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कांग्रेस के आलाकमान ‘’ मल्लिकार्जुन खड़गे’’… चौबीस, चुनौती, चमत्कार?

137 साल पुराना राजनीतिक दल कांग्रेस अब नई राजनीति की ओर निकल पड़ा है, जिसकी ज़िम्मेदारी होगी दक्षिण से आने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे के कंधों पर।
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देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के इतिहास में एक और अध्यक्ष का नाम जुड़ गया है, मल्लिकार्जुन खड़गे। 50 सालों से ज्यादा राजनीतिक अनुभव के साथ अब खड़गे के कंधों पर पार्टी को आगे ले जाने की बड़ी जिम्मेदारी होगी।

मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम में कांग्रेस ‘राष्ट्रीय अध्यक्ष’ शब्द जुड़ते ही ‘कांग्रेस यानी गांधी परिवार’ वाला मिथक भी जनता के बीच खत्म हो जाएगा। कहने का मतलब ये है कि 24 सालों बाद वो वक्त आया है जब कोई ग़ैर-गांधी कांग्रेस पार्टी की कमान संभालेगा।

कांग्रेस पार्टी के वोटरों को शशि थरूर और मल्लिकार्जुन ख़ड़गे में से एक को पार्टी का अध्यक्ष चुनना था, जिसके लिए 17 अक्टूबर को पूरे देश में मतदान किए गए थे,19 अक्टूबर यानी बुधवार के दिन नतीजा आया जिसमें शशि को 6825 वोटों से हार गए। शशि थरूर को कुल 1072 वोट मिले थे, जबकि जीत हासिल करने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे को 7897 वोटों का समर्थन मिला था। इसके अलावा 416 वोट ऐसे रहे जिन्हें गड़बड़ी के चलते अमान्य घोषित कर दिया गया।

मज़े की बात रही कि जिस थरूर के लिए कहा जा रहा था कि वो अगर हार जाते हैं तो बगावती सुर अख़्तियार करेंगे, खड़गे के जीत पर उन्होंने ही सबसे पहले शुभकामनाएं दीं, और अपना साथ देने के लिए भी धन्यवाद किया। इसके बाद ही वे खड़गे से मिलने उनके दिल्ली स्थित आवास पहुंचे।

 

 

अध्यक्ष पद के नतीजे आने से पहले भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त राहुल गांधी ने भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, जिसमें उन्होंने कि चुनाव में जो अनियमितताओं के आरोप लग रहे हैं वो सब कांग्रेस इलेक्शन कमेटी में मधुसूदन मिस्त्री के सामने रख दिए गए हैं, जिसपर वो जल्द ही फैसला सुनाएंगे। वहीं राहुल गांधी ने अब अपने रोल पर भी जवाब दिया और कहा कि वो वही करेंगे जो पार्टी के अध्यक्ष कहेंगे।

ख़ैर... आपको बता दें कि मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष बद तक का सफर तय करने वाले दूसरे दलित नेता हैं, क्योंकि मल्लिकार्जुन खड़गे से पहले बाबू जगजीवन राम भी पार्टी के दलित नेता थे जिन्होंने अध्यक्ष पद की कमान संभाली थी।

अगर चुनाव की बात करें तो कांग्रेस की सेंट्रल इलेक्शन अथॉरिटी ने चुनाव में 36 पोलिंग स्टेशनों पर 67 बूथ बनाए थे। सबसे ज्यादा 6 बूथ उत्तर प्रदेश  में थे। हर 200 डेलिगेट्स के लिए एक बूथ बनाया गया था। भारत जोड़ो यात्रा में शामिल राहुल गांधी समेत 47 डेलिगेट्स ने कर्नाटक के बेल्लारी में वोट डाला था। यहां यात्रा के कैंप पर एक कंटेनर में अलग से बूथ बनाया गया था।

जब काउंटिंग शुरु हुई तो मतपत्रों को आपस में मिक्स कर दिया गया, ताकि यह पता न चल सके कि किस उम्मीदवार को किस राज्य से कितने वोट मिले हैं। इसके बाद वोटों की छंटनी की गई। इस प्रक्रिया के बाद 50-50 मतपत्रों के बंच बनाकर उनकी काउंटिंग की गई। इस दौरान हर बंच की गिनती का रिकॉर्ड रखा गया।

