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दिल्ली : कोविड-19 महामारी ने हेल्थकेयर सेवाओं की पोल खोल दी है

ऐसे बहुत से ग़ैर-कोविड रोगी हैं जिन्हें डायलिसिस या फिर कीमोथेरेपी जैसे उपचारों की ज़रूरत होती है, लेकिन उन्हें पूरी तरह से नज़रअंदाज़ किया जा रहा है यहाँ तक कि विभिन्न अस्पतालों के डॉक्टर यह भी कह रहे हैं कि उन्हें उपलब्ध कराई जा रही पीपीई किट की क्वालिटी या गुणवत्ता ठीक नहीं है और उनकी जांच भी नहीं की जा रही है।
कोविड-19
प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में कोविड-19 के मामलों की संख्या में निरंतर होती वृद्धि से, दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली चर्चा में आ गई है। हालांकि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने चुनाव जीतने के लिए अपनी सरकार की स्वास्थ्य सेवा के मामले में मुहल्ला क्लीनिकों का सफलतापूर्वक उपयोग किया है- जो सब्सिडी वाले बिजली बिल के बाद एक प्रमुख चुनावी मुद्दा था। लेकिन इस महामारी ने चिकित्सा व्यवस्था में कमियों को उजागर कर दिया है जिसमें मेडिकल स्टाफ, मरीज और सफ़ाई कर्मी काफ़ी चिंतनीय स्थिति में हैं। 

सरकार ने कोविड-19 से लड़ने के लिए अपने पांच प्रमुख अस्पतालों – जिसमें लोक नायक जय प्रकाश नारायण (LNJP) अस्पताल, जीबी पंत अस्पताल, राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, गुरु तेग बहादुर (GTB) अस्पताल, दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल और डॉ॰ बाबा साहेब अम्बेडकर अस्पताल की घोषणा की थी। इसके चलते जो मरीज़ अन्य बीमारियों जैसे गुर्दे, कैंसर और एचआईवी जैसी बीमारियों से पीड़ित हैं और जिन्हें नियमित रूप से अस्पतालों में इलाज़ कराने की ज़रूरत होती है, उन्हे बड़ी परेशानी हो रही है। केवल आपातकालीन सेवाएं कार्यरत हैं जबकि अधिकांश ओपीडी और ऑपरेशन थिएटर बंद पड़े हैं।

ग़ैर-कोविड अस्पतालों में विभिन्न विभाग काफ़ी कम स्टाफ़ और न्यूनतम क्षमता से काम कर रहे हैं। सख्त तालाबंदी से स्थिति और भी ख़राब हो गई है।

किडनी और थैलेसीमिया का इलाज कराने वाले लोग काफ़ी चुनौतीपूर्ण समय से गुज़र रहे हैं। डायलिसिस के मरीज़ दवाओं और डायलिसिस सेंटर तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कोविड-19 के मामलों के इलाज़ के लिए समर्पित अधिकांश सरकारी अस्पतालों में मुफ्त डायलिसिस प्रदान करने वाली स्वास्थ्य सुविधाएं, कर्मचारियों की कमी का हवाला देते हुए डायलिसिस न कर पाने में असमर्थता जता रहे हैं।

महरौली के रहने वाले श्याम कुमार छाबड़ा सप्ताह में तीन बार मैक्स अस्पताल में डायलिसिस करवाते हैं। यद्यपि उन्हें तीन दिन पहले ही एलएनजेपी अस्पताल के लिए उस वक़्त रेफर कर दिया गया था जब वे कोविड-19 के लिए पॉज़िटिव पाए गए थे। उन्होंने कहा कि उनका अभी भी एलएनजेपी में डायलिसिस नहीं हुआ हैं। उन्होंने कहा, "मैंने पिछले तीन दिनों से डायलिसिस नहीं कराया है और मैं काफ़ी मुश्किल मे हूँ।"

60 वर्षीय मुनीर अहमद ने कड़कड़डूमा के शांति मुकंद अस्पताल में अपना किडनी फंक्शन टेस्ट करवाया था और 28 फ़रवरी को वे गुर्दे की ख़राबी से पीड़ित पाए गए थे। उन्हें सप्ताह में दो बार डायलिसिस करवाने की सलाह दी गई थी, और ईडब्लूएस कोटा से अस्पताल में भर्ती किया जा रहा था। लेकिन अचानक, उन्हें कथित तौर पर डायलिसिस से मना कर दिया गया और कहा गया कि अस्पताल में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के रोगियों के लिए बिस्तर मौजूद नहीं हैं।

