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हर राज्य में लॉकडॉउन से निकलने के लिए अलग योजना की जरूरत

लोग लॉकडॉउन की मुश्किलों से निकलना चाहते हैं, लेकिन फौरी तौर पर खोली गयी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था फिलहाल विकल्प नहीं है।
लॉकडॉउन
Image courtesy: The Indian Express

भारत में नोवेल कोरोनावायरस को रोकने के लिए 25 मार्च से लॉकडॉउन लागू है। 29 अप्रैल तक 31,000 से ज़्यादा भारतीय इस महामारी से संक्रमित हो चुके थे। यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। महामारी 1,154 लोगों की जान भी ले चुकी है। किस्मत की बात है कि अब तक भारत में यह आंकड़ा अमेरिका, इटली, ब्रिटेन और स्पेन जैसे देशों से कम है, जिन्हें इस महामारी में भयंकर नुकसान झेलना पड़ रहा है।

भारत में कम संसाधनों के बावजूद इस महामारी से लड़ने का श्रेय राष्ट्रव्यापी लॉकडॉउन को दिया जा रहा है। नीति आयोग के सदस्य वी के पॉल की अध्यक्षता वाले एक समूह का कहना है कि अगर लॉकडॉउन लागू न किया गया होता, तो संक्रमित लोगों की संख्या एक लाख का आंकड़ा छू चुकी होती।

लेकिन एक दिन से भी कम वक़्त की मोहलत देकर लागू किए गए इस लॉकडॉ़उन से अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। कर्मचारियों में चिंताएं बढ़ रही हैं। औपचारिक कर्मचारियों के वेतन में कटौती की जा रही है, उन्हें मिलने वाली क्रमिक वेतनवृद्धि (एप्रेज़ल) को भी टाला जा रहा है। वहीं अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को काम ना मिलने की चिंता है। इन दिक्क़तों के चलते अब आम भारतीय इस राष्ट्रव्यापी लॉकडॉउन से निकलना चाहता है।
 
16 अप्रैल को WHO के डॉयरेक्टर TA घेब्रेयेसस ने कोरोना महामारी पर मिशन ब्रीफिंग में चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर देशों ने सामाजिक और आर्थिक प्रतिबंध बहुत जल्द हटा दिए, तो हम महामारी का दोहराव भी देख सकते हैं, जिसकी भयावहता और भी ज़्यादा होगी।इसलिए हमें अर्थव्यवस्था खोलने के लिए देश के अलग-अलग राज्यों में मूल्यांकन करने की जरूरत है। इसमें कोई शक नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत बहुत पतली है, हमें जिंदगियां और आजीविका बचाने के बीच संतुलन बनाना होगा। राष्ट्रीय स्तर पर संक्रमित मामलों के दोगुने होने की दर में गिरावट आई है। कोरोना के मामले अब 10.2 दिन में दोगुने हो रहे हैं, जबकि लॉकडॉउन के पहले यह आंकड़ा चार दिनों का था।

वृद्धि वक्र (ग्रोथ कर्व) अब सपाट हो चुका है, वृद्धि दर लॉकडॉउन के पहले 20 फ़ीसदी थी, जो गिरकर 16 फ़ीसदी पर आ गई है। हांलाकि नए मामलों की संख्या अब भी तेजी से बढ़ रही है। दूसरे देशों की तुलना में भारत में जांच दर काफ़ी कम है। 25 अप्रैल तक भारत में 5.8 लाख टेस्ट किए गए थे। प्रति दस लाख की आबादी पर 420 टेस्ट। हम यह भी पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण की दर धीमी और मृत्यु दर वाकई में कम है। क्योंकि जरूरी संख्या में टेस्टिंग न होने के चलते हमें सही आंकड़ा नहीं मिल पा रहा है। अगर ऐसा हुआ तो मौजूदा मामलों की संख्या और मृत्यु दर की जानकारी से हम इस संकट रूपी पहाड़ की चोटी बस देख पा रहे हैं।

