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कोविड-19: स्वास्थ्य सेवा के लिए पैसे नहीं, इरादे मायने रखते हैं

अमेरिका का स्वास्थ्य सेवाओं पर कुल ख़र्च बहुत ज़्यादा है और इसके पास महंगे साज़-ओ-सामान का भंडार है, फिर भी अमेरिका सबसे अच्छी स्वास्थ्य सेवा मुहैया नहीं करा पाता है, ऐसा इसलिए है,क्योंकि अमेरिका बीमार होने से लोगों को नहीं बचा पाता और ठीक इसी तरह, बीमार हो जाने के बाद लोगों का इलाज नहीं करा पाता है।
covid 19 healthcare

चीन में लगभग आठ महीने पहले कोविड-19 के शुरुआती मामले देखे गये थे। तब से दुनिया भर के तक़रीबन 1.5 करोड़ लोग इस बीमारी को लेकर किये गये परीक्षण में पॉज़िटिव पाये गये हैं, और उनमें से छह लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा भी हो सकती है, क्योंकि कई संक्रमितों का परीक्षण हुआ ही नहीं है। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। दुनिया भर में "परीक्षण, मरीज़ों का पता लगाने और आइसोलेशन" का पालन किया जाता है, लेकिन ये सभी 18 मार्च को डब्ल्यूएचओ की तरफ़ से पहली बार सुझाये गये महज़ चिकित्सा से सम्बन्धित बचाव मात्र हैं। हालांकि, इस बीमारी के प्रसार और उसकी मृत्यु-दर, समान आर्थिक और जलवायु परिस्थितियों और जनसंख्या आयु संरचना वाले देशों में भी अलग-अलग हैं। इसमें ट्रम्प या बोल्सनारो की प्रशासनिक नाकामियां भी एक कारक हैं। हैरत इस बात को लेकर है कि जो चीज़ इन देशों की स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है, उस पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है।

एक बहुत ही सीधी-सादी लोकप्रिय धारणा यह है कि अमीर देशों में बेहतर स्वास्थ्य प्रणालियां होती हैं और वहां के नागरिक स्वस्थ होते हैं; इसलिए उन देशों के लोग इस महामारी में बेहतर रूप से सुरक्षित हैं। उच्च स्तर के माने जाने वाला शोध भी इसी तरह के निष्कर्ष पर पहुंचता है। इस महामारी को चिह्नित करने और इसे रोकने में ख़ास तौर पर विभिन्न देशों की तत्परता की जांच करने को लेकर जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय में पिछले साल एक वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक विकसित किया गया। इस सूचकांक में स्वास्थ्य पर उच्चतम प्रति व्यक्ति व्यय करने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका को पहला स्थान मिला। लेकिन, इस आकलन के ठीक विपरीत, कोविड-19 के कारण संक्रमण और इससे होने वाली मौतों की सूची में संयुक्त राज्य अमेरिका सबसे ऊपर है।

कोई भी स्वास्थ्य प्रणाली चिकित्सा संसाधनों का महज़ भंडार नहीं होती है और न ही उन संसाधनों को नागरिकों तक पहुंचाने की कोई निष्क्रिय वाहक होती है। रास्ता दिखाने वाले अपने दर्शन और सिद्धांतों को व्यवस्थित करने के ज़रिये यह स्वास्थ्य प्रणाली उन लोगों का चुनाव करती है, सेवा मुहैया कराती और बीमारियों को रोकती है और इलाज करती है। इसीलिए, इस बात को लेकर कोई हैरत नहीं होनी चाहिए कि किसी देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का कोविड-19 के प्रसार पर असर पड़ रहा है।

नीचे दी गयी तालिका जनसंख्या के सामान्य स्वास्थ्य और आर्थिक संसाधनों की उपलब्धता सहित उनके स्वास्थ्य प्रणालियों की प्रकृति के संकेतकों के अनुरूप कुछ चुनिंदा देशों में कोविड-19 के प्रसार, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली, जीवन प्रत्याशा और प्रति व्यक्ति आय के आंकड़ों को सूचीबद्ध करती है:

तालिका: चुनिंदा देशों में कोविड-19 का फ़ैलाव और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली

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Data sources: Worldometers.comWHOHDR 2019

