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कोविड-19: सरकारों ने महामारी के एक साल बाद भी कुछ नहीं सीखा

कोरोना के एक साल हो जाने के बाद देशव्यापी कठिन लॉकडाउन से हम कोरोना वैक्सीन तक आ गए लेकिन हमने क्या सीखा? क्योंकि आज एकबार फिर देश में माहौल बन रहा है कि जैसे स्थितियां सरकारों के हाथ से बहार निकल गई हैं। लगातार बढ़ते मामले के साथ ही लोगों में खुद-ब-खुद लॉकडाउन का डर पनप रहा है।
कोविड-19: सरकारों ने महामारी के एक साल बाद भी कुछ नहीं सीखा
Image courtesy : NDTV

देशभर में एक बार फिर कोरोना बड़ी आक्रमकता से अपने पैर पसार रहा है। एक बार फिर ये बड़ी तेज़ी से लोगों की जिंदगियां लील रहा है। कोरोना वायरस का तांडव भारत ने पिछले साल की शुरुआत में देखा था। इस दौरान हम देशव्यापी कठिन लॉकडाउन से कोरोना वैक्सीन तक तो आ गए लेकिन आज एकबार फिर देश में माहौल बन रहा है जैसे स्थितियां सरकारों के हाथ से बहार निकल गई हैं और फिर से लॉकडाउन हो सकता है।

बड़ा सवाल यही है कि हमने माहमारी के एक साल बाद भी क्या कुछ सीखा या हम अपने पुराने ढर्रे पर ही रहे। आज जो देश में हालत है उसके लिए कौन ज़िम्मेदार है?

खासकर देश की राजधानी दिल्ली जो केंद्र सरकार के सबसे पास है और यहां की राज्य सरकार भी बड़े बड़े दावे करती है। लेकिन आज जिस तरह से केस बढ़ रहे और लोग भयभीत हैं वो दोनों सरकारों की तैयारियों की पोल खोलते हैं।

दिल्ली में आज अबतक के सबसे अधिक केस आ रहे हैं। लोगों को अस्पताल में ठीक इलाज नहीं मिल रहा है। मज़दूर वर्ग एकबार फिर भयभीत है कि कहीं सरकार अचानक से फिर लॉकडाउन की घोषणा न कर दे। इन सब स्थितियों के बीच सरकार टीवी चैनलों के माध्यम से बड़े बड़े दावे भले कर ले लेकिन जमीन पर सरकारी दावे फेल होते दिख रहे हैं। राजधानी में एकबार फिर मरीजों को कोरोना के नाम पर इलाज के लिए मना किया जा रहा है।

दिल्ली में कोरोना की स्थिति

दिल्ली में पिछले 24 घंटे में नए 11491 मामले सामने आए जो अबतक के सबसे ज्यादा हैं। इसी दौरान दिल्ली में 72 मरीजों की मौत हुई जो 5 दिसंबर के बाद सबसे अधिक है। 5 दिसंबर को 77 लोगो की कोरोना से मौत हुई थी।

इस दौरान दिल्ली में 92397 लोगों की जांच की गई। इस दौरान सबसे खतरनाक बात यह है कि दिल्ली की संक्रमण दर देश की औसत से कहीं अधिक है। दिल्ली में कोरोना संक्रमण दर 12.44% है जबकि राष्ट्रीय औसत लगभग 9 फीसदी है।

दिल्ली सरकार ने संक्रमण के बढ़ने के बाद से जाँच की अपनी गति भी बढ़ाई जो पिछले दिनों कम कर दी गई थी। अब दिल्ली सरकार पैनिक मोड में दिख रही है। लगातार बेड न मिलने की खबरों के बीच दिल्ली सरकार ने 14 निजी अस्पताल पूर्ण कोविड-19 अस्पताल घोषित कर दिए हैं। दिल्ली सरकार ने सोमवार को शहर में 14 निजी अस्पतालों को ‘पूर्ण कोविड-19 अस्पताल’ घोषित कर दिया और उन्हें अगले आदेश तक गैर कोविड-19 मरीजों की भर्ती नहीं करने का निर्देश दिया।

स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय की ओर से जारी आदेश के मुताबिक साथ ही, 19 निजी अस्पतालों को कम से कम से अपने 80 प्रतिशत आईसीयू बिस्तरों को कोरोना वायरस संबंधी उपचार के लिए आरक्षित करने का निर्देश दिया गया है।

इस आदेश के अनुसार 82 निजी अस्पतालों को कम से कम अपने 60 प्रतिशत आईसीयू बिस्तरों को कोविड-19 मरीजों की खातिर आरक्षित करने को कहा गया है।

आदेश में कहा गया है, ‘‘ इसके अलावा, 101 निजी अस्पतालों को अपने वार्ड के कम से कम 60 प्रतिशत आईसीयू बिस्तरों को कोविड-19 संबंधी उपचार के लिए आरक्षित करने का निर्देश दिया गया है।’’

मज़दूर वर्ग में भय का माहौल!