आपको बता दें कि कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए आखिरी बार साल 1998 में वोटिंग हुई थी। तब सोनिया गांधी के सामने जितेंद्र प्रसाद थे। सोनिया गांधी को करीब 7,448 वोट मिले, जबकि जितेंद्र प्रसाद 94 वोटों पर ही सिमट गए। सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद से गांधी परिवार को कभी कोई चुनौती नहीं मिली। इस बार राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने से इनकार करने के बाद पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराने का फैसला लिया गया था।

फिलहाल अब मल्लिकार्जुन खड़गे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं, और अभी तक पार्टी के सभी छोटे-बड़े नेता उन्हें एक सुर में स्वीकार कर रहे हैं। हालांकि चुनावी दौर में भी कांग्रेस की अंतर्कलह देखने को मिलती रही। यानी विजेता के ऐलान से पहले शशि थरूर कैंप की ओर से कई तरह की आपत्तियां जताई गईं और चुनाव की ज़िम्मेदारी संभाल रहे कांग्रेस नेता मधूसूधन मिस्त्री को पत्र लिखकर चुनाव प्रक्रियाओं पर बड़े सवाल उठाए।

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दरअसल थरूर कैंप ने अपने पत्र में आरोप लगाते हुए कहा है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव के दौरान नियमों का पालन नहीं किया गया है। हम ये रेखांकित करना चाहते हैं कि हमारे पास इस बात के कोई सुबूत नहीं हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे को ये जानकारी है कि उनके समर्थक उत्तर प्रदेश में चुनावी धांधली में किस तरह लिप्त रहे। हम ये मानते हैं कि अगर उन्हें इसकी जानकारी होती तो वे ये सब उत्तर प्रदेश में नहीं होने देते, वह उस चुनाव पर धब्बा नहीं लगने देते जो कांग्रेस पार्टी के लिए इतना अहम है।

आपको बता दें कि इस आरोप की जांच फिलहाल मधुसूदन मिस्त्री के हवाले हैं, और वो ही इसपर फैसला करेंगे। लेकिन इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि थरूर को 1000 से ज्यादा वोट मिलना ये दर्शाता है कि एक अब भी है जो कभी भी बाग़ी हो सकता है।

अब अगर शशि थरूर की हार की वजहों पर नज़र डालें, तो उनका जी-23 समूह में शामिल होना, सोनिया के अस्पताल में होने के दौरान उनके द्वारा चिट्ठी लिखा जाना, और गांधी परिवार के ख़िलाफ हमेशा मुखर रहना भी बड़ी वजहें रही हैं।

इसके अलावा जब शशि थरूर ने अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने का फैसला किया था, तब उनसे कहा गया था कि संयुक्त उम्मीदवार उतारा जाना चाहिए, लेकिन थरूर का जवाब था कि वो फैसला कर चुके हैं। जिसके बाद जी-3 ग्रुप के करीबी जो शायद करीब 90 प्रतिशत कांग्रेस है। उसने थरूर के खिलाफ वोट किए।

वहीं दूसरी ओर मल्लिकार्जुन खड़गे का राजनीतिक अनुभव और गांधी परिवार से करीबी उनके लिए फायदेमंद रही। हालांकि जब उन्होंने अशोक गहलोत के पीछे हटने और दिग्विजय सिंह के नामांकन के बाद पर्चा भरा था, तभी तय हो गया था कि अध्यक्ष वो ही होने वाले हैं।

आपको बता दें कि मल्लिकार्जुन खड़गे दक्षिण भारत से आने वाले छठवें नेता हैं जो कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालेंगे। इनसे पहले

पट्टाभि सीतारमैया (1948-1949)

नीलम संजीव रेड्डी (1960-1962)

के. कामराज (1964-1967)

एस निजलिंगप्पा (1968-1969)

पीवी नरसिम्हा राव (1992-1994)

