Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

पूर्वांचल में भी सड़क पर उतरी माकपा: बजट को बताया जन-विरोधी

''मोदी सरकार चाहती है कि किसान खेती करना बंद कर दें, ताकि समूची ज़मीन कॉर्पोरेट के हाथों में दे दी जाए। किसान ग़ुलाम बनकर उनके यहां काम करें। सरकार ने किसानों और मज़दूरों को उस चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां से सिर्फ़ मौत का रास्ता ही दिख रहा है।''
cpim

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) महंगाई, बेरोजगारी और बजट को जन-विरोधी करार देते हुए मोदी सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरी। कई जगह विरोध प्रदर्शन और जुलूस निकाले गए। गांवों और खेत-खलिहानों में नुक्कड़ सभाएं की गईं और घर-घर पर्चे बांटे गए। माकपा ने 22 फरवरी 2023 को सरकार की दोषपूर्ण नीतियों के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी। 28 फरवरी को देशव्यापी अभियान का आखिरी दिन था। इस दौरान बड़ी तादाद में पार्टी के कार्यकर्ता मैदान में उतरे और हर गांव में मोदी सरकार की जन-विरोधी नीतियों से लोगों को अवगत कराया। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में दुनिया के अमीर कारोबारी गौतम अडानी के भ्रष्टाचार की जेपीसी से जांच कराने की मांग को लेकर वामदलों के साथ विपक्ष ने धरना दिया और सरकार की मनमानी के खिलाफ जमकर नारे लगाए। इसी सवाल को लेकर पांच मार्च को बनारस में जन-सम्मेलन आयोजित किया जाएगा, जिसमें पूर्वांचल के कार्यकर्ता शामिल होंगे।

पूर्वांचल में लंबे समय के बाद माकपा ने अपनी ताकत दिखाई और घर-घर जाकर बड़े पैमाने पर पर्चे बांटे और नुक्कड़ सभाएं की। पर्चे में कहा गया है, ''मोदी सरकार का 2023-24 का बजट ऐसे समय में आया है जब देश की माली हालत जर्जर हो चुकी है। महंगाई की मार से जनता कराह रही है। किसानों, मजदूरों और गरीबों के विकास के लिए आवंटित धन में कटौती कर दी गई है। पहले कृषि का बजट एक लाख 24 हजार करोड़ रुपये का था, जिसे घटाकर एक लाख 15 हजार 531 करोड़ कर दिया गया है। किसान सम्मान निधि में सिर्फ 60 हजार करोड़ रुपये दिए गए, जबकि जरूरत 72 हजार करोड़ रुपये की थी।''

''प्रधानमंत्री फसल बीमा के लिए पिछले साल के बजट में 15 हजार 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, जिसे घटाकर इस बार 13 हजार 625 करोड़ रुपये कर दिया गया। इसी तरह खाद्य सब्सिडी में 50 हजार करोड़ रुपये की भारी कटौती की गई है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में 10 हजार 433 करोड़ के बजट को घटाकर 7 हजार 150 करोड़ कर दिया गया। प्रधानमंत्री सिंचाई योजना में पिछले साल के अनुमान 12 हजार 954 करोड़ के बजट को कम करके 10 हजार 787 रुपये किया गया है। इसी तरह ग्रामीण रोजगार के लिए पिछले साल के अनुमान एक लाख 53 हजार 525 करोड़ रुपये था, उसमें इस साल एक लाख 01 हजार 474 करोड़ रुपये ही आवंटित किए गए। मनरेगा के बजट को 89 हजार करोड़ से घटाकर 60 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया।''

