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यूपी में कोरोनावायरस की दूसरी लहर प्रवासी मजदूरों पर कहर बनकर टूटी

यूनियन नेताओं के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में अप्रैल से मई तक पंचायत चुनावों के कारण मनरेगा से जुड़े काम स्थगित पड़े थे, और इसके तुरंत बाद हुए संपूर्ण लॉकडाउन के कारण श्रमिकों के लिए मांग में और गिरावट आ गई। 
यूपी में कोरोनावायरस की दूसरी लहर प्रवासी मजदूरों पर कहर बनकर टूटी
विशेष व्यवस्था

लखनऊ: दिल्ली के नांगलोई इलाके में पैरगान फुटवियर के सुरक्षा प्रभारी बृंदावन बंजारा (40) ने बताया कि महामारी की चपेट में आने से पहले वे 22,000 रूपये प्रति माह कमाते थे। लेकिन तीन महीनों के भीतर ही उनकी जिंदगी पूरी तरह से उलट कर रह गई है। जबकि उनका परिवार स्थानीय साहूकारों से 5% की अत्यधिक ब्याज दर पर कर्ज लेकर किसी तरह खुद को बचाए रखने में कामयाब रहा, और पहली लहर के दौरान गाँव के भीतर ही छोटे-मोटे काम करते हुए किसी तरह एक जून की रोटी का जुगाड़ कर पाने में कामयाब रहा था, लेकिन महामारी की दूसरी लहर ने उनकी कमाई को शून्य कर दिया है।  

मूलतः बाँदा जिले के निवासी, जिसके बारे में कथित तौर पर कहा जाता है कि यहाँ पर देश में प्रवासन की दर सबसे अधिक है, बंजारा ने बताया कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिये गाँव में राशन वितरण बेहद अपर्याप्त है और वे किसी भी चीज के लिए सरकार पर भरोसा नहीं कर सकते हैं।

हताश बंजारा ने न्यूज़क्लिक को बताया “खाने को घर में कुछ नहीं है, सरकार कुछ कर नहीं रही है, चोरी करें अब खाने के लिए? उन्होंने आगे बताया कि वे गांव में रोजगार की तलाश में घर-घर भटक रहे हैं, लेकिन कोई भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है।

उन्होंने दावा किया “राशन वितरकों द्वारा हर महीने पांच किलो गेंहूँ और उसी मात्रा में चावल वितरित किया जा रहा है। इतने कम राशन में कोई कैसे जिंदा रह सकता है? ऐसा लग रहा है कि भले ही हम महामारी से बच जाएँ, पर भूख हमें जल्द ही मार डालेगी।”

कुछ इसी प्रकार की आपबीती सूरत में एक केमिकल बनाने वाली ईकाई में श्रमिक के तौर पर काम कर चुके सलीम से सुनने को मिली, जो अपने दोस्तों के साथ गाँव लौट आया था, जब कारखाना मालिकों द्वारा उन्हें निकाल दिया गया था। भावुक होते हुए उन्होने बताया “कड़वी हकीकत तो यह है कि प्रवासी मजदूरों की किसी को भी चिंता नहीं है। हमारे पास न कोई पैसा है, न खाने को भोजन है और सरकार ने हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया है। बताइये, हमें क्या करना चाहिये? मेरे गाँव में, कई श्रमिकों ने तो घर-घर जाकर भीख माँगना शुरू कर दिया है क्योंकि उनके घर पर कोई राशन नहीं बचा है।” 

अपने छह लोगों के परिवार में अकेले कमाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि वे इस बारे में भी निश्चित तौर पर नहीं कह सकते कि वे अपने अगले भोजन का ख्रर्च उठा पायेगे या नहीं। उन्होंने बताया “गाँव में हाल बेहद खराब हो चुकी है क्योंकि हमारी सारी बचत समाप्त हो चुकी है। अगर सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो स्थिति जल्द ही कोरोना की तरह ही बेकाबू हो जाने वाली है।”

