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कार्टून क्लिक: क़ानून का राज बनाम बुलडोज़र राज

आज हम देख रहे हैं कि किस तरह क़ानून को धता बताते हुए बुलडोज़र राज स्थापित किया जा रहा है। जहां न संविधान का पास है न अदालत का सम्मान।
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हमारे देखते-देखते भारत कितना बदल गया। देश सन् 1947 में आज़ाद हुआ और सन् 1950 में बाक़ायदा संविधान लागू हो गया, लेकिन 2022 आते-आते क़ानून की दुहाई देने वाला राज सत्ता और बहुसंख्यकवाद की तानाशाही में बदलने लगा है। जहां हम संविधान और अदालतों को धता बताते हुए त्वरित न्याय पर खुश होने लगे हैं। जहां हम अपराधियों के मानवाधिकार की बात क्या करें, जहां हमने आरोपी और अपराधी का फ़र्क़ तक ख़त्म कर दिया है। जहां हम फेक एनकाउंटर पर तालियां बजाने लगे हैं। किसी के भी मकान-दुकान पर बुलडोज़र चलने पर ख़ुश होने लगे हैं। आपको मालूम है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित पैनल ने हैदराबाद एनकाउंटर को फेक यानी फ़र्ज़ी करार दिया है। उस समय उनके एनकाउंटर पर खुश होने वाले लोग और सत्ताधीश क्या अब उन लोगों की जान वापस लौटा सकते है, नहीं। प्रयागराज में भी जो घर तोड़ा गया है, कल अगर कोर्ट आदेश दे कि यह ग़लत किया गया है, यह गैरक़ानूनी है, जो कि पहली नज़र में दिखाई भी देता है, तो क्या सरकार उस घर को दोबारा बनवा सकती है। नहीं। सरकार मकान तो दोबारा बनवा सकती है, लेकिन उस घर को वापस नहीं कर सकती जिसमें एक परिवार की यादें बसी होती हैं। उसके पसीने की खुशबू बसी होती है। उसके अपनों की हंसी-खुशी बसी होती है।

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