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कोरोना वैक्सीन से ‘दुनिया का कल्याण’ करने वाला भारत, इसकी कमी से क्यों जूझ रहा है?

भारत दुनियाभर में बनने वाली 60 प्रतिशत वैक्सीन का उत्पादन करता है, एक तरह से वैक्सीन का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरर है। ऐसे में कोरोना मामलों में भारी उछाल के बीच कई राज्यों ने वैक्सीन की कमी का दावा किया है, जो निश्चित तौर पर वैक्सीनेशन की मुहिम को झटका देने वाला नज़र आता है।
कोरोना वैक्सीन
Image courtesy : TOI

“आज फार्मेसी में हम आत्मनिर्भर हैं। हम दुनिया के कल्याण के काम आते हैं।”

ये शब्द प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हैं। उन्होंने लोकसभा में 10 फरवरी को अपनी पीठ थपथपाते हुए ये बातें तो कह दी, लेकिन आज दूसरों को वैक्सीन की आपूर्ति करने वाला भारत खुद वैक्सीन की कमी से जूझ रहा है। कोविड के मोर्चे पर देश इस वक्त दोहरी मार झेल रहा है। एक ओर कोरोना के मामलों में भारी उछाल आया है, तो वहीं दूसरी तरफ वैक्सीनेशन की मुहिम को भी झटका लगा है। कई राज्यों में वैक्सीन की पर्याप्त सप्लाई न हो पाने की बात सामने आ रही है।

पर्याप्त सप्लाई न होने से वैक्सीनेशन सेंटरों पर लगे ताले

कई राज्यों ने आने वाले दिनों में वैक्सीन की कमी को लेकर केंद्र सरकार से गुहार लगाई है। तो कहीं बीते दिनों से ही वैक्सीन की पर्याप्त सप्लाई न होने से वैक्सीनेशन सेंटरों पर ताले लग गए हैं। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और झारखंड ने वैक्सीन की कमी का दावा किया है। तो वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने राज्यों पर इस तरह की बातें करके राजनीति करने का आरोप मढ़ दिया है। हालांकि उन्होंने राज्यों को भरोसा दिलाया है कि वैक्सीन की कमी नहीं होने दी जाएगी। लेकिन ये कैसे होगा ये आम और खास दोनों के सामने गंभीर सवाल है।

बता दें कि भारत सरकार ने कोविड-19 वैक्सीन की 5 करोड़ से ज्यादा डोज की 70 से ज्यादा देशों को आपूर्ति की है। भारत से 90 लाख डोज प्राप्त करने वाला बांग्लादेश अब तक का सबसे बड़ा लाभार्थी बना है। वैक्सीन आपूर्ति को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत की तारीफ की है, लेकिन आज हमारे ही देश में कई राज्यों के लोगों को इसकी कमी का सामना करना पड़ रहा है।

इन राज्यों में हो रही वैक्सीन की कमी

महाराष्ट्र कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सबसे बुरी तरह से प्रभावित राज्यों में से एक है। यहां कोविड प्रोटोकॉल की जागरूकता के बीच बड़ी संख्या में लोग वैक्सीन लेने सेंटर पहुंच रहे हैं लेकिन खबरों की मानें तो उन्हें निराश ही वापस  लौटना पड़ रहा है क्योंकि सेंटर के बाहर वैक्सीन उपलब्ध न होने का नोटिस लगा दिया गया है। खुद महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने राज्य में कोविड-19 वैक्सीन की कमी होने की बात कही है।

बुधवार, 7 अप्रैल को टोपे ने मीडिया से कहा कि हमारे टीकाकरण केंद्रों पर वैक्सीन का पर्याप्त स्टॉक नहीं है। टीका लगवाने आए लोगों को वापस लौटना पड़ रहा है। ज्यादातर केंद्र बंद करने पड़े हैं। हमने केंद्र से और वैक्सीन पहुंचाने की मांग की है।

उन्होंने कहा, ''अभी हमारे पास वैक्सीन की 14 लाख डोज हैं, जो 3 दिन में खत्म हो जाएंगी। हमने हर हफ्ते वैक्सीन की 40 लाख और डोज के लिए कहा है। मैं ये नहीं कह रहा कि केंद्र हमें वैक्सीन नहीं दे रहा, लेकिन वैक्सीन की डिलीवरी की स्पीड धीमी है।''

आंध्र प्रदेश

आंध्र प्रदेश ने भी केंद्र को चिट्ठी लिखकर एक करोड़ वैक्सीन डोज़ की मांग की है. प्रदेश सरकार का कहना है कि उसके पास सिर्फ 3.7 लाख डोज उपलब्ध हैं, जबकि इसकी हर दिन खपत 1.3 लाख डोज है। गुरुवार तक उपलब्ध वैक्सीन खत्म होने की आशंका है। इसके अलावा 6 अप्रैल को नेल्लोर और पश्चिम गोदावरी जिले में वैक्सीन खत्म होने की खबर आ चुकी है।

