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कोविड-19: बंद पड़े ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्र चीख-चीखकर बिहार की विकट स्थिति को बयां कर रहे हैं 

एपीएचसी और सीएचसी सहित सैंकड़ों की संख्या में ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र या तो बंद पड़े हैं या बिहार भर में उन्हें पशुशाला में तब्दील कर दिया गया है। यह एक ऐसी कड़वी सच्चाई है जिसकी स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2019-20 की नवीनतम रिपोर्ट में पुष्टि की गई है।
ग्रामीण स्वाथ्य केंद्र, खगड़िया 
ग्रामीण स्वाथ्य केंद्र, खगड़िया 

कोरोनावायरस महामारी की घातक दूसरी लहर ने ग्रामीण बिहार में विफल और निष्क्रिय पड़े स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को उजागर कर के रख दिया है। बीमार ग्रामीण जनता को निष्क्रिय ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्रों की दया पर छोड़ दिया गया है। छोटी-छोटी ग्रामीण बस्तियों से एक दिन में ही कई मौतों की खबरें लगातार आ रही हैं, जो अक्सर सरकारी रिकॉर्ड में पंजीकृत होने से छूट जाती हैं। 

खगड़िया जिले के रहीमपुर पंचायत का मथार इस उपेक्षा का एक जीता-जागता उदाहरण है, जहाँ गाँव-स्तर का स्वास्थ्य केंद्र निष्क्रिय पड़ा है। 2015 से इसकी दीवार पर बिहार सरकार के नाम वाला एक जंग खाया बोर्ड लटका पड़ा है। पूर्व पंचायत मुखिया शिवानन्द प्रसाद यादव के मुताबिक, ग्रामीण आबादी को स्वास्थ्य सुविधाओं तक अपनी पहुँच बनाने के लिए कम से कम 13 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है।  

यह कोई अपवाद नहीं है, बिहार के ग्रामीण इलाकों में ऐसे अनेकों स्वास्थ्य केन्द्रों सहित कई उप-स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र शामिल हैं, जो उजाड़ ढांचों में तब्दील हो चुके हैं और जिनमें घास और मवेशियों को रखा जाता है, जबकि वहीँ कोरोनावायरस के मामले जंगल में आग की तरह फ़ैल चुके हैं।

अकेले खगड़िया जिले में ही विभिन्न प्रखंडों में कुल 70 स्वास्थ्य केंद्र निष्क्रिय पड़े हैं। इस बीच जिले के परबत्ता प्रखंड की 21 पंचायतों ने पिछले एक महीने में 250 से अधिक मौतों की सूचना दी है, हालाँकि परीक्षण के अभाव में इन मौतों के पीछे की वजह को लेकर संदेह व्यक्त किये जा रहे हैं।

इन बंद पड़े स्वास्थ्य केन्द्रों के बारे में बताते हुए खगड़िया के सिविल सर्जन डॉ. अजय सिंह ने बताया कि डॉक्टरों, नर्सों और कम्पाउण्डरों सहित स्वास्थ्य कर्मियों की कमी के चलते स्वास्थ्य केंद्र बंद पड़े हैं। उन्होंने आगे बताया कि राज्य सरकार को जल्द ही इन जरूरतों के बारे में सूचित किया जाएगा।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में 30,000 और पर्वतीय, आदिवासी एवं रेगिस्तानी क्षेत्रों में 20,000 की आबादी को कवर करने के लिए एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) को स्थापित किया गया था। हालाँकि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) के द्वारा जारी ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2019-20 की हालिया रिपोर्ट पूरी तरह से अलग ही तस्वीर पेश करती है।

यह रिपोर्ट कई वर्षों से सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे के बिगड़ते जाने की तरफ संकेत करती है। 2005 में ग्रामीण बिहार में जहाँ 10,337 उप-केंद्र चालू हालत में थे, की तुलना में 2020 में मात्र 9,112 उप-केंद्र ही काम कर रहे थे। इसी अवधि के दौरान सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या 2005 के 101 से घटकर 2020 में 57 हो चुकी है।