कॉर्पोरेट घरानों में निष्ठा

पूर्वांचल की नुक्कड़ सभाओं में माकपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने कहा, ''बजट में किसानों और मजदूरों को आर्थिक संकट से उबारने के लिए कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है। आम लोगों की अनदेखी करते हुए सरकार ने कॉर्पोरेट घरानों के प्रति अपनी निष्ठा दिखाई है। माकपा ने जनता से अपील की कि लोग जन-विरोधी बजट के खिलाफ सड़कों पर उतरकर सरकार का विरोध करें। मौजूदा बजट से देश की आर्थिक हालत खराब हो रही है। जनता बढ़ती महंगाई से बुरी तरह प्रभावित है। किसानों की माली हालत मजबूत करने और युवाओं को रोजगार देने का काम करना चाहिए। किसान, मजदूर और आम जनता के विकास के लिए बजट में आवंटित धन कटौती कर दी गई। पांच किलो मुफ्त अनाज योजना को बहाल किया जाए और दवा, भोजन व जरूरी चीजों पर जीएसटी वापस ली जाए। मौजूदा समय में संपत्ति और उत्तराधिकार कर लगाकर धन का प्रबंध करने की जरूरत है। वितमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किया गया बजट देश को गिरवी रखने वाला और महंगाई, बेरोजगारी बढ़ाने वाला बजट है। यह आम बजट की जगह कॉर्पोरेट बजट है। इसमें आम लोगों को पूरी तरह से नकार दिया है और मध्यमवर्गीय और गरीबों को छला गया।

पूर्वांचल के वाराणसी, चंदौली, सोनभद्र, मिर्जापुर, भदोही, गाजीपुर, बलिया, देवरिया, मऊ, जौनपुर, सुल्तानपुर और इलाहाबाद में माकपा के नेता हर गांव में गए और पर्चे बांटे व नुक्कड़ सभाएं की। जनविरोधी बजट, महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर पूर्वांचल के सभी जिलों में व्यापक आंदोलन छेड़ा गया। हर घर में पर्चे बांटे गए और नुक्कड़ सभाओं के जरिये जनता को जागरूक किया गया। जनता को बताया गया कि केंद्रीय बजट 2023-24 जन-विरोधी है। यह देश की आज की वास्तविक परिस्थिति के बिलकुल विपरीत है। इससे आम जनता को कोई भी राहत नहीं मिलेगी। विकास दर में जबर्दस्त गिरावट आई है।

सामने आईं दर्दनाक कहानियां

माकपा की ओर से बजट के छेड़ी गई मुहिम के दौरान पूर्वांचल के किसानों की तमाम दर्दनाक कहानियां सामने आईं। खासतौर पर नलकूपों पर मीटर लगाए जाने से पूर्वांचल के किसान बेहाल नजर आए। उनका बिल हर महीने ढाई सौ की जगह तीन-चार हजार आ रहा है। तमाम किसानों के घरों के नलकूपों पर पुलिस-पीएसी लगाकर जबरिया मीटर लगवाए जा रहे हैं। इसके चलते बहुत से किसानों ने खेती-किसानी बंद कर दी है। पूर्वांचल में खेती के अलावा कोई दूसरा उद्यम नहीं है और छुट्टा पशुओं के चलते अब किसानी करना मुहाल हो गया है। लघु और सीमांत किसान दिन में खेतों में काम करते हैं और उनकी रात फसलों की रखवाली करने में बीतती है। लोग सो नहीं पा रहे हैं और बीमार हो रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के गांवों में छुट्टा पशु खेती बर्बाद करते जा रहे हैं और सरकार मौन है। इससे जनता में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। गांवों में युवा महंगाई और बेरोजगारी से परेशान हैं। काम नहीं मिल पा रहा है। खाद और कृषि यंत्रों के दाम बढ़ा दिए गए हैं, जिससे खेती की लागत निकाल पाना मुश्किल हो गया है। बनारस के राजातालाब सब्जी मंडी में बैगन की खेती करने वाले किसान परेशान नजर आए। बैगन उत्पादकों ने बताया कि कुछ दिन पहले तक उन्हें अपना बैगन, मिर्च और टमाटर कौड़ियों के दाम बेचना पड़ा। 65 किलो के बैगन की बोरी की कीमत सौ-सवा सौ रुपये रही। लागत की कौन कहे, ढुलाई का खर्च निकाल पाना कठिन था। माकपा के प्रदेश सचिव डॉ.हीरालाल यादव के नेतृत्व में चलाए गए इस अभियान की अगुवाई नंदलाल पटेल, अनिल कुमार सिंह, लालमणि वर्मा, जगन्नाथ मौर्य, राजनाथ यादव, नंदलाल आर्य, राम जियावन, अब्दुल अजीम, मुवीन अहमद, बाबू राम यादव, अखिल विकल्प, रवि मिश्रा आदि ने की।

