NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
सरकार देश के संकट को लगभग नज़रअंदाज़ कर रही है!
यहाँ तक कि आज के दिन भी 130 करोड़ की आबादी के बीच कोरोना वायरस के परीक्षण के लिए मात्र 75 रिसर्च और डायग्नोस्टिक प्रयोगशालाएं उपलब्ध हैं।
उज्जवल के चौधरी
23 Mar 2020
कोरोना वायरस

सबसे पहले तो एक डिस्क्लेमर स्वीकारें। वो ये कि यह लेख सरकार या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोसने के लिए नहीं लिखा गया है। Covid-19 वायरस का किसी देश की सीमा, राजनीति या धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। इस लेख का उद्देश्य राष्ट्रीय हित में है, प्रत्येक भारतीय के हित में है वो चाहे मोदी समर्थक हो या विरोधी।

भारत में आधिकारिक तौर पर कोरोना पोज़िटिव पाए जाने का पहला मामला 30 जनवरी को केरल में पाया गया था। भारत सरकार के प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो के ज़रिये यह मामला प्रकाश में आया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसकी पहचान 7 जनवरी को कर दी थी, जबकि चीन ने 11 जनवरी के दिन अपने यहाँ पहली मौत की जानकारी दी थी (जबकि चीन में ये मामले दिसम्बर 2019 से चल रहे थे)।

सौभाग्य से कोरोना का भारत में प्रवेश देरी से हुआ और हम मानकर चल रहे थे कि यह एक चीनी वायरस है और यह तो उनका घरेलू मामला है। तब भी हमने इससे सीख लेना उचित नहीं समझा जब इसके आक्रामक तौर पर यूरोप में फैलने की ख़बरें आने लगी थीं। भारत में जबसे इसके लक्षण दिखने शुरू हुए थे, तब से लेकर आजतक हमारे पास 50 से अधिक दिन का समय बीत चुका है। लेकिन हमने इसके व्यापक फैलाव के रोकथाम को लेकर सावधानी बरतने के कोई उपाय नहीं किये। इसके बजाय फरवरी के अंत तक तो हम दिल्ली में नफरत और हिंसा को ही भड़काने में मशगूल थे। 

साधारण फ्लू की तुलना में Covid-19 वायरस से उत्पन्न होने वाली बीमारी में मृत्यु दर 2% से लेकर 3% के रूप में कहीं अधिक ही है। लेकिन ये आँकड़े ही अपने आप में भारत में मौजूदा स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था की कमी के लिहाज से काफी भारी-भरकम हैं। हमारे पास झोंकने के लिए न तो पर्याप्त मात्रा में साधन ही मौजूद हैं और ना ही इतनी बड़ी संख्या में रोगियों की तीमारदारी कर पाना ही संभव है।

तेजी से उभरती इस तबाही पर भारत सरकार की पहलकदमी का जहाँ तक प्रश्न है तो वह काफी हद तक मौन और विलंबित रही हैं। उस समय जब हमें Covid-19 पर पूरे तौर पर परीक्षण पर उतरने की जरूरत थी, हमने खुद को मात्र अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं पर प्रतिबंध लगाने तक सीमित रखा हुआ था। जब हमें उपचार की बुनियादी ढांचागत सुविधाओं को उत्तरोत्तर उन्नत बनाकर रखने की जरूरत थी, उस समय हम मात्र इसके डायग्नोसिस के दौर से गुज़र रहे थे। जब कनाडा, सिंगापुर, कोरिया, स्पेन जैसे अन्य राष्ट्रों में इसको लेकर अपने यहाँ सहायता पैकेज की घोषणा की जा रही थी, तब हम कोरोना हमले के महामारी के रूप में विकसित हो जाने को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करने के चरण में प्रवेश कर रहे थे।

