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ग्रामीण भारत में कोरोना-16: पंजाब के गांव में पेंशन बैंकों में  हस्तांतरित, लेकिन पैसे की निकासी मुश्किल

सूचनाएं मुहैया कराने वालों ने यह भी कहा कि लॉकडाउन के दौरान परिवहन की कमी सब्ज़ियों और दूध की बिक्री पर असर डाल रही है, क्योंकि बाज़ारों में उत्पाद की आवाजाही का कोई ज़रिया नहीं है।
ग्रामीण भारत

यह उस श्रृंखला की 16वीं रिपोर्ट है, जो ग्रामीण भारत के जीवन पर COVID-19 से जुड़ी नीतियों के असर की झलक देती है। सोसाइटी फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा संचालित इस श्रृंखला में उन अलग-अलग जानकारों की रिपोर्ट शामिल हैं, जो भारत के अलग-अलग हिस्सों में गांवों का अध्ययन करते रहे हैं। ये रिपोर्ट, अध्ययन किये जाने वाले गांवों के प्रमुख सूचनायें देने वालों के साथ टेलीफ़ोन से की गयी बातचीत के आधार पर तैयार की गयी है। यह लेख पंजाब के मनसा ज़िले के उस रामगढ़ शाहपुरियां गांव पर लॉकडाउन के तात्कालिक असर पर रौशनी डालता है, जहां आपूर्ति श्रृंखलायें यानी सप्लाई चेन टूट गयी है और मज़दूर, कारीगर, सीमांत और छोटे किसान बुरी तरह से प्रभावित हो गये हैं। जहां किसान फ़सल में देरी से चिंतित हैं, वहीं दिहाड़ी मज़दूरों को मनरेगा के तहत भी काम नहीं मिल पा रहा है।

पंजाब के मनसा ज़िले के इस रामगढ़ शाहपुरियां गांव में 240 घर हैं और इस गांव की कुल आबादी 1,250 (आशा कार्यकर्ताओं के रिकॉर्ड के अनुसार) है। ज़्यादातर जाट सिख ज़मींदार हैं और खेती-बाड़ी में लगे हुए हैं। गांव की क़रीब 54% आबादी या तो अनुसूचित जाति या पिछड़ी जाति की श्रेणी में आती है; ये लोग बड़े पैमाने पर भूमिहीन हैं और कृषि मज़दूर के रूप में काम करते हैं। गांव के कई लोग गांव के भीतर या आस-पास के शहरों में ग़ैर-कृषि गतिविधियों में भी लगे हुए हैं।

गांव की रबी की प्रमुख फ़सल गेहूं है, और यहां कटाई का काम काफी हद तक यंत्रों से होता है। किसानों में से एक के मुताबिक़, कटाई का काम मशीन से होने की वजह से श्रम पर उनकी निर्भरता कम हो गयी है, और मशीनों को चलाने के लिए गांव में पर्याप्त श्रम उपलब्ध है। इसके अलावा, चूंकि पंजाब के बनिस्पत मध्यप्रदेश और राजस्थान में गेहूं पहले काट लिया जाता है, इसलिए पंजाब के कंबाइन हार्वेस्टर के मालिक अक्सर उन राज्यों में अपने हार्वेस्टर ले जाते थे, और अप्रैल के पहले सप्ताह में लौट आते थे। लेकिन, एक कंबाइन हार्वेस्टर के मालिक ने बताया कि इस बार जगह-जगह देशव्यापी लॉकडाउन के चलते उन्हें पंजाब लौटने में मुश्किल हो रही है।

इसके अलावा, श्रम की कमी से ख़रीद बाज़ारों पर असर पड़ने की संभावना है, क्योंकि उतराई, पैकिंग, लदान और दूसरी गतिविधियां उन मज़दूरों द्वारा अंजाम दी जाती हैं, जिनमें से अधिकांश उत्तर प्रदेश और बिहार से आते हैं। चूंकि लॉकडाउन ने उन्हें सफ़र करने से रोक दिया है, इसलिए अनुमान है कि गेहूं की ख़रीद प्रक्रिया धीमी होगी या उसमें देरी होगी। किसान इस बात को लेकर भी निश्चिंत नहीं दिखते हैं कि इस बार उनकी फ़सल को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर समय पर ख़रीदा जा सकेगा या नहीं।

लॉकडाउन शुरू होने से पहले, गांव के लगभग 25 लोग आसपास के क़स्बों और शहरों में राजमिस्त्री, बढ़ई, निर्माण कार्य में लगे श्रमिकों, पेंटरों, दर्जियों, स्कूल वैन के ड्राइवरों के रूप में और मरम्मत करने वाली दुकानों आदि जैसी जगहों पर काम कर रहे थे। ये सभी लोग इस समय बेरोज़गार हैं, क्योंकि वे गांव के बाहर नहीं जा सकते हैं। जानकारी देने वालों में से एक, पास के ही एक शहर में राजमिस्त्री के तौर पर काम कर रहा था; अब वह कम मज़दूरी पर भी गांव में ही काम करने के लिए राज़ी है, लेकिन उसके पास कोई काम ही नहीं है, क्योंकि पुलिस ने गांव के भीतर सभी निर्माण कार्य पर रोक लगा दी हैं। इस समय उसके पास आय का कोई ज़रिया ही नहीं बचा है।

एक पंचायत सदस्य ने बताया कि लगभग 200 घर मनरेगा योजना के तहत पंजीकृत हैं, लेकिन लॉकडाउन के दौरान किसी को भी कोई काम नहीं दिया गया है। सिंचाई, तालाबों की खुदाई और तालाबों की सफ़ाई और सड़कों के रखरखाव जैसी गतिविधियां लॉकडाउन के दौरान बंद हो गयी हैं।