उनका 12 मार्च से कोई डायलिसिस नहीं हुआ है और उन्हें एलएनजेपी और लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल से भी वापस भेज दिया गया है। फिर डॉक्टरों ने उन्हे सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया।

मुनीर के बेटे इसरार अहमद ने न्यूज़क्लिक को बताया, “उन्हें स्कूटी पर लक्ष्मी नगर से सफदरजंग ले जाना संभव नहीं है क्योंकि वे ज्यादा देर तक स्कूटी पर बैठ नहीं सकते है और पुलिसकर्मी एक पिलयन सवार की भी अनुमति नहीं देते हैं। मैं तीन या चार पहिया वाहन का किराया अदा नहीं कर सकता हूँ क्योंकि मेरे पास पैसे नहीं हैं। मैं एक ड्राइवर हूँ और लॉकडाउन के कारण नौकरी से बाहर हूं।”

इसरार अपने पिता को ईडब्ल्यूएस श्रेणी के तहत दाख़िले के लिए अशोक नगर के पास धर्मशिला नारायण सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल ले गए, लेकिन अधिकारियों ने दाखिला ठुकरा दिया, जिन्होंने कथित तौर पर कहा कि वे केवल रेफर किए मामले ही लेते हैं।

काफ़ी भागदौड़ करने के बाद, इसरार अपने पिता को शांति मुकुन्द अस्पताल में वापस ले गया, और अंत में वे डायलिसिस करने के लिए सहमत हो गए, लेकिन ऐसा करने से पहले उन्हे जांच करवाने की एक लंबी सी सूची सौंप दी। उनसे कोविड-19 की जांच कराने को भी कहा गया।

निजी अस्पतालों में जिन सेवाओं के लिए भुगतान किया जाता है, वे कई लोगों के लिए काफी महंगी हैं। यहां तक कि भुगतान के एवज़ में किए जा रहे डायलिसिस के वक़्त अस्पताल समय में कटौती कर रहे हैं, जिससे दो दिनों के भीतर ही बीमारी के लक्षण फिर से दिखने लगते हैं।

निजी अस्पताल के वरिष्ठ नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ॰ विष्णु ने कहा, “डायलिसिस रोगियों को नियमित अपने उपचार को जारी रखना चाहिए और अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। डायलिसिस न होने से उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और अस्पताल में भर्ती होने का खतरा बढ़ जाता है।”

शांति मुकंद अस्पताल में डायलिसिस टेक्नीशियन निधि ने कहा, कि मरीज को कोविड-19 की  जांच रिपोर्ट लाने की ज़रूरत है क्योंकि बहुत सारे रोगी बिना किसी लक्षण वाले रोगी हैं और अस्पताल में सामान्य जांच किसी भी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती है। उन्होंने बताया, “मैंने उनसे कुछ महत्वपूर्ण नैदानिक जांच करवाने के लिए कहा है जो जांच इस अस्पताल में करवाना संभव नहीं हैं क्योंकि यहाँ कर्मचारियों की कमी के कारण अधिकांश सेवाएं बंद हैं। हम किसी भी मरीज को अंदर लेने से पहले अत्यधिक सावधानी बरत रहे हैं क्योंकि एक पॉज़िटिव रोगी के संपर्क में आने से हमारे 14 स्टाफ सदस्य या हमारे कर्मचारी क्वारंटाइन में चले गए हैं।”

संगम विहार निवासी अड़तालीस वर्षीय चंद्रपाल को हाल ही में दिल का दौरा पड़ा था। उनकी कोरोनरी धमनियों में रुकावटें थीं और उन्हें सर्जरी की सलाह दी गई थी। उनकी 10 अप्रैल को सफदरजंग अस्पताल में सर्जरी होनी थी लेकिन कोविड-19 की वजह से उसे रद्द कर दिया गया। उनके परिवार ने आरोप लगाया कि उन्हें कोई भी अगली तारीख नहीं दी गई है और कहा गया है कि मौजूदा संकट खत्म होने के बाद ही अस्पताल आएँ।