यहाँ तक की आज भी 130 करोड़ की आबादी हेतु Covid की जाँच के लिए मात्र 75 वीआरडीएल (वायरस रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक लैब्स) कार्यरत हैं। मात्र एक हफ्ते पहले स्वास्थ्य मंत्रालय से संबद्ध इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च ने दस लाख nCoV जाँच (जाँच के उपकरण) की ख़रीद के आदेश दिए हैं। भारत में पहली मौत दर्ज होने के कुछ 10 दिनों के बाद जाकर कहीं सरकार ने प्राइवेट लैब्स के लिए आवश्यक दिशानिर्देश जारी किये हैं।

आईसीएमआर ने कहा है कि हर लैब के पास रोज़ाना 90 नमूनों के परीक्षण की क्षमता है, जिसका मतलब हुआ कि रोज़ के हिसाब से भारत में 75 लैब्स में 6,750 नमूनों के परीक्षण कर सकना संभव है। जबकि शनिवार, 21 मार्च को इन लैब्स ने 1,210 नमूनों तक का ही परीक्षण किया था। और यह तब है जब पिछले कुछ दिनों से परीक्षण किये गए लोगों में पाजिटिव मामलों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी देखने में आ रही है। 

सीमित संसाधनों तक का इस्तेमाल हम पूरी क्षमता के साथ नहीं ले पा रहे हैं। और हद तो ये है कि अधिकतर प्रयोगशालाओं की ओर से ये मूर्खतापूर्ण तर्क दिए जा रहे हैं कि जिन लोगों का हाल का इतिहास विदेश यात्रा का नहीं है, उनके परीक्षण की जरूरत फिलहाल नहीं है। जबकि सारी दुनिया में देखा जा रहा है कि यह महामारी अपने स्टेज 2 से स्टेज 3 में उन लोगों से संक्रमित हो रही है जो इस वायरस को अपने साथ विदेशों से लेकर आए थे।

कोरोना के इस खतरे से निपटने के लिए प्रधान मंत्री ने इकनोमिक रेस्पोंस टास्क फ़ोर्स के गठन की घोषणा की है। लेकिन इस टास्क फ़ोर्स की अध्यक्षता कर रहीं निर्मला सीतारमण ने प्रेस से अपनी बातचीत के दौरान स्पष्ट किया है कि टास्क फ़ोर्स के गठन का काम और इसकी बैठक करनी अभी बाक़ी है।

हालाँकि हाल ही में केरल में स्थानीय स्तर पर समुदाय-आधारित परीक्षण की शुरुआत की पहल में तत्परता देखने को मिली है। केरल राज्य के सभी प्रवेश बिंदुओं वो चाहे सड़क मार्ग हो या हवाई मार्ग, को पूरी तरह से सील कर दिया गया है और अपनी सीमा पर कड़ाई से जाँच शुरू कर दी गई है। इसके राष्ट्रीय स्तर पर किये जाने को देखा जाना अभी शेष है।

इस मामले में दिल्ली सरकार ने ओयो होटल की श्रृंखला के साथ खुद को संबद्ध किया है, जिससे कि अतिरिक्त क्वारंटाइन स्पेस मुहैया हो सके। इसके साथ ही सात लाख परिवारों के लिए पहले से अधिक राशन की व्यवस्था, रैन-बसेरों में भोजन का प्रबंध, और आठ लाख लोगों के लिए पहले से बढ़ी हुई मासिक पेंशन की घोषणा की जा चुकी है। जबकि केरल सरकार ने Covid-19 आपदा से होने वाली स्वास्थ्य और आर्थिक आपदा से निपटने के लिए 20,000 करोड़ के विस्तृत पैकेज की घोषणा की है। जबकि केंद्र की ओर से किसी भी प्रकार के व्यापक पैकेज की घोषणा का इंतजार अभी बाकी है, जिसमें संदिग्धों के सामूहिक परीक्षण और हाशिए पर पड़े लोगों के लिए आर्थिक पैकेज की दोनों घोषणाएं शामिल हैं।

