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कोरोना-काल: जीने की जद्दोजहद में फंसे सर्कस कलाकार, ऑनलाइन खेल दिखाने को तैयार

अब तकनीक के बूते ऑनलाइन माध्यम से सर्कस से जुड़े रोमांचकारी करतबों और जोकर की हास्यपूर्ण हरकतों को अधिक से अधिक दर्शकों को दिखाकर इस विधा में प्राण फूंकने की पहल हुई है। इसी कड़ी में रैम्बो जैसी एक नामी सर्कस कंपनी गत 25 सितंबर को एक घंटे का ऑनलाइन शो आयोजित कर चुकी है।
सर्कस कलाकार
"जी चाहे जब हमको आवाज दो, हम थे यहीं, हम थे जहां।"- लॉकडाउन में ब्रेक के बाद फिर खेल दिखाने को तैयार सर्कस के खिलाड़ी

पुणे: देश भर में शहरों से लेकर कस्बाई इलाकों तक अस्थायी तंबू गाढ़कर तरह-तरह के करतब दिखाने के लिए दर्शकों की प्रतीक्षा करने वाले सर्कस लंबे समय से अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन, कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण रखने के लिए केंद्र सरकार द्वारा पिछले मार्च में लॉकडाउन की घोषणा के बाद यह संकट ज्यादा ही गहरा गया है। हालांकि, ऐसी स्थिति में भी सर्कस ऑनलाइन माध्यम के सहारे किसी तरह अपने आपको बचाने की उम्मीद कर रहा है।

एक दौर था जब सर्कस मनोरंजन का प्रमुख साधन था और लोगों में सर्कस के प्रति गजब का आकर्षण हुआ करता था। लेकिन, घरों के भीतर ही टेलीवजन पर चौबीस घंटे चलने वाले मनोरंजन कार्यक्रमों के कारण धीरे-धीरे सर्कस का यह आकर्षण कम होता गया। इसके बाद इन दिनों मोबाइल और इंटरनेट ने सर्कस को और भी अधिक सीमित कर दिया है।

वहीं, सर्कस में जानवरों के उपयोग पर सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध की वजह से भी मनोरंजन के इस परंपरागत साधन में ठहराव आ गया है और चुनिंदा सर्कसों की ही गतिविधियां कुछ हद तक मुंबई और पुणे जैसे महानगरों तक सिमट कर रह गई हैं। इन्हीं तमाम बाधाओं से गुजरते हुए कभी प्राकृतिक आपदाओं और कभी नोटबंदी के बाद अब कोरोना महामारी तथा उससे बचने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के कारण कई नामी सर्कस कंपनियों में काम करने वाले कलाकारों को जीने के लिए जूझना पड़ रहा है और उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि अपने परिवार की गुजर-बसर के लिए उन्हें कौन-सा करतब दिखाना होगा।

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दूसरी तरफ, ऐसी स्थिति में अब तकनीक के बूते ऑनलाइन माध्यम से सर्कस से जुड़े रोमांचकारी करतबों और जोकर की हास्यपूर्ण हरकतों को अधिक से अधिक दर्शकों को दिखाकर इस विधा में प्राण फूंकने की पहल हुई है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि इससे आर्थिक तंगी की मार झेल रहे सर्कस के कलाकारों को कुछ राहत मिलेगी। इसी कड़ी में रैम्बो जैसी एक नामी सर्कस कंपनी गत 25 सितंबर को एक घंटे का ऑनलाइन शो आयोजित कर चुकी है।

बता दें कि हमारे देश में सर्कस की परंपरा 140 वर्ष पुरानी है। भारत में पहली बार सर्कस 1879 में इटली से शो करने आया था। दर्शकों के लिए सर्कस का मुख्य आकर्षण देशी और विदेशी कलाकारों द्वारा किए जाने वाले जिम्नास्टिक पर आधारित हैरतअंगेज करतब, जोकरों की मौज-मस्ती और कुत्ते-बिल्ली जैसे पालतू जानवरों के विभिन्न खेल हैं।

