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COVID-19 लॉकडाउन: सड़क किनारे रेहड़ी लगाकर कमाने वाले कश्मीरी वेंडर के हाथ ख़ाली

श्रीनगर म्युनिसिपल कमेटी के चीफ रेवेन्यू ऑफिसर ने कहा, "धारा 370 के हटने के बाद कश्मीर में जो लॉकडाउन हुआ उसी ने इन विक्रेताओं को सात महीने तक अपने काम से दूर रखा और उनकी सारी बचत को समाप्त कर दिया।"
कोरोना वायरस

अपने घर की रसोई में बैठकर बशारत अपनी पत्नी से ज़रुरी चीज़ों की उपलब्धता के बारे में पूछते हैं। COVID-19 महामारी के प्रसार को रोकने के लिए जब से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई है तब से यह उनके रोज़मर्रे का काम है। इस लॉकडाउन के चलते उन्हें कश्मीर के बारामूला में सड़क के किनारे से हटने के लिए मजबूर होना पड़ा जहां वे ज़िंदगी गुज़र बसर करने के लिए वे फल बेचा करते थे।

बशारत उन विक्रेताओं में से एक हैं जो सड़क किनारे फल बेचते हैं। वे अक्सर आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता के बारे में पूछते है क्योंकि वे चिंतित हैं कि उन्हें अपनी मामूली बचत से इस पूरे लॉकडाउन में घर चलाना मुश्किल होगा। न्यूजक्लिक से बात करते हुए उन्होंने कहा कि "मेरे पास पैसे नहीं हैं और मुझे नहीं पता कि मेरे परिवार की ज़रुरत कैसे पूरी होगी।" बात करते हुए उनका गला भर गया। आगे वे कहते हैं "मैं अपने परिवार को लेकर चिंतित हूं।''

बशारत जैसे 250 से ज़्यादा स्ट्रीट वेंडर्स हैं जिन्होंने उत्तरी कश्मीर के बारामूला शहर में फल और सब्जियां बेचकर अपनी आजीविका के लिए पैसे कमाए लेकिन अब अपने लिए गुज़र बसर करना मुश्किल है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान कश्मीर में लगी पाबंदियों के चलते वे अपने परिवार की मदद करने के लिए कई तरह के काम किया करते थे। वे कभी पेट्रोल बेचते या मज़दूरी करते थे। हालांकि, COVID-19 के प्रकोप ने उन्हें अपने घर में ही क़ैद कर दिया है, जिससे कमाई न होने को लेकर चिंता बढ़ रही है कि इस कमी को कैसे पूरा किया जाएगा। उन्होंने कहा कि दूसरे विक्रेताओं को भी अपनी बुनियादी ज़रुरतों को पूरा करने में इतना ही मुश्किल हो रहा है।

राजधानी श्रीनगर में बाटामालू वेंडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष नसीर अहमद और भयावह कहानी बताते हैं। उन्होंने न्यूज़़क्लिक को फोन पर बताया कि उन्हें हर दिन विक्रेताओं के फोन आ रहे हैं कि वे काफी परेशान हैं। उन्होंने कहा, “ये लोग रोज़ाना कमाते और रोज़ाना खाते हैं और इनके पास कमाई का कोई वैकल्पिक साधन भी नहीं है। मुझे उन विक्रेताओं से हर दिन फोन आता है कि वे अपने सीमित स्टॉक को लेकर चिंतित हैं।” जिन लोगों के घर में बीमार माता-पिता हैं वे सबसे ज्यादा पीड़ित हैं। वे कहते हैं, "उन्हें अपने बीमार माता-पिता के लिए दवा हासिल करना बहुत मुश्किल हो रहा है।" नसीर लगभग 600 विक्रेताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं जो बाटामालू क्षेत्र में अपना व्यवसाय करते हैं। बाटामालू शहर के सबसे व्यस्त क्षेत्रों में से एक है।