सूचना देने वालों ने बताया कि चारा जुटाने के लिए खेतों में जाने पर तो कोई रोक नहीं है, लेकिन फिर भी किसानों के पास दुधारू पशुओं के लिए ज़रूरी चारा की कमी है, क्योंकि इसकी नियमित आपूर्ति शहर से ही होती थी, जो इस समय रुकी हुई है। लॉकडाउन के चलते परिवहन की कमी से सब्ज़ियों और दूध की बिक्री पर भी असर पड़ रहा है, क्योंकि बाज़ारों में उत्पाद की आवाजाही का कोई ज़रिया नहीं है।

गांव में न कोई बैंक है और न कोई एटीएम है, इसलिए गांव के लोग पड़ोस के गांव, मघनिया जाते थे, जो इस गांव से तीन किमी दूर है। लॉकडाउन के शुरुआती दिनों के दौरान बैंक बंद था, लिहाजा ग्रामीणों की पहुंच बैंकिंग सुविधाओं तक बिल्लुल नहीं थी। लेकिन, 30 मार्च को बैंक शाखा फिर से खोल दी गयी। भीड़ बहुत बढ़ जाने की वजह से बड़े पैमाने पर नक़दी की कमी हो गयी; कुछ लोगों को तो ग्रामीणों ने गांव में प्रवेश करने से ही रोक दिया।

एक सूचना देने वाले ने कहा कि अगर लोग अपने घर या अपने गांव से बाहर जाते हैं, यहां तक कि बैंक भी जाते हैं,तो भी लोगों को पुलिस के मारपीट का डर लगा रहता है। कुछ के पास तो कोई एटीएम कार्ड ही नहीं है, जबकि जिनके पास कार्ड हैं भी, वे नक़दी निकालने में असमर्थ हैं, क्योंकि वे बोहा (दस किमी दूर) और बरेटा (बारह किमी दूर) जैसे पास के शहरों में स्थित एटीएम तक नहीं पहुंच सकते हैं। सरकार ने लाभार्थियों के बैंक खातों में वृद्धावस्था और दूसरे सामाजिक सुरक्षा पेंशन तो हस्तांतरित कर दी है, लेकिन ये लाभार्थी अपना पैसा निकालने के लिए बैंक जाने में असमर्थ हैं। गांव का एक शख़्स बैंक के संपर्क में है और उसने लाभार्थियों के लिए पेंशन के पैसे निकलवा दिये हैं (प्रत्येक 1,000 रुपये पर 30 रुपये का कमीशन लेकर)।

गांव की छोटी-छोटी दुकानों में केवल भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की सीमित आपूर्ति है। जबकि आस-पास के शहर में, प्रशासन केवल सीमित संख्या में ही ख़ुदरा दुकानें खोलने की अनुमति दे रहा है। कुछ सब्ज़ी विक्रेताओं को ज़िला प्रशासन द्वारा पास जारी किये गये हैं। आपूर्ति में कमी के चलते सब्ज़ियों सहित ख़ुदरा खाद्य पदार्थों की क़ीमतें बढ़ रही हैं। सूचना देने वालों ने बताया कि ग्रामीण एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं, और जो भोजन की आपूर्ति करने में सक्षम हैं,वे उन लोगों को भोजन उपलब्ध करा रहे हैं, जिन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।

सूचना देने वालों ने  यह भी बताया कि ज़रूरी दवाओं की क़िल्लत है, क्योंकि गांव में सरकार द्वारा संचालित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या यहां तक कि कोई फ़ॉर्मेसी भी नहीं है। लॉकडाउन की ऐलान स्थानीय गुरुद्वारे के लाउडस्पीकर से किया गया था और पुलिस ने लॉकडाउन के कार्यान्वयन को सुनिश्चित कर दिया है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने ग्रामीणों को COVID -19 को लेकर जागरूक करने के लिए गांव का दौरा अभी तक नहीं किया है। ग्राम पंचायत ने खंड विकास और पंचायत अधिकारी (BDPO) के कार्यालय के निर्देश पर सड़कों और दूसरे सामान्य इलाक़ों की सफ़ाई करा दी गयी है। पुलिस विभाग और पंचायत के निर्देशों पर, ग्रामीण ड्यूटी पर गश्त लगा रहे हैं और गांव में प्रवेश करने पर रोक रहे हैं। लेकिन, सूचना देने वालों का कहना था कि इन रुकावटों के बीच हाथ धोने या साफ़-सफ़ाई के लिए कोई इंतज़ाम नहीं की गयी है।

COVID -19 के प्रकोप और लॉकडाउन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को अनिश्चित और हताशा के हालात के हवाले कर दिया है।

[यह रिपोर्ट उन दस लोगों से हुई बातचीत के आधार पर तैयार की गयी है, जिनमें दो पंचायत सदस्य,  एक आशा कार्यकर्ता, दो किसान, दो मज़दूर, एक कंबाइन हार्वेस्टर का मालिक, एक राजमिस्त्री और एक बढ़ई हैं। इनसे बातचीत 31 मार्च और 1 अप्रैल, 2020 को की गयी थी।]

लेखक पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला में अर्थशास्त्र विभाग में रिसर्च फेलो हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप यहाँ पढ़ सकते हैं।

COVID-19 in Rural India- XVI: Pension Transferred to Banks but Unable to Withdraw due to Lockdown in Punjab’s Shahpurian

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