देश के साथ ही दिल्ली में भी माहमारी फैल रही है लेकिन अगर हम सभी सरकारों के काम करने का तरीका देखे तो ऐसा लगता है महामारी के साथ ही सरकारों के नीतियों की भी पुनरावृर्ति हो रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री रोजना टीवी पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कोरोना के आकड़े बता रहे हैं और रोजाना कोई नयी घोषणा कर रहे हैं। लगातार बढ़ते मामलों के साथ ही लोगों में खुद ब खुद एक डर का माहौल बन रहा है, खासकर मज़दूर वर्ग डरा हुआ है कि एकबार फिर माहमारी के नाम पर लॉकडाउन न कर दिया जाए। हालांकि अभी सरकार ने ऐसी कोई घोषणा नहीं की है। दिल्ली में बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश और बिहार के श्रमिक रहते हैं। इनमें एक बड़ी संख्या दिहाड़ी मज़दूरों की है जो रोज कमाते-खाते हैं। यहां पिछले लॉकडाउन में मज़दूरों की हालत बदतर हो गई थी। उसी को याद करते हुए ये मज़दूर बुरी तरह डरे हुए हैं। इनमें से एक बड़ा तबका पलायन कर रहा है। क्योंकि उसे सरकारों पर भरोसा ही नहीं है। महामारी के बाद भी सरकार इन्हे ये आश्वस्त नहीं कर पाई है कि वो उनकी सुरक्षा कर सकती है।

उत्तर पूर्व दिल्ली का सोनिया विहार इलाका लगभग पूरी तरह से प्रवासी श्रमिकों से बसा हुआ है। यहां बड़ी संख्या में निर्माण मज़दूर रहते हैं जो रोजाना कमाकर अपनी गुजर बसर करते हैं और गांव में रह रहे अपने परिजनों को भी पैसा भेजते हैं। इसलिए इस पूरे इलाके में बड़ी संख्या में साइबर कैफे संचालक हैं जो पैसा ट्रांसफर का भी काम करते हैं। हमने ऐसे ही कई साइबर कैफे वालों से बात की, सभी ने एक बात बताई कि आजकल मज़दूर अपने घर पैसे नहीं भेज रहे हैं बल्कि बड़ी संख्या में घरों की तरफ जा रहे हैं। इसलिए आजकल अधिकतर मज़दूर जो पहले पैसे ट्रांसफर के लिए आते थे वो अब उनसे घर वापसी की टिकट बनवा रहे हैं।

यह एक संकेत है कि मज़दूर इस माहमारी के बीच दिल्ली शहर छोड़ अपने घर पहुंचना चाहता है। ऐसे ही एक निर्माण मज़दूर राम नरेश जो पिछले कई सालों से यहां बेलदारी का काम करते हैं। उन्होंने बताया वो पिछले लॉकडाउन में दिल्ली में फंस गए थे और उनके सामने भोजन के भी लाले पड़ गए थे और किसी तरह से वो बस ट्रक और पैदल चलकर अपने घर पहुंचे थे। इसलिए इस बार वो पहले ही सुरक्षित अपने घर पहुंचना चाहते हैं।

इसी तरह कई अन्य मज़दूर भी जो वापस जा रहे हैं उनके मन में यह भय है। वहीं मज़दूरों के पलायन की एक वजह फसलों की कटाई भी है। कुछ श्रमिक इस कारण भी जा रहे हैं, लेकिन सबसे अधिक उन्हें फिर से सख़्त लॉकडाउन की चिंता है।

मज़दूर नेताओं से जब इसपर बात की तो उन्होंने एक बात कही जो सरकारों को सुनना चाहिए। मज़दूर नेता सीटू के जिला कोषाध्यक्ष फुलकान्त ने बताया कि प्रवासी मज़दूरों की सुरक्षा के लिए सरकारों ने क्या किया? जबकि श्रम कानूनों के मुताबिक़ की गई व्यवस्था से लेकर कई सुरक्षा इंतेज़ाम सरकार को करना चाहिए लेकिन सरकारों ने पिछले साल मज़दूरों की दुर्दशा के बाद भी कुछ नहीं सीखा है। आज भी स्थिति वही है कि मालिक मज़दूरों का शोषण कर रहा है, उनके पास कोई सुरक्षा नहीं है। उन्होंने इस पूरी परिस्थति के लिए सरकार को ही जिम्मेदार बताया।

देश में क्या हाल है?

भारत में एक दिन में कोरोनावायरस संक्रमण के 1,61,736 नए मामले सामने आने के साथ देश में संक्रमण के मामले बढ़कर 1,36,89,453 हो गए। कोविड-19 से पीड़ित लोगों के ठीक होने की दर और गिर गई, अब यह 89.51 प्रतिशत है।0

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मंगलवार की सुबह आठ बजे जारी किए गए आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है।

इनमें बताया गया कि संक्रमण के कारण और 879 लोगों की मौत होने से मरने वालों की संख्या 1,71,058 हो गई है।

संक्रमण के दैनिक मामलों में लगातार 34वें दिन हुई बढ़ोतरी के बीच देश में उपचाराधीन लोगों की संख्या बढ़कर 12,64,698 हो गई है, जो संक्रमण के कुल मामलों का 9.24 प्रतिशत है।

देश में सबसे कम 1,35,926 उपचाराधीन मरीज 12 फरवरी को थे और सबसे अधिक 10,17,754 उपचाराधीन मरीज 18 सितंबर 2020 को थे।

आंकड़ों के अनुसार, इस बीमारी से अब तक 1,22,53,697 लोग उबर चुके हैं जबकि मृत्यु दर 1.25 प्रतिशत है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के मुताबिक, 12 अप्रैल तक 25,92,07,108 नमूनों की जांच की जा चुकी है जिनमें से 14,00,122 नमूनों की जांच सोमवार को की गई।

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