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कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव: खड़गे या थरूर?

लंबे वक्त के बाद ग़ैर-गांधी परिवार का सदस्य कांग्रेस की कमान संभालेगा। वोटिंग के दौरान सोनिया गांधी ने कहा कि नए अध्यक्ष का लंबे वक्त से इंतज़ार था।
congress president
फ़ोटो साभार: पीटीआई

करीब तीस सालों तक गांधी परिवार की धुरी से चिपकी रही कांग्रेस की अध्यक्षता अब छलांग लगाकर ग़ैर-गांधी के हाथों में जाने के लिए तैयार है और ये ग़ैर-गांधी हाथ पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे या शशि थरूर के हो सकते हैं।

पार्टी अध्यक्ष चुनाव के लिए आज यानी 17 अक्टूबर की तारीख़ मुकर्रर की गई थी। जिसके तहत देशभर में बनाए गए कांग्रेस बूथों पर सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक मतदान किए गए। इस कड़ी में मौजूदा कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने अपने मत का प्रयोग किया और कहा कि नए अध्यक्ष का इंतज़ार लंबे वक्त से था।

सोनिया गांधी के अलावा ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में व्यस्त राहुल गांधी ने कर्नाटक के बेल्लारी में अपना वोट डाला। भारत जोड़ो यात्रा में मतदान करने वालों के लिए कंटेनर में बूथ बनाया गया था। जहां राहुल गांधी 47 डेलिग्ट्स के साथ लाइन में लगकर अपने मत का इस्तेमाल किया।

सोनिया और राहुल गांधी के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, प्रियंका गांधी, अशोक गहलोत, पी चिदंबरम, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जैसे वरिष्ठ नेताओं ने भी अपने मतों का इस्तेमाल किया।

जैसा कि सबको मालूम है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद की प्रतियोगिता में मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर है, ऐसे में दोनों ही उम्मीदवारों ने चुनाव शुरु होने से पहले दोनों उम्मीदवारों ने एक-दूसरों को शुभकामनाएं दी।

शशि थरूर ने कहा कि ‘’ कांग्रेस की किस्मत का फैसला कार्यकर्ता करेंगे। कांग्रेस में परिवर्तन का दौर शुरू हो गया है। मैंने खड़गे जी से बात की है और उन्हें शुभकामनाएं दी हैं। परिणाम कुछ भी हो, हम सहयोगी बने रहेंगे।

मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि ‘’ यह हमारे आंतरिक चुनाव का हिस्सा है। हमने एक-दूसरे से जो कुछ भी कहा वह मैत्रीपूर्ण ही है। हमें मिलकर पार्टी बनानी है। थरूर ने मुझे फोन किया और शुभकामनाएं दीं और मैंने भी उन्हें मुबारकबाद दी है।‘’

शशि थरूर का ये बयान उन लोगों के लिए सांकेतिक जवाब भी माना जा सकता है जो कयास लगा रहे थे कि अगर वो अध्यक्ष नहीं बनते हैं तो पार्टी से किनारा कर लेंगे।

फिलहाल आपको बता दें, कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव के लिए 67 पोलिंग स्टेशन और 36 बूथ बनाए गए, जिसमें सबसे ज्यादा 6 बूथ उत्तर प्रदेश में थे। कांग्रेस सेंट्रल इलेक्शन अथॉरिटी की ओर से हर बूथ पर 200 डेलिगेट्स के वोट डालने की व्यवस्था की गई थी, जबकि पूरे देश में अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस के 9300 से ज्यादा डेलिगेट्स ने वोट किया है।

ख़ैर... वैसे तो कांग्रेस अध्यक्ष पद के दोनों उम्मीदवारों की टक्कर में खड़गे का दांव ज्यादा भारी लग रहा है। जिसका इशारा शशि थरूर ने बड़ी दिलेरी के साथ एक ट्वीट कर लगभग दे ही दिया है।