जहाँ एक ओर विकसित देश जोकि हमसे कहीं बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाओं के होते हुए भी इस स्थिति का मुकाबला करने में हलकान हो रहे हैं, भारत जैसे 130 करोड़ लोगों वाले देश के लिए यह पहले से ही स्पष्ट था कि हमारे पास सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा का ढांचा बेहद घटिया स्तर का है, और हमारे सामने संकटों का विशाल पहाड़ खड़ा होने वाला है। इसीलिए जरूरत तो इस बात की थी कि टास्क फ़ोर्स, उसके एजेंडा और संकट के समाधान की योजना को तत्काल से लागू करने की जरूरत तभी से थी जब इस महामारी का विस्फोट चीन में दिखा और इसके बाद इसका विस्तार यूरोप में हो रहा था।

यहाँ तक कि विपक्षी नेता राहुल गाँधी तक ने 12 फरवरी के दिन जब भारत में इसका पहला मामला प्रकाश में आया था तो अपने ट्वीट में कहा था “कोरोना वायरस हमारे लोगों और हमारे देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक होने जा रहा है।” कांग्रेस के दिनों से ही बुनियादी जन स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ता-हाल अवस्था पर ऊँगली उठाते रहने का कोई मतलब नहीं है। आज जब संकट हमारे सामने मुहँ बाए खड़ा है तो हमें आज से और अभी से इसको लेकर ज़रूरी कार्यवाही करने की आवश्यकता आन पड़ी है।

प्रधानमंत्री ने 22 मार्च के रविवार के दिन एक दिन के लिए खुद के ऊपर जनता कर्फ्यू लगाए जाने की अपील की है, जो कि एक स्वागत योग्य क़दम है। लेकिन विशेषज्ञ इस बात से सहमत नहीं है कि इस वायरस के विस्तार की कड़ी एक दिन के आइसोलेशन से तोड़ी जा सकती है। ये जो वायरस के 12 घंटे तक ही ज़िंदा रह पाने की थ्योरी उछाली जा रही है, और एक दिन के भीतर इसे खत्म किया जा सकता है, के दावे किये जा रहे हैं, का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। उल्टा, किसी व्यक्ति के शरीर में इन्क्युबेट करने में इस वायरस को कम से कम दो हफ्ते लगते हैं, और इन दो हफ्तों में यह श्वास ट्रैक और फेफड़ों को सबसे अधिक प्रभावित करता है। इसलिये बिना किसी पूरे पखवाड़े तक तालाबंदी के इस वायरस का प्रभावी ढंग से मुक़ाबला संभव नहीं है।

इसके अलावा पीएम ने लोगों से स्वास्थ्य कर्मियों के लिए ताली पीटने और भांडे बर्तन बजाकर उनके कार्यों की सराहना करने की अपील की है। यह एक बार फिर से अच्छी भावना व्यक्त की गई है जिसे हाल ही में स्पेन और इटली के लोगों द्वारा स्वेच्छा से अपने यहाँ प्रदर्शित किया गया था। लेकिन इस पहल के अलावा यदि ध्यान दें तो कई भारतीय मेडिकल क्षेत्र से जुड़े कर्मियों की ओर से ट्विटर पर इसकी खिंचाई की गई है और इसकी बजाय बचाव के उपकरण, टेस्टिंग किट्स और आवश्यक संसाधनों की माँग की गई है।

आइये ज़रा एक नजर व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण या पीपीई पर ही डाल लेते हैं। ये पूरे शरीर को ढकने वाले वे बॉडी सूट हैं जिनके द्वारा मेडिकल कर्मी मरीज़ों के इलाज के दौरान खुद को इस वायरस की चपेट में आने से बचा सकने में सक्षम होते हैं। यदि गलती से भी ये लोग वायरस की चपेट में वे आ गए, तो यह किसी बड़े आघात से कम नहीं होने जा रहा है। ऐसी हालत में डॉक्टर, नर्स और अन्य सहायक कर्मी को खुद के उपचार की आवश्यकता पड़ेगी या उन्हें खुद को आइसोलेशन में रखना पड़ेगा। यह तो पहले से संकटग्रस्त स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था को कहीं और भी बड़े भयानक संकट में डालने वाला कदम हुआ।

