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मंज़र ऐसा ही ख़ुश नज़र आए...पसमंज़र की आग बुझ जाए: ईद मुबारक!

कार्टूनिस्ट इरफ़ान के साथ हम सब इस ईद पर यही चाहते हैं कि मंज़र ऐसा ही ख़ुश नज़र आए...पसमंज़र की आग बुझ जाए।
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कार्टूनिस्ट इरफ़ान जो कह रहे हैं वही गीतकार-ग़ज़लकार नीरज भी कह रहे थे। दोनों की चाहत एक ही है। आइए पढ़ते हैं इस मुबारक मौके पर नीरज की ग़ज़ल

 

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।

जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।

 

जिसकी ख़ुशबू से महक जाए पड़ोसी का भी घर

फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।

 

आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी

कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए।

 

प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए

हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए।

 

मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा

मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए।

 

जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे

मेरा आँसू तेरी पलकों से उठाया जाए।

 

गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रुबाई है दुखी

ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए।

 

-    गोपाल दास नीरज

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