शशि थरूर ने कहा कि ‘’कुछ लड़ाईयां हम इसलिए भी लड़ते हैं कि इतिहास याद रख सके कि वर्तमान मूक न था।‘’

शशि थरूर का ये ट्वीट ऐसे वक्त पर आया जब वोटिंग शुरु हो चुकी थी, ऐसे में शायद उन्होंने भांप लिया हो कि वो चुनाव हार रहे हैं, तो इस ट्वीट के ज़रिए उन्होंने ये जताने की कोशिश हो कि वो सिर्फ बड़े नेता ही नहीं बल्कि वो राजनीतिक शख्स हैं जो हर वक्त हर परिस्थिति से लड़ने के लिए तैयार रहते हैं, और जब कांग्रेस हाईकमान के सामने कोई आवाज़ नहीं उठा सकता था तब उन्होंने पार्टी के सबसे बड़े पद के लिए सबसे पहले दावेदारी की।

इसके अलावा अगर थरूर के इस ट्वीट को कांग्रेस का पक्ष रखकर देखा जाए तो भाजपा जैसी पार्टियों को भी चुनौती हो सकती है, कि जब दूसरी राजनीतिक पार्टियों में बग़ैर कानों-कान ख़बर हुए अध्यक्ष चुन लिया जाता है, ऐसे में कांग्रेस ही वो पार्टी है जहां लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव होते हैं, और उसमें वो नेता भी उम्मीदवार हो सकते हैं जो जी-23 जैसे बाग़ी समूहों का हिस्सा होते हैं।

हम खास तौर पर शशि थरूर के ट्वीट और प्रतिक्रियाओं की चर्चा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि पर्चा भरने के बाद से ही कांग्रेस के अंदर कई पार्टी नेताओं ने आवाज़ उठाई थी। उदाहरण के तौर पार्टी प्रवक्ता गौरव वल्लभ को ही ले लें तो उन्होंने ऑनस्क्रीन शशि थरूर की जमकर आलोचना की थी, और कहा था कि थरूर वो नेता हैं जो उस वक्त सोनिया गांधी को चिट्ठियां लिख रहे थे जब वो अस्पताल में भर्ती थीं।

बल्लभ के अलावा भी कई पार्टी नेताओं ने थरूर की आलोचना की थी, हालांकि इसका कारण साफ तौर पर गांधी परिवार के इर्द-गिर्द नहीं घूमकर थरूर की मुखरता ही है।

वैसे विवाद तब भी हुआ था जब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रोटोकॉल तोड़कर मल्लिकार्जुन खड़के के लिए वोट मांगा था, जिससे ये ज़ाहिर हो गया था कि कहीं न कहीं मल्लिकार्जुन खड़गे पर सीधे से गांधी परिवार का हाथ हैं। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सबसे पहले अशोक गहलोत का नाम सामने आया था, जो लगभग तय हो चुका था, लेकिन गहलोत राजस्थान का मुख्यमंत्री पद भी अपने पास रखने जैसी मांग पर अड़ गए, जिससे बाद मल्लिकार्जुन खड़गे की एंट्री हुई, यहीं से कहा जाने लगा कि पहले गहलोत और अब मल्लिकार्जुन खड़गे को गांधी परिवार ने अध्यक्ष पद के लिए आगे किया है।

आपको बता दे कि कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव अथॉरिटी की गाइडलाइन के मुताबिक कोई भी नेता किसी उम्मीदवार का खुलकर समर्थन नहीं कर सकता।

अध्यक्ष बनने के बाद अगर थरूर और खड़के की प्राथमिकताओं की बात करें तो ज्यादा अनुभवी तो कर्नाटक से आने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे ही हैं। जो 8 बार विधायक और दो बार लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद रह चुके हैं। और सबसे बड़ी बात ये कि मल्लिकार्जुन खड़गे गांधी परिवार के करीबी हैं, यानी अगर वो अध्यक्ष बनते हैं तो अनाधिकारिक तौर पर गांधी परिवार के साथ मिलकर ही काम कर सकते हैं और ऐसे में फिलहाल पार्टी के सबसे लोकप्रिय नेता राहुल गांधी को आगे बढ़ने में ज्यादा मुश्किलें नहीं होंगी।