राज्य स्तरों पर भी कोरोना संक्रमण की स्थिति में अतंर है। इस महामारी की सबसे बड़ी कीमत महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, दिल्ली और राजस्थान को चुकानी पड़ी है। इन पांच राज्यों में ही 70 फ़ीसदी मामले सामने आए हैं और 78 फ़ीसदी मौतें हुई हैं।महामारी की शुरूआत में केरल में 105 केस थे। एक महीने बाद 25 अप्रैल तक इसमें आंशिक वृद्धि ही हुई। लॉकडॉउन के दौरान देश के कुल मामलों में केरल की हिस्सेदारी 19 फ़ीसदी से घटकर सिर्फ एक फ़ीसदी रह गई है।

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यह स्थिति महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, दिल्ली और राजस्थान में भयावह है। यहां उल्टा ट्रेंड देखा गया है। लॉकडॉउन के दौरान इन राज्यों के संक्रमित मामलों में क्रमश: 50%, 72%, 128%, 71% और 47% की बढ़ोत्तरी हुई है।दूसरी आकृत्ति में भारतीय राज्यों में 25 मार्च से 25 अप्रैल के बीच की तुलनात्मक स्थिति बताई गई है। ध्यान रहे 25 मार्च को लॉकडॉउन शुरू होने का पहला दिन था। साफ है कि लॉकडॉउन के एक महीने बाद भी महाराष्ट्र इस बीमारी का केंद्र बना हुआ है। यहां प्रति दस लाख की आबादी पर 51 मामले हैं। महाराष्ट्र के पड़ोसी राज्यों में भी संक्रमण की दर बहुत तेज है।

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लॉकडॉउन के शुरूआती एक महीने में ''प्रति दस लाख की आबादी पर सक्रिय मामलों'' का आंकड़ा महाराष्ट्र में 1.1 से बढ़कर 50.5, गुजरात में 0.6 से बढ़कर 40.1, मध्यप्रदेश में 0.2 से बढ़कर 21.3, दिल्ली में 1.4 से बढ़कर 95.4 और राजस्थान में 1.4 से बढ़कर 25.9 पहुंच गया है।पूर्वी राज्यों में वायरस का संक्रमण कम फैला है। लेकिन पश्चिम बंगाल इस बीमारी का नया केंद्र बनकर उभर रहा है। फिलहाल यहां प्रति दस लाख की आबादी पर पांच कोरोना के मामले हैं। लॉकडॉउन के दौरान राज्य की देश के कुल कोरोना मामलों में हिस्सेदारी 1.4 से बढ़कर 2.4 फ़ीसदी पहुंच चुकी है।

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महाराष्ट्र और दिल्ली उन पांच राज्यों में से हैं, जहां संक्रमण सबसे ज़्यादा फैला है। यहां बड़ी संख्या में पड़ोसी राज्यों और बिहार व उत्तरप्रदेश जैसे पिछड़े इलाकों से प्रवासी मज़दूर आते हैं। 2011 के हालिया आंकड़ों के मुताबिक़, देश के भीतर अंतर्राज्यीय प्रवास के तहत महाराष्ट्र में 17 फ़ीसदी और दिल्ली में 12 फ़ीसदी लोग आते हैं। महाराष्ट्र में रहने वाले कुल प्रवासियों में 30 फ़ीसदी उत्तरप्रदेश और 6 फ़ीसदी बिहार से हैं। दिल्ली में रहने वाले कुल प्रवासियों में से 45 फ़ीसदी उत्तरप्रदेश और 17 फ़ीसदी बिहार से हैं। अचान लॉकडॉउन हटाने का फ़ैसला, कोरोना के केंद्रों से विपरीत प्रवास के चलते उत्तरप्रदेश, बिहार और दूसरे राज्यों में संक्रमण का ख़तरा बढ़ा देगा।  

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जैसा चौथी आकृति से दिखाई दे रहा है, लॉकडॉउन से कुछ राज्यों और जिलों में संक्रमण रोकने में कामयाबी मिली है। लॉकडॉउन के बाद वायरस दो तरीके से ही वापसी कर सकता है। पहली स्थिति है कि लोग नौकरी और स्कूल-कॉलेज के लिए यात्राएं करना शुरू कर दें। दूसरा तरीका बाज़ारों के खुलने से फैलने वाला संक्रमण है। कुछ अनुमानों के मुताबिक़, चार में से एक कोरोना संक्रमित व्यक्ति के लक्षण दिखाई नहीं देते। इस तरह के लोगों द्वारा बड़ी संख्या में फैलाव होता है।