चंद्रपाल के छोटे बेटे योगेश ने कहा, “मेरे पिता अब बिस्तर पर पड़े हैं, उनकी हालत ठीक नहीं है। वे अक्सर सीने में गहरे दर्द की शिकायत करते है। हम उन्हे कैलाश कॉलोनी के एक निजी अस्पताल में ले गए थे लेकिन अस्पताल इतना महंगा था कि हम उसके खर्च को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। मेरे पिता परिवार के मुख्य रोज़ी-रोटी कमाने वाले हैं; वे दर्जी का काम करते है। हम दैनिक वेतन वाले रोजगार के माध्यम से परिवार की आय में योगदान करते हैं, लेकिन लॉकडाउन में सब काम बंद है। उन्हे जल्द से जल्द सर्जरी की ज़रूरत है, लेकिन कोई भी सरकारी अस्पताल उनका दाखिला करने के लिए तैयार नहीं है “

इसी तरह, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में मैत्री का मुंह के कैंसर का इलाज चल रहा था। 13 मार्च को, उन्हे सूचित किया गया कि तत्काल सर्जरी की ज़रूरत है। हालांकि, एम्स में भी ओपीडी सेवाएं कार्यात्मक नहीं हैं और डॉक्टर सर्जरी नहीं कर रहे हैं। वे गंभीर दर्द से गुजर रहे है क्योंकि अल्सर की वजह से उनकी जीभ से ख़ून बहने लगा है।

एम्स में लगभग सभी आउट पेशेंट कीमोथेरेपी सेवाओं को बंद कर दिया गया है। हालांकि सफदरजंग अस्पताल में ऑन्कोलॉजी विभाग काम कर रहा है, लेकिन जिन्हें कीमोथेरेपी की आवश्यकता है वे वहां नहीं जा सकते हैं।

29 वर्षीय रज्जाक शेख ने कुछ लक्षणों के विकसित होने के बाद खुद की लाल पैथलैब्स में जांच कराई थी और 23 अप्रैल को उनके पॉज़िटिव होने की रपट आई थी। उनकी पत्नी फरजाना शेख ने कहा कि उसी दोपहर को वे उन्हें आरएमएल अस्पताल ले गई, और वहाँ से उन्हें एलएनजेपी अस्पताल रेफर कर दिया गया।

उन्होंने बताया, “उनकी जांच करने के बाद उन्हे बुरारी क्वारंटाईन सुविधा में रेफर कर दिया गया, जो तब तक काम भी नहीं कर रही थी। हम एलएनजेपी में वापस गए। फिर हमें मॉडल टाउन क्वारंटाईन केंद्र जाने के लिए कहा गया, जहां उन्हे स्वीकार करने से भी इनकार कर दिया। फिर हम एलएनजेपी आए और हमें फिर से वज़ीराबाद क्वारंटाईन सेंटर में भेज दिया गया। वहां के अधिकारियों ने भी मेरे पति को दाखिला देने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि अस्पताल खुद अपने स्टाफ के साथ एंबुलेंस में लाएँगे तो हम लेंगे। हम फिर एलएनजेपी में वापस गए, जहां डॉक्टरों ने उन्हे अगले दिन दोपहर में आइसोलेशन वार्ड में भर्ती करा दिया।”

यह परिवार भलसवा जे.जे. कॉलोनी चार अन्य सदस्यों जिसमें एक बच्चा भी रहता है।  दिलचस्प बात यह है कि यह दंपति एक अस्पताल से विभिन्न क्वारंटाईन सेंटरों की तरफ ऑटो रिक्शा में सफर करते रहे। अस्पताल, यह जानने के बावजूद कि उनमें से एक कोविड-19 पॉजिटिव है, उसे अलग से एम्बुलेंस में भेजने की भी परवाह नहीं की।

रज़्ज़ाक़ एलएनजेपी में ठीक महसूस कर रहे हैं, जबकि उनकी पत्नी और परिवार के अन्य सदस्य घर में क्वारंटाईन पर हैं। रज़्ज़ाक की पत्नी ने कहा, “आशा कर्मी बुखार की जांच के लिए 3 से 4 बार आई थी। पुलिस भी हम पर नज़र रख रही है। लेकिन हमें इस तथ्य के बावजूद कि हम एक पॉज़िटिव केस के साथ थे, हमारी अब तक कोई जांच नहीं की गई है।”

