेरिका के सामने ऐसे शहरों और राज्यों में पर्याप्त जांच की चुनौती है, जिन्हें दोबारा खोला जा सके।

ध्यान रहे मध्यपूर्व के देशों में ईरान महामारी से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ था। ऊपर से ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए गए बर्बर प्रतिबंधों के चलते महामारी से जंग में ईरान का एक हाथ बंध गया। वहां फरवरी के अंत में मामले आने शुरू हुए थे।

ट्रंप प्रशासन, खासतौर पर 'ऐवेनजलिस्ट' गृहसचिव माइक पॉम्पेय का अनुमान था कि कोरोना महामारी के दौर में दवाईयों, उपकरणों, अस्पतालों और वेंटिलेटर्स के चलते ईरान ढह जाएगा।

लेकिन सबसे बड़ी विडंबना देखिए, रविवार को जब ईरान में रूहानी यह अहम घोषणा कर रहे थे, तब अमेरिका में ट्रंप मौतों का अनुमान बढ़ा रहे थे। अब अमेरिका में कोरोना के चलते क़रीब एक लाख मौतें होने की संभावना है। अब तक दस लाख से ज़्यादा अमेरिकी संक्रमण का शिकार हो चुके हैं और 70,000 से ज़्यादा लोग जान गंवा चुके हैं।

ईरान के आंकड़े ही अपनी कहानी बयां कर रहे हैं। वहां अब तक 97,424 मामले सामने आए हैं, इनमें से 78,422 मरीज़ ठीक हो चुके हैं, उन्हें अस्पतालों से छुट्टी दी जा चुकी है। पिछले 24 घंटों में 47 नई मौतें हुई हैं, जो पिछले दो महीने में किसी दिन का सबसे कम आकंड़ा है, अब तक वहां 6,023 लोग कोरोना संक्रमण के चलते जान गंवा चुके हैं।

ईरान की आबादी अमेरिका से एक चौथाई है। अमेरिकी अनुभव के मुताबिक़, ईरान में अब तक ढाई लाख लोगों को कोरोना हो चुका होता, क़रीब 18,000 लोगों की जान जा चुकी होती।

इससे हमें क्या समझ में आता है? अमेरिका चाहे जितना भी महाशक्ति होने का दंभ भरे, वह एक ढीला-ढाला देश है, जहां एक अयोग्य सरकार काम कर रही है। अपनी शर्म और नाकाबलियत छुपाने के लिए पॉम्पेय ने दोषारोपण का गंदा खेल शुरू किया है।

शनिवार को पॉम्पेय ने कहा, ''हमारे पास वायरस की उत्पत्ति के पर्याप्त सबूत हैं। मैं आपको बताता हूं कि यह वायरस वुहान की लेबोरेटरी से शुरू हुआ, हमारे पास सभी साक्ष्य मौजूद हैं।'' पॉम्पेय काफ़ी भ्रम में नज़र आ रहे थे। पिछले गुरूवार को ही उन्होंने एक रेडियो इंटरव्यू में कहा, ''हम नहीं जानते कि यह वायरस वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी से पैदा हुआ या नहीं। हम यह भी नहीं जानते कि वायरस का उद्भव किसी मछली बाज़ार से है या किसी दूसरी जगह से। अभी हमें इनके जवाब नहीं मालूम हैं।''

जब इस हफ़्ते के अंत तक यह साफ़ हो गया कि अमेरिका में मौतों का आंकड़ा पचास फ़ीसदी और बढ़ेगा, तब ''वुहान वायरस'' की संशोधित बात उछाली जाने लगी। पॉम्पेय को दुनिया के सामने एक अभूतपूर्व कूटनीतिक आपदा से जूझना होगा, क्योंकि अब साफ हो चुका है कि अमेरिका एक विकराल अनाड़ी है, जो कमजोर मिट्टी के पैरों पर टिका है। वैश्विक समुदाय का यह महसूस किया जाना सही है कि जो देश अपने नागरिकों को सुरक्षा नहीं दे सकता, वो दूसरे देशों की रक्षा कैसे कर सकता है।

पॉम्पेय यह बात मानने को तैयार नहीं हैं कि सुदूर-पूर्व में ईरान जैसे देश शांति, मज़बूती और बुद्धिमानी के साथ सफलता से कोरोना महामारी का मुकाबला कर पाए हैं। स्पष्ट है कि अमेरिका अब अवनति की ओर जाती ताकत है। बहुत कम संसाधनों के साथ एशिया, मध्य-पूर्व और मध्य एशिया के देश खुद को शानदार ढंग से प्रबंधित कर पाए हैं, जबकि अमेरिका ज़मीन पर फिसल रहा है और अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए दोषारोपण के खेल में लगा है।

