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कोविड-19 : निजी अस्पतालों में हो निःशुल्क जांच और इलाज

निजी क्षेत्र में नि:शुल्क जाँच की बात केवल काग़ज़ों में चल रही है, यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि सरकार नि:शुल्क जाँच किट या उसके एवज़ में पैसा मुहैया नहीं करवाती है।
कोविड-19
Image Courtesy: PTI

कोविड़-19 के केसों की बढ़ती संख्या और उसके प्रति बढ़ती चिंताओं के बीच, केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने रोकथाम के प्रयासों को आगे बढ़ाने का काम किया है। हालांकि, हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की संरचनात्मक कमजोरी, संपर्क, जांच और इलाज़ के जरिए रोकथाम की रणनीति को धीमा कर देगी, खासकर जब यह संक्रमण समुदाय के भीतर पहुँच जाएगा।

वर्षों से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की उपेक्षा के चलते कोविड-19 जैसे रोगों के प्रकोप को झेलने या रोकने की क्षमता को हमारी स्वास्थ्य प्रणाली ने कमजोर कर दिया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य अकाउंट्स (एनएचए) 2016-17 के अनुसार, भारत का स्वास्थ्य पर कुल खर्च सकल घरेलू उत्पाद का 3.8 प्रतिशत है और जो स्वास्थ्य पर कुल सरकारी खर्च का 1.2 प्रतिशत बैठता है, और जो विश्व द्वारा निर्धारित 6 प्रतिशत के मानदंडों से काफी नीचे है जिसे स्वास्थ्य संगठन या डब्ल्यूएचओ ने निर्धारित किया है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य पर पूंजीगत खर्च का कुल हिस्सा केवल 7.2 प्रतिशत है। पूंजीगत ख़र्च के हिस्से के तौर पर  स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे के निवेश है जो केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य ख़र्च का एक अंश है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के मामले में लापरवाही के कारण सार्वजनिक क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं और स्वास्थ्य संबंधी मानव संसाधन काफी अपर्याप्त है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफ़ाइल 2019 के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र में 7, 31,986 बेड वाले 25,778 अस्पताल हैं। इसमें शहरी अस्पतालों की संख्या केवल 4,375 है और उनमें 44,8711 बिस्तर हैं।

ग्रामीण अस्पतालों की संख्या के भीतर 16 राज्यों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) की संख्या भी शामिल हैं। सभी राज्यों ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) को ग्रामीण अस्पतालों के नाम से शामिल किया है। सीएचसी में सुविधाएं बहुत खराब हैं और कोविड़-19 जैसे रोग से निबटने की स्थिति में नहीं हैं। इसके अलावा, शहर की सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं भी कई आवश्यक इलाजों को पूरा करने में असमर्थ हैं, यदि रोगियों की एक बड़ी संख्या है तो वेंटिलेटर आदि का न होना एक बड़ी खामी है।

हमारी स्वास्थ्य के सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में कमी सार्वजनिक क्षेत्र में अपर्याप्त स्वास्थ्य संसाधनों की तरफ इशारा करती है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफ़ाइल के अनुसार, भारत में 11,54,686 एलोपैथिक डॉक्टरों में से केवल 1,16,757 सरकार के साथ काम कर रहे हैं। यह अपने आप में सार्वजनिक क्षेत्र में मौजूद डॉक्टरों की भारी कमी को दर्शाता है।

इसके अलावा, सार्वजनिक क्षेत्र अन्य स्वास्थ्य सेवा में मानव संसाधनों की कमी जैसे कि नर्सों और स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी को झेल रहा है। सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मी रोग के प्रकोप की रोकथाम में एक महत्वपूर्ण कारक है लेकिन वे इस तरह के रोग के प्रकोपों का सामना करने के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं। ग्रामीण भारत में 54,099 पुरुष और 2,19,326 महिला स्वास्थ्य कर्मी हैं। महिला स्वास्थ्य कर्मियों को अक्सर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में प्रशिक्षित किया जाता है।

कई राज्यों ने काफी लंबे समय से बहुउद्देश्यीय स्वास्थ्य कर्मियों के लिए पड़े रिक्त पदों को नहीं भरा है। हालांकि कोविड-19 ने संक्रमित 80 प्रतिशत लोगों को बीमारियों अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं है क्योंकि इससे रोग का प्रसार तेज़ी से हो सकता है, फिर भी अस्पतालों में भीड़ होने की संभावना बनी रहती है। उन लोगों से संपर्क करना जिनसे कोविड-19 संक्रमित लोग मिले हैं, को ढूँढना और संदिग्ध केसों की नियमित देखभाल करने जैसी गतिविधियां, जो कि बीमारी के प्रसार को रोकने में महत्वपूर्ण कदम है, मुख्य रूप से इसे स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा ही अंजाम दिया जा सकता है।