जैसा कि तालिका 1 में दिख रहा है कि सूचीबद्ध देशों में सबसे अधिक आय वाला देश, संयुक्त राज्य अमेरिका है और वहां प्रति मिलियन जनसंख्या में संक्रमितों की संख्या और कोविड-19 से होने वाले  मौत सबसे ज़्यादा है। रूस में यह संक्रमण दर संयुक्त राज्य अमेरिका की संक्रमण दर से आधी से भी कम है। लेकिन, इसकी मृत्यु-दर पांच गुना कम है। रूस ने ज़्यादातर बड़े देशों की तुलना में प्रति मिलियन ज़्यादा परीक्षण किये हैं, और संयुक्त राज्य अमेरिका के मुक़ाबले वहां प्रति 10,000 आबादी पर ज़्यादा डॉक्टर और अस्पताल के बिस्तर भी हैं।

इन सूची में शामिल किये गये देशों में वियतनाम की सबसे कम आय है, लेकिन यहां कोविड-19 का सबसे कम प्रसार है। दरअसल, वियतनाम में बीमारी के चलते किसी की मौत नहीं हुई है। इस देश की सीमा उस चीन के साथ 1,300 किलोमीटर तक लगती है, जहां यह बीमारी पैदा हुई थी, और यह संक्रमण की रिपोर्ट करने वाले शुरुआती देशों में से एक था। वियतनाम में इस बीमारी के बहुत कम फ़ैलने के पीछे यहां की सरकार की तरफ़ से अपनाये गये निवारक उपायों को ज़िम्मेदार माना जा सकता है। यह भी ग़ौरतलब है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के मुक़ाबले स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति 70 गुना कम ख़र्च करने के बावजूद, यहां प्रति 10,000 लोगों की संख्या पर अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या ज़्यादा है, और इसलिए यह बीमार को अधिक संस्थागत मदद पहुंचाने में ज़्यादा  सक्षम है।

किसी भी देश की स्वास्थ्य प्रणाली उसके इतिहास के ज़रिये ही विकसित होती है और यही वजह है कि उनकी प्राथमिकतायें, कवरेज, धन के स्रोतों और संचालन के प्रोटोकॉल बहुत अलग-अलग होते हैं। किसी स्वास्थ्य प्रणाली की सभी बारीकियों को महज़ मात्रा से सम्बन्धित आंकड़ों से नहीं दिखाया जा सकता है। फिर भी, इन आंकड़ों से कुछ ख़ास विशेषतायें साफ़ तौर पर सामने आती हैं। क्यूबा की स्वास्थ्य सेवा को राज्य की अधिकतम मदद हासिल है। जीडीपी के प्रतिशत के लिहाज से स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय क्यूबा में सबसे ज़्यादा है, और स्वास्थ्य पर इसका निजी ख़र्च सबसे कम है। इसी तरह की ख़ासियत जर्मनी और जापान में भी देखी जाती हैं। इन सभी देशों में उच्च जीवन प्रत्याशा है और संयुक्त राज्य अमेरिका के मुक़ाबले इन देशों ने कोविड-19 की रोकथाम के मामले में बेहतर काम किया है, भले ही स्वास्थ्य पर उनका प्रति व्यक्ति खर्च़ अमेरिका की तुलना में कम है।

सबसे उल्लेखनीय तो क्यूबा का मामला है,क्योंकि यह स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति ख़र्च संयुक्त राज्य अमेरिका के मुक़ाबले महज़ दसवां हिस्सा ही करता है, फिर भी नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य देखभाल मुहैया कराता है।

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में सबसे ज़्यादा निजी स्वास्थ्य प्रणाली है। भारत में क़रीब तीन-चौथाई स्वास्थ्य ख़र्च निजी है। संयुक्त राज्य में भले ही सरकार की तरफ़ से तक़रीबन 50% ख़र्च किया जाता हो, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की वास्तविक वितरण निजी हाथों में ही है। वियतनाम और भारत का तुलनात्मक विश्लेषण भी बहुत कुछ सिखाता है। दोनों ही देश मध्यम आय वाले देश हैं। वियतनाम की प्रति व्यक्ति आय भारत की तुलना में 10% प्रतिशत कम है। फिर भी यह देश भारत की तुलना में प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर दो गुना ज़्यादा ख़र्च करता है। वियतनाम की सरकार अपनी जीडीपी के प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य पर भारत की तुलना में क़रीब तीन गुना ज़्यादा ख़र्च करती है। यह अंतर स्वास्थ्य परिणामों में भी साफ़ तौर पर दिखता है: एक औसत वियतनामी एक भारतीय की तुलना में आठ साल ज़्यादा ज़िंदगी जी पाता है।

