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तमिलनाडु जैसे विकसित राज्य में आज भी होते हैं बाल विवाह, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने जताई चिंता

एक आरटीआई से पता चला है कि वर्ष 2019 में तमिलनाडु में बाल विवाह के 2,209 मामले रोक दिए गए थे और 2020 में महामारी के साथ यह आंकड़ा बढ़कर 3,208 हो गया।
Child Marriage

समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट से पता चलता है कि तमिलनाडु में करीब 511 नाबालिग स्कूली छात्राओं की शादी COVID-19 महामारी के पहले वर्ष के दौरान हुई थी। इसमें बताया गया है कि नौवीं कक्षा में 37 और आठवीं कक्षा में दस लड़कियां शादीशुदा थीं।

भारत सरकार प्रारंभिक शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने के लिए राज्य सरकारों के साथ साझेदारी में एसएसए लागू करती है।

तमिलनाडु के समाज कल्याण एवं महिला अधिकारिता विभाग की एक आरटीआई रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2019 में तमिलनाडु में बाल विवाह के 2,209 मामले रोक दिए गए थे और 2020 में महामारी के साथ यह आंकड़ा बढ़कर 3,208 हो गया।

COVID-19 महामारी और लॉकडाउन की शुरुआत के बाद से देश भर में बाल विवाह में वृद्धि हुई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाल विवाह के जोखिम में कमजोर लड़कियों की संख्या में भी वृद्धि हुई है।

बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह शर्म की बात है कि तमिलनाडु जैसे अत्यधिक विकसित राज्य में भी बाल विवाह के इतने मामले देखने को मिल रहे हैं।

यह अभी भी प्रचलित क्यों है?

इस क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं और सरकारी कर्मचारियों का कहना है कि परिवार के सदस्यों द्वारा अपनी बेटियों की शादी कम उम्र में करने को लेकर कई कारणों का हवाला दिया जाता है।

एक बाल अधिकार कार्यकर्ता देवनयन ने न्यूज़क्लिक को बताया, "माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चों की शादी कम उम्र में हो क्योंकि उन्हें डर है कि उनके बच्चे उनकी जाति से बाहर के व्यक्ति के प्यार में पड़ जाएंगे, भाग जाएंगे और परिवार को शर्मसार होना पड़ेगा।"

उन्होंने यह भी कहा, “माता-पिता को डर है कि युवावस्था के बाद अविवाहित रहने पर उनकी बेटियों का यौन शोषण किया जाएगा। साथ ही, दुल्हन जितनी अधिक उम्र की होती है, उसे उतना ही अधिक दहेज देना पड़ता है, इसलिए वे अपनी बेटियों का विवाह शादी की उम्र तक पहुंचने से पहले कर देते हैं।”

उन्होंने कहा, "आदिवासी समुदायों में यौवनावस्था में पहुंचते ही बेटी की शादी करने की परंपरा है।"

विशेष रूप से, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हाल ही में मुस्लिम पर्सनल लॉ के यौवनावस्था और प्रौढ़ता के एक और समान होने को सही ठहराया।

विल्लुपुरम जिले में सामाजिक कार्य विभाग के एक कर्मचारी राजम्मल ने कहा कि बाल विवाह के मामले में, "माता-पिता और करीबी रिश्तेदार आमतौर पर कहते हैं कि उन्होंने शादी के लिए न्यूनतम उम्र की जानकारी के बिना शादी तय कर दी।" इसके आगे वे कहती हैं कि, "वे अन्य कारण भी बताते हैं जैसे 'लड़की की दादी अस्वस्थ है, वह अपनी पोती की शादी देखना चाहती थी।"

कई बाल विवाह हाल ही में विल्लुपुरम में रोक दिए गए थे और कुछ विवाह होने के बाद रिपोर्ट किए गए थे। एक आरटीआई में खुलासा हुआ कि जिले में 2019 में 52 और 2020 में 90 शादियां रोकी गईं।

चाइल्ड राइट्स एंड यू ऑर्गेनाइजेश के राजेश कुमार ने कहा, “अगर हम कम उम्र में होने वाली शादी से पहले हस्तक्षेप करने में सक्षम हैं, तो संबंधित लोगों को समझाना और शादी को रुकवाना संभव है। लेकिन, अगर शादी पहले ही हो चुकी है तो कुछ भी करना आसान नहीं है।”