आज भारत में इस Covid-19 महामारी से निपटने के लिए स्वास्थ्य कर्मियों के पास गुणवत्ता वाले वैयक्तिक सुरक्षा उपकरणों की सख्त जरूरत है, जिसका घोर संकट है। जबकि भारतीय मेडिकल उपकरण निर्माताओं का कहना है कि स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से इस बारे में उनके लिए स्पेसिफिकेशन के अभाव के चलते उन्हें पता ही नहीं कि वे किस चीज़ का उत्पादन करें।

अब जाकर एक हद तक लग रहा है कि सरकार नींद से जागी है लेकिन स्थिति की गंभीरता को देखते हुए उसके होश उड़े हुए हैं। आर्थिक तौर पर अक्षम होने के कारण राष्ट्रीय स्तर पर तालाबंदी की घोषणा कर सकने की उसकी हिम्मत नहीं बन पा रही। स्थिति की गंभीरता को चिकत्सकीय तौर पर मुकाबला कर सकने लायक संसाधन ही इसके पास नहीं हैं। मार्च के मध्य में पहुंचकर कहीं इसने निजी लैब्स और अस्पतालों को इस काम में शामिल किया है, जिसमें पहले ही काफी देरी हो चुकी है। इस स्थिति में देश के सामने क्या आर्थिक पैकेज लाया जाना चाहिए, अभी भी कुछ तय नहीं हो पाया है।

दिहाड़ी मज़दूरी करने वालों या आर्थिक तौर पर कमजोर वर्गों के लिए, जो लोग अगर एक-दो दिन से अधिक काम न मिले तो पूरी तरह से असहाय स्थिति में पहुँच सकते हैं, के बारे में कुछ भी ठोस विचार नहीं किया जा सका है। अर्थव्यवस्था पर समूचे तौर पर इसका क्या प्रभाव पड़ने जा रहा है इसको लेकर भी कोई स्पष्टता नहीं दिखाई देती। शेयर बाजार में गिरावट के साथ बुनियादी क्षेत्रों में गिरावट का रुख जारी है, और जीडीपी जो कि पहले से ही 5% के विकास दर पर लुढ़क चुकी है जो कि एक दशक के अपने सबसे ख़राब हालत में है। भयानक तथ्य ये है कि इस महामारी ने अभी तक भारतीय तटों में प्रवेश भर किया है।

Covid-19 महामारी को रोकने के लिए अपनाए जा रहे सामाजिक दूरियों और आर्थिक बंदी जैसे उपायों के गंभीर परिणाम अनौपचारिक क्षेत्र पर पड़ने जा रहे हैं। इस सम्बन्ध में इस समूहों के बीच काम कर रहे कई यूनियनों और संगठनों ने इन वर्गों के लिए अगले तीन महीनों के लिए न्यूनतम गारंटीकृत आय के रूप में प्रति माह 10,000 रुपये दिए जाने की मांग की है, और इस सम्बन्ध में निर्मला सीतारमण को पत्र लिखा है। इस बारे में सरकार की ओर से कोई कार्यवाही अभी हमें देखने को नहीं मिली है।

जबकि कई डॉक्टरों का मानना है कि हम पहले ही स्टेज 3 पर पहुँच चुके हैं और कई विशेषज्ञों ने इटली/स्पेन के अनुभवों से सांख्यिकीय मॉडलिंग को भारतीय सन्दर्भों में लागू करके देखने की कोशिश की है। जिसमें ध्यान दिलाया गया है कि इसके पूरे तौर पर स्टेज 3 में सर्पिल आकार में आने या महामारी के स्टेज 4 पर पहुँचने की दशा में 3 करोड़ से अधिक लोग इन मामलों में पाजीटिव पाए जा सकते हैं, और 50 लाख से अधिक मौतें हो सकती हैं! बेहद अकल्पनीय!