मल्लिकार्जुन खड़गे के बारे में कहा जाता है कि जब 1947 के अगस्त महीने में कर्नाटक के मैसूर में दंगे भड़के, तब वो 5 साल के थे। दंगों के दौरान पूरे वरवट्टी गांव में आग लगा दी गई, जिसमें मल्लिकार्जुन खड़गे की मां ज़िंदा जल गई थीं। इस दौरान मल्लिकार्जुन खड़के के पिता उन्हें बचाकर गांव से दूर ले गए और तीन महीने जंगल में रहे, और मजदूरी कर बेटे का पेट पाला। बच्चे को काम में लगाने के बजाय पढ़ाया, और बाद में मल्लिकार्जुन नाम का वो बच्चा बड़ा होकर पहले वकील बना, फिर यूनियन लीडर, विधायक, अपने प्रदेश कर्नाटक में मंत्री, सांसद, केंद्रीय सरकार में मंत्री।

और अब कभी छुप-छुपकर जंगलों में पढ़ाई करने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे उस 137 साल पुरानी पार्टी के अध्यक्ष बन गए हैं, जिसने देश को जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेता दिए।

कांग्रेस का अध्यक्ष बनना ही खड़के की काबिलियत का उदाहरण है.. भले ही खड़के की ज़िंदगी मुश्किलों भरी रही हो, लेकिन लीडरशिप की क्वालिटी ही उन्हे दूसरों से अलग बनाती है। स्कूल में हेड बॉय थे। कॉलेज गए तो स्टूडेंट लीडर बन गए। गुलबर्गा जिले के पहले दलित बैरिस्टर बने, पहली बार में विधायक बने और 9 बार चुने गए, दो बार सांसद भी रहे, लेकिन तीन बार कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए।

मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा पार्टी की कमान संभालने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि अब संगठन के जो हिस्से कमज़ोर हो गए थे, वो फिर से पार्टी के लिए एकजुट होकर काम पर लग जाएंगे। क्योंकि पिछले दिनों कई बड़े चेहरे जो लंबे वक्त से कांग्रेस में रहे हैं, वो पार्टी छोड़कर चले गए। चाहे वो गुलाम नबी आज़ाद हों या फिर कपिल सिब्बल।

पार्टी छोड़कर अपनी नई सियासत शुरु करने वाले नेताओं पर एक नज़र डालें तो ये भी ऐतिहासिक है.. 

·      आज़ादी के पहले ही वैचारिक मतभेदों का दंश झेल चुकी कांग्रेस का दामन छोड़कर साल 1923 में मोतीलाल नेहरू और सीआर दास ने एक नई पार्टी स्वराज पार्टी का गठन किया था।

·      पार्टी छोड़ने की फहरिस्त में नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी हैं, जिन्होंने अपने दो सहयोगियों सार्दुल सिंह और शील भद्र के साथ कांग्रेस से नाता तोड़कर फॉरवर्ड ब्लॉक नाम से नए राजनीतिक दल का गठन किया था।

·      आज़ादी के महज़ चार साल बाद ही 1951 में उस वक्त के बड़े नेता जेबी कृपलानी ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया था, और ख़ुद की किसान मज़दूर प्रजा पार्टी बना ली थी।

·      1956 में सी राजगोपालाचारी ने भी आंतरिक मतभेदों के चलते पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने बाद में इंडिन नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी बनाई।

·      आगे चलकर शरद पवार और अजीत जोगी ने भी पार्टी को अलविदा कहा, बाद में दोनों ने अपनी-अपनी पार्टी बनाई।

·      अर्जुन सिंह, माधव राज सिंधिया, एनडी तिवारी और तारिक अनवर कांग्रेस छोड़कर चले गए, हालांकि बाद उन्होंने अलग-अलग वक्त में पार्टी में वापसी की।  

फिलहाल अब 2024 में आम चुनाव होने हैं, उससे पहले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव होने हैं। ऐसे में पार्टी के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने पुरानी हार को भुलाकर नई राजनीतिक योजनाओं के साथ संगठन को मज़बूत करना और पार्टी को फिर से देश में विस्तार करना जैसी चुनौतियां होंगी।

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