कस्तूरबा अस्पताल के एक वरिष्ठ चिकित्सक ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि राज्य सरकारें और केंद्र सरकार समानांतर रूप से अन्य चिकित्सा सेवाएं चलाने में विफल रहे हैं।

उन्होंने बताया, “उन्हें चिकित्सा के बुनियादी ढांचे में सुधार करना चाहिए था। अस्थायी और अलग से आइसोलेशन वार्ड बनाए जाने चाहिए थे। अन्य विभागों तथा चिकित्सा से जुड़े लोगों और रोगियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उचित व्यवस्था की जानी चाहिए थी। अब जो हो रहा है वह यह है कि अस्पतालों में मरीजों का इलाज़ बहुत ही कठिन है या फिर प्रतिबंधित है। सभी अस्पतालों में केवल आपातकालीन सेवाएं चालू हैं। सभी विभाग या तो बंद हैं या काफी कम स्टाफ के साथ काम कर रहे हैं। जब चिकित्सा विभाग नहीं खुले हैं, तो मधुमेह या अन्य बीमारियों वाले मरीज़ या पुराने रोगी कहां जाएंगे? कीमोथेरेपी की ज़रूरत वाले कैंसर रोगियों का क्या होगा? दिल्ली सरकार के अस्पतालों में आपात सेवाएँ वरिष्ठ और कनिष्ठ रेजीडेंट डॉक्टर द्वारा आपातकालीन सेवाएं चलाई जाती हैं। अधिकतर वरिष्ठ और स्थायी डॉक्टर प्रशासनिक काम में लगे रहते हैं।”

उन्होंने दावा किया कि चिकित्सा सेवाओं और प्रतिबंधों के कारण रोगियों की दैनिक हाजरी में भारी गिरावट आई है। “हम अपने बाल रोग विभाग की ओपीडी में करीब 250 रोगियों की जांच या इलाज़ करते थे; यह संख्या अब 10 से 15 के बीच रह गई है। ये वे लोग हैं जो अस्पताल के आसपास के क्षेत्र में रहते हैं। इसी तरह, स्त्री रोग चिकित्सा विभाग में रोजाना करीब 350 मरीजों का इलाज होता था। लेकिन अब यह संख्या 20 के आसपास रह गई है। चूंकि ऑपरेशन थिएटर बंद हैं, डिलीवरी के मामलों को किसी न किसी बहाने बड़े अस्पतालों में भेज दिया जाता है।

कस्तूरबा अस्पताल 450 बेड वाला अस्पताल है, जो उर्दू बाज़ार रोड पर दिल्ली की घनी आबादी वाले क्षेत्र में स्थित है।

“हमें फूलों की नहीं बल्कि बुनियादी सुविधाओं की ज़रूरत है”

डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ़ ने सरकार पर कोविड-19 के मामलों से निपटने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में विफल होने का आरोप लगाया है।

एलएनजेपी अस्पताल में कोविड वार्ड के एक डॉक्टर ने कहा कि अस्पताल के अधिकारियों द्वारा आपूर्ति किए जा रहे व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपकरण (PPE) अच्छी गुणवत्ता के नहीं हैं। उन्होंने बताया, “कई कोविड-19 अस्पतालों में पीपीई किट की घटिया या अपर्याप्त आपूर्ति है। हमें जो किट मिलती भी हैं, वह हममें से बहुतों को नहीं मिलतीं है। काले चश्मे इतनी खराब गुणवत्ता के होते हैं कि वे अक्सर फट जाते हैं। पीपीई की मांग को पूरा करने की हमारी क्षमता नहीं है, जिससे हम संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं। डॉक्टरों और पैरामेडिक्स के आइसोलेशन की कोई उचित व्यवस्था नहीं की गई है। सरकार द्वारा प्रदान किए जा रहे भोजन की घटिया गुणवत्ता के कारण हमें रोगियों के क्रोध का सामना करना पड़ता है। डॉक्टर ने आगे कहा कि, यहां तक कि जिन नर्सों को लंबे समय तक ड्यूटि करनी होती है, उन्हें भी पौष्टिक भोजन नहीं मिलता है।”

