तिरछी नज़र: नया वायरस, पुरानी तैयारी

देश में एक और वायरस आ गया है। एचएमपीवी नाम है उसका। नया नहीं है, वायरस तो पुराना ही है, पर डर नया है।
यह वायरस बच्चों और बूढ़ो में ज्यादा फैलता है। रेस्पेरेट्री वायरस है, मतलब श्वसन तंत्र पर असर डालता है। खांसी, जुखाम, गले में खराश से लेकर सांस फूलना और नेमोनिया तक कर सकता है।
बताया जा रहा है कि यह वायरस भी चीन से आया है। चीन ने पुराने वायरस को ही रीलोड किया है। लेकिन हम भी पूरी तरह से तैयार हैं। नहीं, नहीं, हमनें बीमारी से लड़ने के लिए अपने अस्पताल पहले से ज्यादा सुसज्जित नहीं किये हैं। हमारे अस्पताल तो वही लाचार और सुविधाहीन हैं। हमने तो दूसरी तरह से तैयारी की है।
हमने अपने बरतन भांडे धो कर, मांज कर रख लिए हैं। कुछ नए भी खरीद लिए हैं। कि क्या पता कब सरकार जी वायरस से लड़ाई का बिगुल बजाएं और शाम को पांच बजे हमें बरतन बजाने के लिए कहें।
और हम पूरे उत्साह से बरतन पीट सकें। हर एक सदस्य को बरतन मिल सके।
पिछली बार जो कमी रह गई थी, वह इस बार नहीं रहे।
हमनें मोमबत्ती और दीपक भी खरीद कर रख लिए हैं।
पिछली बार मोमबत्ती या दीपक नहीं थे। सरकार जी के आह्वान पर मोबाइल की लाइट जला कर ही काम चलाना पड़ा था। आस पड़ोस में घोर बेइज्जती हुई थी।
इस बार सरकार जी जब दीपक, मोमबत्ती जलाने के लिए कहेंगे तब हम भी दीपक मोमबत्ती ही जलाएंगे। मोबाइल की बैटरी नहीं फूकेंगे।
इस बार गाय के गोबर की भी कमी नहीं होगी। वैसे पिछली बार भी नहीं थी। उत्तर भारत में तो इतनी कृपा बरसी हुई है कि हर शहर, कस्बे और गांव में, हर गली चौराहे पर आवारा गोवंश घूमता हुआ मिल जायेगा। वहाँ गोबर भी पड़ा हुआ मिल जायेगा। वायरस आये और बस लपेटना बाकी है। हाँ, गोमूत्र की कमी अवश्य रहती है। गौमाता के पीछे बरतन लिए खड़े रहो। इंतजार करते रहो। कब गाय माता मूत्र विसर्जन करें और कब हम उसे इक्क्ठा करें। नज़र चूकी नहीं कि फिर इंतजार करो।
इस सब कठनाईयों से बचने के लिए कुछ सनातनी, हिन्दू धर्म रक्षक कम्पनीयों ने गोमूत्र को बेचना भी शुरू कर दिया है। वे शुद्ध, डिस्टिल करके, कभी कभी तो सुगन्धित भी, गोमूत्र बेचती हैं। समझ नहीं आता है, इतनी शुद्ध, गुणी चीज को, अमृत के समान द्रव्य को वे और क्या शुद्ध, डिस्टल करती हैं। और सुगन्धित! गोमूत्र में दुर्गन्ध, इस बेजा बात को हटाइये। हमारी भावनाऐं आहत हो रही हैं।
हमारी सुविधा के लिए यह पैक्ड गोमूत्र कम्पनी के स्टोर पर तो मिलता ही है, अमेज़न, ब्लिंकिट, फ्लिपकार्ट, सब पर मिलता है। और फ्री होम डिलीवरी भी है। और कीमत, ज्यादा नहीं, बस गाय के शुद्ध दूध से दुगनी।
सरकार जी भी वही हैं जो पिछली बार थे। तो अचानक से लॉकडाउन भी लग सकता है। पिछली बार जब लॉकडाउन लगा था, महीने का तीसरा हफ्ता चल रहा था। घर का राशन समाप्ति की ओर था। पर अबकी बार हम पूरी तरह से तैयार हैं। घर में महीनों का राशन पानी भर कर रख लिया है। चार घंटे तो बहुत होते हैं, सरकार जी चाहे तो एक घंटे में लॉकडाउन लगा सकते हैं।
मजदूरों को भी, रोजाना कमाने और खाने वालों को भी, किसी को भी लॉकडाउन से इस बार इतनी दिक्कत नहीं होगी जितनी पिछली बार हुई थी। बहुत सारे लोग तो शहरों में रोजगार ना होने की वजह से अभी तक अपने गांवों में ही बैठे हैं। उनको वापस जाने की कठनाई नहीं होगी।
तो साहिबान, नया वायरस आ गया है। एचएमपीवी नाम है उसका। हमें उससे उसी तरह से निपटना है जैसे हम कोविड 19 से निपटे थे। मास्क लगा कर, समुचित दूरी रख कर, हायजिन से, डाक्टरी सलाह और इलाज से। सरकार जी उससे जैसे चाहे निपटें। आखिर सरकार जी तो सरकार जी ही हैं।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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