सीवर-सेप्टिक टैंक में मौत: सरकार के आंकड़ों पर SKA को आपत्ति, कहा- स्थिति कहीं ज़्यादा भयावह

नई दिल्ली। सफाई कर्मचारी आंदोलन ने संसद में केंद्र सरकार द्वारा सीवर-सेप्टिक टैंक में हुई मौतों के बारे में दिये गये आंकड़ों पर सख्त आपत्ति जताते हुए कहा है कि ये सही संख्या नहीं है। सिर्फ 2023 में जनवरी से जुलाई तक 58 भारतीय नागरिकों की सीवर-सेप्टिक टैंक में मौतें हो चुकी हैं, जबकि सदन में बताया गया कि इस साल सिर्फ नौ लोग मारे गये।
सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार इन मौतों का ब्यौरा सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA) के पास है, जिन्हें उसने सार्वजनिक रूप से साझा किया। मंत्री ने सदन में पिछले पांच सालों में सीवर में मौतों का जो आंकड़ा पेश किया, वह बहुत कम है, तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है।
दुर्भाग्यपूर्ण है सरकार का फिर से सीवर-सेप्टिक टैंक मौतों पर झूठ बोलना | जब देश में गटर में मर रहे नागरिक, तब कैसे सरकार कह रही कि देश में मैला प्रथा खत्म हो गई | संसद में सरकार के जवाब पर सफाई कर्मचारी आंदोलन का बयान #जयभीम #StopKillingUs #SKAstatement #DalitLivesMatter pic.twitter.com/rGtOlTfC4q
— Bezwada Wilson (@BezwadaWilson) July 26, 2023
SKA का साफ-साफ मानना है कि संसद में केंद्रीय राज्य मंत्री रामदास अठावले ने सीवर-सेप्टिक टैंक में हुई मौतों के बारे में जो आंकड़े दिये, वे इस गंभीर-जानलेवा समस्या पर सरकार की अनदेखी को दर्शाते हैं। गौरतलब है कि सरकार ने संसद में 25 जुलाई 2023 को बताया कि पिछले पांच सालों में 339 लोग सीवर-सेप्टिक टैंक की सफाई करते हुए मारे गये। जबकि हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। आंदोलन के मुताबिक पिछले पांच सालों की मौतों का आंकड़ों गलत है, बहुत कम संख्या है, जमीनी हकीकत भयावह है।
साथ ही साथ मंत्री का यह कहना भी तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है कि देश में कोई भी इंसान मैला ढोने की कुप्रथा में नहीं लगा हुआ है। यह भ्रामक है औऱ दर्शाता है कि सरकार इस वंचित और हाशिये पर खड़े लोगों की मौतों के प्रति कितनी असंवेदनशील है। सफाई कर्मचारी आंदोलन का कहना है कि देश को मैला प्रथा से मुक्त तब तक घोषित नहीं किया जा सकता, जब तक देश के इतने अधिक नागरिक सीवर-सेप्टिक टैंक में मारे जा रहे हैं। यह जातिवादी कुप्रथा देश भर में चल रही है और 2013 के नए कानून (Prohibition of Employment as Manual Scavengers and their Rehablitation 2013) की परिभाषा के अनुसार इसका खात्मा नहीं हुआ है। इसीलिए सफाई कर्मचारी आंदोलन मैला ढोने वालों का नये सर्वेक्षण कराने की मांग करता है, ताकि इसका उन्मूलन किया जा सके।
SKA की मांग है कि केंद्र सरकार सीवर-सेप्टिक टैंक में हो रही मौतों के बारे में सही तथ्य देश के सामने रखे। साथ ही यह भी बताए कि इन मौतों को रोकने के लिए अभी तक उसने क्या ठोस कदम उठाए।
सुप्रीम कोर्ट के मार्च 2014 के आदेश के मुताबिक सीवर-सेप्टिक टैंक में मरने वाले लोगों के परिजनों को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाना है। विडंबना है कि अब तक मारे गये 1315 लोगों में से केवल 266 लोगों के परिजनों को ही यह मुआवजा मिला है। यानी 80 फीसदी मारे गये लोगों के परिजनों को अभी तक देश की सर्वोच्च अदालत के अनुसार भी मुआवजे से वंचित रखा गया है।
आंदोलन के अनुसार “हम सरकार को बताना चाहते हैं कि सीवर-सेप्टिक टैंक में हो रही इन हत्याओं को रोकने के लिए हम 11 मई 2022 से एक राष्ट्रव्यापी अभियान चला रहे हैं #StopKillingUs #हमें मारना बंद करो। हम रोजाना सड़क पर उतरकर प्रदर्शन करते हैं।
#जयभीम | संसद के हंगामों के बीच, नीतियां बनाने वालों को सबसे पिछड़े व कमजोर तबकों के मुद्दों पर सोचने व बहस करने से बचने का भी मानो मौका मिल जाता है | सीवर-सेप्टिक टैंकों में हमारी हत्याओं के ख़िलाफ़ #Action2023 अभियान Lucknow में | #StopKillingUs #DalitLivesMatter pic.twitter.com/3Snq9Y0A1G
— Bezwada Wilson (@BezwadaWilson) July 25, 2023
25 जुलाई, 2023 को जिस दिन सरकार ने भ्रामक आंकड़े पेश किए उस दिन इस अभियान को 441 दिन हो गए थे। सरकार इन हत्याओं को बंद करने, देश को मैला प्रथा से पूरी तरह से मुक्त करने के बजाय, सिर्फ आंकड़ों को कम दिखाने की जुमलागिरी कर रही है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
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