ऐसे लोग जो अपनी बीमारी के बारे में नहीं जानते, जब वे बूढ़े और ज़्यादा असुरक्षित लोगों से संपर्क में आते हैं, तो उनसे वायरस की लहर के अगले फैलाव की आशंका हो जाती है। भले ही अंतरराष्ट्रीय यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया हो, अंतर्देशीय यात्राओं से देश के दूर-दराज के इलाके, जहां वायरस नहीं फैला है, वहां भी संक्रमण फैलने का ख़तरा बढ़ जाता है।

कई यूरोपीय देश बहुस्तरीय तरीकों और अलग-अलग गति से अपनी अर्थव्यवस्थाएं खोलने की तैयारी कर रहे हैं। सरकारें लॉकडॉउन ढीला करने से पहले लोगों को मास्क दे रही हैं, ताकि लोग सोशल डिस्टेंसिंग और साफ-सफाई का ध्यान रखें। ठीक इसी बीच दुनिया के लगभग सभी देशों में लोगों के बड़ी संख्या में मिलने-जुलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

एक तेज-तर्रार स्वास्थ्य ढांचे और संसाधनों के आभाव में भारत में हर कर्मचारी की सुरक्षा तय कर पाना मुश्किल है। ऐसे में भारत के सामने एक विकल्प यह हो सकता है कि देश में कम वक़्त का एक और लॉ़कडॉउन लागू किया जाए, जिसमें बड़़े पैमाने पर प्रबलता से टेस्टिंग की जाए। लेकिन उस स्थिति में राज्यों को गरीब़ और वंचित तबके के लोगों तक जरूरी सामान की पहुंच तय करवानी होगी।

एक दूसरे तरीके में लॉकडॉउन को चरणबद्ध तरीके से खोला जाने का विकल्प है। इसके तहत राज्यों और देश की सीमाएं तुरंत न खोली जाएं। जैसे-किसानों को कुछ छूट दी जा सकती है। उनकी पैदावार की खरीद ठीक ढंग से तय करनी होगी, क्योंकि भारत में एक बड़ी आबादी के जीवन यापन का ज़रिया कृषि है।

जिन जिलों में संक्रमण के मामले कम आए हैं, उन्हें दोबारा खोला जा सकता है। शहरी क्षेत्रों, खासकर बड़े शहरों के लिए ज़्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है। वायरस का संक्रमण बड़े शहरों में ज़्यादा फैला है।

कम शब्दों में कहें तो जब प्रतिबंध हटाए जाएं, तब संक्रमण की क्षेत्रवार असमताओं और स्वास्थ्य ढांचे का ख़्याल रखा जाए। सरकार को अलग-अलग राज्यों, आर्थिक क्षेत्रों, इससे जुड़े दफ़्तरों, दुकानों और सार्वजनिक संस्थानों के लिए विस्तृत बहुस्तरीय-योजना लेकर आनी होगी। तब इन्हें धीरे-धीरे खोला जा सकेगा।

सरकार को काम वाली जगहों पर सेनिटाइज़ेशन करवाकर कर्मचारियों की सुरक्षा तय करनी चाहिए। साथ में मास्क का प्रावधान भी होना चाहिए। चूंकि स्वास्थ्य एक राज्य विषय है, इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने के लिए एक-साथ कोशिश करनी चाहिए। इस बीच राज्य सरकारों को आगे आकर अपने राज्यों में रहने वाले वंचित तबके के लोगों और प्रवासियों की मदद करनी होगी।

(प्रीतम दत्ता नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फायनेंस एंड पॉलिसी (NIPFP), नई दिल्ली में फैलो हैं। चेतना चौधरी पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PHFI), गुड़गांव में सीनियर रिसर्च एसोसिएट हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें।

Each Indian State Will Need Unique Lockdown Exit Plan

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