बांदा जिले में महामारी के बारे में जागरूकता अभियान के लिए काम करने वाली विद्या धाम समिति के राजा भैया ने गाँव में प्रवासी श्रमिकों के समक्ष आने वाले संकट पर प्रकाश डालते हुए कहा, “बुंदेलखंड क्षेत्र से काम के सिलसिले में देश में सबसे अधिक प्रवासन बांदा जिले में है, जो श्रमिकों के प्रवासन के मामले में शीर्ष पर मौजूद है। मानव विकास सूचकांक के मुताबिक विकास के मानकों पर भी यह सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है। यहाँ पर कोई काम-धाम नहीं है इसलिए इस क्षेत्र की आधी आबादी अपनी आजीविका के लिए दिल्ली, मुंबई, गुजरात जैसे बड़े शहरों में पलायन करती है। 

उन्होंने आगे कहा “वे ज्यादातर ईंट भट्टों पर काम करते हैं, इनमें से कुछ बंधुआ मजदूर हैं और उनमें से कुछ लोग दिहाड़ी मजदूर के तौर पर कंपनियों में काम करते हैं। इन लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर नहीं बल्कि बिचौलियों की मदद से नौकरी मिलती है, जो बदले में इनसे मोटा पैसा वसूल करते हैं। ये बिचौलिए आमतौर पर बंधुआ मजदूरों के परिवारों को कुछ पैसा दे देते हैं और उन्हें काम पर रख लेते हैं, और फंसा कर रखते हैं, ताकि वे अपने गाँवों में न जा सकें।”

राजा भैया ने न्यूज़क्लिक के साथ अपनी बातचीत में कहा “उनकी मुसीबतों का यहीं पर अंत नहीं हो जाता, जब आजीविका की तलाश में वे दूसरे शहरों का रुख करते हैं तो उनके नामों को राशन कार्ड से हटा दिया जाता है। जब वे किसी तरह अपने घर पहुँचते हैं तो वे पाते हैं कि उनके नाम राशन सूची में नहीं हैं, और इसलिए उन्हें अब पीडीएस राशन नहीं मिल सकता है।” उन्होंने बताया कि वित्तीय संकट के चलते बांदा जिले में कम से कम 5-7 श्रमिकों ने आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि पिछले साल महामारी की चपेट में आने के बाद से बुंदेलखंड क्षेत्र में आत्महत्या से मरने वाले श्रमिकों की संख्या 1,000 से भी अधिक है, लेकिन इसकी कोई रिपोर्ट नहीं की गई है।

उन्होंने उनकी भयावह जीवन की स्थितियों और मानसिक स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा “ये श्रमिक विभिन्न कारणों से अवसाद की स्थितियों से जूझ रहे हैं। इसमें अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए लिए गए कर्जों को वापस कर पाने में असमर्थता, कई वर्षों तक काम करने के बावजूद बिचौलियों से ली गई अग्रिम राशि का भुगतान कर पाने में असमर्थता और अब घरों में शायद ही कोई राशन की मौजूदगी जैसे हालात बने हुए हैं।”

इस गहराते संकट के पीछे की दो प्रमुख वजहों का उन्होंने हवाला दिया – इसमें से एक है लॉकडाउन के बाद से नौकरियों का नुकसान और वजह है, दूसरी लहर के कारण पैदा हुई अप्रत्याशित स्वास्थ्य संकट की समस्या। उन्होंने जोर देकर कहा “उनमें से अधिकांश लोगों ने अब आश छोड़ दी है, और लॉकडाउन की वजह से उनमें एक बार फिर से पलायन करने का साहस नहीं बचा है। उनमें से कई लोगों ने अपनी पत्नियों और बच्चों को उनके मायके में छोड़ दिया है और वे खुद इधर-उधर भटकते रहते हैं।”

यूपी में मनरेगा के तहत कोई काम उपलब्ध नहीं है 

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद, गोरखपुर में भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। जो प्रवासी मजदूर कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान उत्तर प्रदेश लौटकर वापस आये हैं, वे भविष्य में नौकरी की क्षीण संभावनाओं के साथ अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता में जी रहे हैं।

