जंतर-मंतर से उठी आवाज़: सीवर-सेप्टिक टैंकों में हमें मारना बंद करो

सफाई कार्य (Sanitation Work) एक बुनियादी कार्य है। अगर देश भर में एक हफ्ते के लिए भी सफाई कार्य बंद कर दिए जाएं तो नागरिकों का जीना मुहाल हो जाए। लेकिन जो लोग इस कार्य को करते हैं उनके प्रति सरकार की घोर उदासीनता हैरान करती है। सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए सफाई कर्मचारियों को बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के उतार दिया जाता है। परिणाम यह होता है कि सेप्टिक टैंक और सीवर की जहरीली गैस से दम घुट कर सफाई कर्मचारियों की मौत हो जाती है। बदले में सरकार मौत का मुआवजा देने की बात कह कर खानापूर्ति करती है।
सफाई कर्मचारी आंदोलन के नेता बेजवाड़ा विल्सन कहते हैं कि क्या हम सफाई कर्मचारियों की जान बेचने या खरीदने की चीज है। दो-दो कानून बन जाने के बावजूद देश में मैला प्रथा आज भी जारी है। आज भी हमारे लोग सीवर-सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान मर रहे हैं। अमानवीयता और मौतों के लिए जिम्मेदार सरकार को शर्म मगर नहीं आती। मैला प्रथा जारी रहने और सीवर में मौतों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सफाई कर्मचारियों से और देशवासियों से माफी मांगनी चाहिए।
यह सब बातें 25 मार्च को दिल्ली के जंतर-मंतर पर सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA) के राष्ट्रीय अभियान “STOP KILLING US–हमें मारना बंद करो” के तहत धरना-प्रदर्शन के दौरान उठीं।
वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह सरकारी सिस्टम की बेरूखी पर सवाल उठाती हुई कहती हैं कि जब किसी सफाई कर्मचारी की सीवर या सेप्टिक टैंक में मौत होती है तो क्या कोई पीडि़त परिवार से मिलने कोई पाषर्द या विधायक या सांसद आता है? कोई नहीं आता। क्योंकि सफाई कर्मचारियों की मौतें उनके लिए कोई मायने नहीं रखतीं। मैलाप्रथा में लगी महिलाएं और सीवर-सिप्टिक टैंक में मरने वाले पुरुषों की विधवाएं क्या भारत की बेटियां नहीं हैं? प्रधानमत्री को अंतरिक्ष में रह कर आईं सुनीता विलियम्स तो भारत की बेटी नजर आती हैं पर ये सफाई कर्मचारी महिलाएं क्यों नहीं? दूसरी बात तुम्हारे पास चांद पर जाने के लिए वैज्ञानिक तकनीक है पर सीवर की सफाई के लिए मशीनें क्यों नहीं? सवाल सरकार की जातिवादी मानसिकता का है।
इस अवसर पर सफाई कमचारी आंदोलन के कार्यकर्ताओ ने कहा - हम सफाई कर्मचारी आंदोलन के कार्यकर्ता भारत में हाथ से मैला ढोने की प्रथा के जारी रहने से बहुत दुखी और व्यथित हैं। हम देश भर से हाथ से मैला ढोने के भेदभाव और अस्पृश्यता के चक्र में फंसे सफाई कर्मचारियों की स्थिति के प्रति सरकार पूरी तरह असंवेदनशील है। हम इसके विरोध में अपनी आवाज उठाने के लिए इकट्ठा हुए हैं। सरकार ने सफाई कर्मचारियों की अनदेखी की है और जाति और अस्पृश्यता की ताकतों के खिलाफ हमारे संघर्ष को नजरअंदाज कर दिया है।
भले ही देश में बुनियादी ढांचे, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की इतनी तेजी से प्रगति हो रही है, फिर भी कई राज्यों में अभी भी शुष्क शौचालयों का उपयोग हो रहा हैं और शुष्क शौचालयों की सफाई के लिए सफाई कर्मचारी महिलाओं को लगाया जा रहा हैं।
