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सीवर-सेप्टिक टैंको में बढ़ती मौतों का मामला : कब बदलेगी ये सूरत?

हमारे देश में लोग 500-700 रुपये के लिए मौत के कुओं में घुसकर अपनी जान गंवा रहे हैं, ये न केवल अमानवीय है बल्कि मानवता के लिए शर्मसार करने वाली बात है।
sewer death

हाल ही में फरीदाबाद के सेक्टर 16 में क्यूआरजी अस्पताल में सीवर की सफाई के दौरान चार सफाई कर्मचारियों की मौत हो गई। बिना सुरक्षा उपकरणों के दो सफाईकर्मियों को पहले सीवर की सफाई को उतारा गया फिर अन्दर जहरीली गैस से उनकी हालात बिगड़ने लगी तो दो और सफाईकर्मी उन्हें बचाने के लिए उतरे वो भी गैस की चपेट में आ गए और इस तरह चार लोगों की मौत हो गई। इसी क्रम में दो और लोग बेहोश हो गए जिसमे एक की हालात नाजुक बनी हुई है। मरने वालों के नाम रवि (25), रोहित(26), विशाल(23) और रवि गुलदार(25) हैं। नवभारत टाइम्स की एक खबर के अनुसार पुलिस में शिकायत दर्ज कराने वाले विशाल के भाई गौरव ने भी आरोप लगया कि सफाई कर्मियों को टैंक के अन्दर जाने के लिए सीढी तक नहीं दी गई। वे एक रस्सी के सहारे सीवर टैंक के अन्दर गए...ये सब क्या इसलिए कि हम वाल्मीकि समुदाय से हैं, अधिकारियों को लगता है कि हम गन्दा काम करने के लिए ही हैं। विशाल के चचेरे भाई पवन ने कहा –‘क्या गरीबों का जीवन इसलिए है कि उन्हें ऐसी मौत मिले?’

पुलिस ने कहा कि अस्पताल और सफाई एजेंसी के खिलाफ वर्कर्स के भाईयों में से एक ने आईपीसी की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या), मैन्युअल स्केवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम 2013 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति(अत्याचार की रोकथाम) अधिनियम 1989 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। पर हमारी क़ानून व्यवस्था इतनी लचर है कि दोषियों को सज़ा नहीं मिलती जबकि कानूनों में सजा का प्रावधान है।

इससे पहले भी फरीदाबाद में ही 2 फरवरी 2022 में सेक्टर 14 हुड्डा बाजार में बलदीर(45) और प्रदीप (50) दो सफाई कर्मियों की मौत हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 10 लाख का मुआवजा भी उनके आश्रितों को अभी तक नहीं मिला है।

पिछले 9 सितम्बर 2022 को दिल्ली के मुंडका बक्करवाला में सीवर की सफाई के दौरान रोहित चांडिल्य(32) और अशोक (30) की जहरीली गैस से दम घुटने से मौत हो गई थी।

18 सितम्बर 2022 को कानपुर के मालवीय नगर में सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 3 मजदूरों की मौत हो गयी थी। इस तरह की मौतों का क्रम लगातार जारी है।

रोहित और रवि की मां पीले दुपट्टे में

आखिर क्यों नहीं रुक रहा है सीवर-सेप्टिक टैंको में सफाई कर्मियों की मौतों का सिलसिला?

इसमें सबसे बड़ा कारण तो केंद्र और राज्य सरकारों की सफाई कर्मचारी समुदाय के प्रति उदासीनता है। सरकार ने मैला प्रथा के विरुद्ध (जिसमे सीवर-सेप्टिक टैंक सफाई भी आती है) रस्म-अदाई के तौर पर क़ानून तो दो-दो बना दिए हैं। पर उनका सख्ती से पालन नहीं किया जाता। कानून तो यह भी है कि किसी भी सफाई कर्मचारी को सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए अन्दर उतारना अपराध है। इमरजेंसी में भी बिना सुरक्षा उपकरणों के सफाई कर्मी को सीवर या सेप्टिक टैंक में उतारना दंडनीय अपराध है। पर कानून को ताक पर रख कर सफाईकर्मी को बिना सुरक्षा उपकरणों के इन मौत के कुओं में ढकेल दिया जाता है।

पुलिस और प्रशासन की लापरवाही के कारण दोषियों को जेल की सज़ा नहीं मिलती। अधिकांश सफाई कर्मचारी दलित समुदाय से होते हैं जातिवादी मानसिकता के कारण उन्हें महत्व नहीं दिया जाता, तुच्छ प्राणी समझा जाता है या इनका तो जन्म ही सफाई के लिए हुआ है ऐसा मानकर उनकी उपेक्षा की जाती है।