लाल चौक वेंडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जान मोहम्मद ने उनकी बातों को दोहराते हुए न्यूज़क्लिक को बताया, “विक्रेताओं को काफ़ी परेशानी हो रही है। उनके पास काम करने के लिए कुछ नहीं है। कुछ विक्रेताओं के पास पैसे नहीं हैं। उन्हें अपने परिवारों की ज़रुरत पूरी करना मुश्किल हो रहा है।”

उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि 20 अप्रैल के बाद लॉकडाउन में ढ़ील दिया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वे कहते हैं, “विक्रेता अक्सर नक़दी या खाद्य पदार्थों के लिए आज कल मेरे घर आते हैं। हाल ही में एक विक्रेता ने अपने बीमार बच्चे के इलाज के लिए कुछ पैसे मांगे। मैंने कुछ घरों में खाने के पैकेट भी दिए। स्थिति ख़राब है। क्रॉकरी और रेडीमेड चीजें बेचने वाले लोग सबसे ज्यादा परेशान हैं।”

श्रीनगर नगर समिति के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 3,000 स्ट्रीट वेंडर हैं जो शहर भर में सड़कों के किनारे अपना व्यवसाय चलाते हैं। श्रीनगर नगर समिति के मुख्य राजस्व अधिकारी मोहम्मद अकबर सोफी ने न्यूज़़क्लिक को बताया, “वे सभी समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से हैं। वे ज़्यादा बचत नहीं कर पाते हैं और उनकी बचत आमतौर पर एक या दो सप्ताह तक ही चल पाएगी। परेशान करने वाली बात ये है कि उनकी महीने की आमदनी 10-20,000 प्रति माह के बीच होती है और उनमें से अधिकांश तो अपने परिवारों में एकमात्र पैसा कमाने वाले हैं।”

उन्होंने कहा कि पिछले आठ महीनों से कश्मीर में एक के बाद एक लॉकडाउन के चलते उनकी स्थिति बदतर हुई है। उन्होंने कहा, "धारा 370 के हटने के बाद कश्मीर में जो लॉकडाउन हुआ उसी ने इन विक्रेताओं को सात महीने तक अपने काम से दूर रखा और उनकी सारी बचत को समाप्त कर दिया।" उन्होंने यह भी कहा कि लॉकडाउन ने उनके डर को दोगुना कर दिया है क्योंकि वे वायरस के संपर्क में आने से डरे हुए हैं और आमदनी न होने के कारण भूखे रहते हैं।

शुरू में कई लोगों ने इन प्रतिबंधों का विरोध किया और अपने स्टॉल लगाए और अपना कारोबार चलाने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने अक्सर उनके माल को ज़ब्त कर लिया या उनमें से कुछ को हिरासत में ले लिया। पुलिस ने भी इन प्रतिबंध को कड़ाई से लागू किया है और शहर में चेक प्वाइंट स्थापित किया है जो उनके कामकाज पर अंकुश लगाता है।

प्रति माह लगभग 10-12,000 रुपये की आय करने वाले तजमुल नबी डीलर को दिए जाने वाले पैसे पर अपने परिवार का ख़र्च चला रहे हैं। वे कहते हैं, “मैं अपने डीलर से उधार फल लेता हूं और उन्हें बेचने के बाद भुगतान करता हूं। मैंने उसे लॉकडाउन के बाद से कुछ भी भुगतान नहीं किया है।” वे आगे कहते हैं कि वह चिंतित है कि लॉकडाउन में चलाना मुश्किल होगा क्योंकि उनकी बचत समाप्त होने वाली है।

कश्मीर में लगभग कोरोनावायरस के 368 संक्रमण के मामलों की पुष्टि हुई है जिनमें से 71 मरीज़ ठीक हो चुके हैं और पांच लोगों की मौत हो चुकी है। अभी तक जांच की उपलब्धता सीमित है और बिना लक्षण वाले कई मामले सामने नहीं आए हैं ऐसे में वास्तविक आंकड़ा बढ़ने का अनुमान है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।

COVID-19 Lockdown: Forced off Streets, Kashmiri Vendors Run Out of Savings

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