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छत्तीसगढ़: अनुकंपा नियुक्ति की मांग कर रहीं विधवा महिलाओं का प्रदर्शन ख़त्म, नौ महीने बाद सरकार से मिला आश्वासन

इस प्रदर्शन में सैकड़ों ऐसी महिलाएं शामिल थीं, जिनके घर के हालात ठीक नहीं हैं। पैसों की तंगी है और परिवार में न तो कमाने वाला कोई है और न ही खाने के पर्याप्त साधन हैं।
Chattisgarh

छत्तीसगढ़ में अनुकंपा नियुक्ति के लिए बीते कई महीनों से आंदोलन कर रहीं पंचायत शिक्षाकर्मियों की विधवाओं का आखिरकार नौ महीने बाद भूपेश बघेल सरकार ने संज्ञान लिया और इन महिलाओं से मुलाकात की। इन महिलाओं ने हाल ही में राज्यपाल विश्व भूषण हरिचंदन से भी मुलाकात की थी। सरकार की ओर से सकारात्मक आश्वासन मिलने के बाद सोमवार, 7 अगस्त को इन दिवंगत शिक्षाकर्मियों की पत्नियों ने अपने लंबे चले आ रहे प्रदर्शन को स्थगित करने का ऐलान कर दिया।

बता दें कि बीते साल 20 अक्तूबर से ये सभी महिलाएं प्रदेश के अलग-अलग जिलों से रायपुर में आंदोलन कर रही थीं। ये सभी पंचायत स्तर के उन शिक्षाकर्मियों की पत्नियां हैं जिनकी हादसे या बीमारी की वजह से मौत हो गई है। इनका कहना है कि घर में कमाने वाले व्यक्ति की मौत के बाद नियमों के मुताबिक परिवार में किसी एक सदस्य को अनुकंपा नियुक्ति मिलती है। सरकार ने इस बात का इन्हें आश्वासन भी दिया था, लेकिन बीते 5 सालों से इन्हें कोई नियुक्ति नहीं, कोई सहायता राशि नहीं मिली। जिसके चलते इनका परिवार आर्थिक दिक्कतों का सामना कर रहा है।

अनुकंपा नियुक्ति शिक्षाकर्मी कल्याण संघ छत्तीसगढ़ के बैनर तले चल रहे इस प्रदर्शन में सैकड़ों ऐसी महिलाएं शामिल थीं, जिनके घर के हालात ठीक नहीं हैं, पैसों की तंगी है और परिवार में न तो कमाने वाला कोई है और न ही खाने के पर्याप्त साधन हैं। इन महिलाओं का साफ तौर पर कहना है कि सरकार इन्हें इनकी योग्यता के अनुसार कोई भी काम दे दे, जिससे ये अपने घर में दो रोटी ला सकें। प्रदर्शन के दौरान इन महिलाओं ने सिर मुंडन से लेकर सीएम हाउस का घेराव और आत्मदाह की कोशिश भी की थी।

मुख्यमंत्री से मुलाकात सफल, मिला आश्वासन

संगठन की उपाध्यक्ष अश्विनी सोनवानी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि मुख्यमंत्री से उनकी मुलाकात सफल रही है और उन्हें इस बार उम्मीद है कि सरकार उनकी मांगों को जरूर मानेगी। हालांकि प्रदेश की 1200 महिलाओं को अनुकंपा नियुक्ति कैसे और किन विभागों में दी जाएगी, अभी इस पर मीटिंग में कोई चर्चा नहीं हुई जिसका इंतजार इन सभी महिलाओं को वर्षों से है।

इससे पहले अश्विनी ने जानकारी दी थी कि राज्य में शिक्षाकर्मियों की विधवाएं अनुकंपा नियुक्ति के लिए संघर्ष बीते पांच साल से कर रही हैं। ज्यादातर महिलाएं 12वीं पास हैं, किसी ने बीएड भी किया है। अब इन्हें टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट, D.ED के बिना अनुकंपा नियुक्ति नहीं दिए जाने का नियम बताया जा रहा है। सरकार इतनी संवेदनहीन हो गई है कि उसे ये नहीं समझ आ रहा कि जिनके पास घर चलाने के लिए भी पैसे नहीं है वो पढ़ाई और डिग्री कहां से हासिल करेंगी।

अनुकंपा नियुक्ति शिक्षाकर्मी कल्याण संघ की मांग थी कि सभी प्रदर्शनकारी महिलाओं को उनकी योग्यता अनुसार नौकरी मिले और यदि फिर भी कोई कमी है, तो सरकार नौकरी देकर उन्हें प्रशिक्षण या डिग्री हासिल के लिए समय दे। क्योंकि सरकार ने खुद पिछले 50 दिनों के प्रदर्शन पर कमेटी बनाकर इन महिलाओं को नियुक्ति का आश्वासन दिया था।