गोरखपुर जिले के तरन चक गाँव की रहने वाली 45 वर्षीया विधवा ज्ञान मती, अपने छह लोगों के परिवार के साथ भुखमरी वाली हालत में रह रही हैं, जिसमें उनकी तीन किशोर बेटियां शामिल हैं, जो कुछ वर्षों के भीतर शादी के लायक हो जाएँगी।  

मति ने न्यूज़क्लिक को बताया “मेरे पति को गुजरे पांच साल बीत चुके हैं, जिसके बाद से मैं अपने गाँव में लोगों के घरों में साफ़-सफाई का काम करके अपनी गुजर-बसर कर रही थी। लेकिन लॉकडाउन और कोरोनावायरस के डर के मारे, लोग घर पर काम कराने से बच रहे हैं और यहाँ तक कि जो 700 रूपये की मामूली कमाई मैं कर पाती थी, वह भी पिछले तीन महीनों से खत्म हो चुकी है।” उन्होंने आगे कहा कि यहाँ तक कि मनरेगा (महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना) के तहत भी हर रोज काम पाने की कोई गारंटी नहीं है, और अगर किसी को काम मिल भी गया तो समय पर भुगतान नहीं होता है।

उन्होंने पीडीएस के जरिये पर्याप्त राशन नहीं मिलने की भी शिकायत की और उनका आरोप था कि राशन डीलर “भ्रष्ट लोगों” के दबाव में काम करता है।

ज्ञान मति की तरह गोरखपुर के एक दिहाड़ी मजदूर रंजीत कुमार को भी कुछ इसी प्रकार की स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना था “पिछले कुछ महीनों से मैं दूसरों की दया पर जीवित हूँ। लोग हमें पैसा देते हैं; कुछ मुझे भोजन या सब्जी खरीदकर दे देते हैं। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे अपने ही गाँव में खड़े होकर भीख मांगकर अपना गुजारा करना पड़ेगा।”

रंजीत ने आगे कहा “मेरी आखिरी कमाई 450 रूपये की थी, जब पंचायत चुनावों (19 अप्रैल) से एक दिन पहले एक ‘ठेकेदार’ मुझे और कुछ अन्य लोगों को गोरखपुर में एक सेप्टिक टैंक और कचरा साफ़ कराने के लिए ले गया था। उसके बाद से मेरे पास कोई काम नहीं है, ऐसे में मेरे पास भीख मांगने के सिवाय और क्या विकल्प बचा है?”

यूनियन नेताओं के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में अप्रैल से मई तक पंचायत चुनावों के कारण मनरेगा के काम को रोक दिया गया था, और उसके फ़ौरन बाद संपूर्ण लॉकडाउन की वजह से श्रमिकों की मांग में और गिरावट आ गई थी।

वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष, दिनकर कपूर के अनुसार “चुनाव आयोग द्वारा पिछले साल दिसंबर में पंचायत चुनावों की घोषणा के बाद, प्रधान के हाथ उनका कार्यभार ले लिए गया था, और उसके बाद से अभी तक उत्तर प्रदेश में मनरेगा के तहत काम ठप पड़ा है। नव निर्वाचित ग्राम प्रधानों ने 27 मई को शपथ ले ली है, और शायद अब फिर से काम शुरू हो सके।”

मजदूर किसान मंच, उत्तर प्रदेश के महासचिव, ब्रिज बिहारी ने कहा “सीतापुर जिले में 19 प्रखंड हैं, और तकरीबन 4,500 श्रमिक हमारे संगठन से जुड़े हुए हैं। राज्य में पंचायत चुनावों की घोषणा के बाद से काम की किल्लत बनी हुई है। अधिकारियों की तरफ से आश्वस्त किया जाता है कि श्रमिकों को 100 दिनों का रोजगार मिलेगा, जैसा कि अधिनियम के तहत सुनिश्चित किया गया है, लेकिन शायद ही किसी को 70-80 दिनों के लिए भी काम मिलता हो। इसके अलावा, ग्रामीण विकास एवं पंचायत विभाग के अधिकारी कार्ड पर श्रमिकों की उपस्थिति दर्ज नहीं करते हैं, जिसके चलते वे अपने बेरोजगारी भत्ते के अधिकार को खो देते हैं।”