इस तालिका के आंकड़े साफ़ तौर पर दिखाते हैं कि अलग-अलग देशों की स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियां स्वास्थ्य परिणामों और कोविड-19 के नियंत्रण के सिलसिले में बहुत अलग-अलग नतीजे दे रही हैं। स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति ख़र्च कोई अहम कारक नहीं है। स्वास्थ्य पर ज़्यादा सरकारी ख़र्च, अमीर और जो देश इतने अमीर नहीं हैं, इन दोनों देशों में बेहतर नतीजे देते हैं। हालांकि सार्वजनिक ख़र्च अपने आप में सामाजिक मूल्यों और जो कुछ किसी अच्छी स्वास्थ्य प्रणाली से उम्मीद की जाती है,उसका परिणाम है। एक अन्य कारक इस प्रणाली का संगठनात्मक सिद्धांत भी होता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि उपलब्ध संसाधनों को कैसे और किस रूप में वितरित किया जाये। निम्नलिखित अंश क्यूबा और अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणालियों की तुलना करते हुए इन पर एक क़रीबी नज़र डालता है।

क्यूबा और संयुक्त राज्यों में सामाजिक देखभाल बनाम मौद्रकृत सेवा:

क्यूबा और संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली एक दूसरे से बिल्कुल अलग दर्शन और सांगठनिक सिद्धांतों से प्रेरित हैं। क्यूबा में एक ऐसी समुदाय-आधारित सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली है, जो सभी के लिए समान रूप से सुलभ है, और व्यावहारिक रूप से निशुल्क है। यह क्यूबा की राज्य संरचना का एक अटूट हिस्सा है; इसलिए, क्यूबाई कम्युनिस्ट पार्टी के सामाजिक आधार, विचारधारा और राजनीति इसमें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में एक ऐसी निजीकृत स्वास्थ्य प्रणाली है,जिसमें हर सेवा के लिए शुल्क लिया जाता है। बीमा कंपनियां, बड़े फ़ॉर्मास्युटिकल कॉर्पोरेशन, अस्पताल प्रबंधन और अति-विशिष्ट चिकित्सा पेशेवर इस प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

क्यूबा के संविधान में उचित स्वास्थ्य देखभाल तक लोगों की पहुंच को एक मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है। ऐसा इस इरादे के साथ किया गया है कि इस देश के संसाधनों के भीतर बिना किसी व्यक्तिगत मूल्य चुकाये हर किसी के लिए स्वास्थ्य सेवा सुलभ होना चाहिए। ख़ुद एक चिकित्सक रहे चे ग्वेरा ने क्यूबा की क्रांति के बाद इस प्रणाली को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। उनकी मौत के पचपन साल बाद अब भी यह प्रणाली आमूल-चूल परिवर्तन से सराबोर उनके समतावाद और मानवतावाद के मूल्य पर मुहर लगाती है। क्यूबा में स्वास्थ्य देखभाल को किसी कारोबार के बजाय बीमार की ज़रूरतों के लिहाज से एक ज़रूरी प्रावधान के रूप में देखा जाता है।

क्यूबा की स्वास्थ्य प्रणाली के आधार पड़ोस के क्लीनिकों में काम करने वाले पारिवारिक चिकित्सक और नर्स हैं। एक चिकित्सक और एक नर्स आमतौर पर 120 से 150 परिवारों की देखभाल करते हैं। वे पड़ोस में ही रहते हैं और लोगों की देखभाल करते हैं। बीमारों को दिन-रात देखभाल के अलावा, वे नियमित रूप से घरेलू दौरों और सर्वेक्षणों के ज़रिये हर किसी के स्वास्थ्य पर नज़र रखते हैं। इस प्रणाली का ऊपरी स्तर उस पॉलीक्लिनिक से बना हुआ है, जो 20,000 से लेकर 60,000 लोगों और क्षेत्रीय और प्रांतीय अस्पतालों के बीच काम करता है। बड़े शहरों में इनके जुटान के बजाय, आस-पड़ोस और गांवों में मानव और भौतिक संसाधनों के वितरण पर ज़ोर दिया गया है। इलाज के लिए महंगे मशीनों को आयात करने के बजाय धरातल पर काम करने वाले कुशल मानव संसाधन तैयार करने का एक सचेत फ़ैसला लिया गया है। जैसा कि दी गयी तालिका में दिखाये गये आंकड़ों से पता चलता है कि क्यूबा में प्रति 10,000 लोगों पर सबसे ज़्यादा डॉक्टर हैं, यह संख्या संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में तीन गुनी और जर्मनी के मुक़ाबले दोगुनी है।