जांच के लिए आईसीएमआर की सलाह से पता चलता है कि इसकी लागत 4,500 रुपये है। वर्तमान में, पुणे में नेशनल वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट जो जांच की पुष्टि करने वाला संस्थान, के अलावा  लगभग 106 जांच केंद्र/संग्रह केंद्र हैं। सभी में पहले से ही निमोनिया रोगियों को शामिल करने की और जांच की पात्रता के मानदंड में संशोधन करने की मांग की जा रही है। डब्ल्यूएचओ सभी देशों को बीमारी पर नियंत्रण पाने के लिए अधिक जांच करने की सलाह दे रहा है। आईसीएमआर ने पहले ही परीक्षणों को अंजाम देने के लिए निजी क्षेत्र को सशर्त मंजूरी दे दी है और मुफ्त जांच करने को कहा है। निजी क्षेत्र में नि:शुल्क जांच तब तक केवल कागज में बनी रहेगी जब तक कि सरकार मुफ्त परीक्षण किट या उसके एवज़ में पैसे की प्रतिपूर्ति नहीं करती है।

समुदाय के भीतर प्रसार को रोकने में सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में इतनी बाधाएं है कि कोविड-19 की जांच और इलाज़ के लिए निजी क्षेत्र का उपयोग जरूरी हो जाता हैं। दिल्ली जैसी  जगहों पर सरकार ने रोग की जांच प्रबंधन के लिए पहले से ही निजी स्वास्थ्य सुविधाओं को सूचीबद्ध कर दिया है। अगर संक्रमण का प्रसार तेज़ी से होता है तो यह अपरिहार्य है कि निजी क्षेत्र के अस्पतालों और प्रयोगशालाओं को अधिक कार्रवाई के लिए लपेटा जाएगा। 

केंद्र सरकार ने पहले से ही कोविड-19 को बीमा योजना के तहत शामिल करने और उसे आयुष्मान भारत जैसी सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं के साथ जोड़ दिया है ताकि उसके लाभार्थियों को मुफ़्त जांच और इलाज मिल सके। हालांकि, अधिकांश आबादी इन योजनाओं के बाहर हैं, और उन्हे निजी क्षेत्र के माध्यम से जांच और महंगे इलाज़ खर्च का सपना सता रहा  है। सरकार को जनता के निकटतम स्वास्थ्य सुविधा के भीतर मुफ्त जांच और इलाज़ प्रदान करने के लिए कदम उठाना चाहिए, चाहे वह फिर निजी या सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा ही क्यों न हो। सरकार को निजी क्षेत्र को उनकी सेवाओं के लिए उचित मुआवज़ा प्रदान कर सकती है। इस तरह के उपाय से सार्वजनिक क्षेत्र पर दबाव कम होगा और बीमारी को रोकने की क्षमता बढ़ेगी।

यदि हम बाज़ार को बिना रेगुलेशन के चलाने की अनुमति दे देते हैं, तो मास्क और हैंड सैनिटाइटर की बढ़ती क़ीमतें आने वाले भयंकर हालत का संकेत है। निजी क्षेत्र द्वारा आत्म-अनुशासन का वादा और आश्वासन के बावजूद, शोषणकारी कीमतों का संभावित खतरा बना रहता है। हालांकि स्वास्थ्य सेवाएं राज्य सूची के अंतर्गत आती है, लेकिन केंद्र सरकार को निजी क्षेत्र में लोगों को मुफ़्त जांच और इलाज़ का कदम उठाने से रोकने के लिए संविधान में कोई प्रावधान नहीं है।

कोविड-19 के ख़तरे को देखते हुए, स्पेन ने सभी निजी अस्पतालों को अनिश्चित काल के लिए सरकारी नियंत्रण में कर लिया है। भारत सरकार को भी मुफ़्त जांच और इलाज को आगे बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र की प्रयोगशालाओं और अस्पतालों के बारे में निर्णायक क़दम उठाने चाहिए।

लेखक ‘थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क’ के साथ जुड़े हुए हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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