उनके विचार में, सरकार ने नई नीति या नए कानून लाने के मामले में कुछ ख़ास प्रयास नहीं किया है, जिससे प्रवासी श्रमिकों के संकट को संबोधित किया जा सकता था, जैसा कि उन्होंने पिछले साल वादा किया था। 

इस बीच, महामारी की दूसरी लहर के दौरान कुल कितने ठेके पर काम करने वाले श्रमिक उत्तर प्रदेश लौटे हैं, इसका कोई आंकड़ा नहीं है। यूपी सरकार द्वारा 2020 में संकलित आंकड़ों के मुताबिक, 1,500 से अधिक स्पेशल ट्रेनों से 21 लाख से अधिक की संख्या में प्रवासी श्रमिक देश के विभिन्न हिस्सों से उत्तर प्रदेश लौटे थे।

विशेष प्रबंध 

यूनियन के नेताओं के आरोपों के विपरीत, यूपी में मनरेगा के अतिरिक्त आयुक्त योगेश कुमार का इस संबंध में कहना था कि मनरेगा के तहत दैनिक काम करने वाले श्रमिकों की संख्या एक महीने के भीतर 2.49 लाख से बढ़कर 14.89 लाख हो चुकी है। काम की मांग में अभूतपूर्व वृद्धि के साथ, ग्रामीणों को सरकार एवं प्रशासन के स्तर पर जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। मनरेगा के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों, पुलों, नालों इत्यादि के निर्माण कार्य में तेजी लाने पर ध्यान दिया जा रहा है और राज्य की ओर से अधिकतम रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है। 

कुमार ने कहा “राज्य में मनरेगा के तहत श्रमिकों को रोजगार मुहैय्या कराये जाने के निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में दूसरी लहर की रफ्तार के धीमे पड़ने के बाद भी बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक गावों में रुके हुए हैं, जो काम की तलाश में हैं। इन चुनौतीपूर्ण समय में प्रवासी अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए मनरेगा के कार्यों में शामिल हो रहे हैं। इसे ध्यान में रखते हुए विभाग ने मनरेगा के तहत पीएम एवं सीएम आवास के साथ-साथ जल संरक्षण से संबंधित योजनाओं के तहत काम को बढ़ा दिया है। मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 10 करोड़ पौध लगाये जाने हैं। इसके अलावा, गड्ढे खोदना और तालाबों के सौंदर्यीकरण का काम भी चल रहा है।”

इस सबके बीच में, महाराजगंज जिले में मनरेगा से जुड़े एक घोटाले का भी पर्दाफाश हुआ है। रिपोर्टों के मुताबिक, मनरेगा और वन विभाग के कर्मियों ने मिलकर एक तालाब पर बिना कोई काम किये “धोखाधड़ी” करके करीब 25.87 लाख रूपये का भुगतान कर दिया है। जिसके बाद, जिलाधिकारी के निर्देश पर वन विभाग के सेवानिवृत्त एसडीओ समेत कई कर्मचारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।

विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक, वर्ष 2018-19 में परतावल प्रखंड के टोला बरिअरवा में ग्राम पंचायत द्वारा एक तालाब के सौंदर्यीकरण का काम किया गया था, लेकिन तालाब की गुणवत्ता को लेकर ग्रामीणों के द्वारा विरोध करने पर काम रोक दिया गया था। इस बीच, ब्लॉक से भुगतान भी रोक दिया गया था, जिसे बाद में फर्जी तरीके से स्थानांतरित कर दिया गया था। 

 यह रिपोर्ट अंग्रेजी में इस लिंक के जरिए पढ़ा जा सकता है:

COVID-19 in UP: No Food, No Money, No MGNREGA Work, Second Wave Forcing Migrant Workers to Die by Suicide

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