क्यूबा की स्वास्थ्य प्रणाली, रोग की रोकथाम को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है; यही कारण है कि चिकित्सा पेशेवरों के प्रशिक्षण, और प्रोटोकॉल में सक्रिय उपायों पर ज़ोर दिया जाता है। चूंकि क्यूबा का हर नागरिक स्वास्थ्य वितरण प्रणाली की बुनियाद से जुड़ा हुआ है, इसलिए जोखिम वाले लोगों को चिहनित करना, जनसंख्या का व्यापक टीकाकरण और आवश्यक निर्देशों का प्रसारण अपेक्षाकृत आसान है। यह प्रणाली लोगों और स्वास्थ्य की देखभाल मुहैया कराने वालों के बीच आपसी विश्वास और स्वास्थ्य मुद्दों को लेकर सार्वजनिक जागरूकता का एक उच्च स्तर पैदा करती है। इस प्रणाली ने नियमित रूप से आने वाले वार्षिक तूफ़ान जैसे प्राकृतिक आपदाओं और डेंगू और एचआईवी-एड्स जैसी महामारियों के ख़तरे के समय नियमित रूप से बेहतरीन काम किये हैं। यह प्रणाली ग़रीबी की वजह से पैदा होने वाली पोलियो, तपेदिक, मलेरिया, डिप्थीरिया और खसरा जैसी बीमारियों को ख़त्म करने के लिए अभियान चलाकर उल्लेखनीय रूप से कामयाबी पायी है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वास्थ्य प्रणाली एक ऐसी उपभोक्ता-वितरण प्रणाली की तरह काम करती है, जिसके तहत स्वास्थ्य उत्पादों और सेवाओं को हैसियत, पैसे और क़ीमत पर उपलब्ध कराया जाता है। इसलिए, इस प्रणाली का एक ऐसा कारोबारी चरित्र है, जो सेवा मुहैया कराने वालों और सेवा पाने वालों, दोनों ही के व्यवहार और अपेक्षाओं को प्रभावित करता है। सरकार वरिष्ठ नागरिक, ग़रीब बच्चों, गर्भवती महिलाओं और विकलांगों जैसे सबसे बुरी हालत वाले लोगों के मामलों की स्वास्थ्य ज़रूरतों के लिए चलाये जाने वाले कार्यक्रमों को वित्तीय सहायता देती है। ज़्यादातर लोग उन निजी स्वास्थ्य बीमा पर निर्भर होते हैं, जिन्हें वे अपने दम पर ख़रीदते हैं, या फिर ये बीमा उनके रोज़गार के साथ जुड़े होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका अपने सकल घरेलू उत्पाद का 16% स्वास्थ्य पर ख़र्च करता है, जो दुनिया में सबसे ज़्यादा है।

हालांकि स्वास्थ्य पर सरकारी ख़र्च स्वास्थ्य देखभाल पर होने वाले कुल ख़र्च का क़रीब 50% है, वास्तविक वितरण निजी संस्थाओं के ही पास है। यहां तक कि राज्य समर्थित स्वास्थ्य सेवाओं का प्रबंधन भी निजी एजेंसियों के ज़रिये ही किया जाता है। इस प्रणाली का वाणिज्यिक तर्क अपनी ख़ुद की लागत को कम करने का है, जबकि सेवा हासिल करने वालों की तरफ़ से चुकाये गये मूल्यों से अपने हाथ खींच लेना का है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रति दस हज़ार लोगों पर अस्पताल के बिस्तरों की संख्या 25 है,जो कि इसके मुक़ाबले आर्थिक रूप से कमज़ोर देश-वियतनाम या क्यूबा से भी कम है। बीमारी के बाद ही यह प्रणाली सक्रिय हो पाती है और यही वजह है कि बीमारी की रोकथाम को लेकर इसके भीतर बहुत ही कम प्रेरणा होती है।

धरातल पर तो यह प्रणाली इस तरह दिखायी पड़ती है,जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका में एक-एक शख़्स ही यह तय करता है कि स्वास्थ्य सेवाओं का इस्तेमाल किस तरह और कहां किया जाये। व्यवहार में उनकी यह प्रणाली एक-एक व्यक्ति को उसके ख़ुद के साधनों के हवाले छोड़ देती है, और स्वास्थ्य तक पहुंच में आर्थिक, नस्लीय और क्षेत्रीय असमानतायें बुरी तरह दिखायी देती हैं। संयुक्त राज्य की जनगणना रिपोर्टों के मुताबिक़, 2018 के दौरान 8.5% अमेरिकियों (लगभग ढाई करोड़ लोगों) का किसी भी स्तर पर कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं था।