किसानों को ग़ुलाम बनाना मक़सद

जन-सरोकारों के लिए दशकों से संघर्षरत माकपा के राज्य सचिव डॉ.हीरालाल यादव ने माकपा के आंदोलन पर चर्चा करते हुए ''न्यूजक्लिक'' से कहा, ''देश में बेरोजगारी की दर जब उच्च स्तर पर हैं तो मनरेगा के लिए बजट में 33 फीसदी की कटौती क्यों की गई और खाद्य सब्सिडी क्यों घटाई गई। पेट्रोलियम पदार्थों की सब्सिडी में भी 6900 करोड़ रुपये की कटौती की गई। महिलाओं, दलितों और जनजातीय समुदाय के लिए बजट में कोई वृद्धि नहीं की गई है। केंद्रीय बजट में राज्य को दिए जाने वाले संसाधनों को घटाया जा रहा है। इससे पूर्वांचल जैसे इलाकों में और अधिक कठिनाई होगी। यूपी के लिए इस बजट में कोई भी विशेष राहत प्रदान नहीं दी गई है। न तो रेल नेटवर्क बढ़ाने के लिए प्रावधान किया गया है और न ही कृषि व बागवानी के क्षेत्र में कोई राहत दी गई है। यह सरकार आम जनता को राहत देने के बजाय सिर्फ पूंजीपतियों और कॉर्पोरेट घरानों का हित साधने में जुटी है। मोदी सरकार चाहती है कि किसान खेती करना बंद कर दे, ताकि समूची जमीन कॉर्पोरेट के हाथों में दे दी जाए। किसान गुलाम बनकर उनके यहां काम करें। सरकार ने किसानों और मजदूरों को उस चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां से सिर्फ मौत का रास्ता ही दिख रहा है। आज देश भीषण आर्थिक मंदी के प्रभाव से पैदा हुई भविष्य की अनिश्चितता से जूझ रहा है।''

''साल 2023-24 के बजट में वर्ष 2022-23 के संशोधित अनुमान से सिर्फ सात फीसदी की बढ़ोतरी की गई है। यदि मुद्रास्फीति की वृद्धि दर पर गौर करें तो स्पष्ट हो जाता है कि सरकारी खर्च में कमी की गई है। इससे आम जनता की रोजी-रोटी पर और संकट बढ़ेगा। मोदी सरकार की दोषपूर्ण नीतियों का कड़ा विरोध नहीं हुआ तो पूर्वांचल की खेती बर्बाद हो जाएगी। खाद, बीज, पानी, उपकरण और कीटनाशक दवाओं के दाम बढ़ाए जा रहे हैं और अनुदान राशि घटाई जा रही है। किसानों को अनाज का लागत मूल्य तक नहीं मिल पा रहा है। सरकार ने हर तरह के अनाज पर एमएसपी देने की बात कही थी, लेकिन वो वादे से मुकर गई। यही हमारे आंदोलन का मूल एजेंडा है।''

माकपा के जिला कमेटी के सचिव नंदलाल पटेल ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, ''वैश्विक मंदी की आशंका से किसानों पर संकट गहराता जा रहा है। ऐसे में बजट में आम जनता के लिए बेरोजगारी, महंगाई और कृषि संकट के समाधान पर बल दिया जाना चाहिए था, जिससे घरेलू मांग को बढ़ाया जा सकता था। बजट में किसानों के मुद्दों को नजरंदाज किया गया है। वित्तीय घाटे को कम करने के लिए एक ओर सरकार बजट घटा रही है, दूसरी ओर अमीरों व कॉर्पोरेट घरानों को टैक्स में और अधिक छूट देती जा रही है, जिसके चलते इससे अमीर और ज्यादा अमीर हो रहे हैं और गरीबों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना मुहाल होता जा रहा है। राज्य सरकारों पर ऋण लेने की शर्तों को और अधिक सख्त किया गया है। सुधार कार्यक्रमों के माध्यम से जनता पर और अधिक सेवाकर व टैक्स का बोझ डालने का प्रावधान किया गया है। जब अर्थव्यवस्था मांग के अभाव और मंदी से जूझ रही हो, तब जरूरत बड़े पैमाने पर नौकरियों के सृजन, मुफ्त खाद्यान्न वितरण और नगद राशि से मदद करने की होती है, ताकि आम जनता बाजार से सामान खरीद सके, मांग बढ़े और अर्थव्यवस्था को गति मिले। लेकिन ऐसे किसी उपाय पर अमल करने के बजाय बजट में आम जनता की रोजमर्रा के उपयोग की चीजों के दाम ही बढ़ाए गए हैं।''

