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यूपीः कोरोना के बाद एच3एन2 वायरस बढ़ा रहा लोगों की टेंशन

"वाराणसी के पं.दीनदयाल उपाध्याय ज़िला अस्पताल में बने डेडिकेटेड कोविड वार्ड को इंफ्लुएंजा के मरीज़ों के लिए बेड आरक्षित कर दिए गए हैं। ज़रूरत पड़ने पर संक्रमित मरीज़ों को यहां भर्ती करने की तैयारी है। अंतरराष्ट्रीय विमानों से आने वाले यात्रियों की रैंडम सैंपलिंग करने की योजना बनाई गई है।"
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उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके में एच3एन2 वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसको देखते हुए वाराणसी के पं.दीनदयाल उपाध्याय ज़िला अस्पताल में बने डेडिकेटेड कोविड वार्ड को इंफ्लुएंजा के मरीज़ों के लिए बेड आरक्षित कर दिए गए हैं। ज़रूरत पड़ने पर संक्रमित मरीज़ों को यहां भर्ती करने की तैयारी है। अंतरराष्ट्रीय विमानों से आने वाले यात्रियों की रैंडम सैंपलिंग करने की योजना बनाई गई है।

केस-01

वाराणसी के नाटी इमली की 19 वर्षीया सोनी चौरसिया को छह मार्च को खांसी-बुखार हुआ और बीमारी बढ़ती चली गई। स्थिति गंभीर होने पर इन्हें कबीरचौरा स्थित शिवप्रसाद गुप्त मंडलीय चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। इलाज के बाद बुखार तो थम गया, लेकिन खांसी थमने का नाम नहीं ले रही है। इनकी मां सोनी चौरसिया और पिता शिवशंकर चौरसिया खुद भी बीमार हैं, लेकिन बेटी की तीमारदारी में जुटे हैं। शिवशंकर का पूरा कुंबा खांसी-बुखार की जद में है। डॉक्टर उन्हें इंफ्लुएंजा का मरीज मान रहे हैं, लेकिन इसकी जांच के लिए मंडलीय अस्पताल में किट उपलब्ध नहीं है। डॉक्टर सिर्फ लक्षण के आधार पर दवाएं दे रहे हैं।

बनारस के मंडलीय अस्पताल में भर्ती सोनी चौरसिया

केस-02

बनारस के औरंगाबाद निवासी सुदामा मेहता को आठ मार्च को बुखार हुआ। परिवार के लोग इन्हें स्थानीय चिकित्सक से इलाज करा रहे थे। अचानक इन्हें सांस लेने में परेशानी होने लगी। शरीर का एक तरफ का हिस्सा काम नहीं कर रहा था। बाद में इन्हें बीएचयू स्थित सर सुंदरलाल चिकित्सालय की इमरजेंसी में भर्ती कराया गया। मुश्किल से इनकी जिंदगी बच सकी। इनके कुंबे के कई लोग खांसी-बुखार की चपेट में हैं। चिकित्सक इनकी बीमारी को इंफ्लुएंजा मानकर उपचार कर रहे हैं।

केस-03

कबीरनगर की सुनीता देवी की सांस अचानक फूलने लगी और रक्तचाप घट गया। सांस लेने में परेशानी होने लगी। इसी दौरान खांसी-बुखार ने भी हमला बोल दिया। परिजन घबरा गए। आनन-फानन में इन्हें बनारस के पांडेयपुर स्थित जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया। हालत में सुधार जरूर हुआ है, लेकिन सुनीता इस बीमारी से पूरी तरह उबर नहीं सकी हैं।

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके के सभी जिलों में खांसी-बुखार के मरीजों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। सरकारी और निजी अस्पताल खचाखच भरे पड़े हैं। चिकित्सक इसे एच3एन2 वायरस का प्रकोप मान रहे हैं, लेकिन कहीं भी इस बीमारी की जांच की व्यवस्था नहीं है। बीएचयू के माइक्रोलॉजी विभाग में भी एच3एन2 वायरस की जांच किट उपलब्ध नहीं है। जांच महंगी होने के कारण चिकित्सक सिर्फ इंफ्लुएंजा वायरस की आशंका के आधार पर मरीजों का इलाज कर रहे हैं।