विरोधाभासी रूप से ये वे लोग हैं, जो सबसे ग़रीब अमेरिकियों में से हैं, जिनमें अधिकतम स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों का सामना करने की संभावना सबसे ज़्यादा रहती है। यहां तक कि जिन लोगों की इस प्रणाली तक पहुंच होती है, उनके बीच भी इस प्रणाली की गुणवत्ता और वितरण में एकरूपता नहीं होती है। बीमा सम्बन्धी नियमों और सरकारी नीतियों की अनेक परतें हैं,जिसका मतलब है कि इस प्रणाली की आंतरिक लागत उच्च है और इनके बीच टकराहट है, और ज़ाहिर है कि इनके बीच किसी समन्वित कार्रवाई की गुंज़ाइश बहुत कम होती है। और यह स्थिति तो तब है, जब हालात सामान्य हों। अचानक लगने वाले झटके की स्थिति में तो यह प्रणाली बुरी तरह से बिखर जाती है। ऐसी ही स्थिति साल 2005 में लुइसियाना में आये कैटरीना नामक तूफ़ान के समय पैदा हुई थी, जब सैकड़ों हज़ारों ग़रीब अफ़्रीकी-अमेरिकियों को हफ़्तों तक बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं के बिना छोड़ दिया गया था।

कोविड-19 का आघात और भी गहरा इसलिए हो गया है,क्योंकि लॉकडाउन और इसके नतीजे के तौर पर कई लोगों के रोज़गार के चले जाने से उनके स्वास्थ्य बीमा समाप्त हो गये हैं, जिससे वे चिकित्सा सहायता हासिल करने को लेकर अनिच्छुक हो गये हैं। चूंकि संयुक्त राज्य अमेरिका की स्वास्थ्य प्रणाली लोगों को काफ़ी हद तक उनके साधनों के हवाले छोड़ देती है, इसलिए यह प्रणाली स्वास्थ्य के मुद्दों पर लोगों के भीतर भरोसा और जागरूकता कम पैदा कर पाती है। कोविड-19 के मामले में इस प्रणली ने संक्रमितों के संपर्क में आने वाले लोगों की तलाश और संक्रमितों के आइसोलेशन को लगभग असंभव बना दिया है। लोग अस्पतालों में रिपोर्ट तभी कर रहे हैं, जब उनकी हालत गंभीर हो जाती है, इससे पहले से ही दबाव में काम कर रही इस प्रणाली पर दबाव और बढ़ रहा है।

टीका या वायरसरोधी और जीवाणुरोधी द्वारा रोगाणु जनक रोग और उनके इलाज जीव विज्ञान और जैव रसायन के प्राकृतिक नियमों द्वारा निर्धारित वस्तुनिष्ठ प्रक्रियायें होती हैं। हालांकि, कोई भी स्वास्थ्य प्रणाली, समाज द्वारा बनायी गयी मूल्य-युक्त संरचना भी होती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कोविड-19 के लिए कोई इलाज मिलने के बाद इस बात की बहुत संभावना है कि स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली हर जगह अपनी सामान्य स्थिति में वापस आ जाये। हालांकि, हर साल  सामान्य हालात होने के बावजूद 15,00,000 मनुष्य टीबी के कारण और 400,000 मलेरिया के कारण मर जाते हैं। बच्चे जनने के दौरान हर साल तीन लाख महिलाओं की मौत हो जाती है। सिर्फ़ भारत में हर दिन लगभग 100 महिलाएं बच्चे को जन्म देने के दौरान मर जाती हैं। अगर स्वास्थ्य प्रणालियां धन, नस्ल, लिंग या जाति के आधार पर भेदभाव करना बंद कर दे और निजी लाभ के बजाय मानवीय ज़रूरतों के सिद्धांत के आसपास संगठित हों,तो इनमें से ज़्यादतर लोगों की जानें बचायी जा सकती हैं।

लेखक दिल्ली स्थित सेंट स्टीफ़न कॉलेज में भौतिकी पढ़ाते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

Covid-19: It is Not the Money but the Intention that Counts in Healthcare

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