मोकामा जो कि पटना जिले में पड़ता है, वह भी राज्य की राजधानी से निकटतम दूरी पर होने के बावजूद बढ़ते कोरोनावायरस के मामलों और अक्षम स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे के कारण तबाह हो रखा है। मोकामा ब्लाक की औंटा पंचायत के राम टोला, चंद्रभान टोला और रघुराम टोला से पिछले 20 दिनों में कम से कम 25 लोगों की मौत की खबर है, जिससे इस क्षेत्र में वायरस के तेजी से फैलने का खुलासा होता है। क्षेत्र में मौजूद सरकारी स्वास्थ्य सेवा केंद्र पर न्यूनतम जीवन रक्षक सुविधाओं की कमी से तकरीबन 12,000 की आबादी जूझ रही है।

नाज़रेथ अस्पताल, मोकामा 

इस सबके बीच में कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों से निपटते के लिए मोकामा में करीब-करीब बंद पड़े नाज़रेथ अस्पताल को दोबारा से चालू करने की मांग जोर पकड़ने लगी है।

प्रखंड के रहवासियों के मुताबिक, क्षेत्र में पूरी तरह से चालू स्वास्थ्य केन्द्रों के अभाव में उन्हें समुचित स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच हासिल करने के लिए 30-40 किमी से भी अधिक की दूरी तय करनी पड़ती है। मोकामा निवासी और पटना उच्च न्यायालय के वकील, कुमार शानू के अनुसार सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर सेवाओं की अनुपलब्धता ने यहाँ की व्यापक ग्रामीण आबादी की जिंदगी को खतरे में डाल दिया है, क्योंकि मृतपाय पड़े नाज़रेथ अस्पताल के सिवाय आस-पास के इलाके में कोई अन्य अस्पताल नहीं है। 

उनका आगे कहना था कि “यहाँ तक कि आरटी-पीसीआर परीक्षण जैसी बुनियादी सुविधायें तक इस क्षेत्र में उपलब्ध नहीं हैं। स्थिति कुछ ऐसी हो गई है मानो एक तरफ कुआँ है, तो दूसरी तरफ खाई है। नाज़रेथ को दोबारा से खोलना, बोझ से दबे दोषपूर्ण चिकित्सा प्रणाली के लिए एक बड़ा गेम चेंजर साबित हो सकता है।”

मुंगेर जिले के तारापुर प्रखंड के अफज़लनगर गाँव में सात दिनों में नौ लोगों के मौत की खबर है। अफज़लनगर पंचायत के मुखिया शशि कुमार सुमन ने न्यूज़क्लिक को बताया कि करीब-करीब हर ग्रामीण परिवार में लोग बुखार, सांस लेने में तकलीफ, जुकाम और खांसी जैसे लक्षणों से पीड़ित चल रहे हैं। जो लोग होली के त्यौहारी सीजन के दौरान अपने घरों को लौट आये थे, उनमें से अधिकांश को कोरोनावायरस के आर्थिक दुष्प्रभाव का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

लौना पंचायत के मुखिया मधुकर कुमार ने माना कि पिछले एक महीने में कम से कम 20 लोगों की मौत हो चुकी है, और 100 से अधिक लोगों में जुकाम और खांसी जैसे लक्षण देखने को मिले हैं। उनका कहना था कि, मौत के बढ़ते भय और विश्वसनीय स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में ग्रामीणों के बीच में झोला छाप डाक्टरों पर निर्भरता बढ़ी है। उन्होंने बताया कि टीकाकरण के बाद कमजोरी और बुखार के मामलों के चलते भी लोगों में टीके के प्रति हिचकिचाहट बनी हुई है।

प्राथमिक कृषि ऋण समिति (पीएसीएस), लौना पंचायत के पूर्व प्रमुख, राम बिहारी यादव का कहना था कि कोरोनावायरस की वजह से बिहार में मार्च 2020 में सबसे पहली मौत होने के बावजूद, न तो लोगों और न ही सत्ता पर विराजमान लोगों ने ही कोई सबक सीखा है।

