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चीन ने संभाली मध्य एशिया की कमान : भाग एक

18-19 मई को शीआन में हुआ चीन-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन, हिरोशिमा में हुई जी-7 शिखर सम्मेलन जितनी ही एक बड़ी भू-राजनीतिक घटना थी।
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पहला चीन-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन चीनी शहर शीआन में हुआ, जिसकी मेजबानी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 18-19 मई, 2023 को की

शीत युद्ध के बाद के रणनीतिक पहलों की सबसे बड़ी खुशी की बात यह है कि भू-राजनीति एक धमाके के साथ वापस लौट आई है। इससे पहले, पूर्व-सोवियत संघ और कम्युनिस्ट चीन इसे नहीं मानते थे, क्योंकि भू-राजनीति उनके मार्क्सवादी-लेनिनवादी लेंस में फिट नहीं होती थी - हालाँकि, मार्क्स यकीनन तौर पर इसके प्रति खुद को ढाल चुके होते। 

चीन-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन, जो 18-19 मई को शीआन में हुआ, वह हर तरह से एक वैसी ही भूराजनीतिक घटना थी, जैसा कि हिरोशिमा में हुई जी-7 शिखर सम्मेलन को माना गया और जो उक्त तारीखों के साथ ओवरलैप थी। प्रतीकवाद गहरा था। चीन और रूस दोनों के लिए शिखर सम्मेलनों में विवादापसद मुद्दे थे लेकिन शीआन शिखर सम्मेलन ने खुद को एक समावेशी सम्मेलन के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि, जी-7 के माले में, जो सबसे बड़ी अफसोस की बात है, वह पश्चिमी दुनिया के धनी देशों का एक विशेष जमावड़ा था जो शीत युद्ध के युग की दुश्मनी से प्रेरित था, और इसने "विशेष आमंत्रित" आसियान देश की मौजूदगी में भी अपने इरादे नहीं छिपाए; जिसमें दो ब्रिक्स देश; एक छोटा अफ्रीकी देश; एक प्रशांत द्वीप आदि - "फूट डालो और राज करो" की पुरानी औपनिवेशिक मानसिकता से पैदा हुआ है।

सबसे बड़ा अंतर यह था कि शीआन शिखर सम्मेलन ठोस था और एक सकारात्मक एजेंडे पर केंद्रित था जो अपने में मात्रात्मक है, जबकि हिरोशिमा शिखर सम्मेलन काफी हद तक निर्देशात्मक और आंशिक रूप से घोषणात्मक और केवल मामूली रूप से मूर्त था। ऐसा इसलिए था क्योंकि चीन-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन देशी धरती पर हुआ था, जबकि जी-7 का एशिया में कोई निवास स्थान और नाम नहीं है, सिवाय इसके कि सात सदस्य देशों में से एक एशियाई मूल का देश था और यह शिखर सम्मेलन अपने आप में किसी विदेशी को सम्मिलित करने का एक सूक्ष्म प्रयास था। यानि यह एशियाई सेटिंग में पश्चिमी एजेंडा था। वास्तव में, विशेष आमंत्रितों के चयन की कसौटी स्वयं एशियाई शताब्दी में पश्चिमी हितों के पांचवें स्तंभ के रूप में संभावित रूप से प्रदर्शन करने के लिए चुने गए कुछ लोगों की साख पर आधारित थी।

चीन-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन इस बढ़ते अहसास से प्रेरित था कि यूरेशियन इलाके के देशों को अमेरिका को वापस धकेलने के सामान्य कार्य में एक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए, वह है जी-7 की की प्रेरक शक्ति, जिसे वे अस्थिर करने का प्रयास करते हुए देखते हैं। मध्य एशिया में रूस और चीन का साझा पड़ोस है। सीधे शब्दों में कहें तो, शीआन शिखर सम्मेलन ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि रूस और चीन एकजुट होकर एक सामान्य उद्देश्य को हासिल करने के लिए एक साथ हैं - एक ऐसा मुहावरा जिसे 19 वीं शताब्दी में अमेरिकियों ने एक रक्षात्मक युद्धाभ्यास का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया था।

एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में ऐसा पहली बार हुआ है कि रूस और चीन स्पष्ट रूप से मध्य एशियाई इलाके में स्थिरता लाने के लिए हाथ मिला रहे हैं – चूंकि यूक्रेन में रूस की चिंताओं को देखते हुए बीजिंग एक नेतृत्व की भूमिका ग्रहण कर रहा है - यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण घटना है।

यह बड़ा बदलाव उस पश्चिमी प्रचार को झुठलाता है जिसमें कहा गया था कि रूसी और चीनी हित, मध्य एशियाई इलाके में टकराते हैं। मास्को और बीजिंग के बीच एक रणनीतिक चुनौती है, जो मध्य-एशियाई इलाके में स्थिरता लाना, दोनों देशों के हित में महत्वपूर्ण है, इसके साथ सुरक्षा सुनिश्चित करना, आर्थिक विकास को बढ़ावा देना, जिसे अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक समर्थन के माध्यम से सबसे अच्छी तरह से हासिल किया जा सकता है।

मास्को में क्रेमलिन द्वारा वित्तपोषित वल्दाई क्लब के एक प्रसिद्ध रूसी थिंक-टैंक के सदस्य, टिमोफेई बोर्डाचेव ने ग्लोबल टाइम्स में शीआन शिखर सम्मेलन की तैयारी में लिखा था: “चीन और रूस मध्य एशिया में समान रुचि रखते हैं, सिर्फ इसलिए कि वे यूरेशिया के इस हिस्से में स्थित अधिकांश देशों के सीधे पड़ोसी हैं। यह उतना ही सरल है जितना कि आप अपने पड़ोसी को चोट पहुंचाने के लिए अपने पड़ोसी के घर में आग नहीं लगाएंगे। लेकिन अगर कोई शक्ति मध्य एशिया में रूस और चीन के आम पड़ोस से हजारों मील दूर स्थित है, तो यह उस क्षेत्र को अस्थिर करने पर दांव लगा सकता है।

“चीन और रूस का साझा काम इसे रोकना है और आज के अशांत समय में मध्य एशिया में अपने दोस्तों और पड़ोसियों को स्थिर और अपेक्षाकृत समृद्ध बनाना है… जो कोई भी यह कहता है कि मध्य एशिया में चीन और रूस के हित एक-दूसरे से टकराते हैं हैं, वे हमारे मित्र नहीं है।” 

समान रूप से, पाँच मध्य एशियाई देशों के बीच "5+1" प्रारूप में एक साथ काम करने पर सहमति है, जिसका अर्थ है कि सभी महत्वपूर्ण निर्णय और पहल एक ही समय में सभी मध्य एशियाई देशों के साथ समन्वित की जाएगी। अपनी ओर से, मध्य एशियाई साझेदार मानते हैं कि यदि वे चीन के साथ अपने सहयोग को मजबूत करते हैं तो उनके क्षेत्र का समग्र आर्थिक विकास बेहतर हो सकता है।

मध्य एशियाई देशों को इस दिशा में आगे बढ़ने और सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करने में रूस ने यहां महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह अपने आप में एक उल्लेखनीय उपलब्धि है क्योंकि पांच "देश" हमेशा एक साथ काम करने में सक्षम नहीं रहे हैं, इसके बजाय वे सबसे बड़े वैश्विक खिलाड़ियों के साथ व्यक्तिगत रूप से जुड़ने का विकल्प चुनते रहे हैं।

शीआन शिखर सम्मेलन के प्रतिभागी, जिसे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस क्षेत्र के साथ अपने देश के संबंधों में "नए युग" नामक घटना की मेजबानी की, मध्य एशिया के सोवियत देशों के प्रमुखों के बीच और चीन के साथ संचार के लिए एक तंत्र बनाने पर सहमत हुए। ।

मध्य एशिया - चीन के प्रारूप में हर दो साल में वैकल्पिक रूप से बैठकें आयोजित की जाएंगी। छह नेताओं की अगली बैठक 2025 में कजाकिस्तान में होनी है।

शिखर सम्मेलन के बाद जारी शीआन घोषणापत्र में 15 बिंदु शामिल हैं, जो मुद्दों के कई खंडों में विभाजित हैं: जिसमें सुरक्षा, रसद, व्यापार और आर्थिक सहयोग, मानवीय सहयोग और पारिस्थितिकी शामिल है।