अच्छी गुणवत्ता वाली पीपीई किट की अनुपस्थिति से डॉ बीआर अम्बेडकर अस्पताल में  स्वास्थ्य पेशेवरों के बीच संक्रमण फैलने का ख़तरा बढ़ रहा है। अस्पताल के भीतर कम से कम 32 चिकित्सा कर्मचारी पॉज़िटिव पाए गए हैं। कुछ दिनों पहले, एक गर्भवती महिला को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनमें कोई लक्षण नहीं थे और उसने अपनी चिकित्सा के इतिहास को छिपा लिया था। डॉक्टर ने बताया कि बाद में, अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई थी।

बाबू जगजीवन राम अस्पताल में 25 स्वास्थ्यकर्मी कोविड-19 से संक्रमित पाए गए हैं। हालात उन्हें क्वारंटाईन में जाने पर मजबूर कर रही है, जिससे देश के कई शीर्ष अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी हो गई है। चूंकि स्वास्थ्य कर्मचारियों की संख्या अपर्याप्त है, इसलिए उन्हें कोविड-19 रोगियों की देखभाल के लिए लंबे समय तक काम करना पड़ता है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

कई डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों के कोविड-19 के मामले में पॉज़िटिव पाए जाने के साथ, कई अस्पतालों ने उनकी जांच बंद कर दी है। दिल्ली के आरएमएल अस्पताल (केंद्र सरकार के तहत) की एक नर्स ने आरोप लगाया कि “अस्पताल के अधिकारियों ने हमारी जांक पर रोक लगा दी है। उनका ध्यान गलत संख्याओं को पेश करना है। केवल जिनकी हालत बिगड़ रही है, उनकी जांच की जा रही है। जिनमें कोविड के लक्षण पाए जाते हैं उन्हें या तो अस्पताल में आइसोलेट कर दिया जाता है या फिर सफ़दरजंग अस्पताल भेज दिया जाता है।”

उन्होंने कहा कि यह स्थिति कई अन्य लोगों को हतोत्साहित कर रही है जो आगे बढ़चढ़कर  काम कर रहे हैं, क्योंकि वे अपने जीवन और उसकी बेहतरी के बारे में चिंतित हैं।

नरेला क्वारंटाइन केंद्र की एक लैब तकनीशियन ने कहा कि प्रयोगशाला के कर्मचारी बेहद असुरक्षित हैं क्योंकि वे संदिग्ध रोगियों से जांच के लिए नमूने एकत्र करते हैं, और उनके प्रति खतरे को काफी हद तक नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।

उन्होंने कहा, “हम मरीज़ के स्वेब का नमूना लेते समय रोगियों या संदिग्ध रोगियों के सीधे संपर्क में आते हैं। अपनी शिफ्ट पूरी करने के बाद, हम घर जाते हैं, परिवार के बाकी सदस्यों को भी संक्रमण का ख़तरा होता है। हम सरकार से ख़ुद के रहने की व्यवस्था करने का आग्रह कर रहे हैं।”

ऐसा रिपोर्ट किया जा रहा है कि ग़ैर-कोविड अस्पतालों में ही कई डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिक्स और अन्य कर्मचारी या तो संक्रमित हो रहे हैं या संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आ रहे हैं और संबंधित अस्पतालों के चिकित्सा निदेशक उन्हें अंधाधुंध या तो हॉस्टल या फिर 14 दिनों के क्वारंटाईन के लिए उन्हे उनके घरों में भेज रहे हैं। इस प्रक्रिया से अस्पतालों में डॉक्टरों और कर्मचारियों की अनावश्यक कमी हो रही है। ऐसा लगता है कि यह इसलिए हो रहा है क्योंकि या तो अस्पताल मानक एसओपीज का पालन नहीं कर रहे हैं या फिर ऐसे व्यक्ति स्वास्थ्य कर्मियों के लिए निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं।

“उपरोक्त को मद्देनज़र रखते हुए, सभी चिकित्सा निदेशकों को ऐसे सभी व्यक्ति से लिखित स्पष्टीकरण हासिल करने को कहा है बावजूद आवश्यक सुरक्षा गियर पहनने के, सुरक्षित दूरी बनाए रखने और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए निर्धारित सावधानियों का पालन करने के बावजूद वे कैसे संपर्क में आ गए या वे संक्रमित हो गए। इसके अलावा, चिकित्सा निदेशक को यह भी पता लगाने के लिए डॉक्टरों की एक टीम का गठन करने को कहा गया कि क्या कोविड ‘संपर्क’ ने भारत सरकार के दिशा-निर्देशों पालन किया है, जिसे पॉज़िटिव रोगी रोगी का संपर्क घोषित किया गया हो।" उस आदेश को पढ़ें, जिसे बाद में वापस ले लिया गया था।

इसे असंवेदनशील कदम बताते हुए डॉक्टरों ने इसका विरोध किया है। एम्स के रेजिडेंट्स डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ॰ आदर्श प्रताप सिंह ने कहा कि स्वास्थ्य सुविधाओं के भीतर उचित सुविधाओं के बिना काम करना जीवन को ख़तरा पैदा करना है और तनावपूर्ण तथा निराशाजनक है। उन्होंने कहा, “डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी इसलिए बीमार पड़ रहे हैं क्योंकि सरकार कई अस्पतालों में उन्हें बुनियादी सुविधाएं और सेवाएं प्रदान करने में विफल रही है। यदि सरकार, स्वास्थ्य एजेंसियां और अस्पताल प्रशासन वास्तव में इस तरह की तबाही को रोकना चाहते हैं, तो उन्हें स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए।”

उन्होंने कहा कि ग़ैर-कोविड रोगियों का इलाज करने वाले डॉक्टरों को पीपीई किट न उपलब्ध कराने के कारण भी संक्रमण फैल रहा है क्योंकि अधिकांश मरीज बिना लक्षण के हैं। “आज, पीपीई हर डॉक्टर के लिए जरूरी है। जैसे-जैसे हॉटस्पॉट की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे बिना लक्षण के कोविड मरीजों की भी संख्या बढ़ रही है।

इसके अलावा, उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य कर्मियों को सुरक्षित आवास की आवश्यकता है क्योंकि उनका यात्रा करना जोखिम से भरा हैं। उन्होंने कहा, "उन्हें अपने संबंधित अस्पतालों के क़रीब सुरक्षित स्थानों पर आवास की आवश्यकता है।"

महाराजा अग्रसेन अस्पताल के एक डॉक्टर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, “सेना द्वारा फूलों की पंखुड़ियों की बौछार गणतंत्र दिवस की तरह एक औपचारिकता थी। हमें इस तरह की धूमधाम और प्रदर्शन की ज़रूरत नहीं है। सरकार को हमारी सुरक्षा सुनिश्चित करने की ज़रूरत है। हमारे पास स्वास्थ्य कर्मियों और स्वास्थ्य क्षेत्र के खर्च के लिए कोई पैसा नहीं है; हमारी सैलरी काटी जा रही है। सेना को अपना पैसा बर्बाद नहीं करना चाहिए।”

“सब ठीक है”

आरोपों का जवाब देते हुए, दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने सवालों को घुमाने की पूरी कोशिश की और कहा कि सरकार सभी मुद्दों पर ध्यान देने की कोशिश कर रही है।

जैन ने कहा, कि “हम सभी अस्पतालों में पीपीई किट की उपलब्धता सुनिश्चित कर रहे हैं। डॉक्टर, पैरामेडिक्स और स्वच्छता कर्मी कोरोना योद्धा हैं। हम उनकी सभी शिकायतों को दूर करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। हम स्वीकार करते हैं कि वे बहुत ज्यादा घबराए हुए हैं और हम उनके द्वारा किए जा रहे प्रयासों को स्वीकार करते हैं। हम नियमित रूप से उनकी जांच कर रहे हैं और उनकी देखभाल करने की कोशिश कर रहे हैं। अब तक, स्थिति पूरी तरह से नियंत्रण में है। चिंता की कोई बात नहीं है।”

नियमित स्वास्थ्य सेवाओं के पतन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “हमारे ग़ैर-कोविड अस्पताल बखूबी काम कर रहे हैं और कोई समस्या नहीं है। अस्पताल आने वाले मरीजों का ध्यान रखा जा रहा है। हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि कोई भी चिकित्सा उपचार से वंचित न रहे।”

जांच की धीमी गति और कम संख्या का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि सरकार अब नोएडा की निजी प्रयोगशालाओं में जांच करवाएगी। ताकि जांच के नतीजों के समय को कम किया जा सके। उन्होंने कहा कि देश में दिल्ली के अस्पताल सबसे अधिक संख्या में जांच कर रहे हैं और हम इस संख्या को और अधिक बढ़ाएँगे।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।

COVID-19 Pandemic Brings Glaring Gaps in Delhi’s Healthcare Services into Focus

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