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लखनऊ में नागरिक प्रदर्शन: रूस युद्ध रोके और नेटो-अमेरिका अपनी दख़लअंदाज़ी बंद करें

युद्ध भले ही हज़ारों मील दूर यूक्रेन-रूस में चल रहा हो लेकिन शांति प्रिय लोग हर जगह इसका विरोध कर रहे हैं। लखनऊ के नागरिकों को भी यूक्रेन में फँसे भारतीय छात्रों के साथ युद्ध में मारे जा रहे लोगों के परिवारों की चिंता है।
Civil demonstration in Lucknow

लखनऊ के नागरिकों ने रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध पर चिंता जताते हुए कहा कि केंद्र सरकार की लापरवाही के कारण हज़ारों “भारतीय छात्र” अभी तक युद्ध-भूमि पर फँसे हुए हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के विरुद्ध राजधानी में एक प्रदर्शन हुआ जिसमें समाज के विभिन वर्गों के लोगों ने भाग लिया और कहा कि दोनों देश अपने मतभेद “कूटनीतिक” ढंग से हल करें।

शहीद स्मारक पर “युद्ध विरोधी सभा” में लखनऊ के शहरियों ने उत्तर अटालांटिक संधि संगठन “नेटो” और अमेरिका की निंदा की और कहा कि यह दोनों “यूक्रेन” को एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके अलावा विरोध सभा में आये लोगों का कहना था कि रूस ने युद्ध प्रारंभ किया है, जिसका कभी समर्थन नहीं किया जा सकता है। 

सभा में लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. रूपरेखा वर्मा ने कहा कि भारतवसियों को नरेंद्र मोदी सरकार से निराशा हुई है,क्यूँकि सरकार ने यूक्रेन में फँसे भारतीयों को वापस लाने में देरी करी है। जिसके कारण अभी भी बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक यूक्रेन में युद्ध के बीच फँसे हुए हैं।

प्रो. रूपरेखा ने कहा कि भारत सरकार अभी तक बहुत कम नागरिकों को यूक्रेन से सुरक्षित निकाल सकी है। जबकि उसकी ज़िम्मेदारी है कि सभी नागरिकों की सुरक्षित भारत वापस लाये। उन्होंने कहा कि समस्या (यूक्रेन-रूस) दोनों के साथ है। लेकिन युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है। बल्कि इस से केवल “इंसानियत” का नुक़सान होता है।

व्यंगकार राजीव ध्यानी का कहना है दो “साम्राज्यवादी” ताक़तों के बीच की लड़ाई में यूक्रेन की जनता मोहरा बन गई है। उन्होंने कहा कि अगर इस युद्ध में नेटो आता है तो तीसरे विश्व युद्ध जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। हालाँकि नेटो द्वारा अभी तक “शान्ति” के लिये भी कोई सार्थक प्रयास नहीं किये गये हैं।

ध्यानी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संयुक्त राष्ट्र की भूमिका भी कमज़ोर होती जा रही है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि संयुक्त राष्ट्र के ढाँचे का पुनःगठन किया जाये। क्यूँकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने  "वीटो पावर" केवल पाँच स्थायी सदस्यों देशों चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम (यूके) और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) को दिया है। जिसका यह ग़लत उपयोग करते हैं।

इस युद्ध के आर्थिक परिणाम पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि अभी यूक्रेन की जनता परेशान हैं, लेकिन युद्ध के बाद रूस के लोग आर्थिक प्रतिबंधों के कारण परेशान होंगे। जिसका असर सारे विश्व पर भी पड़ सकता है।

एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार-पत्र के संपादक रहे दया शंकर कहते हैं इस युद्ध में यूक्रेन केवल नेटो देशों का मोहरा है। लेकिन रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भूमिका भी एक तानाशाही शासक जैसी है। दया शंकर कहते हैं कि जनता कभी युद्ध की समर्थक नहीं होती है। यही कारण है कि स्वयं रूस में भी जंग के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं।

दया शंकर आगे कहते हैं कि भारत की विदेश नीति पर प्रश्नचिह्न लग गया है। क्यूँकि केंद्र सरकार को युद्ध की आहट मिलते ही सभी भारतीयों को वहां से बाहर निकालने को प्राथमिकता देना चाहिए थी। लेकिन सरकार इसमें विफ़ल रही है।

रंगकर्मी दीपक कबीर ने अपने भाषण में कहा की लखनऊ के नागरिक अमन पसंद है और युद्ध विरोधी है। जिनका मानना है कि वह “विश्व नागरिक” हैं और दुनिया के किसी भी देश में युद्ध होता है, तो वह हमारी “पृथ्वी” पर होता है। 