इस सम्मेलन से जो उभर कर आता है वह यह है कि बीजिंग की दिलचस्पी मुख्य रूप से इस्लामिक स्टेट (जिसे अमेरिका से गुप्त समर्थन प्राप्त करना जारी है) जैसे चरमपंथी समूहों की गतिविधियों की पृष्ठभूमि के खिलाफ सुरक्षा कारणों से है, जो अफगानिस्तान से बाहर काम कर रहे हैं।

चीन की थीसिस है कि सुरक्षा, आर्थिक विकास के माध्यम से सबसे बेहतर ढंग से मजबूत होती है और इस कारण से, यह क्षेत्र आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय विकास के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है - हालांकि कुल मिलाकर, मध्य एशियाई आर्थिक संसाधन कहीं भी चीन की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। 

यह कहना काफी है कि इलाके से निकलने वाले आतंकवादी खतरे, झिंजियांग के लिए खतरा, और चीन की मुख्य चिंता है और बीजिंग क्षेत्र की सुरक्षा में अपने संसाधनों का खुले तौर पर निवेश करने और मध्य एशियाई देशों की आतंकवाद विरोधी ताकतों के प्रशिक्षण में भाग लेने को तैयार है। 

भौगोलिक रूप से, पाँच मध्य एशियाई देशों में से तीन, अर्थात् कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान, चीन के साथ सीमाएँ साझा करते हैं। जहां तक ​​रूस की बात है, उसने लंबे समय से इस इलाके को अपने प्रभाव के पारंपरिक क्षेत्र और रणनीतिक बफर जोन के रूप में रखा है, और इस प्रकार अपनी दक्षिणी सीमा की सुरक्षा को प्राथमिकता दी है। इसलिए, एक सुरक्षित  मध्य एशिया चीन और रूस के संबंधित राष्ट्रीय हितों के साथ मिला हुआ है।

यूक्रेन संकट के संदर्भ में, रूस को रोकने और कमजोर करने की अमेरिकी रणनीति के लिए मध्य एशिया एक अग्रिम पंक्ति के रूप में उभरा है। हालाँकि, मध्य एशियाई देशों ने यूक्रेन की स्थिति पर एक तटस्थ रुख अपनाया है, इस क्षेत्र में रूस का प्रभाव मजबूत बना हुआ है और बड़े पैमाने पर इसके पलटने की संभावना नहीं है।

यहां तीन प्रमुख कारक काम कर रहे हैं। सबसे पहले, रूस को सुरक्षा प्रदाता के रूप में देखा जाता है और रूस की रक्षा क्षमताएं इस क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

दूसरा, मध्य एशियाई देयह लेबर माइग्रेशन, बाजार तक पहुंच, परिवहन और ऊर्जा संसाधनों के संबंध में रूस पर बहुत अधिक निर्भर हैं, और कोई अन्य बाहरी शक्ति इतना काबिल नहीं है।

तीसरा, इस बात को कम न समझें कि रूस के नेतृत्व वाला यूरेशियन आर्थिक संघ व्यवस्थित रूप से क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण का निर्माण कर रहा है।

शीआन की घोषणा, धार्मिक अतिवाद का विरोध करने और बाहरी ताकतों द्वारा क्षेत्र पर अपने स्वयं के नियमों को लागू करने के प्रयासों के बारे में बात करता है। राष्ट्रपति शी ने शिखर सम्मेलन में कहा कि बीजिंग क्षेत्रीय देशों की कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सशस्त्र बलों की क्षमता को मजबूत करने में मदद करने के लिए तैयार है, और "क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने और आतंकवाद से लड़ने के साथ-साथ उनके साथ काम करने के लिए उनके स्वतंत्र प्रयासों का समर्थन करने" का वादा करता है। साइबर सुरक्षा को मजबूत किया जाएगा” इसके अलावा, उन्होंने कहा कि बीजिंग मध्य एशियाई गणराज्यों के सुरक्षा बलों को प्रशिक्षित करने के लिए चीन में एक क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी केंद्र के निर्माण पर काम कर रहा है।

(इस लेख का दूसरा भाग आएगा)

एमके भद्रकुमार एक प्रशिक्षित राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

China Takes Leadership Role in Central Asia – I

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