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कोविड, एमएसएमई क्षेत्र और केंद्रीय बजट 2022-23

बजट में एमएसएमई क्षेत्र के लिए घोषित अधिकांश योजनायें आपूर्ति पक्ष को ध्यान में रखते हुए की गई हैं। हालाँकि, इसके बजाय हमें मौजूदा संकट से निपटने के लिए मांग-पक्ष वाली नीतिगत कर्रवाइयों की कहीं अधिक जरूरत है। 
COVID, MSMEs and Union Budget 2022-23
चित्र साभार: लाइवमिंट 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी, 2022 को संसद में अपना लगातार चौथा केंद्रीय बजट पेश किया। उन्होंने घोषणा की कि समावेशी विकास, उर्जा संक्रमण, जलवायु पहल, उत्पादकता पर अधिक ध्यान केंद्रित कर वृद्धि एवं निवेश के वित्तपोषण के जरिये अगले 25 वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ‘अमृत काल’ साबित होने जा रहे हैं। बहरहाल, उनके इस 90 मिनट के भाषण ने बजट आवंटनों को लेकर कोई विवरण नहीं दिया।

हालाँकि, इस ‘अमृत काल’ की फसल कौन काटने जा रहा है, इसका पता सिर्फ उपरवाले को ही हो सकता है। हम सभी दिसंबर 2019 से एक ऐसे स्वास्थ्य और आर्थिक संकट के बीच से गुजर रहे हैं जो सदी में एक बार आती है; और इससे निपटने के लिए अभूतपूर्व नीतिगत सुधारों की सख्त दरकार है। बहरहाल, आम इंसान की दृष्टि से देखें तो उसके लिए यह बजट बेहद निराशाजनक है। माननीय वित्त मंत्री ने ऐसी एक भी महत्वपूर्ण घोषणा नहीं की है जिससे समाज के गरीब और मध्यम वर्ग का बोझ कुछ कम हो सके। ‘आत्मनिर्भर भारत’ का पैकेज भी देश के गरीब और मध्यम वर्ग की मदद कर पाने में विफल है।

अर्थव्यवस्था के उन क्षेत्रों में से एक जिसमें अर्थव्यवस्था में रोजगार और विकास को पैदा करने की अपार संभावनाएं मौजूद हैं, जो कि वित्त मंत्री के ‘अमृत काल’ के दृष्टिकोण को हासिल करने में मददगार साबित हो सकता है, वे हैं सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई)।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस)-73वें दौर में देश में रोजगार सृजन के क्षेत्र में एमएसएमई क्षेत्र की क्षमता का जिक्र है। कृषि क्षेत्र के इतर देखें तो, यह क्षेत्र अपनी श्रम-प्रधान प्रकृति के कारण भारतीय कार्यबल को अवशोषित कर पाने की अपार क्षमता रखता है। अपने शोध पत्र में अली एवं हुसैन (2014) ने भी यही तर्क दिया है कि भारत जैसे विकासशील देशों में एमएसएमई क्षेत्र में वृद्धि अर्थव्यवस्था के समग्र विकास के लिए पूर्व शर्त है।

एमएसएमई की महत्ता 

देश में कुलमिलाकर छह करोड़ से अधिक एमएसएमई हैं। इनमें से 36% व्यापार में, 33 प्रतिशत सेवा क्षेत्र में और 31% विनिर्माण क्षेत्र में हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में एमएसएमई क्षेत्र की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह तकरीबन 12 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैय्या कराता है। इसके अलावा, यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 30% हिस्से के उत्पादन और इसके कुल निर्यात में 50% का योगदान देता है। विनिर्माण उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा इसी क्षेत्र से आता है। एमएसएमई मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 2016-17 से लेकर 2018-19 के दौरान, इस क्षेत्र में 10% से अधिक की वृद्धि हुई थी और जीवीए में इसका हिस्सा 32.2% से बढ़कर 33.5% तक हो गया था। 

एमएसएमई क्षेत्र को समझने के लिए एक और जरुरी चीज इसकी संरचना को समझना नितांत आवश्यक है। एमएसएमई क्षेत्र के 99% हिस्से पर सूक्ष्म उद्यमों की प्रधानता बनी हुई है, जबकि लघु एवं मझौले उद्यमों की हिस्सेदारी क्रमशः 0.52% और 0.01% मात्र है। यह एमएसएमई क्षेत्र में सूक्ष्म-उद्योगों की उच्च महत्ता को पूरी तरह से इंगित करता है। इसके साथ-साथ सूक्ष्म उद्योगों के द्वारा 95% से अधिक रोजगार भी सृजित किये जाते हैं। यह क्षेत्र सामाजिक-आर्थिक समानता को हासिल करने में भी बेहद अहम भूमिका निभाता है, लेकिन यहाँ पर हम इस बारे में चर्चा नहीं करने जा रहे हैं। उपरोक्त तथ्यों के चलते हमें इस क्षेत्र के लिए कहीं अधिक राजकोषीय प्रोत्साहन प्रदान किये जाने की आवश्यकता है।  

कोविड, एमएसएमई और 2022-23 का बजट 

मार्च 2020 में भारत सरकार द्वारा अचानक से किये गये लॉकडाउन की घोषणा ने समूची आर्थिक गतिविधियों को पूरी तरह से ठप कर दिया, और एमएसएमई क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा जो कोविड के प्रतिकूल पभाव से अछूता रह गया हो। स्थितियां सामान्य हों, इससे पहले ही तीसरी लहर की आशंका के चलते लगाये गये आंशिक प्रतिबंधों के कारण, इस क्षेत्र को एक बार फिर से कड़ी चोट पहुंची है, जिसने इसकी मुश्किलों को और अधिक बढ़ा दिया है। 2020 में, इस क्षेत्र को वेतन के भुगतान, रोजगार के नुकसान, संभाव्य क्षमता में कमी आदि जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। इनमें से कई उद्यम अभी भी 2022 में उसी प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहे हैं, क्योंकि नीति-निर्माताओं द्वारा 2020-21 के पिछले केंद्रीय बजट में अपर्याप्त प्रावधानों पर विचार किया गया था।   

राठौर एवं खन्ना (2021) के अनुसार, एमएसएमई द्वारा संचालित एमएस सर्वेक्षण की उत्पादन क्षमता से पता चला है कि करीब 43% उद्यमों ने कोविड से उत्पन्न संकट से निपटने के लिए अपने बिजनेस मॉडल में बदलाव कर दिया, और 35% उद्यमों ने महामारी में खुद को जिंदा बनाये रखने के लिए बाहरी वित्तीय मदद ली।

डन एंड ब्रेडस्ट्रीट द्वारा संचालित एक अन्य सर्वेक्षण ने खुलासा किया है कि महामारी के दौरान इस क्षेत्र के सामने बाजार तक पहुँच बना पाने की कमी, उत्पादकता में सुधार करने और वित्तीय मदद तक पहुँच बना पाने जैसी तीन महत्वपूर्ण चुनौतियां बनी हुई थीं। सभी सर्वेक्षणों और शोध ने जीवन रक्षक के तौर पर पर्याप्त राजकोषीय प्रोत्साहन की ओर संकेत दिए हैं।

1 जून, 2020 को मंत्रिमंडल समिति ने एमएसएमई के लिए नई परिभाषा को मंजूरी दी थी, और उन्हें परिभाषित करने के लिए निवेश के साथ टर्नओवर का मानदंड भी जोड़ दिया था। अर्थशास्त्रियों और उद्योगपतियों को इस बारे में विश्लेषण करने के लिए दो अलग-अलग समूहों में विभाजित कर दिया गया था, कि कैसे इससे कोविड जनित संकट से एमएसएमई क्षेत्र को लाभ होगा। आइये इंतजार करके देखते हैं कि इसका क्या नतीजा निकलता है। 

एमएसएमई पर कुल आवंटन को पिछले बजट में आवंटित 15,699 करोड़ रूपये से 26.71% बढ़ाकर  21,422 करोड़ रूपये कर दिया गया है। हालाँकि, खादी, ग्राम एवं जूट उद्योग के लिए आवंटन को पिछले वर्ष के संशोधित अनुमानों की तुलना में 2.75% कम कर दिया गया है। मौजूदा बजट में, वित्त मंत्री ने एमएसएमई को पहले से अधिक लचीला, प्रतिस्पर्धी एवं सक्षम बनाने के लिए पांच वर्षों के लिए 6,000 करोड़ रूपये के आवंटन की घोषणा की है। हालाँकि, इसके लिए क्या विवरण हैं, वे नदारद हैं और संभवतः यह आवंटन लक्ष्य हासिल करने के लिए पर्याप्त साबित नहीं होने जा रहा है। वहीँ दूसरी तरफ, प्रौद्योगिकी उन्नयन एवं गुणवत्ता स्पष्टीकरण के लिए बजट आवंटन को पिछले वर्ष के 330 करोड़ रूपये से घटाकर 80.72 करोड़ रूपये कर दिया गया है, जो कि 70% से अधिक की भारी गिरावट को दर्शाता है। ब्याज माली मदद योजना के लिए आवंटन में भी 99% की भारी कमी देखने को मिल रही है, और अब यह घटकर मात्र चार लाख रूपये ही रह गया है।  

एक अन्य कदम जिसे लिया गया है वह है ईसीएलजीएस (आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम) को मार्च 2023 तक विस्तार देने का। यह योजना एमएसएमई को बाजार से ज्यादा कर्ज लेने में मदद करेगी, क्योंकि इसके लिए सरकार के द्वारा बैंकों और एनबीएफसी को गारंटी प्रदान की जाती है। इस योजना के तहत कुल आवंटन पांच लाख करोड़ रूपये का होना है। लेकिन अधिकाँश योजनायें इस क्षेत्र में आपूर्ति पक्ष से सरोकार रखती हैं। हालाँकि, वर्तमान संकट से निपटने के लिए हमें अधिक से अधिक मांग-पक्ष को बढ़ाने वाले नीतिगत कार्यवाइयों को करने की जरूरत है।

निष्कर्ष के तौर पर कहें तो इस क्षेत्र के लिए, खास तौर पर सूक्ष्म उद्योगों के लिए, कोई बड़ा सुधार और नीतियां नहीं बनाई गई हैं, जिनका एमएसएमई क्षेत्र में रोजगार सृजन में सबसे बड़ा हिस्सा है। ऐसे में, एमएसएमई पर ध्यान दिए बिना भारत के पास उच्च सतत विकास को हासिल कर पाना बेहद दूर की कौड़ी नजर आती है।

लेखक सेंट ज़ेवियर कॉलेज (स्वायत्त), अहमदाबाद में अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर हैं। व्यक्त किये गए विचार व्यक्तिगत हैं। 

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

COVID, MSMEs and Union Budget 2022-23

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