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड और जम्मू-कश्मीर के 36 जिलों में शुष्क शौचालय हैं। पिछले पांच सालों में ही सीवर और सेप्टिक टैंकों में 419 सफाई कर्मचारियों की मौत हो चुकी है।
भारत सरकार ने सफाई के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने और सीवरेज के काम को मशीनीकृत करने के लिए हजारों करोड़ रुपये खर्च करने का दावा किया है। भारत सरकार ने ग्रामीण और शहरी इलाकों में देशभर में 11 करोड़ से ज़्यादा शौचालय बनाने के लिए 55000 करोड़ रुपये से ज़्यादा खर्च करने का दावा किया है।
फिर आज भी शुष्क शौचालय क्यों हैं और हमारे सफाई कर्मचारियों को खुले नालों, रेलवे ट्रैक, खुले में शौच और अस्वच्छ शौचालयों की सफाई के अलावा हाथ से मैला ढोने और शुष्क शौचालयों की सफाई करने के लिए क्यों मजबूर किया जाता है। मैनुअल स्कैवेंजर्स के पुनर्वास के लिए स्व-रोजगार योजना (SRMS) को 2023-24 से 97.41 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ नेशनल एक्शन फॉर मैकेनाइज्ड सैनिटेशन इकोसिस्टम (NAMSTE) में बदल दिया गया है।
2025-26 तक अगले तीन वर्षों के दौरान 350 करोड़ रुपये के बजटीय व्यय के साथ लगभग एक लाख सीवर और सेप्टिक टैंक श्रमिकों को लाभान्वित करने के लिए लगभग 34,800 शहरी स्थानीय निकायों को कवर किया जाना है।
तो फिर आज भी हमारे लोग सीवर और सेप्टिक टैंक में क्यों मारे जा रहे हैं। अभी पिछले हफ्ते ही 16 मार्च 2025 को न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में दिल्ली जल बोर्ड द्वारा तीन लोगों को एक मेनहोल में घुसने के लिए मजबूर किया गया था और एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। अन्य दो व्यक्ति अस्पताल में अपनी जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री और भारत सरकार हाथ से मैला उठाने की प्रथा, शुष्क शौचालयों की व्यापकता और सीवरेज मौतों की निरंतर जारी प्रथा को नकारते रहे हैं। मंत्री महोदय संसद में बार-बार रिपोर्ट देते हैं कि देश में हाथ से मैला उठाने की प्रथा नहीं है। यह पूरी तरह से शर्मनाक है और सफाई कर्मचारी समुदाय के खिलाफ हिंसा है।
सरकार बार-बार और जानबूझकर सीवरेज कर्मचारियों की मौतों के आंकड़ों में हेराफेरी कर रही है। सरकार ऐसे झूठे और भ्रामक बयान क्यों दे रही है? अगर हमारी रक्षा करने के लिए जिम्मेदार सरकार केवल इन जातिगत अत्याचारों के अपराधियों की रक्षा करने में रुचि रखती है, तो हम हाथ से मैला उठाने और सीवर और सेप्टिक टैंकों में मौतों के इस अत्याचार को कैसे रोकेंगे?
देश के कई राज्यों से आई वे विधवाएं और उनके बच्चे भी जंतर-मंतर पर आए जिनके पति और पिता सीवर सफाई के दौरान मारे गए थे। विधवाओं का कहना था कि क्या सरकार उनके पति वापस कर सकती है?
कई राज्यों से जुटे सफाई कार्य से जुड़े लोगों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं और सफाई कर्मचारियों ने कहा कि जब तक उन्हें इंसाफ नहीं मिल जाता तब तक वे अपनी आवाज उठाते रहेंगें। उनका कहना था कि जब तक मैलाप्रथा का पूरी तरह खात्मा नहीं होता, सीवर में मौतें बंद नहीं होतीं और हमें गरिमा के साथ जीने का अधिकार नहीं मिलता तब तक हमारी लड़ाई जारी रहेगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं।)
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