मौजूदा हालात को देखते हुए यूपी के हेल्थ महकमे ने अलर्ट जारी किया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने मरीजों की पहचान करने और सैंपलिंग बढ़ाने के निर्देश दिए हैं, लेकिन अस्पतालों में जांच किट उपलब्ध न होने का कारण हालात जस के तस हैं। पूर्वांचल में चिकित्सा के सबसे बड़े केंद्र बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल तक में इंफ्लुएंजा के संदिग्ध मरीजों की जांच नहीं हो पा रही है। बीएचयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में जांच किट पुणे से आती है, लेकिन वह अभी तक नहीं मिली है। हेल्थ महकमे ने खुद की पहल से अभी तक एक भी सैंपल जांच के लिए बाहर नहीं भेजा है।

क्यों बढ़ रहे हैं मामले?

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल चिकित्सालय में हर रोज करीब 80 से 90 ऐसे मरीज इलाज कराने पहुंच रहे हैं, जिन्हें खांसी-बुखार है और उपचार के बावजूद बीमारी उन्हें नहीं छोड़ पा रही है। बड़ी तादाद में बच्चे भी इसी तरह के लक्षण वाली बीमारी की चपेट में है। ज्यादातर मरीजों में 103 से 104 फारेनहाइट तक बुखार के साथ सांस लेने में दिक्कत है। ज्यादातर मरीजों की आंखें लाल होती हैं। इस तरह के करीब आठ-दस मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखना पड़ रहा है। उम्मीद की जा रही है कि इस महीने के आखिर तक बीएचयू में एच3एन2 वायरस की जांच शुरू हो जाएगी।

सर सुंदरलाल अस्पताल के मेडिसीन विभाग की ओपीडी में समूचे पूर्वांचल और बिहार से पहले दो सौ से ढाई सौ मरीज आते थे। इन दिनों इनकी तादाद बढ़कर 350 से 400 तक पहुंच गई है। बनारस के मंडलीय और जिला अस्पतालों में हर रोज डेढ़ सौ से अधिक मरीज पहुंच रहे हैं। ज्यादातर मरीजों को खांसी और तेज बुखार के साथ सिर में दर्द और गले में जलन की शिकायत है। जिन मरीजों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है, उन्हें सांस लेने में परेशानी है। ऐसे मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट देना पड़ रहा है।

पूर्वांचल के किसी सरकारी अस्पताल में फिलहाल जांच किट मौजूद नहीं होने के कारण यह ट्रेस नहीं हो पा रहा है कि मरीजों में इंफ्लुएंजा वायरस-3 और एन-2 के लक्षण हैं अथवा नहीं? सिर्फ बीएचयू का सर सुंदरलाल अस्पताल ही नहीं, मंडलीय और जिला अस्पतालों की ओपीडी में सर्दी-खांसी के मरीजों में 22 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है।

माना जा रहा है कि यह इंफ्लुएंजा के बदले वायरस का असर है। इस बीमारी की चपेट में बच्चे और बुजुर्ग भी आ रहे हैं। खास बात यह है कि परिवार के एक सदस्य को सर्दी-जुकाम और बुखार हो रहा है तो समूचा परिवार इसकी चपेट में आ जाता है। बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक प्रो.केके गुप्ता कहते हैं, "इंफ्लुएंजा फ्लू सामान्य वायरल इंफेक्शन होता है। यह फ्लू, फेफड़ा, नाक और गले पर हमला करता है। पुरानी बीमारी अथवा कमजोर इम्युनिटी वाले लोग गंभीर खतरे की जद में रहते हैं। यहां आने वाले कुछ मरीजों में इंफ्लुएंजा वायरस के संक्रमण के चलते तीन हफ्ते तक खासी-बुखार का प्रकोप दिख रहा है। आमतौर पर सामान्य बुखार एक हफ्ते के अंदर ठीक हो जाता है। इंफ्लुएंजा वायरस एक मीटर दूर से फैलता है। छींकने से इस बीमारी के फैलने का खतरा ज्यादा रहता है। ऐसे मरीजों को मास्क लगाना चाहिए अथवा मुंह पर रुमाल रखना चाहिए।"