झारखंड

झारखंड से भी ऐसी ही खबर है। झारखंड ने वैक्सीनेशन को रफ्तार देने के लिए 4 से 14 अप्रैल के बीच विशेष अभियान शुरू किया था, लेकिन वैक्सीन की कमी से ब्रेक लग गया। राज्य में दो दिनों में वैक्सीन का स्टॉक खत्म हो जाएगा। अधिकारी केंद्र से 9 और 10 अप्रैल को 1-10 लाख वैक्सीन डोज़ मिलने की उम्मीद जता रहे हैं।

स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा है "राज्य के पास वैक्सीन फिलहाल पौने 2 लाख हैं। जबकि डॉक्टर हर्षवर्धन जी(केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री) से कल हमने झारखंड के लिए 10 लाख वैक्सीन मांगी है। इतनी संख्या में वैक्सीन आने के बाद राज्य में वैक्सीनेशन की स्थिति बदलेगी।"

ओडिशा

ओडिशा ने भी केंद्र से तुरंत कोविशील्ड की 25 लाख डोज उपलब्ध कराने की मांग की है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री नाबा किशोर दास ने केंद्र को चिट्ठी लिखकर कहा है कि उनके पास जो स्टॉक मौजूद है, उससे सिर्फ दो दिन टीकाकरण हो सकता है। 9 अप्रैल को राज्य में वैक्सीन आउट ऑफ स्टॉक हो जाएगी।

दिल्ली

बढ़ते कोरोना मामलों के बीच दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने बुधवार, 7 अप्रैल को प्रदर्शन करते हुए दूसरे देशों को वैक्सीन भेजे जाने का विरोध किया। पार्टी का कहना है कि दूसरे देशों को सप्लाई से पहले अपने देश के लोगों को वैक्सीन मिलनी चाहिए।

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर वैक्सीनेशन को लेकर तय की गई आयु सीमा खत्म करने की मांग की। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने भी केंद्र से यही मांग की। लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने इनकार करते हुए साफ किया कि उद्देश्य ये नहीं होना चाहिए कि सबको देना है, जिसको जरूरत है उसे पहले देना है।

सरकार क्या सफाई दे रही है?

कई राज्य सरकारों द्वारा केंद्र सरकार के सामने वैक्सीन की कम सप्लाई की बात उठने के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन इसे ‘राजनीति’ और ‘ध्यान भटकाने वाला’ कदम बता रहे हैं। उनका कहना है कि राज्य वैक्सीनेशन की उम्र घटाने और वैक्सीन की कमी जैसी बातें करके ये कोरोना से निपटने के अपने कमजोर प्रयासों पर पर्दा डाल रहे हैं।

एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, “हाल के दिनों में मैंने कई राज्य सरकारों से गैरजिम्मेदाराना बयान सुने हैं। अब चूंकि इन बयानों से आम जनता में भ्रम और पैनिक फैलेगा, इस वजह से जवाब देना जरूरी है। ऐसे वक्त में जब देश में कोरोना के मामले तेजी के साथ बढ़ रहे हैं ऐसे में यह तथ्य बताना चाहता हूं कि कई राज्य सरकारें कोरोना के खिलाफ उपयुक्त कदम उठाने में नाकाम रही है।”

स्वास्थ्य मंत्री ने तथ्यों के आधार पर महाराष्ट्र की आलोचना की। 'छत्तीसगढ़ सरकार के रवैए को ‘गैरजिम्मेदाराना’ बताया और दिल्ली और पंजाब पर खूब बरसे। उन्होंने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा मामले इन्हीं प्रदेशों से आ रहे हैं। हालांकि उन्होंने माना कि वैक्सीन की सप्लाई सीमित है। लेकिन वो यूपी की कोरोना से खराब होती हालत और इलाहाबाद हाईकोर्ट की फटकार भूल गए। शायद इसलिए क्योंकि वहां बीजेपी की योगी सरकार है।

मोदी के संसदीय क्षेत्र तक में वैक्सीन की कमी

कोरोना वैक्सीन की किल्लत सिर्फ गैर बीजेपी राज्यों में ही नहीं है बल्कि इसका असर पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में भी दिख रहा है। वैक्सीन की कमी के चलते यहां 66 सरकारी टीकाकरण केंद्रों में से बुधवार, 7 अप्रैल को सिर्फ 25 पर ही वैक्सीनेशन हुआ। जिले के वैक्सीन स्टोरेज सेंटर पर भी ताला लटका दिखा। वैक्सीन की कमी कब तक पूरी होगी, इस बारे में स्वास्थ्य विभाग को भी नहीं मालूम है।

आजतक की एक रिपोर्ट के मुताबिक वैक्सीन सेंटर चौकाघाट से वैक्सीन वितरण करने वाले स्वास्थ्य कर्मी श्यामजी प्रसाद ने बताया कि दो दिन से कोवैक्सीन और कोवीशिल्ड दोनों ही खत्म हैं।

चौकाघाट राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल की एमएस प्रो. नीलम गुप्ता ने बताया कि वैक्सीन नहीं मिल पाने से वैक्सीनेशन रोकना पड़ा है। लोगों को वापस लौटाना पड़ा है। बनारस के डिस्ट्रिक्ट इम्यूनाइजेशन ऑफिसर डॉ. विजय शंकर राय ने बताया कि लखनऊ में भी वैक्सीन उपलब्ध नहीं हैय़ इसलिए वैक्सीनेशन सेंटर कम करने का आदेश आया है।

यूपी में बनारस ही नहीं, गाजियाबाद और नोएडा में भी वैक्सीन की कमी के चलते वैक्सीनेशन के कई स्लॉट कैंसल कर दिए गए हैं। गाजियाबाद में मंगलवार को जहां 65 सेंटरों पर वैक्सीनेशन हुआ, वहीं बुधवार को सिर्फ 48 सेंटर ही टीके लगाए गए।

वैक्सीन की किल्लत की क्या वजहें हैं?

दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन मैन्यूफैक्चरर सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII), जो भारत की एक प्राइवेट फर्म है, उसके सीईओ अदार पूनावाला ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा कि हालात काफी तनावपूर्ण हैं।

पूनावाला के अनुसार, फिलहाल कंपनी 6 करोड़ से 6.5 करोड़ डोज़ हर महीने बना रही है। अब तक हम 10 करोड़ डोज़ भारत सरकार को और 6 करोड़ डोज़ देश के बाहर सप्लाई कर चुके हैं। लेकिन हम अब भी हर उस भारतीय तक वैक्सीन पहुंचाने से पीछे हैं, जिसे इसकी जरूरत है।

विषेज्ञों की मानें तो देश में वैक्सीन की कमी का सबसे बड़ा कारण डिमांड और सप्लाई में दिख रहा साफ अंतर तो है ही साथ ही भारत में केंद्र सरकार ने वैक्सीन की कीमतों पर जो प्राइज़ कैप लगा रखा है वो भी है। प्राइवेट अस्पतालों में मिलने वाली कोरोना वैक्सीन की कीमत अधिकतम 250 रुपये तय की गई है। मैन्यूफैक्चरर को इसकी वजह से मुनाफा नहीं हो रहा है और प्रोडक्शन नहीं बढ़ पा रहा है।

आधार पूनावाला  ने भी एनडीटीवी के साथ एक इंटरव्यू में कहा, “हम भारत में करीब 150-160 रुपये में सप्लाई कर रहे हैं। जबकि औसत दाम करीब 20 डॉलर (1500 रुपये) है...(लेकिन) मोदी सरकार के अनुरोध के चलते, हम सब्सिडाइज्ड रेट पर (वैक्सीन) मुहैया करा रहे हैं।’’

उन्होंने कहा कि अगर कंपनी को जून तक अपनी क्षमता बढ़ानी है तो इसके लिए 3000 करोड़ रुपए की जरूरत होगी। इसके लिए हमने केंद्र सरकार को लिखा है। वहां से मदद नहीं मिली तो लोन लेने जैसे दूसरे रास्ते खोजे जाएंगे।

विषेज्ञों की टीम क्या कहती है?

इकोनॉमिक इंटेलिजेंस यूनिट की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में सबसे ज्यादा वैक्सीन बनाने वाले 2 देश चीन और भारत 2022 के अंत तक भी अपने यहां पर्याप्त वैक्सीनेशन नहीं कर पाएंगे। इसकी एक बड़ी वजह तो यह है कि दोनों के यहां बहुत बड़ी आबादी है और हेल्थ वर्करों की संख्या भी पर्याप्त नहीं है।

भारत सरकार ने ऐलान किया था कि वो 30 करोड़ लोगों को जुलाई के अंत तक वैक्सीन लगा देगी। वैक्सीनेशन प्रोग्राम 16 जनवरी से शुरू हुआ। हम लक्ष्य से काफी पीछे हैं। 3 महीने में हम 8 करोड़ डोज देने का सफर तय कर पाए हैं। 6 अप्रैल तक 8,70,77,474 कोरोना वैक्सीन डोज दिए गए हैं।

भारत की तैयारी क्या है?

भारत दुनियाभर में बनने वाली 60% वैक्सीन का उत्पादन करता है। चूंकि भारत वैक्सीन का सबसे बड़ा मैन्यूफैक्चरर है, तो ऐसे में भारत की कोरोना को लेकर तैयारी और वैक्सीनेशन प्रोग्राम पर सबकी नज़र है। बीते कई दिनों से देश में कोरोना वायरस के एक लाख से अधिक मामले रिपोर्ट हो रहे हैं। ऐसे में देश की लगभग सवा सौ करोड़ आबादी कोविड-19 वैक्सीन के खिलाफ लड़ाई को लेकर दो वैक्सीन पर ही निर्भर है।

फिलहाल, सरकार की ओर से भारत बायोटेक की स्वदेशी वैक्सीन-कोवैक्सीन और ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड, जिसे सीरम बना रही है, उनको ही मंजूरी मिली है। यानी सारा दारोमदार सिर्फ दो कंपनियों पर है। ऐसे में ये बेहद चुनौतीपूर्ण समय है जब वैक्सीन मुहैया कराने को लेकर सरकार की तैयारी पर कई सवाल उठ रहे हैं।

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