हालांकि, जैसा कि कहा जा चुका है कि चीता और हाथी जैसे कई जंगली जानवरों पर सरकार के प्रतिबंध के बाद सर्कस का आकर्षण कम हो गया है। दर्शकों द्वारा लंबे समय से सर्कस की अनदेखी करने के कारण सर्कस मालिकों के लिए भी इस पर किया जाने वाला भारी-भरकम खर्च वहन करना मुश्किल हो गया है। यही वजह है कि आज गुने-चुने सर्कस ही चल रहे हैं।

इस क्षेत्र से जुड़े जानकार बताते हैं कि तीन दशक पहले भारत में सर्कस कंपनियों की संख्या सैकड़ों में हुआ करती थी। लेकिन, आज देश में सर्कस कंपनियों की संख्या घटकर 27 हो गई है। वहीं, इस वर्ष कोरोना के कहर ने सर्कस पर छाए संकट को और अधिक बढ़ा दिया है। इस संकट को रैम्बो जैसे देश के बड़े सर्कस के सामने आई चुनौती से समझा जा सकता है।

बता दें कि रैम्बो सर्कस की पूरी टीम पिछले सात महीनों से नवी मुंबई के ऐरोली में डेरा डाले हुए है। जाहिर है कि पिछले सात महीने से कोई प्रदर्शन नहीं होने से इस सर्कस में काम करने वाले करीब सौ कलाकारों की घर-गृहस्थी का बोझ सर्कस कंपनी को ही वहन करना पड़ रहा है। साथ ही, यह सर्कस कंपनी करीब दो दर्जन जानवरों की जिम्मेदारी उठा रही है।

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इस सर्कस में काम करने वाली महिला कलाकार प्रोमिला बताती हैं कि ऐसे हालात में आयोजकों ने ऑनलाइन माध्यम से शो करने का आइडिया दिया है। ऑनलाइन में यह सहूलियत है कि इसमें कुछ स्टंट को शूट करने के बाद दर्शकों को दिखाया जा सकता है, जबकि कुछ स्टंट लाइव दिखाए जा सकते हैं। यह इसलिए भी अच्छा रहेगा कि खेल नहीं होने पर सौ में से चालीस कलाकार अपने गांव चले गए हैं। पर, ऑनलाइन में सर्कस के सारे खेल शूट करके जब चाहे तब दिखाए जा सकते हैं। इस तरह, इसमें कई करतबों की रिकार्डिंग करने के बाद उन्हें बिना लाइव हुए भी दिखाकर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन कराया जा सकता है। इससे कलाकारों को भी थोड़ा आराम मिल सकता है।

हालांकि, प्रोमिला यह भी मानती हैं कि ऑनलाइन ओडिटोरियम में होने वाले शो का विकल्प नहीं हो सकता है। वे कहती हैं कि ओडिटोरियम या तंबू के भीतर होने वाले खेलों से सर्कस के कलाकारों को अधिक संतुष्टि मिलती है और कम आय के बावजूद सर्कस के जांबाज ऐसे जीवंत परिवेश में खेल दिखाना चाहते हैं। वहीं, सर्कस के कई कलाकार ऑनलाइन के माध्यम से होने वाले प्रदर्शन को लेकर यह नहीं जानते हैं कि उन्हें दर्शकों से कैसी प्रतिक्रिया मिलेगी। जबकि, ऑनलाइन से पहले उन्हें दर्शकों से सीधी प्रतिक्रिया मिलती रही है।

इस बारे में एक अन्य सर्कस कलाकार जयकिशन बताते हैं, "इस साल जून में आए चक्रवात के कारण टेंट और कई तकनीकी उपकरणों में पानी भरने से सर्कस कंपनी को भारी नुकसान हुआ था। फिर सर्कस चलाने के लिए सिर्फ मेंटेनेंस (रखरखाव) में हर महीने औसतन दस लाख रुपए खर्च होते हैं। अब यदि ऑनलाइन से सर्कस चल निकला तो उससे होने वाले खेलों से लागत को तो कवर करने में मदद मिलेगी।"