उन्होंने आगे कहा, "हालांकि बाल विवाह रोकने के ऐसे प्रयास अच्छे हैं, लेकिन वे केवल अल्पकालिक परिणाम देंगे। और अधिक करने की आवश्यकता है।"

'दुल्हन की उम्र बढ़ाना तार्किक नहीं'

दिसंबर 2021 में बीजेपी सरकार ने लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने और इसे पुरुषों की उम्र के बराबर लाने के लिए लोकसभा में एक बिल पेश किया। इस पर टिप्पणी करते हुए कुमार ने कहा, “महिलाओं के लिए विवाह की उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 साल करना एक अच्छा कदम है, लेकिन तार्किक और व्यावहारिक रूप से यह वर्तमान में संभव नहीं है। इससे गुप्त रूप से और अधिक विवाह होगा और दुल्हन की उम्र बदलाव होगा।” कुमार नीलगिरी जिले के कोडाइकनाल के हैं। यह जिला अधिक आदिवासी आबादी वाला है और कम उम्र में विवाह के लिए जाना जाता है।

यह स्वीकार करते हुए कि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाना सैद्धांतिक रूप से अच्छा है लेकिन देवनयन ने इसकी व्यावहारिकता पर सवाल उठाया। उन्होंने पूछा, "लड़कियों को क्या करना है? क्या वे उच्च शिक्षा लेंगी? क्या इन लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार और उत्पीड़न से सुरक्षा की कोई गारंटी है?”

देवनयन ने कहा, “पितृसत्ता पर बातचीत किए बिना केवल उम्र बढ़ाना अर्थहीन है। बाल विवाह एक सांस्कृतिक समस्या है और इस पर चर्चा की जानी चाहिए।" उन्होंने आगे कहा," जब हम बाल यौन शोषण के मामलों में हस्तक्षेप करते हैं तो स्थानीय लोग हमारा स्वागत करते हैं और हमारी कार्यों की प्रशंसा करते हैं लेकिन जब हम बाल विवाह को रोकने के लिए जाते हैं तो वे हमें अपराधी के रूप में देखते हैं और हमें भगा देते हैं।"

कुछ सकारात्मक कदम

तमिलनाडु ने हाल ही में कम उम्र की शादियों को रोकने और लड़कियों को उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कुछ पहल की है। पब्लिक स्कूल के बच्चों की उपस्थिति का डिजिटलीकरण किया गया है और यदि छात्र पांच दिनों से अधिक समय तक नहीं आते हैं तो चेतावनी जारी कर दी जाती है।

देवनयन कहते हैं, “यह शर्म की बात है कि तमिलनाडु जैसा विकसित राज्य में अभी भी बाल विवाह हो रहे हैं। बाल विवाह की खबरें बढ़ी हैं और सरकार इसे स्वीकार कर रही है यह इस मुद्दे को सुलझाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।”

उन्होंने कहा, 'मौजूदा डीएमके सरकार कुछ सकारात्मक कदम उठा रही है। छात्राओं को 1,000 रुपये देने की पहल अच्छी है। यह सोने की थाली से बेहतर है जो दहेज के समान है।”

मार्च 2022 में तमिलनाडु सरकार ने घोषणा की कि वह सरकारी स्कूलों में कक्षा छह से बारहवीं तक पढ़ने वाली सभी छात्राओं को स्नातक या डिप्लोमा पूरा होने तक 1,000 रुपये की प्रति महीने सहायता प्रदान करेगी।

राजम्मल ने कहा, "अगर हमें चाइल्ड हेल्पलाइन के माध्यम से जानकारी मिलती है तो हम जांचते हैं कि क्या यह एक सही रिपोर्ट है और फिर वहां पर जाते हैं। अगर अभी तक शादी नहीं हुई है तो हम उसे रोक देते हैं और एक हफ्ते की काउंसलिंग कराने से पहले लड़की को अपने सेंटर में ले जाते हैं। अगर शादी पहले ही हो चुकी है तो हम परिवार के सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करते हैं।" उन्होंने कहा कि मामला अदालत में पहुंचने में एक साल का समय लगता है।

देवनयन ने कहा, "हमने सती प्रथा को खत्म कर दिया है। इसी तरह हमें कम उम्र में विवाह की संस्कृति को खत्म करना होगा।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें--

‘Child Marriage Shame for Developed State like Tamil Nadu,’ Say Rights Activists

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