और अंत में कहना चाहिए कि इस स्थिति के बिगड़ते जाने के पीछे उन अंध-विश्वासों से भरे बयानों और पैदल-सेना द्वारा लिए गए एक्शन और यहाँ तक कि सत्ताधारी दल के नेताओं द्वारा दिए गए बयानों का हाथ कम नहीं है। बीजेपी के राष्ट्रीय नेता कैलाश विजयवर्गीज के बयान पर ग़ौर कीजिये जब वे कहते हैं कि कोरोना भारत में नहीं आ सकता क्योंकि यहाँ पर हिंदुओं के 33 करोड़ से अधिक देवी देवता निवास करते हैं। यूपी के सीएम आदित्यनाथ ने वायरस के खतरे के बावजूद अयोध्या में राम नवमी के उपलक्ष्य में ज़बरदस्त भीड़ के जुटान को अपनी ओर से हरी झंडी दे रखी थी, और अब जाकर इसे अयोध्या केन्द्रित भीड़ तक सीमित किया गया है। हमें इस पर भी प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।

वहीँ सनातन धर्म संसद की ओर से कोरोना से रोकथाम के लिए गौमूत्र सेवन के कार्यक्रम को आयोजित किया जिसके साथ गोबर के कंडे का भी खूब जमकर प्रचार किया गया। बीजेपी के जो पढ़े लिखे समर्थक हैं वे अपना सोशल मीडिया अभियान इस बात को लेकर चला रहे हैं कि थाली और ताली बजाने से रविवार को वायरस के प्रभाव को कमजोर किया जा सकता है और उसका ख़ात्मा तक किया जा सकता है। इसके अलावा भी बहुत कुछ चल रहा है। जब तक सरकार विज्ञान और मेडिकल केयर पर ध्यान नहीं देती और इस प्रकार के रुढ़िवादी विचारों के खिलाफ सक्रिय जनजागरण अभियान नहीं चलाती, स्थिति बद से बदतर होने की संभावना है।  COVID का वैज्ञानिक आधार पर मुकाबला करने के लिए एक राष्ट्रीय इच्छाशक्ति की आज के पल सख़्त आवश्यकता है, इससे पहले कि यह स्टेज 3 (जो कि हो सकता यह चला गया हो) और स्टेज 4 (जिसने चीन, इटली और स्पेन को जकड़ रखा है) की हालत में पहुँच जाए।

लेखक एक स्तंभकार होने के साथ-साथ वर्तमान में कोलकाता स्थित एडमस विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Nation in Peril, Government in Denial. Almost!

Coronavirus
COVID-19
coronavirus in india
Testing for Coronavirus
Indian labs
Modi government
Narendra modi
Public Health Care in India
health sector in India

Trending

सुभाष चन्द्र बोस की विरासत पर सियासत, किसान आंदोलन के खिलाफ़ 'साजिश' और कांग्रेस बैठक
किसान आंदोलन: किसानों का राजभवन मार्च, कई राज्यों में पुलिस से झड़प, दिल्ली के लिए भी कूच
अब शिवराज सरकार पर उठे सवाल, आख़िर कितनी बार दोहराई जाएगी हाथरस जैसी अमानवीयता?
किसान नेताओं की हत्या और ट्रैक्टर परेड के दौरान हिंसा की साज़िश: किसान नेता
बात बोलेगी: दलित एक्टिविस्ट नोदीप कौर की गिरफ़्तारी, यौन हिंसा, मज़दूर-किसान एकता को तोड़ने की साज़िश!
'26 तारीख़ को ट्रैक्टर परेड देश के हर गाँव में होगी '- अमराराम

