शीर्ष कोविड-19 वैक्सीन निर्माताओं ने गरीब देशों को निराश किया
करीब एक साल पहले से ही टीकों के उत्पादन की शुरुआत के बावजूद दुनिया भर में अरबों लोगों को कोविड-19 के खिलाफ टीका नहीं लगाया जा सका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस अधनोम घेब्रेयेसुस के अनुसार, ऐसे 116 देश हैं “जो इस वर्ष के मध्य तक हर देश की 70% आबादी का टीकाकरण करने के हमारे साझे लक्ष्य के पथ से अभी भी दूर हैं।” 16 फरवरी को महाद्वीप में टीकाकरण में असमानता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि अभी भी अफ्रीका में 83% लोगों को एक भी खुराक नहीं मिल पाई है।
निम्न-आय वाले देशों में बेहद कम टीकाकरण
विभिन्न देशों में सभी आय समूहों के बीच में टीकाकरण की दरों पर एक निगाह डालने पर स्पष्ट रूप से असमानता नजर आती है। जैसा कि नीचे दिए गये चित्र 1 में दिखाया गया है, कि उच्च-आय (एचआईसी) और उच्च-मध्य-आय वाले देशों (यूएमआईसी) में 70% से अधिक लोगों का पूर्ण टीकाकरण हो चुका है। वहीँ दूसरी तरफ निम्न-आय वाले देशों में 6% टीकाकरण की दर बेहद चौंकाने वाली है। निम्न-एवं-मध्यम-आय वाले देशों (एलएमआईसी) में भी सिर्फ 44% ही पूर्ण टीकाकरण वाली आबादी है।
इनमें से अधिंकाश देश, जो कि अफ्रीका, एशिया और लातिनी अमेरिका में हैं, आज भी टीके के लिए प्रतीक्षारत हैं। टीकाकरण की मुहिम में और भद्दा मजाक, अफ्रीका के लिए टीकों की आपूर्ति में नजर आती है, जिसमें अलग-अलग देशों और कोवाक्स इन दोनों के जरिये आपूर्ति की गई टीकों की शेल्फ लाइफ (मियाद) बेहद कम थी और उनका इस्तेमाल किये जाने से पहले ही खत्म हो गई थी।
वैक्सीन निर्माताओं ने निम्न-आय वाले देशों को विफल कर दिया है
फ़ाइज़र/बायोएनटेक और एस्ट्राज़ेनेका/ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय जैसी कुछ बड़ी दवा कंपनियों द्वारा उत्पादित कुछ टीकों ने वैश्विक बाजार पर कब्जा जमा रखा है (नीचे चित्र 2 में)। चीनी फार्मा प्रमुख सिनोफार्म और सिनोवाक ने भी टीकों के अच्छे-खासे स्टॉक को उत्पादित किया है।
जबकि अधिकांश प्रमुख वैक्सीन निर्माता निजी कंपनियां हैं, वहीँ चीनी राज्य-स्वामित्व वाली सिनोफार्म एक प्रमुख वैक्सीन निर्माता के तौर पर उभरी है जिसने एलएमआईसी देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की है।
नीचे चित्र 3 में विभिन्न देशों को इन टीकों की आपूर्ति को दर्शाया गया है। अधिकांश बड़ी फार्मा कंपनियों ने निम्न-आय वाले देशों (एलआईसी) की उपेक्षा ही की है। फाइजर और मोडेरना ने अपने उत्पादन के 80% और 70% से अधिक हिस्से को एचआईसी और यूएमआईसी देशों की ओर ही निर्देशित कर रखा है।
इसके विपरीत, एस्ट्राज़ेनेका ने अपने उत्पादन के 70% से अधिक हिस्से को एलएमआईसी और एलआईसी देशों को आपूर्ति की है। हालाँकि जेएंडजे ने फ़ाइज़र के टीकों की संख्या की तुलना में सिर्फ आठवें हिस्से का ही उत्पादन किया है, लेकिन इसके बावजूद इसने उनमें से करीब 53% हिस्से की आपूर्ति एलएमआईसी और एलआईसी देशों को की है।
चित्र 3 यह भी दर्शाता है कि एलआईसी एवं एलएमआईसी देशों के प्रति कंपनियों की सीधी प्रतिबद्धता काफी कम है। इन देशों में, विशेषकर एलआईसी देशों की मुख्य तौर पर कोवाक्स पर निर्भरता बनी हुई है, जिसे स्वंय अमीर देशों या बिग फार्मा से भी पर्याप्त मदद नहीं मिली है।
बिग फार्मा द्वारा कोवाक्स की उपेक्षा
कोवाक्स, विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य बहुपक्षीय एजेंसियों के बीच की एक सहभागिता है, जिसका गठन टीकों के विकास और निर्माण में तेजी लाने और इसके जरिये उनके निष्पक्ष एवं न्यायसंगत पहुँच को सुनिश्चित करने के लिए किया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बार-बार अमीर देशों के साथ बिग फार्मा से कोवाक्स में योगदान करने की अपील की है ताकि गरीब देशों को कम दामों पर टीकों को उपलब्ध कराया जा सके।
हालाँकि, नीचे दिए गए चित्र से 4 पता चलता है कि शीर्ष फार्मा कंपनियां कोवाक्स में अपने योगदान के मामले में बुरी तरह से विफल रही हैं। उदाहरण के लिए, जहाँ 2021 में फ़ाइज़र ने छप्पर-फाड़ मुनाफा कमाया, इसने कोवाक्स में मात्र 4 करोड़ खुराक का योगदान दिया। 2021 में, फ़ाइज़र ने अपने राजस्व में करीब 4,200 करोड़ डॉलर से 8,100 करोड़ डॉलर तक की आय के साथ 95% की उछाल दर्ज की है। 2020 से 2021 के बीच में फ़ाइज़र की शुद्ध आय में 140% की जबर्दस्त वृद्धि हुई है। मोडेरना ने भी सिर्फ 5 करोड़ खुराक मुहैय्या कराए, जबकि जेएंडजे ने 60 लाख खुराक का मामूली योगदान किया है।
एस्ट्राज़ेनेका, सिनोवाक और सिनोफर्म ही वे अकेली वैक्सीन निर्माता कंपनियां रही हैं जिनमें से हर एक ने कोवाक्स में 10 करोड़ डोज से अधिक खुराक का योगदान दिया है। मोडेरना और फ़ाइज़र जैसी कंपनियों जिन्होंने महामारी के दौरान सबसे ज्यादा मुनाफा बनाया है, ने कोवाक्स को बहुत कम डोज प्रदान कर सिर्फ मुहं-जबानी जमाखर्च से काम चला लिया है।
इसके अलावा, बिग फार्मा ने एलआईसी और एलएमआईसी देशों के निर्माताओं के साथ तकनीकी जानकारी साझा करने से भी इंकार कर दिया है। इन फार्मा दिग्गजों के द्वारा ट्रिप्स छूट प्रस्ताव का जमकर विरोध किया जा रहा है और अमीर देशों के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इसे विफल करने के लिए पैरवी की जा रही है।
बिग फार्मा लॉबी का मुकाबला करने और टीके की असमानता से निटपने के लिए डब्ल्यूएचओ ने 2021 में दक्षिण अफ्रीका में अपने वैश्विक एमआरएनए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण केंद्र को स्थापित किया था, जिसका उद्देश्य एलआईसी एवं एलएमआईसी देशों में वैक्सीन निर्माण की क्षमता को विकसित करने का था।
हाल ही में घेब्रेयेसुस साफ-साफ़ शब्दों में बताया था, “इस असमानता की एक बड़ी वजह इस तथ्य से प्रेरित है कि वैश्विक स्तर पर वैक्सीन उत्पादन का काम चुनिंदा उच्च-आय वाले देशों में संकेंद्रित है। इसलिए, महामारी के सबसे स्पष्ट सबकों में से एक यह मिला है कि टीकों के स्थानीय स्तर पर उत्पादन को बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है, विशेष कर निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में।”
विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रौद्योगिकी केंद्र के निर्माण के प्रयासों का नतीजा मिलना शुरू हो गया है, और इसने मोडेरना के एमआरएनए वैक्सीन के पुनरुत्पादन में सफलता हासिल कर ली है। छह देशों, मिश्र, केन्या, नाइजीरिया, सेनेगल, दक्षिण अफ्रीका और ट्यूनीशिया को सबसे पहले-पहल अपने खुद के एमआरएनए टीके बनाने की तकनीक प्राप्त होने जा रही है।
जहाँ एक तरफ विश्व स्वास्थ्य संगठन और कई वैज्ञानिकों जैसे क़िरदार वैक्सीन की असमानता से निपटने के लिए हर-संभव कोशिशों में जुटे हुए हैं, वहीँ दूसरी तरफ बिग फार्मा की ओर से लगातार मुनाफा कमाने और वैक्सीन, दवा और चिकत्सा शास्त्र पर पेटेंट एकाधिकार को अपने लिए सुरक्षित बनाये रखने के प्रयास जारी हैं।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।