अस्पताल में भर्ती फ्लू के मरीज 

वाराणसी के मंडलीय और जिला अस्पतालों में इंफ्लुएंजा वायरस को देखते हुए दस-दस बेड रिजर्व कर दिए गए हैं। मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ.संदीप चौधरी ने सभी अस्पतालों में कोविड प्रोटोकाल का पालन करने का निर्देश दिया है। उन्होंने लोगों से सोशल डिस्टेंसिंग, सेनेटाइजेशन और मास्क का उपयोग करने की अपील की है।

यूपी में बढ़ रहे फ्लू के केस

सिर्फ वाराणसी ही नहीं, यूपी के सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में सर्दी-खांसी और बुखार के मरीज बढ़ गए हैं। स्थिति डराने वाली है। लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज (केजीएमयू) अस्पताल में रोजाना आ रहे मरीजों के 30 फीसदी सैंपल पॉजिटिव पाए जा रहे हैं। केजीएमयू प्रशासन के मुताबिक अस्पताल में हर रोज 40 से 50 मरीज ऐसे आ रहे हैं, जिनमें फ्लू के लक्षण हैं। इसी प्रकार राम मनोहर लोहिया एम्स अस्पताल में इस तरह के मरीजों की संख्या 50 से 65 तक पहुंच चुकी है। यही स्थिति अन्य अस्पतालों में भी देखी जा रही है। वहीं बड़ी संख्या में मरीजों के अंदर इस तरह के वायरस के लक्षण नजर आ रहे हैं।

केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में इंफ्लुएंजा एच3एन2 की जांच की सुविधा उपलब्ध है। यहां प्रदेश भर से रोजाना 12 से 15 सैंपल जांच के लिए आ रहे हैं। आरटी-पीसीआर तकनीक से इनकी जांच की जा रही है। केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी लैब में बीते 30 दिनों के दौरान 15 से अधिक लोगों में इस वायरस की पुष्टि हो चुकी है। राहत की बात यह है कि इनमें से किसी भी मरीज को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ी है। सभी मरीज एक से दो सप्ताह में ही घर पर ही ठीक हो गए हैं।

फ्लू से डरने की जरूरत नहीं

हालांकि लखनऊ की माइक्रोबायोलॉजिस्ट प्रो. शीतल वर्मा कहती हैं, "खांसी-बुखार एक तरह का सीजनल फ्लू है। इससे अधिक डरने की जरूरत नहीं है। मार्च के आखिर तक यह अपने आप ही खत्म हो जाएगा। अगर किसी को सर्दी, जुकाम, बुखार, गले में खराश, खांसी या सांस लेने में दिक्कत आए तो बिना लापरवाही किए तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। ऐसे लक्षण दिखने पर डॉक्टरों के परामार्श से ही एंटीबायोटिक्स दवाएं लें। जिन मरीजों में खांसी-बुखार के लक्षण दिखे, वो बाकी लोगों से डिस्टेंस बना लें।"

उत्तर प्रदेश के ज्यादातर सरकारी अस्पतालों और डॉक्टरों के क्लिनिकों पर बड़ी तादाद में तेज बुखार और खांसी वाले मरीज उपचार के लिए पहुंच रहे हैं। ऐसे में डॉक्टर्स पर भी इस संक्रमण से संक्रमित होने का खतरा बढ़ गया है। फिलहाल इंफ्लुएंजा से बचाव के लिए सरकारी अस्पतालों में वैक्सीन की कोई व्यवस्था नहीं है। मरीजों को अभी वैक्सीन लगाने के कोई दिशा-निर्देश नहीं आए हैं। माना जा रहा है कि अगर ऐसा कोई आदेश आता है तो बिना देर किए वैक्सीन उपलब्ध करा दी जाएगी।

उपचार कराते मरीज

डॉक्टरों के मुताबिक बड़े अस्पतालों की अपेक्षा छोटे अस्पतालों में इंफ्लुएंजा के मरीजों की संख्या ज्यादा है। इन अस्पतालों में इस तरह के मरीजों की वजह से ओपीडी में करीब 20 फीसदी का इजाफा हुआ है। यह स्थिति उस समय है, जब बड़ी संख्या में लोग डॉक्टरों से परामर्श लेकर अपना इलाज घर में ही करा रहे हैं। डॉक्टरों के मुताबिक इस बीमारी में मरीजों को खांसी, गले में खुजली, शरीर में दर्द और बुखार जैसे लक्षण सामान्य तौर पर नजर आ रहे हैं।

मरीज़ों के लिए बेड आरक्षित

पूर्वांचल के सोनभद्र में कुछ दिन पहले दक्षिण कोरिया से लौटे एक शख्स को सर्दी-खांसी के साथ सांस लेने में तकलीफ हुई। डॉक्टरों की सलाह पर उसका सैंपल लिया गया तो जांच में कोरोना की पुष्टि हुई। उसके संपर्क में आए दो और लोगों में भी कोरोना के संक्रमण मिले हैं। इसके बाद से हेल्थ मकहमा काफी अलर्ट हो गया है। वाराणसी के बाबतपुर एयरपोर्ट पर निगरानी बढ़ा दी गई है। सीएमओ डॉ. संदीप चौधरी कहते हैं, "वाराणसी के पं.दीनदयाल उपाध्याय जिला अस्पताल में बने डेडिकेटेड कोविड वार्ड को इंफ्लुएंजा के मरीजों के लिए बेड आरक्षित कर दिए गए हैं। जरूरत पड़ने पर संक्रमित मरीजों को यहां भर्ती करने की तैयारी है। अंतरराष्ट्रीय विमानों से आने वाले यात्रियों की रैंडम सैंपलिंग करने की योजना बनाई गई है। फिलहाल एयरपोर्ट पर निगरानी बढ़ा दी गई है। आम जनता को अलर्ट किया जा रहा है कि अगर सर्दी व खांसी जैसे लक्षण दिखे तो लापरवाही न बरती जाए। डॉक्टर की सलाह से ही दवाएं ली जाएं।"

"इस समय देश में एच3 एन2 इंफ्लुएंजा के मामले बढ़ रहे हैं। सर्दी, खांसी, बुखार के साथ ही सांस फूलने जैसी समस्या इसकी वजह हो सकती है। बच्चों में पेट संबंधी बीमारियां और पहले से बीमार बुजुर्गों में सांस लेने में तकलीफ, थकान भी देखने को मिल रहा है। ऐसे लोगों को कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने को कहा जा रहा है। इंफ्लुएंजा चाहे कोई भी हो, सतर्कता ही उससे बचाव का उपाय है। हेल्थ महकमे के लोगों से अस्पतालों की ओपीडी में मास्क लगाकर आने की अपील की गई है।"