फॉक्स न्यूज़ पर आभासी ''टाउन हॉल'' में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने माना कि उन्होंने जितना सोचा था, कोरोना उससे कहीं ज़्यादा भयावह निकला और इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा एक लाख छू सकता है। ट्रंप ने दो घंटे चले कार्यक्रम में कहा कि उन्हें नियमित इंटेलीजेंस ब्रीफिंग में कोरोना महामारी की जानकारी 23 जनवरी को ही मिल गई थी, लेकिन उसे कोई बड़ी गंभीरता के तौर पर पेश नहीं किया गया था। महामारी की जानकारी किसी आपात स्थिति की तरह नहीं बताई गई थी।

ट्रंप की बातों से समझ पता चलता है कि कोरोना वायरस उनके प्रशासन के लिए एक पहेली है। अब तक 70,000 अमेरिकी जान गंवा चुके हैं, लेकिन ईराक में 100 से भी कम लोगों की मौत हुई है।  जबकि मलेशिया में 100 के आसपास और बांग्लादेश में 182 लोगों ने संक्रमण के चलते जान गंवाई है।

या फिर चीन के आसपास के देशों पर नज़र डालिए। ताईवान में 6, कजाकिस्तान में 27, किर्गिस्तान में 10, लाओस में 0, कंबोडिया में 0, म्यांमार में 6, नेपाल में 0, थाईलैंड में 54 लोगों की ही जान गई है। न्यूयॉर्क जैसे महानगर बर्बाद हो चुके हैं, जबकि नई दिल्ली, मुंबई और कोलकाता अब तक खड़े हुए हैं।

क्या पॉम्पेय के पास कोई जवाब है? उन्हें इस बात का गुस्सा है कि चीन ने पश्चिमी वैज्ञानिकों को वुहान में जाकर शोध करने की अनुमति नहीं दी। लेकिन यह सहूलियत विएतनाम को भी नहीं दी गई। शायद विएतनाम अमेरिका को महामारी से निपटने के तरीकों के बारे में सिखा सके।

विएतनाम की सीमारेखा चीन से मिलती है। वुहान से वहां की दूरी भी 1200 मील ही है। अब तक विएतनाम में 245 मामले ही सामने आए हैं, जिनमें से 95 लोग ठीक हो चुके हैं। सबसे अहम है कि वहां अब तक एक भी शख़्स की कोरोना से जान नहीं गई।

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पॉम्पेय सही कहते हैं कि इन चीजों का चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी से ही लेना देना है। बस उनकी वजह गलत हैं।

एक विएतनामी कमेंट्री से हमें सही तस्वीर समझ आती है: विएतनाम की कम्यूनिस्ट पार्टी ने महामारी विरोधी तरीकों को राष्ट्रव्यापी 'सोशल डिस्टेंसिंग' से पुख़्ता किया है, इसके तहत दो से ज़्यादा लोगों के जमावड़े पर प्रतिबंध, लोगों के बीच 6.5 फीट की दूरी और गैर-जरूरी व्यापार (रेस्तरां, मनोरंजन केंद्र और पर्यटक स्थल समेत अन्य) पर तात्कालिक प्रतिबंध जैसे कदम उठाए गए।

''अमेरिकी पूंजीवादी वर्ग और ट्रंप प्रशासन के उलट, विएतनाम सरकार ने शुरू में ही महामारी से निपटने के लिए कदम उठा लिए थे। जैसे ही चीन में शुरूआती मामले आए थे, अधिकारियों ने संक्रमण से निपटने की रणनीति बनानी शुरू कर दी थी।''

''एक फरवरी को प्रधानमंत्री न्गुयेन ज़ुआन फुक ने आदेश क्रमांक 173.QD-TTG पर हस्ताक्षर कर दिए थे, जिसके तहत महामारी को 'क्लास-A' स्तर का संक्रमण माना गया, जो बेहद तेजी से फैल सकता है, जिसमें मृत्यु दर काफ़ी ज़्यादा होती है।'' यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपात तब घोषित कर दिया गया था, जब देश में 6वां मामला ही आया था। इसके उलट, ट्रंप प्रशासन ने 13 मार्च को राष्ट्रीय आपात घोषित किया, तब तक देश के 46 राज्यों में 1,920 पॉजिटिव मामले आ चुके थे। 

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें

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