कुछ इसी प्रकार की भावनाओं को रसियारी गाँव के सामाजिक कार्यकर्ता नंदू कुमार ने, जो मिथिला ग्राम विकास परिषद, दरभंगा से जुड़े हैं ने भी प्रतिध्वनित किया। उनका कहना था “महामारी के फैलने के बाद से जिस प्रकार की लापरवाही वाले रवैय्ये ने पहले से ज्यादा घातक दूसरी लहर के दौरान स्थिति को बिगाड़ने का काम किया है। गाँव की ओर जाती जर्जर सिंगल-लेन रोड के उपर किसी भी प्रकार के अस्थाई लकड़ी के बैरियर की अनुपस्थिति से संकेत मिलता है कि सरकार ने इस बार पिछले साल के पहली लहर के दौरान अपनाए गए टेस्टिंग, ट्रेसिंग और आइसोलेशन जैसे न्यूनतम नियमों तक को ताक पर रख दिया है।  

रसियारी के ग्रामीणों के मुताबिक, डीएमसीएच के बाद सिर्फ किरतपुर पीएचसी ही एकमात्र सक्रिय और विश्वसनीय स्वास्थ्य केंद्र है, जिसे चेक-अप के लिए प्राथमिकता दी जाती है।

अदमा गांव स्वास्थ्य केंद्र, दरभंगा 

इस बीच दरभंगा के बहादुरपुर प्रखंड में अदमा गाँव में स्थित पीएचसी भवन और सिनुअर उप-स्वास्थ्य केंद्र की स्थिति बेहद जर्जर अवस्था में है, जो सैकड़ों गावों की पीड़ा के प्रतीक के त्तौर पर नुमाया हो रहे हैं। ब्लाक में कोरोनावायरस के 1,000 से अधिक मामलों के साथ, हकीकत यह है कि चालू हालत में काम कर रहे स्वास्थ्य केन्द्रों की कमी के कारण अधिकांश मरीज होम आइसोलेशन की स्थिति में रहने को मजबूर हैं। इसी जिले के केवटी प्रखंड में भी मरीजों के होम आइसोलेशन में रहने के अनेकों मामले सामने आये हैं। इसके अलावा मेडिकल स्टोर्स पर ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर की कमी ने ग्रामीणों के बीच में दहशत बढ़ा दी है।

पड़ोस के मधुबनी जिले की स्थिति भी कोई अलग नहीं है। यहाँ के जयनगर प्रखंड में हुई सोलह मौतों के मामले में भी सभी में बुखार, खांसी और जुकाम के लक्षण पाए गये थे, लेकिन इसे भी अधिकारियों द्वारा दर्ज नहीं किया गया है। जयनगर के बीडीओ चन्द्रकांता से जब हालात के बारे में टिप्पणी करने के लिए कहा गया तो उन्होंने क्षेत्र में मौतों की संख्या की पुष्टि करने से इंकार कर दिया।

7,000 से अधिक की आबादी वाले मधुबनी के खजौली गाँव में सिर्फ एक स्वास्थ्य केंद्र मौजूद है, और वह भी इस महामारी के बीच में मरणासन्न पड़ा है।

बनगांव उप-केंद्र, सहरसा 

सहरसा जिले के बनगांव गांव में उप-स्वास्थ्य केंद्र का जबसे 2007 में मुख्यमंत्री द्वारा उद्घाटन किया गया था, उसके बाद से ही इसके चालू होने का इंतजार किया जा रहा है। तकरीबन 6.5 लाख की लागत से निर्मित इस भवन में डॉक्टरों और नर्सों के साथ सुसज्जित केंद्र होने के बजाय, यह इमारत अब असामाजिक तत्वों और मवेशियों के भूसी के भंडारण के केंद्र के रूप में तब्दील हो चुकी है।

सहरसा के बनमा इटहरी प्रखंड में पिछले कई दशकों से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के बिना किसी एम्बुलेंस एवं अन्य बुनियादी सेवाओं के चलने की खबर है। इसी प्रकार, जिन्हें मधेपुरा के जन नायक कर्पूरी ठाकुर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (जेएनकेटीएमसीएच) में इलाज कराने की आवश्यकता पड़ती है, उन्हें एम्बुलेंस के अभाव में निजी वाहनों को किराए पर लेना पड़ता है।