नहीं किया जाता क़ानूनों का सख़्ती से पालन और प्रचार-प्रसार

यदि सरकारें सीवर-सेप्टिक टैंको में होने वाली मौतों को गंभीरता से लेना शुरू कर दें तो इन मौतों पर लगाम लग जाएगी। जब पैसे का लालच देकर या डरा धमका कर या काम से हटाने का डर दिखा कर सफाई कर्मचारियों को सीवर-सेप्टिक टैंकों में उतारने वाले देश भर में सलाखों के पीछे जाने लगेंगे तो बाकियों में भय व्याप्त होगा और सीवर और सेप्टिक टैंको में होने वाली मौतों का सिलसिला थम जाएगा। दूसरी बात इन कानूनों का अधिक से अधिक प्रचार किया जाए तो लोगों में जागरूकता आएगी। इससे भी ये मौतें नियंत्रित होंगी। कोरोना काल में दिल्ली में जब मास्क न लगाने पर दिल्ली सरकार ने दो हज़ार रूपए जुरमाना किया तो अधिकांश लोग मास्क लगाने लगे थे। भले उन्हें कोरोना का भय हो या न हो पर दो हजार का जुरमाना उन्हें मास्क लगाने को बाध्य करता था। इसके अलावा हमारे यहां जिस तरह कोरोना वैक्सीन का प्रचार-प्रसार किया गया या पोलियो के खिलाफ दो बूंद जिन्दगी की अभियान चलाया गया इससे काफी लोग जागरूक हुए। कुछ इसी तरह का प्रचार-प्रसार सीवर-सेप्टिक टैंको में होने वाली मौतों का किया जाए। इससे लोग जागरूक होंगे और इन मौतों पर अंकुश लगेगा।

सीवर-सेप्टिक टैंको की सफ़ाई का मशीनीकरण अनिवार्य हो

यह तो हम सब जानते हैं कि सीवर-सेप्टिक टैंको में मीथेन, कार्बनमोनोऑक्साइड जैसी कई जहरीली गैसें होती हैं। ऐसे में इनकी सफाई के लिए किसी इन्सान को उतारना उसे मौत के मुंह में भेजना है। वैसे भी आज जमाना इक्कीसवीं सदी का है। तकनीक का है। हम तकनीक की मदद से चाँद और मंगल ग्रह तक पहुँच रहे हैं। ऐसे में सरकारों की नीयत साफ़ हो, इरादे मजबूत हों तो सीवर-सेप्टिक टैंक की सफाई का मशीनीकरण किया जा सकता है। जिन सफाई कर्मियों को सीवर-सेप्टिक में उतारते हैं उन्हें ही इन मशीनों को ओपरेट करने का प्रशिक्षण देकर उनसे मशीनों से सफाई करवाई जा सकती है।

सरकारें सफ़ाई कर्मचारियों के पुनर्वास स्कीमों  को युद्धस्तर पर लागू करें

मैन्युअल स्केवेंजर्स के रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम-2013 (M.S.Act 2013) के अंतर्गत सफाई कर्मचरियों के गैर सफाई पेशे में पुनर्वास का भी प्रावधान है। उसके लिए सरकार की कई योजनाएं हैं। इसमें पहली प्रक्रिया तो ये है कि सरकारें  सफाई कर्मचारियों का सर्वे के माध्यम से चिन्हीकरण करें । फिर दिए गए प्रावधान के अनुसार उन्हें चालीस हजार रुपये की एकमुश्त राहत राशि प्रदान करें। फिर उनकी इच्छानुसार रोजगार या व्यवसाय चुनने के लिए उन्हें दर पर रियायत ऋण प्रदान करें। इस तरह सफाई कर्मचारी गरिमापूर्ण ढंग से अपना जीवन यापन कर सकते हैं।

इतना ही नहीं, उनकी आने वाले पीढी इस सफाई पेशे को न अपनाए इसके लिए उनके युवा बच्चों को उनकी पसंद के करियर में प्रशिक्षण प्रदान करने का भी प्रावधान कानून में है। इसके लिए उन्हें प्रशिक्षण के दौरान Stipend भी देय होता है।

सफाई कर्मचारियों के लिए सरकार की एक स्वरोजगार योजना (SRMS Scheme) है। इसके लिए सरकार उन्हें अधिकतम 15 लाख रुपये तक ऋण प्रदान करती है। ऐसी योजनाओं का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार किया जाए।

सफाई कर्मचारी स्वयं सहायता समूह बनाकर और उन्हें नियमित रूप से चला कर बैंक में खाता खोल कर अपना कोई रोजगार कर पैसा कमा कर अपनी आजीविका चला सकते हैं। पशुपालन के लिए भी सरकारी योजनाओं के तहत ऋण ले सकते हैं। अपना ऑटो-रिक्शा, ई-रिक्शा खरीदने के लिए या फिर कोई दुकान खोलने के लिए भी ऋण लिया जा सकता है।

लेकिन हकीकत ये है कि सफाई कर्मचारी इस तरह की सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते जबकि ये योजनाएं उन्हीं के लिए बनी हैं। कारण है उनको इन योजनाओं की जानकारी न होना।

ये सूरत बदलनी चाहिए!

हमारे देश में लोग 500-700 रुपये के लिए मौत के कुओं में घुसकर अपनी जान गंवा रहे हैं, ये न केवल अमानवीय है बल्कि मानवता के लिए शर्मसार करने वाली बात है। अपनी प्रगति की डींगे हांकने वाले भारत के लिए शर्म की बात है।

सफाई कर्मचारी आंदोलन तो इन सरकारों से उनकी व्यवस्थाओं से यही कहता है कि बस्स!  बहुत हो चुका। अब हमें मारना बंद करो। Stop Killing Us. छूआछूत बंद करो। जाति-भेद बंद करो। मैला प्रथा बंद करो। अब इसकी पीढ़ा असहनीय होती जा रही है। मरहूम मशहूर शायर दुष्यंत कुमार हमारी पीड़ा को सही शब्द देते हैं जब वे कहते हैं :

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, 
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

कोई हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, 
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

लेखक सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं।

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