माकपा सचिव पटेल ने यह भी कहा, ''यह केवल एक चुनावी बजट है, जिससे युवाओं को रोजगार की उम्मीद करना व्यर्थ है। प्रदेश के किसान-बागवान सभी फसलों के लिए एमएसपी लागू करने, सेब और विदेशों से आयात किए जाने वाले फलों पर आयात शुल्क सौ फीसदी करने और कृषि व बागवानी के क्षेत्र में उपयोग में आने वाली सभी वस्तुओं पर जीएसटी खत्म करने की मांग लंबे समय से कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने कोई राहत नहीं दी है। जनविरोधी प्रावधानों को बदलने और सरकार पर दबाव बनाने के लिए मुहिम छेड़ी गई है।''

मोदी-अडानी के खिलाफ बिगुल

इससे पहले गौतम अडानी की धोखाधड़ी के मुद्दे पर वामदलों के आह्वान पर बनारस में पहली मर्तबा समूचा विपक्ष लामबंद दिखा। वाराणसी में डॉ.भीमराव अंबेडकर प्रतिमा के नीचे धरना दिया गया और गौतम अडानी के धोखाधड़ी के मामलों की जांच संयुक्त संसदीय समिति से कराने की मांग की गई। वक्ताओं ने कहा, ''हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट के उजागर होने के बाद देश की जनता में तरह-तरह की आशंकाएं पैदा हुई हैं। दुनिया के दूसरे नंबर के अमीर आदमी के कारोबार के बारे में जिस तरह के बड़े घोटाले की रिपोर्ट सामने आई है वह बिना सरकार के सहयोग के संभव नहीं है। गौतम अडानी के शेयरों में बैंक और एलआईसी के करोड़ों रुपये लगे हुए हैं। यह धन आम आदमी का है। फर्जी सेल कंपनियों के माध्यम से अडानी के शेयरों में जो पैसा लगा है वह देश के सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है। एक पूंजीपति के मुनाफे में अपार वृद्धि करने के लिए जनता और देश के साथ धोखाधड़ी बहुत ही चिंता का विषय है। समूचा विपक्ष गौतम अडानी की धोखाधड़ी की जांच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से कराने मांग कर रहा है। लोकतंत्र का तकाजा है कि एक ऐसे बड़े घोटाले जिसकी चर्चा देश की जनता में है और जिसमें जनता के करोड़ों रुपये डूबने की आशंका है, उसकी जांच संयुक्त समिति से कराई जानी चाहिए, ताकि देश की जनता के सामने सच उजागर हो सके।''

आंदोलन में सीपीएम, सीपीआई, सीपीआई (माले) के अलावा कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, लोकतांत्रिक जनता दल की ओर से राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा गया, जिसमें मोदी-अडानी की धोखाधड़ी की जांच जेपीसी से कराने की मांग की गई है। आंदोलन में माकपा के राज्य सचिव डॉ.हीरालाल, सीपीआई के जयशंकर सिंह, कांग्रेस के पूर्व सांसद डॉ.राजेश मिश्र, प्रदेश प्रवक्ता संजीव सिंह, आरजेडी के जिलाध्यक्ष सुरेंद्र यादव, सीपीआई के वरिष्ठ नेता कुंवर सुरेश सिंह, नंदलाल पटेल, प्रह्लाद तिवारी, विनोद कश्यप, अमृत पांडेय, देवेंद्र सिंह, डॉ.जे.पी.तिवारी, शिवनाथ यादव, रामजी सिंह, रूप किशोर सिंह, सरदार बनारसी सिंह, सरदार ईश्वर सिंह, लालमणि वर्मा समेत बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया। वक्ताओं ने कहा कि बनारस में पीएम नरेंद्र मोदी और कारोबारी गौतम अडानी के खिलाफ शुरू हुई मुहिम देश भर में फैलेगी।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest