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कोविड-19 : कोल्हापुरी चप्पलें बनाने वाले लॉकडाउन से गहरे संकट में, कई संक्रमित

महाराष्ट्र में कोरोना से सबसे ज्यादा मृत्यु दर कोल्हापुर में है; यहां पिछले महीने की तुलना में विगत 10 दिनों में ही 1,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है।  
कोविड-19 : कोल्हापुरी चप्पलें बनाने वाले लॉकडाउन से गहरे संकट में, कई संक्रमित
चित्र बिजनेस लाइन के सौजन्य से 

कोल्हापुर: एक ठेठ सरकारी कार्यालय के बाहर एक दुकान चलाना यकीनन कई फेरीवालों के लिए भोजन सुनिश्चित करने का एक अचूक तरीका है, जो हफ्ते भर तक चलने वाले भारी चहल-पहल की आहट के बीच रहते हैं। ऐसे ही किसी सरकारी ऑफिस के आसपास तपती दोपहरी में भी खुले आकाश के नीचे बैठे मोची मिल जाते हैं, जो इन दफ्तरों में काम करने वाले सभी बाबुओं के जूते मामूली पैसे में चमकाते रहते हैं। सुभाष हुडले (41) ऐसे ही एक मोची हैं, जो महाराष्ट्र के कोल्हापुर में रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस के पास बैठते हैं। वे खास तौर पर प्रसिद्ध कोल्हापुरी चप्पलें बनाते हैं। 
 
हुडले ने कहा कि वे इस शिल्प को चुटकियों में छोड़ देंगे क्योंकि यह काम बेहद मुश्किलों से भरा है। “मुझे बढ़िया आमदनी वाला कोई विकल्प दीजिए। मुझे इस दुकान को बंद करने में कोई दिक्कत नहीं है,” उन्होंने कहा। आम तौर पर भीड़-भाड़ रहने वाला आरटीओ की यह लेन हफ्ते के आखिरी दिनों में एक भुतहा शहर जैसी लगती है; कोई विक्रेता नहीं, कोई खरीदार नहीं, कोई अफसर नहीं और कोई मोची नहीं। लेकिन हम जिस समय में रह रहे हैं, वह सामान्य नहीं है। पिछले साल कोविड-19  के दौरान महीनों तक चले लॉकडाउन के कुछ महीनों बाद में समूचा नगर फिर से एक भुतहा शहर में तब्दील हो गया है। और हुडले जैसे चप्पल बनाने वालों ने अपनी दुकानें एक बार फिर बंद कर दी हैं। 

हुडले समेत उनमें से कई चप्पल निर्माता अपनी जाति चंभार/चर्मकार बताते हैं। वे सुभाष नगर की घनी आबादी वाले स्लम में रहते हैं। स्थानीय कॉरपोरेटर बताते हैं कि यहां रहने वाले कम से कम 50 चप्पल निर्माता कोविड-19 की हालिया हुई जांच में संक्रमित पाए गए हैं। 
 
जिला हस्तशिल्प कारीगर एवं श्रमिक संघ (एचएएलए/हाला) के उपाध्यक्ष शिवाजी माने ने कहा कि पिछले लॉकडाउन के दौरान  हर एक चप्पल बनाने वाले के सामने भुखमरी की नौबत आ गई थी। उन्होंने कहा,“सुभाष नगर में चप्पल बनाने वाले कम से कम 8 से 10 कारीगरों की संभवत: कोरोना की वजह से जान चली गई हैं।” 60 वर्षीय माने महज 10 वर्ष की उम्र से चप्पल बनाते आ रहे हैं। 
 
हाला के प्रेसिडेंट दीपक यादव ने कहा कि इस शहर में 3,000 से लेकर 4,000 तक चप्पल बनाने वाले कारीगर हैँ। 
 
सुभाष नगर के चप्पल निर्माता बुरी तरह डरे हुए हैं। नगर के स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा उनके ऑक्सीजन लेवल और बुखार की जांच ने उनके बच्चों को थका दिया है।  उनमें से कई लोगों ने रात-देर रात अपने पड़ोसी और प्रिय जनों को अस्पताल जाते देखा है। शारदा पोवर के पति रमेश (52) जो चप्पल बनाते हैं, उनको कोरोना से संक्रमित होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया।  उन्होंने कहा, “सरकार राशन बांटती है तो क्या? यही उसके कर्तव्य का अंत है?  क्या इसके अलावा  हमारा और कोई खर्च नहीं है?”  

पिछले साल अप्रैल में जब  पहला लॉकडाउन किया गया तो इस दंपति ने सुना कि मोदी सरकार उनके बैंक खाते में 500 रुपये डालेगी। “ हम बैंक कई बार गए लेकिन वहां कोई पैसा नहीं आया था।  यह केवल अफवाह थी,” शारदा ने कहा।
 
रमेश ने कहा कि सरकार इस महामारी से ठीक तरीके से नहीं निपटने में फेल हो गई है। “लोगों की बदौलत ही सरकार का वजूद है।  वे ताकतवर नहीं हैं, हम जनता ताकतवर हैं।  एक बार लोग खड़े हो जाएं तो वे किसी सरकार को खदेड़ सकते हैं,” रमेश ने कहा। 
 
शारदा और रमेश  पढ़-लिख नहीं सकते हैं।  लॉकडाउन के पहले उनका बेटा (25 वर्ष) शहर के एक सबसे अभिजात स्कूलों में से एक की कैंटीन में भाड़े पर मजदूरी करता था। लेकिन अब वह बेरोजगार हो गया है। 
 
शारदा ने कहा, “हम अपने बचत घाट से कर्ज ले रहे हैं।  परिवार पर मेडिकल खर्चे का बहुत भार पड़ गया है और हमारा पैसा जल्दी ही खत्म होने वाला है। रमेश ने बहुत सारी चप्पलें बनाई हैं लेकिन महामारी के कारण वह उनके पास वैसी ही पड़ी हुई हैं। एक चप्पल बनाने में 8 दिन का समय लगता है।  यह पूछने पर कि उन्होंने अभी तक टीका क्यों नहीं लिया है, रमेश ने कहा कि वे नहीं चाहते थे कि टीका लगवा कर बीमार पड़ें और उनका काम ठप्प हो जाए। 
 
पिछले साल से हाला  ने मुख्यमंत्री कार्यालय को कई पत्र लिखे थे, एक तो अभी हाल ही में 14 अप्रैल को लिखा है। इसमें कोविड-19 जैसी महामारी और उसके बाद लगातार हुई तालाबंदी के चलते हुए शिल्पकारों और श्रमिकों को हुए नुकसान  की भरपाई की मांग की है। इनमें अन्य बातों के अलावा, 55 साल से ऊपर की अवस्था वाले हस्तशिल्पकारों को 6,000  रुपये मासिक पेंशन, जीवन बीमा योजना और सभी कामगारों और उनके परिवारों को बिना किसी खर्च के मेडिकल चिकित्सा सुविधाएं देने की मांग की गई है। एसोसिएशन ने इसी तरह का एक पत्र कोल्हापुर के जिलाधिकारी कार्यालय को भी लिखा है, जहां से इसे राज्य के मुख्य सचिव कार्यालय को भेज दिया गया है। 
 
मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस बारे में पूछे जाने वाले तमाम सवालों के जवाब के लिए इस मामले को महाराष्ट्र के राहत एवं पुनर्वास विभाग के प्रधान सचिव को प्रेषित कर दिया है। वहां से अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। मुख्यमंत्री सचिवालय को कई ईमेल भी भेजा गए, लेकिन उनमें से एक का भी जवाब नहीं मिला है। 
 
विद्या कुरडे (30), जो कोल्हापुरी चप्पल की डिजाइन करती हैं, वे अपनी 9 वर्षीय लड़की की एकल मां हैं। वे कहती हैं, “पिछले वर्ष हमने भारी कर्ज लिया है। मैंने अपना सोना सुनार के पास गिरवी रखा हुआ है।” उस कर्ज का अभी तक सधान नहीं हुआ है। सबसे बुरी बात तो यह है कि विद्या गाढ़े वक्त के लिए जो थोड़ा-बहुत बचा कर रखती थीं, अभी उन्हीं से गुजारा करना पड़ रहा है। उनकी 29 वर्षीय एक बहन कोरोना-संक्रमित हो गई हैं।
 
कुछ सब्जियां बेचने लगे हैं
 
पिछले लॉकडाउन के बाद से ही संजय लोकरे जैसे चप्पल बनाने वाले कुछ लोग सब्जियां बेचने लगे हैं। उन्होंने कहा कि वे सुबह 5:00 बजे जाग जाते हैं और बाजार के लिए भागते हैं। वे उन कुछ सौभाग्यशाली लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने विगत वर्षों में अपना एक नेटवर्क बना लिया है। उन्होंने कहा, “पुणे और मुंबई के हमारे खरीदारों ने मेरा मोबाइल नंबर ले लिया है और इन्हें अपने परिचितों को भी दे दिया है।”
 
लोकरे को जब हाथ से बनाई हुई चप्पलों के ऑर्डर अन्य शहरों से फोन पर मिलते हैं, तो उन्हें वे कोरियर कर देते हैं लेकिन ऑर्डर लगातार नहीं मिलता है। हालांकि वे इस बात को लेकर उत्साहित थे कि हाल में, मुंबई के एक आला पुलिस अधिकारी ने उनसे एक जोड़ी कोल्हापुरी चप्पल की मांग की है। 
 
जब  मैंने उनसे एक तस्वीर का अनुरोध किया, लोकरे एक कुर्सी पर बैठ गए और अपने सामने एक कतार में रखी हाथ से बनाई चप्पलों को लेकर पोज देने लगे। जैसे ही मैंने लोकरे की कुछ तस्वीरें लीं, उनके लड़के ने उनसे फर्श पर बैठ जाने के लिए कहा। लड़के ने मुझसे जोर देकर कहा कि मैं फर्श बैठे हुए उसके पिता एक तस्वीर भी खींचूं वरना “लोग कहेंगे कि एक चांभर बॉस हो गया है, इससे हमारा भला नहीं होगा।” 
 
डिजिटल विभाजन और चिढ़ाती प्रक्रिया 
 
सुभाष नगर के चप्पल बनाने वाले अनेक कारीगरों की कई समस्याओं में एक यह भी है कि वे  टीकाकरण रजिस्ट्रेशन की ऑनलाइन प्रक्रिया से वाकिफ नहीं हैं। इस इलाके में स्मार्टफोन भी नहीं है। इसके अलावा, टीकाकरण के बाद होने वाले प्रभावों को लेकर भी उनमें थोड़ा डर है, विद्या कुराडे कहती हैं।  उन्होंने कहा कि उनका फोन कुछ महीने पहले टूट गया था। इसकी मरम्मत में 4,000 रुपये लगेंगे लेकिन फिलहाल वह प्राथमिकता नहीं है। 
 
उत्तम बामने भी चप्पल बनाने वाले अन्य लोगों की जाति से ही ताल्लुक रखते हैं। उनके पास अपना एक कीपैड फोन है।  यह उसी तरह का फोन है, जिनका हम सब लोग 2000 के दशक की शुरुआत में उपयोग करते थे। वे कहते हैं कि उनके इलाके में बहुत लोग तो पहली बार में यह भी नहीं समझते ऑनलाइन क्या होता है और इससे भी बड़ी समस्या टीके को बुक करने वाले कोविन पोर्टल की भाषा की है, जो मराठी या स्थानीय कोई भाषा नहीं है। यह डिफॉल्ट इंग्लिश में है।  
 
कोल्हापुर जिले के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ योगेश सले  कहते हैं कि  कोविड-19 के टीके को लेकर यहां अभी भी जागरूकता का अभाव है। उन्होंने आगे कहा कि जिला प्रशासन रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में गरीबों की मदद के लिए एनजीओ के साथ समन्वय कर रहा है। हालांकि सुभाष नगर में रहने वाले कहते हैं कि उनके इलाके में यह प्रयास अभी साकार नहीं हुआ है। 
 
डाटा प्वाइंट

कोल्हापुर जिले में मृत्यु दर 3.2  फ़ीसदी है, जो राज्य में सबसे अधिक है। इसमें सबसे चिंता करने वाली जो बात है वह यह कि पिछले महीने की तुलना में 21 मई तक मात्र 10 दिनों में ही जिले में 1,000 लोगों की मौत हो गई है। तात्पर्य यह कि 21 मई तक मरने वालों की तादाद 3,055 थी, जबकि 11 मई तक कुल 2,011 लोगों की मौत हुई थी।  यह महत्वपूर्ण है कि कोरोना वायरस से जिले में पहली मौत 5 मई 2020 को हुई थी और 15 सितंबर तक यह आंकड़ा 1,018  को पार कर गया था। जिले में फिलहाल 14,406 सक्रिय मामले हैं, जबकि महामारी से अभी तक कुल 96,492 लोग पीड़ित हो चुके हैं। हालांकि ये केवल सरकारी आंकड़े हैं। कुछ जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का विश्वास है कि पूरे देश में कोरोना वायरस से मरने वालों की तादाद कहीं ज्यादा है।
 
समूचे देश में गर्मियों में काफी मौत हुई है। अनेक मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर में कई युवा लोग मरे हैं। नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के अनुसार भारत में कोविड-19 के 2,57,65,802  मामले हैं, जिनमें 21.79 फीसदी मरीज 21 से 30 आयु समूह के हैं औऱ 21.92 फीसदी मरीज 31-40 आयु वर्ग के हैं। 
 
(लेखक एशियन कॉलेज ऑफ जर्नलिज्म के छात्र हैं।  लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

COVID-19: Kolhapuri Chappal Makers in Debt Due to Lockdowns, Several Test Positive

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