Related Stories

दलित एक्टिविस्ट नोदीप कौर की गिरफ़्तारी, यौन हिंसा, मज़दूर-किसान एकता को तोड़ने की साज़िश!
भाषा सिंह
बात बोलेगी: दलित एक्टिविस्ट नोदीप कौर की गिरफ़्तारी, यौन हिंसा, मज़दूर-किसान एकता को तोड़ने की साज़िश!
23 January 2021
वह पिछले 11 दिन से हिरासत में हैं। पहले पुलिस लॉकअप में पिटाई औऱ उसके बाद जेल। उन पर बहुत गंभीर आईपीसी की धाराएं लगाई गई हैं—हत्या का प्रयास (307),
कोरोना वायरस
न्यूज़क्लिक टीम
कोरोना अपडेट: देश में फिर से 14 हज़ार से ज़्यादा नए मामले सामने आए
23 January 2021
दिल्ली: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा आज शनिवार, 23 जनवरी को जारी आंकड़ों के अनुसार देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 14,2
गुजरात: फ़ैक्ट-फ़ाइंडिग रिपोर्ट कहती है कि अब दंगे ग्रामीण इलाकों की तरफ़ बढ़ गए हैं
दमयन्ती धर
गुजरात: फ़ैक्ट-फ़ाइंडिग रिपोर्ट कहती है कि अब दंगे ग्रामीण इलाकों की तरफ़ बढ़ गए हैं
23 January 2021
पाटन जिले की चनासमा तहसील के एक छोटे से गाँव वाडवली में, 26 मार्च, 2017 को हुए सांप्रदायिक दंगे के बाद गाँव धू-धू कर जल उठा, हिंसा में दो लोग मारे

Pagination

  • Next page ››

बाकी खबरें

  • Urmilesh
    न्यूज़क्लिक टीम
    सुभाष चन्द्र बोस की विरासत पर सियासत, किसान आंदोलन के खिलाफ़ 'साजिश' और कांग्रेस बैठक
    23 Jan 2021
    नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की विरासत पर 'सियासत' पहले भी होती रही है. लेकिन इस दफ़ा वह कुछ ज़्यादा अशोभनीय होती दिख रही है. वजह है: बंगाल का चुनाव. विवेकानन्द, टैगोर और सुभाष बाबू जैसे बडे आइकॉन में…
  • किसान आंदोलन
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    किसान आंदोलन: किसानों का राजभवन मार्च, कई राज्यों में पुलिस से झड़प, दिल्ली के लिए भी कूच
    23 Jan 2021
    देश के कई राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तरखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, तमिलनाडु, असम, बिहार आदि में किसान संगठनों ने किया प्रदर्शन। इसमें कई राज्यों में प्रदर्शनकारियों की पुलिस से झड़प भी हुई। कई…
  • दलित एक्टिविस्ट नोदीप कौर की गिरफ़्तारी, यौन हिंसा, मज़दूर-किसान एकता को तोड़ने की साज़िश!
    भाषा सिंह
    बात बोलेगी: दलित एक्टिविस्ट नोदीप कौर की गिरफ़्तारी, यौन हिंसा, मज़दूर-किसान एकता को तोड़ने की साज़िश!
    23 Jan 2021
    पंजाब की नोदीप को हरियाणा के कुंडली से मज़दूर आंदोलन से गिरफ्तार करके, गंभीर धारा में बुक करने से गहरा आक्रोश, नोदीप की बहन राजवीर ने लगाए गंभीर आरोप
  • Farmers protest
    न्यूज़क्लिक टीम
    '26 तारीख़ को ट्रैक्टर परेड देश के हर गाँव में होगी '- अमराराम
    23 Jan 2021
    26 जनवरी को देश के किसान दिल्ली में ट्रैक्टर परेड की घोषणा कर चुके हैं। इस सन्दर्भ में न्यूज़क्लिक ने आल इंडिया किसान सभा (AIKS ) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमराराम से बात की। उनका कहना है कि 26 तारीख़…
  • तंबाकू
    पृथ्वीराज रूपावत
    प्रस्तावित तंबाकू बिल को लेकर कार्यकर्ताओं की चेतावनी-यह बिल बीड़ी सेक्टर को दिवालिया कर देगा! 
    23 Jan 2021
    ट्रेड यूनियनों के अनुमान के मुताबिक,देश में तक़रीबन 85 लाख बीड़ी श्रमिक हैं,जो इस प्रस्तावित संशोधनों से सीधे-सीधे प्रभावित होंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें