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कोविड-19 प्रबंधन: केंद्र ने न्यायालय से कहा टीकाकरण की रणनीति न्यायसंगत है , अगली सुनवाई 13 मई को  

केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि उसने कोविड-19 से निपटने के लिए ‘‘न्यायसंगत और भेदभाव रहित’’ टीकाकरण रणनीति तैयार की है और किसी भी प्रकार के ‘‘अत्यधिक’’न्यायिक हस्तक्षेप के अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं। जबकि राज्य सरकारें , न्यायालय , विपक्षी दल ,और जानकारों ने पहले ही सरकार के टीकाकरण नीति पर गंभीर सवाल उठाए चुके है।  
 उच्चतम न्यायालय
फ़ोटो साभार: ट्विटर

नयी दिल्ली: केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि उसने कोविड-19 से निपटने के लिए ‘‘न्यायसंगत और भेदभाव रहित’’ टीकाकरण रणनीति तैयार की है और किसी भी प्रकार के ‘‘अत्यधिक’’न्यायिक हस्तक्षेप के अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं।  इस मामले की सुनवाई आज यानि सोमवार को ही होनी थी मगर तकनीकी व्यवधानों की वजह से सुनवाई नहीं हो सकी, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस मामले पर 13 मई को सुनवाई करेगा।  

केंद्र ने शीर्ष अदालत की ओर से उठाए गए कुछ बिंदुओं का जवाब देते हुए एक शपथपत्र दायर किया है। इस शपथ पत्र में केन्द्र ने कहा है कि वैश्विक महामारी के अचानक तेजी से फैलने और टीकों की खुराकों की सीमित उपलब्धता के कारण पूरे देश का एक बार में टीकाकरण संभव नहीं है।

न्यायालय ने कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान आवश्यक सामग्रियों एवं सेवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के संबंध में स्वत: संज्ञान लिया था और इसी मामले में केंद्र ने यह शपथ पत्र दाखिल किया है।

केंद्र सरकार ने कहा कि टीकाकरण नीति अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के जनादेश के अनुरूप है और इसे विशेषज्ञों के साथ कई दौर की वार्ता और विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है।

उसने कहा कि राज्य सरकारों एवं टीका विनिर्माताओं के काम में शीर्ष अदालत को कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

केंद्र ने 200 पृष्ठ के शपथपत्र में कहा, ‘‘विशेषज्ञों की सलाह या प्रशासनिक अनुभव के अभाव में अत्यधिक न्यायिक हस्तक्षेप के अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं, भले ही यह हस्तक्षेप नेकनीयत से किया गया हो। इसके कारण चिकित्सकों, वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों एवं कार्यपालिका के पास इस मामले पर नवोन्मेषी समाधान खोजने के लिए खास गुंजाइश नहीं बचेगी।’’

उसने कहा, ‘‘कार्यकारी नीति के रूप में जिन अप्रत्याशित एवं विशेष परिस्थितियों में टीकाकरण मुहिम शुरू की गई है, उसे देखते हुए कार्यपालिका पर भरोसा किया जाना चाहिए।’’

केंद्र ने कहा कि टीकों की कीमत संबंधी कारक का अंतिम लाभार्थी यानी टीकाकरण के लिए पात्र व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि सभी राज्य सरकारों ने पहले ही अपनी नीति संबंधी घोषणा कर दी है कि हर राज्य अपने निवासियों का नि:शुल्क टीकाकरण करेगा।

उसने कहा कि न्यायालय ने अपने कई फैसलों में कार्यकारी नीतियों की न्यायिक समीक्षा के लिए मापदंड बनाए हैं और इन नीतियों के मनमाना प्रतीत होने पर ही इन्हें खारिज किया जा सकता है या हस्तक्षेप किया जा सकता है। इसी कारण कार्यपालिका को संवैधानिक जनादेश के अनुसार काम करने के लिए पर्याप्त आजादी मिलती है।

टीकों एवं दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पेटेंट कानून के तहत अनिवार्य लाइसेंस प्रावधान को लागू करने के मामले पर सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि मुख्य बाधा कच्चे माल एवं आवश्यक सामग्री की उपलब्धता से जुड़ी है और इसलिए कोई भी और अनुमति या लाइसेंस को लागू करने से तत्काल उत्पादन संभवत: नहीं बढ़ेगा।

शपथपत्र में कहा गया है कि स्वास्थ्य मंत्रालय उत्पादन और आयात बढ़ाकर रेमडेसिविर की उपलब्धता बढ़ाने के हर प्रयास कर रहा है।

उसने कहा, ‘‘हालांकि, कच्चे माल और अन्य आवश्यक सामग्रियों की उपलब्धता में मौजूदा बाधाओं के मद्देनजर केवल उत्पादन क्षमता बढ़ाने से आपूर्ति बढ़ाने संबंधी इच्छित परिणाम नहीं मिल सकते।’’

केंद्र ने कहा, ‘‘पेटेंट कानून 1970 , ट्रिप्स समझौते और दोहा घोषणा के साथ पढ़ा जाए, के तहत या फिर किसी अन्य तरीके से कानूनी शक्तियां इस्तेमाल करने से इस चरण पर केवल नुकसान होगा। केंद्र सरकार भारत के सर्वश्रेष्ठ हित में समाधान खोजने के लिए राजनयिक स्तर पर वैश्विक संगठनों से संवाद कर रही है।’’

कोविड-19 प्रबंधन: तकनीकी व्यवधानों की वजह से न्यायालय ने सुनवाई 13 मई तक स्थगित की

उच्चतम न्यायालय द्वारा कोविड-19 प्रबंधन के स्वत: संज्ञान लिये गए मामले पर सोमवार को तकनीकी व्यवधानों की वजह से सुनवाई नहीं हो सकी, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस मामले पर 13 मई को सुनवाई करेगा और इससे न्यायाधीशों को सरकार द्वारा बीती देर रात दायर हलफनामे को पढ़ने का अतिरिक्त वक्त मिल जाएगा।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल एन राव और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा, “आज हमारा सर्वर खराब है। हम न्यायाधीशों ने आपस में चर्चा की और इस मामले पर बृहस्पतिवार को सुनवाई का फैसला किया।”

न्यायमूर्ति भट ने कहा कि इस बीच न्यायाधीश केंद्र द्वारा बीती देर रात दायर अनुपालना हलफनामे को देखेंगे और इस मामले में न्यायमित्र को भी इसे देखकर जवाब देने के लिये समय मिल जाएगा।

वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये हो रही सुनवाई के तकनीकी व्यवधान की वजह से बाधित होने से पहले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने एक खबर का हवाला देते हुए कहा कि पीठ के दो न्यायाधीशों को केंद्र का हलफनामा सोमवार सुबह मिला।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायमूर्ति राव को सुबह न्यायमूर्ति भट की हलफनामे की प्रति लेनी पड़ी क्योंकि उन्हें उनकी प्रति प्राप्त ही नहीं हुई थी।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “मुझे हलफनामा देर रात को मिला लेकिन मेरे साथी न्यायाधीशों को यह सुबह मिला। मुझे हलफनामा मिलने से पहले मैंने इसे मीडिया में पढ़ा।”

सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हलफनामा दायर करने के बाद उन्होंने इसकी प्रति राज्य को दी थी और यह जानना बेहद मुश्किल है कि मीडिया को यह कहां से मिला।

शीर्ष अदालत ने 30 अप्रैल को केंद्र को निर्देश दिया था कि वह राज्यों के साथ मिलकर आपात उद्देश्यों के लिये ऑक्सीजन का बफर स्टॉक तैयार करे और इन्हें अलग-अलग स्थानों पर रखा जाए, जिससे सामान्य आपूर्ति श्रृंखला के बाधित होने पर यह उपलब्ध हो।

सरकार की टीकानीति सवालों के घेरे में क्यों ?

कोरोना का संक्रमण बहुत तेजी से फैलता जा रहा है। कहा जा रहा है कि सरकारी आंकड़ों में कोरोना से हो रही मौतों को बड़े स्तर पर छुपाया जा रहा है। पहले से ही बहुत अधिक चरमराया हुआ भारतीय स्वास्थ्य ढांचा इसे संभाल नहीं पा रहा। सरकारी और निजी अस्पतालों में वेंटिलेटर नहीं हैं। बिस्तर नहीं हैं। ऑक्सीजन नहीं है। दवाइयों की जमकर कालाबाजारी चल रही है। जीवन बचाने से जुड़े सारे साधन या तो कम होते जा रहे हैं या खत्म होते जा रहे हैं। केवल शव हैं जो श्मशान और कब्रिस्तान में कम नहीं हो रहे हैं।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा आज सोमवार, 10 मई को जारी आंकड़ों के अनुसार देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,66,161 नए मामले दर्ज किए गए है। इसके अलावा कोरोना से एक दिन में 3,754 मरीज़ों की मौत हुई है। साथ ही इसी बीच देश भर में कोरोना से पीड़ित 3,53,818 मरीज़ों को ठीक किया गया है। और एक्टिव मामलों में 8,589 मामलों की बढ़ोतरी हुई है।

देश में कोरोना के मामलों की संख्या बढ़कर 2 करोड़ 26 लाख 62 हज़ार 575 हो गयी है। जिनमें से अब तक 2 लाख 46 हज़ार 116 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। देश में कोरोना से पीड़ित 82.38 फ़ीसदी यानी 1 करोड़ 86 लाख 71 हज़ार 222 मरीज़ों को ठीक किया जा चुका है। और एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 37 लाख 45 हज़ार 237 हो गयी है।

स्वास्थ्य मंत्रालय की ताजा जानकारी के अनुसार अभीतक देश में कोरोना वैक्सीन केबल  की 17 करोड़ 1 लाख 76 हज़ार 603 डोज दी जा चुकी हैं। जिनमें से 6 लाख 89 हज़ार 652 वैक्सीन की डोज पिछले 24 घंटों में दी गयी हैं।

ऐसे में न्यायालय द्वारा उठाए सवालो पर केंद्र का जबाबा अटपटा सा लगता है। ऐसे में क्या होना चाहिए? लोगों के जरिए भारत की चुनी हुई सरकार को क्या करना चाहिए? कोई भी समझदार इंसान इस सवाल का यही जवाब देगा कि वह उपाय सब को मुहैया करना चाहिए जिस उपाय पर वैज्ञानिकों की मुहर लग रही हो। वैज्ञानिक कह रहे हों कि इसके बिना कोरोना का संक्रमण बहुत तेजी से फैलेगा और हमारे पास इतने संसाधन नहीं है कि हम इसे संभाल पाए। इस उपाय का नाम है कि सबको कोरोना का टीका यानी वैक्सीन लग जाए। ताकि उनका शरीर कोरोना से लड़ने के लिए पहले ही तैयार रहे। नहीं तो हर जगह यही जारी रहेगा कि स्वास्थ्य ढांचा टूट रहा है और लोग मरते जा रहे हैं।
 देश की लगभगसभी राज्य सरकारों ने टीके के अलग दामों को लेकर हैरानी जताई।  विपक्षी सरकारों ने खुलकर तो बीजेपी शासित राज्यों ने दबे स्वर  में ही सही लेकिन अपना विरोध जताया है।  

खबर है कि सीरम इंस्टिट्यूट ने कोविशिल्ड वैक्सीन के नए रेट फिक्स कर दिए हैं। सीरम ने कहा कि प्राइवेट अस्पतालों को कोविशील्ड वैक्सीन 600 रुपये में दी जाएगी। इससे पहले इन अस्पतालों को ये वैक्सीन 250 रुपये में दी जा रही थी। राज्यों के लिए वैक्सीन के दाम 400 रुपये होंगे और केंद्र को पहले की ही तरह ये वैक्सीन 150 रुपये में मिलती रहेगी।

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के प्रोफेसर आर रामकुमार ने  भी बड़े ही विस्तृत तरीके से इस पर अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा है। प्रोफेसर साहब कहते हैं कि राज्य सरकार को वैक्सीन उत्पादकों से खुद खरीदने के लिए कहा गया है। अब यह राज्य का अधिकार है कि वह इससे कैसे निपट सकते हैं? हो सकता है कि कुछ राज्य सरकारें अपने नागरिकों को फ्री में वैक्सीन उपलब्ध करवाएं। लेकिन यह बहुत महंगा सौदा है। अगर 400 रुपये की दर के आधार पर 100 करोड़ जनता के लिए वैक्सीनेशन के दो डोज का आकलन किया जाए तो यह करीब 80,000 करोड़ रुपये बैठता है। देश भर के साल भर के मनरेगा के बजट से भी अधिक।

देशभर की आर्थिक बदहाली और कई वजहों से राज्यों को मिलने वाले आमदनी में होने वाली कमी के चलते ऐसी भी संभावना बनती है कि बहुत सारे राज्य फ्री में वैक्सीन उपलब्ध न करवाएं।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ )

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