रोहतास जिले की मल्हीपुर पंचायत को भी कुछ इसी प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। लगभग 14,500 की जनसंख्या के पास मौजूद निकटस्थ स्वास्थ्य केंद्र में कोविड-19 परीक्षण की सुविधा नहीं है, और निकटतम परीक्षण केंद्र यहाँ से 7 किमी की दूरी पर चेनारी में है। सासाराम के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता अशोक कुमार सिंह का इस बारे में कहना था कि “एक सप्ताह में हुई बीस मौतों की वजह से ग्रामीण लोगों के बीच में भय का माहौल व्याप्त है।”

बेगूसराय का अधूरा निर्माणाधीन अस्पताल भवन 

बेगूसराय के मझौल उप-मंडलीय अस्पताल की बिल्डिंग पिछले 14 वर्षों से अधूरा पड़ा है। चेरिया बरियारपुर के विधायक राज वंशी महतो ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उनके लंबे समय तक हस्तक्षेप और राज्य सरकार से अस्पताल को शुरू करने के अनुरोध, जो ग्रामीणों के लिए के राहत की बात होती, को लगातार नजरअंदाज किया गया है। वे आगे कहते हैं “सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि मझौल रेफेरल सेंटर का जीर्ण-शीर्ण बुनियादी ढाँचा भी इस महामारी से उत्पन्न स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान लोगों के बचाव में आगे आ पाने में विफल रहा है।”

नाम न छापने की शर्त पर बेगूसराय के एक जिला स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि “1 मई से लेकर 14 मई के बीच में, जिले में मामलों में तेज वृद्धि देखने को मिली। कुल 6,400 मामलों में से 4,800 ग्रामीण इलाकों से निकलकर आये थे, जिनमें से अधिकाँश मरीजों में जुकाम, खांसी और बुखार के लक्षण थे। लेकिन बखारी और तेघरा प्रखंडों में बंद बड़े उप-स्वास्थ्य केन्द्रों के कारण बढ़ते मामलों को सँभालने में मुश्किलें पेश आ रही हैं। मरणासन्न पड़े स्वास्थ्य केन्द्रों की पृष्ठभूमि में अधिकाँश ग्रामीण आबादी पूरी तरह से स्थानीय दवा विक्रेताओं, झोला छाप डाक्टरों के भरोसे हैं, क्योंकि संक्रमण के खिलाफ वे सबसे पहले आश्रयस्थल हैं।

मुज़फ्फरनगर जिले के विभिन्न प्रखंडों में मौजूद कई सामुदायिक एवं अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र या तो निष्क्रिय पड़े हैं या फिर स्थानीय निवासियों द्वारा इन्हें पशुशालाओं में तब्दील कर दिया गया है। मुसहरी प्रखंड में स्थित महंत दर्शन दास अस्पताल कई दशकों से उपयोग में नहीं होने के कारण ग्रामीणों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने से वंचित रखा गया है। 1932 में स्थापित यह दो-मंजिला इमारत एक समय सात डॉक्टरों से सुसज्जित हुआ करता था, लेकिन अब महामारी के बीच में यह लोगों की नाउम्मीदी के प्रतीक के रूप में सिमटकर रह गया है।

सरमस्तपुर पंचायत, सकरा के प्रधान प्रमोद कुमार गुप्ता का इस बारे में कहना था कि “मुज़फ्फरपुर के सकरा प्रखंड में पिछले 27 दिनों के दौरान मरीजों में जुकाम, खांसी और सांस फूलने के लक्षण सामने आने के बाद से 36 मौतें हुई हैं।” उन्होंने आगे कहा “कोविड-19 के परीक्षण के लिए चिकित्साधिकारी से अनेकों बार अनुरोध करने के बावजूद, स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र में किट्स उपलब्ध नहीं करारी गई, जिसके परिणामस्वरूप इन मौतों की वजह अज्ञात बनी हुई है।” 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

COVID-19: Defunct Rural Health Centres Highlight Desperate Situation in Bihar

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