ध्यान रहे कि अनुकंपा नियुक्ति के लिए बीते करीब नौ महीने से ये महिलाएं ठंड, धूप, बारिश और अन्य परेशानियां बर्दास्त कर रही थीं। इनके साथ-साथ इनका परिवार भी कई दिक्कतों का सामना कर रहा था। कई दिवंगत शिक्षाकर्मियों की पत्नियों को सरकार की ओर से अभी तक कोई राहत राशि भी नहीं मिली है, न ही कभी कोई सहायता ही मिल पाई है। ये अकेले सालों से अपने घर-परिवार के साथ संघर्ष कर रही हैं। ये महिलाएं आर्थिक और सामाजिक तौर पर पहले ही बहुत कुछ झेल रही हैं।

कांग्रेस का वादा, क्या अब होगा पूरा?

प्रदर्शन पर बैठी कई महिलाओं ने न्यूज़क्लिक को ये भी बताया था कि बीते चुनाव के वक्त कांग्रेस के बड़े नेताओं ने कहा था कि सरकार बनने के बाद नियमों को शिथिल कर हमें नौकरी दी जाएगी। लेकिन सरकार का अब कार्यकाल पूरा होने को है बावजूद इसके कुछ नहीं दिख रहा है। कई महिलाओं का कहना था कि उनके घर की आर्थिक हालत बहुत बिगड़ चुकी है। बच्चे दाने-दाने के लिए मोहताज़ हो गए हैं, बुजुर्ग बीमारियों से ग्रस्त हैं और वो यहां सब कुछ छोड़कर अपने अधिकारों के लिए लड़ने को मजबूर हैं क्योंकि उनके पास कोई और रास्ता नहीं है। अब उनकी लड़ाई आर-पार की है, जिसमें वो जीत कर ही अपने घर जाना चाहती है क्योंकि ये पहले ही बहुत कुछ खोकर और दांव पर लगाकर यहां बैठी हैं।

गौरतलब है कि प्राप्त जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ में साल 2018 से पहले स्कूलों में दो तरह के शिक्षक काम कर रहे थे। पहले स्कूल शिक्षा विभाग में नियुक्त नियमित शिक्षक। दूसरे पंचायत और नगरीय निकायों की ओर से नियुक्त शिक्षाकर्मी। शिक्षाकर्मी नियुक्ति नियमित नहीं थी और ये पैरा शिक्षक का पद था। इनका वेतन भी कम था और इन्हें राज्यकर्मी भी नहीं माना जाता था। 2019-20 में इनको स्कूल शिक्षा विभाग में नियमित कर दिया गया। ऐसे में सरकार की मानें तो शिक्षाकर्मी की मृत्यु के बाद सामान्य सरकारी कर्मचारी की तरह अनुकंपा नियुक्ति का प्रावधान नहीं था। इसलिए सरकार ऐसे मृतकों के परिजनों को नियुक्ति नहीं दे पा रही थी। लेकिन सरकार का इनके लिए हर संभव उपाय तलाश रही है।

कई आश्वासन और कई सवाल

ध्यान रहे कि सरकार के लोक शिक्षण संचालनालय ने साल 2022 के अगस्त महीने में सभी संभागीय संयुक्त संचालकों और जिला शिक्षा अधिकारियों को एक पत्र जारी किया था। जिसमें कहा गया था, आपके जिले में अनुकंपा नियुक्ति के ऐसे प्रकरण जिसमें कर्मचारी की मृत्यु शिक्षाकर्मी के रूप में स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन से पूर्व हो चुकी है, उनकी सूची संचालनालय को उपलब्ध कराएं ताकि अनुकंपा नियुक्ति के मामले में सामान्य प्रशासन विभाग से मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सके।

इस पत्र के साथ कई महीनों से अनुकंपा नियुक्ति की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे सैकड़ों परिवारों को राहत की उम्मीद बंधी थी, लेकिन इसके बाद भी कोई खास कार्रवाई नहीं हुई और ये महिलाएं एक बार फिर धरने पर बैठ गईं थी। अब आगामी चुनावों से पहले सरकार से अपनी समस्याओं का समाधान चाहने वाली ये दिवंगत शिक्षाकर्मियों की पत्नियां मुख्यमंत्री बघेल से मिलकर आश्वस्त तो हैं, लेकिन इस पर सरकार से जल्दी कार्रवाई की उम्मीद करती हैं। 
 

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