कबीर ने कहा कि युद्ध “साम्राज्यवादी” ताक़तों का एक “उपक्रम” है, जिससे उसका पेट भरता है। हम नहीं चाहते की इसके लिये बेक़सूर लोगों की बलि चढ़ाई जाये। दुनिया के देशों का एक ऐसा मोर्चा स्थापित हो जो सभी तरह के युद्धों पर प्रतिबंध लगाये।

उन्होंने कहा कि संसद में नरेंद्र मोदी सरकार से सवाल किया जाना चाहिये है कि युद्ध शुरू होने के छह दिन बाद भी सरकार अपने नागरिकों को वहाँ से क्यूँ नहीं निकाल सकी है। कबीर के अनुसार युद्ध जैसे गंभीर समस्या की ख़बरों को भी मुख्य धारा का भारतीय मीडिया “सनसनीखेज” बना कर दिखा रहा है। जिस से जिन अभिभावकों के बच्चे अभी यूक्रेन में फँसे हैं, उनमें डर पैदा हो रहा है।

लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र नेता ज्योति बाबू कहते हैं कि युद्ध “मानव-अधिकार” के ख़िलाफ़ होता है और इस से सिर्फ़ आम जनता का नुक़सान होता है। उन्होंने कहा कि “पूँजीवाद” जब संकट में आता है तो वह संकट से बाहर आने के लिए युद्ध का सहारा लेता है। युद्ध से हथियारों का कारोबार को बढ़ावा मिलता है।

विश्वविद्यालय की छात्रा प्राची कहती हैं कि यह दुःखद है कि एक तरफ़ सरकार यूक्रेन से छात्रों को लाने का वादा करती है, और दूसरी तरफ़ उनसे सवाल करती है की आप बाहर पढ़ने क्यूँ गये थे? प्राची कहती हैं कि भारतीय मीडिया युद्ध का “महिमामंडन” कर रहा है। जिससे लगता है कि उनके मन में वहाँ फँसे भारतीय छात्रों के लिये कोई “सहानुभूति” नहीं है।

सामाजिक कार्यकर्ता मधु गर्ग ने कहा की युद्ध में निर्दोष नागरिकों की जानें जाएंगी और फ़ायदा केवल “हथियारों” के व्यापारियों का होगा। उनका कहना है मामला कोई भी हो, हल बातचीत से होना चाहिए है। मधु के अनुसार सभी देश अपने नागरिकों को यूक्रेन से निकाल ले गये और जो “विश्वगुरु” होने के दावा करते हैं उनके नागरिक अभी तक कड़ाके की ठंड में फँसे हुए है।

प्रदर्शन में मौजूद वंदना राय ने दावा किया कि उनके परिचित दो परिवारों के बच्चे यूक्रेन में फँसे हैं। हालाँकि इन बच्चों के अभिभावक अभी मीडिया से बात करने से बच रहे हैं। वंदना के अनुसार वह दोनों परिवारों के सम्पर्क में हैं। अभिभावकों की दो दिन से अपने बच्चों से बात नहीं हुई है। जिस से वह बहुत परेशान हैं। 

अधिवक्ता वीरेंद्र त्रिपाठी का कहना था कि “यूक्रेन-रूस” का युद्ध तुरंत बंद होना चाहिए है, क्यूँकि युद्ध के नतीजे में “मेहनतकाश” लोगों को युद्धविराम के बाद भी लंबे समय तक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। त्रिपाठी के अनुसार जब युद्ध के बादल आये थे, तभी भारतीय को वापस ले आना चाहिए था। लेकिन केंद्र सरकार युद्ध शुरू होने के बाद, जनता का दबाव पड़ने पर हरकत में आई।

लिहाज़ा सरकार की ग़लती के कारण आज भी बड़ी संख्या में भारतीय विशेषकर छात्र यूक्रेन में फँसे हुए हैं। प्रदर्शन में शामिल रफ़त फ़ातिमा ने कहा कि दुनिया के सभी देश “यूक्रेन-रूस” दोनों पर दबाव बनायें कि आपसी झगड़े का समधान बातचीत के ज़रिए निकाला जाये, ताकि बेक़सूर इंसानों के जीवन को बचाया जा सके।

युद्ध भले ही हज़ारों मील दूर यूक्रेन-रूस में चल रहा हो लेकिन शांति प्रिय लोग हर जगह इसका विरोध कर रहे हैं। लखनऊ के नागरिकों को भी यूक्रेन में फँसे भारतीय छात्रों के साथ युद्ध में मारे जा रहे लोगों के परिवारों की चिंता है। लखनऊ वासी चाहते की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही यूक्रेन में फँसे भारतीय को वापस लायें। इसके अलावा भारत सरकार युद्ध विराम के लिये हर सम्भव प्रयास करे।

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