इस बारे में रैम्बो सर्कस में गए दो दशक से जोकर की भूमिका निभा रहे बीजू पुष्पकरण नायर अपना मत जाहिर करते हुए बताते हैं, "महाराष्ट्र में कोरोना कुछ ज्यादा ही है। यह हाल देखकर लगता नहीं है कि अगले एक साल तक सर्कस शुरू हो सकेगा।"

वे कहते हैं कि उन्हें दर्शकों को हंसाने में मजा आता है और यह कठिन चुनौती भी है। लेकिन, उन्हें इस बात का मलाल है कि वे अपने परिवार को नहीं हंसा पा रहे हैं। कारण यह है कि पिछले दो साल से वे अपने परिवार से मिले ही नहीं हैं। इसलिए, बीजू को ऑनलाइन माध्यम आकर्षित कर रहा है। क्योंकि, इस ऑनलाइन सर्कस गेम को केरल में रह रहा उनका परिवार भी देख सकता है। इस कारण भी वे उत्साहित हैं। हालांकि, बीजू भी यह मानते हैं कि लाइव शो की बात खास होती है। क्योंकि, उस दौरान वह बच्चों के साथ घुल-मिल जाते हैं और कई दर्शकों के साथ फोटो खिंचाते हैं। सामान्य दिनों में उन्हें सर्कस प्रबंधन द्वारा हर महीने पच्चीस से तीस हजार रुपए मिलते थे। अब उतना पैसा नहीं मिलता है। वे कहते हैं, "कुछ नहीं मिलने से कुछ मिलना अच्छा है।"

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सर्कस प्रबंधन से जुड़े कुछ व्यक्ति बताते हैं कि कोरोना की अवधि में बीते सात महीनों से प्रदर्शन नहीं होने के कारण आधे से अधिक सर्कस कंपनियों ने अपने कलाकार और कर्मचारियों को भुगतान करना बंद कर दिया है।

बता दें कि नब्बे के दशक में देश भर में लगभग 300 सर्कस थे। लेकिन, अब इसकी संख्या 27 तक पहुंच गई है। इनमें करीब डेढ़ हजार कलाकार और कर्मचारी काम करते हैं। खासकर दक्षिण भारतीय राज्यों के कई सर्कस देश भर में प्रसिद्ध थे। लेकिन, कई मालिकों को अपने सर्कस को बंद करने पड़े। कारण यह है कि वे सर्कस पर खर्च की जाने वाली राशि तक नहीं निकाल पा रहे थे।

रैम्बो सर्कस के मालिक सुजीत दिलीप को सर्कस चलाने के लिए अपना घर बेचना पड़ा है और अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ी है। क्योंकि, सर्कस एक जगह रुककर नहीं किया जा सकता है और इसके लिए जगह-जगह पूरी टीम तथा सामान के साथ घूमना-फिरना पड़ता है। इसलिए, इस किस्म के व्यवसाय के लिए कोई भी बैंक उधार नहीं देता है। इससे व्यवसाय के लिए पूंजी जुटाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसलिए, पिछले दिनों कई सर्कस मालिकों ने केंद्र की मोदी सरकार से वित्तीय सहयोग मुहैया कराने की अपील भी की थी।

लेकिन, इन्हें इस संबंध में अब तक किसी तरह का कोई आश्वासन नहीं मिला है। दूसरी तरफ, कई सर्कसों की माली हालत सुधारने की राह में सबसे बड़ी बाधा है सर्कस मालिकों से लेकर कलाकार और कर्मचारियों का असंगठित होना। ऐसे में सभी सर्कस कंपनियों को आपस में संगठित होने की भी आवश्यकता भी बताई जा रही है।

शिरीष खरे स्वतंत्र पत्रकार हैं। 

(सभी तस्वीरें रैम्बो सर्कस द्वारा उपलब्ध कराई गई हैं।)

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