जानलेवा नहीं है यह फ्लू

बीएचयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर गोपालनाथ कहते हैं, "नाक बहना, शरीर में दर्द, खांसी, गले में खराश, सिरदर्द, ठंड लगना, थकान, सांस फूलना, उल्टी, दस्त, बुखार एच3एन2 वायरस (इंफ्लुएंजा) के लक्षण हो सकते हैं। किसी भी मरीज में इस तरह के लक्षण दिखने पर बिना डॉक्टर की सलाह के कोई दवा लेने से बचना चाहिए। अगर छींक आती हैं तो मुंह पर रूमाल रख लें। पहले से बीमार लोगों के संपर्क में आने से बचें। अस्पताल या अन्य भीड़भाड़ वाले इलाके से घर आने पर सैनिटाइजर का प्रयोग करें। भीड़भाड़ वाले इलाके में जाने पर मास्क का प्रयोग करें। विशेषकर ऐसे लोग जिनकी उम्र 50 से अधिक है और पहले से हृदय रोग, सांस रोग सहित अन्य बीमारियों से ग्रसित हैं, उन्हें ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है।"

इंफ्लुएंजा के बढ़ते केस को देख कर कुछ लोग बहुत ही डरे हुए हैं। लोगों में इस बात का डर घर कर गया है कि कहीं कोरोना जैसे एक बार फिर से हालात न बन जाए। इस मामले में वाराणसी के जाने-माने काय रोग चिकित्सक डॉ.कुमार भास्कर कहते हैं कि कोरोना का अभी पूरी तरह सफाया भी नहीं हुआ है। इसी बीच एक और संक्रमण ने दस्तक दे दिया है। इंफ्लुएंजा यानी एच3एन2 के मामलों में काफी तेजी से बढ़ोतरी देखी जा रही है। वह कहते हैं, "एच3एन2 एंटीजेनिक ड्रिफ्ट और एक हल्का म्यूटेशन है, लेकिन यह जानलेवा नहीं है। वायरस कोई भी हो, अगर साथ में कोई और बीमारी है तो मौत की आशंका अधिक हो जाती है। एच3एन2 के खिलाफ वैक्सीन का असर कम है और इस साल हमारा टीकाकरण भी कम हुआ है। फिर भी किसी को घबराने की जरूरत नहीं है। बस अपना ख्याल रखें और कोरोना में जैसे अपने आप को संभाला और ध्यान रखा था ठीक वैसे ही इस मामले में भी खुद का ख्याल रखे।"

डॉ.भास्कर कहते हैं, "बारिश के मौसम से पहले इंफ्लुएंजा के टीका लगवाने से सर्दी, बुख़ार और कफ़ का ख़तरा 70 प्रतिशत तक कम हो जाता है। कमज़ोर इम्युनिटी, डायबिटीज़ और हृदय संबंधित रोग वाले व्यक्ति को निश्चित तौर पर इंफ्लुएंजा वैक्सीन लेने की ज़रूरत है। इम्युनिटी बढ़ाने के लिए ज़्यादा साग-सब्जी और पोषक तत्व खाना चाहिए। गंभीर लक्षण वाले व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती हो जाना चाहिए। सामान्य लक्षण वाले व्यक्ति घर पर रहें और डॉक्टर से सलाह लेते रहें। ज्यादा बुखार होने पर पैरासिटामोल ले सकते हैं। ज़्यादा से ज़्यादा आराम और गुनगुने पानी से इसमें सहायता मिलेगी। एच3एन2 वायरस में म्यूटेशन हो सकता है। इसलिए जो एक बार संक्रमित हो चुके हैं उन्हें दोबारा भी संक्रमित होने की संभावना है। माता-पिता को बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर ज़्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।"

सरकार ने जारी की एडवाइजरी

इंफ्लुएंजा एच3एन2 वैरिएंट वायरस जिसे "एच3एन2वी" वायरस के रूप में भी जाना जाता है, यह पहली बार जुलाई 2011 में लोगों में पाए गए थे। वायरस को पहली बार साल 2010 में अमेरिका के सूअरों में पहचान की गई थी। साल 2011 के दौरान, एच3एन2वी से 12 लोगों के संक्रमित होने का पता चला था। साल 2012 के दौरान, एच3एन2वी के कई प्रकोप हुए जिसके परिणामस्वरूप अमेरिका में 309 मामले सामने आए।

