केंद्र को नोटबंदी का फ़ैसला क़ानून के जरिए लेना चाहिए था: न्यायमूर्ति नागरत्ना
उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश बी. वी. नागरत्ना ने कहा कि 500 और 1000 रुपये की श्रृंखला वाले नोटों को बंद करने का फ़ैसला गजट अधिसूचना के बजाए क़ानून के जरिए लिया जाना चाहिए था क्योंकि इतने महत्वपूर्ण मामले से संसद को अलग नहीं रखा जा सकता।
उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार के 2016 में 500 और 1000 रुपये की श्रृंखला वाले नोटों को बंद करने के फ़ैसले को सोमवार को 4:1 के बहुमत के साथ सही ठहराया, हालांकि न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने सरकार के फ़ैसले पर कई सवाल उठाए हैं।
न्यायमूर्ति एस. ए. नज़ीर की अध्यक्षता वाली इस पीठ में न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना के अलावा न्यायमूर्ति बी. आर. गवई , न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यन भी शामिल हैं।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि केंद्र के कहने पर नोटों की एक पूरी श्रृंखला को बंद करना एक गंभीर मुद्दा है जिसका अर्थव्यवस्था और देश के नागरिकों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि भारतीय रिज़़र्व बैंक (आरबीआई) ने इस मामले में स्वतंत्र रूप से विचार नहीं किया, उससे सिर्फ़ राय मांगी गई जिसे केंद्रीय बैंक की सिफारिश नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि पूरी क़वायद 24 घंटे में कर डाली।
उन्होंने कहा, ‘‘ मेरा मानना है कि केंद्र सरकार के अधिकार व्यापक हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल क़ानून के जरिए होना चाहिए, अधिसूचना जारी करके नहीं। यह ज़रूरी है कि संसद जो देश की जनता का प्रतिनिधित्व करती है वहां इस मामले पर चर्चा हो और वही इसकी मंज़ूरी दे।’’
न्यायाधीश ने कहा कि केंद्र ने इसका प्रस्ताव तैयार किया और उस पर आरबीआई की राय मांगी गई और केंद्रीय बैंक द्वारा दिए ऐसे सुझाव को आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) के तहत सिफ़ारिश’’ नहीं माना जा सकता।
उन्होंने कहा कि संसद को अक्सर देश का प्रतिबिंब माना जाता है।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, ‘‘ यह लोकतंत्र का आधार है। संसद देश के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है और उनकी आवाज़ उठाती है। संसद के बिना लोकतंत्र फल-फूल नहीं सकता। संसद जो कि लोकतंत्र का केंद्र है उसे ऐसे महत्वपूर्ण मामले में अलग नहीं रखा जा सकता।’’
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने अल्पमत फ़ैसले में कहा कि 500 और 1000 की श्रृंखला वाले नोट को बंद करने का फ़ैसला ग़लत और ग़ैरक़ानूनी था।
उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार के 2016 में 500 और 1000 रुपये की श्रृंखला वाले नोटों को बंद करने के फ़ैसले को सोमवार को 4:1 के बहुमत के साथ सही ठहराते हुए कहा कि नोटबंदी का फ़ैसला लेने की प्रक्रिया में कोई ख़ामी नहीं थी।
शीर्ष अदालत केंद्र के नोटबंदी के फ़ैसले को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
उधर कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि यह कहना पूरी तरह से गुमराह करने वाली और ग़लत बात है कि उच्चतम न्यायालय ने नोटबंदी को जायज़ ठहराया है।
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने एक बयान में यह भी कहा कि शीर्ष अदालत ने इस पर फ़ैसला सुनाया है कि क्या रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 26(2) को नोटबंदी की घोषणा से पहले सही ढंग से लागू किया गया या नहीं। उन्होंने आरोप लगाया कि नोटबंदी एक बर्बादी वाला फ़ैसला था जिससे आर्थिक प्रगति थम गई और लाखों नौकरियां चली गई।
जयराम के अनुसार, न्यायालय के निर्णय में यह कहीं भी नहीं कहा गया है कि नोटबंदी के जो उद्देश्य बताए गए थे, वह पूरे हुए या नहीं।
(न्यूज़ एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)
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