कोविड-19 : बिहार के 10 करोड़ लोगों के लिए सिर्फ़ 2 जांच केंद्र और 1500 किट
बिहार के मुंगेर ज़िले में हाल ही में कतर का दौरा कर लौटे एक 38 वर्षीय व्यक्ति की मौत ने बिहार के लोगों को झकझोर कर रख दिया है, जिसके परिणामस्वरूप प्रवासी मज़दूरों के ख़िलाफ़ उनके अपनी ही गावों में अफ़वाह फैलाने और लोगों को भड़काने की घटनाएँ सुनने को मिल रही हैं। स्थिति को देखते हुए बिहार सरकार ने फिलहाल इन प्रवासी श्रमिकों को स्थानीय स्कूलों में रहने का आदेश दे दिया है। ज़िला मजिस्ट्रेटों को लिखे अपने पत्र में, प्रमुख सचिव (गृह) आमिर सुभानी ने आदेश दिया कि प्रशासन को सरकारी स्कूलों और पंचायत भवनों में प्रवासी श्रमिकों के ठहरने के लिए आवश्यक व्यवस्था करनी चाहिए।
इस बीच, राज्य के चिकित्सा विशेषज्ञों की राय है कि राज्य जांच किटों की कमी और स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढाँचे की भीतरी कमी के कारण कोरोनोवायरस संक्रमित रोगियों के केसों की सही संख्या बताने में नाकामयाब है। वर्तमान में, बिहार में सिर्फ दो केंद्र हैं, पटना और दरभंगा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, जो कोविड़-19 के संदिग्ध रोगियों की जांच करते हैं। राज्य ने कथित तौर पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वीरोलॉजी से 1500 जांच किट प्राप्त किए हैं। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भागलपुर के अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट को कथित तौर पर अपनी पत्नी का कोविड़-19 की जांच करवाने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ा।
नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक को लिखे पत्र में अस्पताल के जूनियर डॉक्टरों ने कहा कि उनमें कोविड़ -19 के संक्रमण के लक्षण दिखने शुरू हो गए है इसलिए उन्हें 15-दिन के लिए क्वारंटाइन पर भेजा जाना चाहिए। पत्र में लिखा गया है कि, "ओपीडी, आपातकालीन और वार्डों में अस्पताल परिसर में काम करने वाले ज्यादातर जूनियर डॉक्टरों को कोविड़-19 से संक्रमित रोगियों के सामने उजागर कर दिया गया है और हम में से कई डॉक्टरों के गले में खराश, बुखार और खांसी सहित फ्लू के लक्षण दिखने शुरू हो गए हैं। जिसके परिणामस्वरूप हमें 15 दिनों की घर की क्वारंटाईन की सलाह दी गई है।"
एक जूनियर डॉक्टर, जिन्होंने अपना नाम गुप्त रखने को कहा है, ने बताया कि, "हमने अस्पताल में कुछ पॉज़िटिव केस देखे हैं और डॉक्टरों में अब बुखार और खांसी जैसे लक्षण दिख रहे हैं। इसलिए हमने अधीक्षक से हमें घर क्वारंटाईन पर भेजने को कहा है। अस्पताल अधिकारी हमें हमारी सुरक्षा के लिए “दस्ताने, एन95 मास्क और हज़मत सूट जैसे बुनियादी उपकरण उपलाब्ध नहीं करा रहे है। यह बहुत दुखी करने वाली बात है।"
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, राज्य के एक सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्मी डॉ॰ शकील अहमद ने बताया कि इस संकटपूर्ण समय में पारदर्शिता एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनकर उभरा है। उन्होंने कहा, “सरकार एक तरफ़ा काम कर रही है, जहाँ वह सिर्फ वही करने को कह रही है जो वह चाहती है। रोगियों के लिए आरक्षित बेड, वेंटिलेटर या गहन चिकित्सा देखभाल इकाइयों (आईसीयू) की संख्या के बारे में कोई बातचीत नहीं है। डॉक्टर, नर्स और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ अपने लिए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) जैसे मास्क, दस्ताने या बॉडीशूट के बिना इस गहन स्थिति से जूझ रहे हैं।”
उन्होंने कहा, '' हम जो देख रहे हैं, वह कि पूरी विचार प्रक्रिया पटरी से उतर गई है। अनुभव बताता है कि संक्रमित व्यक्ति को आइसोलेशन में रखना चाहिए, उसकी जांच और इलाज़ किया जाना चाहिए जब भी रोगी संक्रमित पाया जाए। केंद्र और राज्य सरकारें सुझाव दे रही हैं कि अलगाव ही एकमात्र समाधान है। लेकिन यहाँ ऐसा नहीं हो रहा है।"
अहमद ने कहा, “जहां तक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की बात है, तो हर कोई जानता है कि यह बड़ी मुश्किलों में है। हम जो सुन रहे हैं वह यह कि सरकार ने अब तक राज्य में केवल 225 जांच ही की हैं। जबकि आरएमआरआई में लगभग 1000 किट मौजूद हैं, डीएमसीएच में केवल 500 किट हैं। समस्या यह है कि इसका सबसे बड़ा खामियाजा मजदूर और गरीब तबके को उठाना पड़ेगा। वर्तमान तंत्र राशन कार्ड धारकों के लिए राहत प्रदान तो करता है। लेकिन झुग्गियों में रहने वाली एक बड़ी आबादी के पास यह राशन कार्ड भी नहीं है।”
जब भी महत्वपूर्ण स्वास्थ्य संकेतकों की बात आती है, तो बिहार प्रदेश देश में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य पाया जाता है, जो राष्ट्रीय औसत से भी कम पर है।
रिपोर्टों से पता चलता है कि राज्य में 1,210 उप-केंद्र, 131 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs), और 389 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHCs) की कमी है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की एक अन्य 2018 की रिपोर्ट में कहा गया है कि परियोजना के पूरे होने में देरी के कारण बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जा सकीं। “75 सीएचसी को पूरा करने में एक महीने से लेकर 33 महीने की देरी हुई है। इसके अलावा, विवाद मुक्त भूमि न मिलने के कारण और कार्य की धीमी गति से 36 महीने की देरी के बाद भी 11 सीएचसी अधूरे रह गए हैं। नतीजतन, 86 सीएचसी के पूरा होने में देरी हुई है, जिसकी वजह से बेहतर स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य को पूरा कर पाना भी नामुमकिन हो गया है।
न्यूज़क्लिक ने कोविड-19 टिप्पणियों के लिए डॉ॰ रागिनी मिश्रा जो राज्य की नोडल अधिकारी हैं, तक पहुंचने की बार-बार कोशिश की, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका।
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
COVID-19: Only 2 Testing Centres, 1500 Test Kits for 10 Crore People of Bihar
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