विशेषज्ञों के मुताबिक एच3एन2 इंफ्लुएंजा एक व्यक्ति से दूसरे में फैल सकता है। यह तब फैलता है जब संक्रमित व्यक्ति दूसरे से बात करता है, खांसता है या छींकता है। वायरस से दूषित सतह को छूने और फिर किसी के मुंह या नाक को छूने से भी फैल सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार गर्भवती महिलाएं, छोटे बच्चे, वयस्क और जिनका इलाज चल रहा हो, ऐसे लोगों को फ्लू संबंधित जटिलताओं के विकास के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं।

एच3एन2 इंफ्लुएंजा से प्रभावित लोगों को बुख़ार, कफ़, मिचली, उल्टी, गले में दर्द, शरीर में दर्द, थकान, आंतों में सूजन के साथ ख़ूनी दस्त की शिकायत हो सकती है। इसके साथ ही अगर सांस लेने में तकलीफ़ या लगातार बुख़ार, सीने में दर्द, खाने में तकलीफ़, चक्कर और दौरा आने जैसी समस्या होती है तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। कुछ मामलों में लोगों को उल्टी और दस्त भी हो सकते हैं। ये लक्षण आमतौर पर लगभग एक सप्ताह तक रह सकते हैं। कुछ लोगों में यह लक्षण अधिक समय तक रह सकता है।

मीडिया रिपोर्ट्स में हेल्थ मिनिस्ट्री के सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि हरियाणा और कर्नाटक में इंफ्लुएंजा के एक-एक मरीजों की मौत की पुष्टि हुई है। देश में अभी तक एच3एन2 के तीन हजार से अधिक केस सामने आए हैं। कर्नाटक में 82 वर्षीय हीरा गौड़ा की सबसे पहले एच3एन2 इंफ्लुएंजा से मौत हुई थी। इंडियन काउंसिल फ़ॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के मुताबिक़ कमज़ोर इम्युनिटी ख़ासकर बच्चे, बूढ़े और बीमार लोगों में इसके गंभीर लक्षण देखे जा सकते हैं। ऑक्सीमीटर की मदद से लगातार ऑक्सीजन लेवल चेक करते रहें। अगर ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल 95 प्रतिशत से कम है तो तत्काल डॉक्टर को दिखाएं। अगर ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल 90 प्रतिशत से कम है तब इन्टेंशिव केयर की ज़रूरत पड़ सकती है।

इलाज के विकल्प क्या हैं?

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने देश में एच3एन2 इंफ्लुएंजा वायरस के बढ़ते मामलों की समीक्षा के बाद राज्यों को अलर्ट रहने और स्थिति की बारीकी से निगरानी करने के लिए एडवाइजरी जारी कराई है। एडवाइजरी में कहा गया है कि एच3एन2 इंफ्लुएंजा से लोगों को सावधान रहने की जरूरत है। यह कोरोना के जैसे ही फैलता है। वायु प्रदूषण से यह वायरस और भी तेज़ी से फ़ैल सकता है। इससे बचने के लिए मास्क पहनें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें और बार-बार हाथ धोते रहें। बुजुर्गों और पहले से ही किसी बीमारी से परेशान लोगों को इससे ज्यादा परेशानी हो सकती है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, एच3एन2 इंफ्लुएंजा संक्रमण के इलाज में उचित आराम करना, ढेर सारा तरल पदार्थ लेना और बुखार कम करने के लिए एसिटामिनोफेन या इबुप्रोफेन जैसी दवा का उपयोग किया जा सकता है। अगर किसी रोगी में गंभीर लक्षण हैं या ज्यादा जोखिम है, तो डॉक्टर ओसेल्टामिविर और जनामिविर जैसी एंटीवायरल दवाओं की भी सिफारिश कर सकते हैं। डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि संदिग्ध और पुष्ट मामलों में इलाज के लिए न्यूरोमिनिडेस इनहिबिटर्स को जल्द से जल्द दिया जाना चाहिए।

(लेखक वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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