दूसरी ओर शशि थरूर हैं, जो पार्टी के बागी ग्रुप जी-23 का हिस्सा भी रह चुके हैं, और ग़ैर-गाधी अध्यक्ष बनाने की मांग भी कर चुके हैं। ऐसे में अगर वो अध्यक्ष बनते हैं तो उनका फोकस कांग्रेस को नई पार्टी के रूप में स्थापित करना होगा। शशि थरूर कई बार साफ कर चुके हैं कि अगर वो पार्टी के फैसले लेते हैं तो युवाओं को मौके दिए जाएंगे। और पुरानी माइंडसेट को बदलने की कोशिश की जाएगी।

लेकिन ये सबकुछ तब संभव होगा कि जब थरूर अध्यक्ष बनेंगे, क्योंकि गांधी परिवार से नज़दीकियां नहीं होना भी थरूर के लिए एक ड्रॉबैक हो सकता है।

अगर बात कांग्रेस में इससे पहले अध्यक्ष पद के चुनावों की करें तो आज़ादी के 75 सालों में 40 साल नेहरू-गांधी परिवार से कोई न कोई अध्यक्ष रहा तो 35 साल पार्टी की कमान गांधी-परिवार से बाहर रही। पिछले तीन दशक में सिर्फ दो ही मौके ऐसे आए हैं जब बकायदा चुनाव कराने की ज़रूरत पड़ी हो।

पहला चुनाव 1997 में हुआ था, जब सीताराम केसरी के ख़िलाफ़ शरद पवार और राजेश पायलट ने पर्चा भरा था, इस चुनाव में सीताराम केसरी 6224 वोट पाकर जीत गए थे। वहीं पवार को 882 और राजेश पायलट को 354 वोट मिले थे।

दूसरी बार चुनाव साल 2000 में हुआ था। तब सोनिया गांधी को कांग्रेस के भीतर से दिग्गज नेता जीतेंद्र प्रसाद से चुनौती मिली, हालांकि सोनिया गांधी को 7448 वोट मिले और वो पार्टी अध्यक्ष बनीं। वहीं प्रसाद को कुल 94 वोट मिले।

अब आज़ादी के बाद ये बकायदा तीसरा चुनाव है जब मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर आमने सामने हैं, और 19 अक्टूबर को ये पता चल जाएगा कि कांग्रेस के इतिहास में किसका नाम लिखा जाएगा।

आपको बता दें कि कांग्रेस पर हमेशा से जो परिवारवाद के आरोप लगते रहते हैं इसकी शुरुआत दरअसल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद ही शुरु हुई थी। क्योंकि तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री भी बने और 1985 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी। जब राजीव गांधी की हत्या हुई तब फिर कांग्रेस के सामने अध्यक्ष को लेकर संकट खड़ा हुआ क्योंकि शुरुआत में सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में आने में रुचि नहीं दिखाई थी। 1992 से 96 तक पीवी नरसिम्हाराव ने कांग्रेस का नेतृत्व किया तो 1996 से 98 तक गांधी परिवार के वफादार माने जाने वाले सीताराम केसरी ने।

हालांकि इसके बाद साल 1998 से लेकर 2017 तक करीब 20 साल सोनिया गांधी ही पार्टी की अध्यक्ष रहीं, फिर 2017 में पार्टी की कमान राहुल गांधी को सौंप दी गई लेकिन जब उन्होंने 2019 की हार के बाद इस्तीफा दिया तब फिर से पार्टी की कमान सोनिया गांधी के हाथ में आ गई। यही कारण है कि पार्टी पर हमेशा परिवारवाद का आरोप लगता रहा है, जिसके कारण अब 19 अक्टूबर को ग़ैर-गांधी परिवार का अध्यक्ष चुन लिया जाएगा।

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