उत्तराखंड में कोविड सुनामी? 9 पर्वतीय ज़िलों में 46 हज़ार से अधिक मरीज़ कुंभ से अब तक, गांव के गांव बीमार
हरिद्वार कुंभ के बाद उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण के मामले बेतहाशा बढ़े हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित राज्य के पर्वतीय ज़िले भी बुरी तरह संक्रमण की चपेट में हैं। पर्वतीय क्षेत्र के लोगों से बातचीत से पता चलता है कि संक्रमण के मामलों की संख्या स्वास्थ्य विभाग के दर्ज आंकड़ों से कहीं ज्यादा है। बहुत से लोगों ने कोई कोविड टेस्ट नहीं कराये। किसी अस्पताल में भर्ती नहीं हुए। लेकिन बीमार हुए और खुद ही दवाइयां खाकर इलाज किया।
एक अप्रैल 2021 तक उत्तराखंड के नौ पर्वतीय ज़िलों अल्मोड़ा, बागेश्वर, चमोली, चंपावत, नैनीताल, पौड़ी गढ़वाल, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, टिहरी और उत्तरकाशी में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 42,541 था। जबकि राज्य में कुल संक्रमितों की संख्या 100,911 थी। 8 मई 2021 तक यह आंकड़ा 88,875 पर पहुंच गया। और राज्य के कुल संक्रमितों की संख्या बढ़कर 238,383 हो गई। यानी एक साल में राज्य के पर्वतीय ज़िलों में जितने कोविड मरीज़ आए, उससे ज्यादा लोग मात्र 38 दिनों में संक्रमित हुए। कोरोना संक्रमण से दर्ज मौतों का आंकड़ा भी कुंभ और उसके बाद के पहले हफ्ते में बढ़कर दोगुना हो गया। 9 पर्वतीय ज़िलों में 456 मौतें एक साल में हुईं थीं। कुंभ के 38 दिनों में ये बढ़कर एक हज़ार हो गई। एक से 30 अप्रैल तक राज्य में कुंभ का आयोजन हुआ।
1 अप्रैल 2021 से 8 मई 2021 के बीच बदली पहाड़ पर कोरोना की तस्वीर
राज्य के तीन मैदानी ज़िलों में कोविड संक्रमण से स्थिति हुई भयावह
देहरादून और हल्द्वानी के अस्पतालों में मरीजों की भर्ती, एंबुलेंस की व्यवस्था, ऑक्सीजन की व्यवस्था, प्लाज़्मा की व्यवस्था, आईसीयू बेड की व्यवस्था, सब कम पड़ गए। मदद के लिए लोग सोशल मीडिया पर गुहार लगाते नज़र आते हैं।
क्या है पहाड़ के गांवों में अज्ञात बुखार का रहस्य?
उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण के आंकड़े राज्य की भयावह स्थिति को जितना बता रहे हैं, स्थिति उससे कहीं अधिक बिगड़ी हुई है। कुंभ नगरी हरिद्वार से करीब 135 किलोमीटर ऊपर पौड़ी के पहाड़ी गांवों में लोग सर्दी-जुकाम-बुखार से पीड़ित हैं और आसपास से दवाइयां लेकर खुद को ठीक कर रहे हैं। इसे ‘अज्ञात’ बुखार का नाम दिया जा रहा है। कई गांवों से इस तरह के ‘अज्ञात’ बुखार की सूचना है।
“रिखणीखाल-नैनीडांडा ब्लॉक के कई गांवों में आजकल बुखार फैला हुआ है। गांव में सभी लोग डरे हुए हैं। वे खुद ही दवाइयां खा रहे हैं और पांच-सात दिन में ठीक भी हो जा रहे हैं। पिछले तीन हफ्ते से ऐसा हो रहा है। मैं अभी डबराड़ गांव से लौटा हूं वहां कई लोग बुखार से पीड़ित थे”। 7 मई को धनपाल सिंह रावत बताते हैं। वह पौड़ी के नैनीडांडा ब्लॉक के चैड़ चैनपुर गांव के जनता इंटर कॉलेज में प्राइमरी शिक्षक हैं।
बुखार होने के बावजूद पर्वतीय क्षेत्रों में लोग कोविड टेस्ट कराने को तैयार नहीं है। धनपाल बताते हैं “सबके अंदर डर है कि पॉज़िटिव आ गए तो क्या होगा। फिर टेस्ट कराने के लिए यहां नज़दीक में कोई व्यवस्था भी नहीं है। डबराड़ गांव से रिखणीखाल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) जाना बहुत मुश्किल है। 15 किमी. दूर जाने के लिए एक व्यक्ति से 500 रुपये लिए जा रहे हैं क्योंकि दो-तीन से अधिक सवारी बिठा नहीं सकते। रास्ते में पुलिसवाले परेशान करते हैं। गांवों में प्रशासन की तरफ से कोई टेस्टिंग नहीं हो रही”।
“संक्रमण ज्यादा कुंभ से हुआ”
रिखणीखाल के तैड़िया गांव के शिक्षक डॉ. एके ध्यानी भी कई गांवों में इस तरह के बुखार के फैलने की सूचना देते हैं। वह कहते हैं “संक्रमण ज्यादा कुंभ से हुआ। बहुत लोग पहाड़ से कुंभ में नहाने के लिए गए थे। वापस लौटे तो कई लोगों को बुखार हुआ। फिर शादियों में भी खूब भीड़ जुटी”। डॉ. ध्यानी भी ये कहते हैं “ लोग अस्पताल जाने के नाम से डरे हुए हैं। यहां तक कि कोटद्वार के अस्पताल जाने में भी कतरा रहे हैं”।
संक्रमण के बढ़ते मामलों के बाद नैनीताल के खैरना-गरमपानी बाज़ार को कैंटोनमेंट ज़ोन बना दिया गया। फोटो साभार : पूरन लाल शाह
नैनीताल के गांव भी बुखार की चपेट में
गढ़वाल के पौड़ी में रिखणीखाल से करीब 160 किलोमीटर दूर नैनीताल के बेतालघाट ब्लॉक के खैरना-गरमपानी क्षेत्र की स्थिति भी कोविड संक्रमण से बिगड़ी हुई है। आधे हिस्से को कंटेनमेंट ज़ोन बनाया गया है। यहां दो गांवों के आधे से ज्यादा लोग पॉज़िटिव पाए गए। एसडीएम के मुताबिक दोनों गांवों और आसपास के क्षेत्रों को मिलाकर 116 लोग एक साथ पॉजिटिव आए।
खैरना गांव के पूर्व प्रधान और सामाजिक कार्यकर्ता पूरन लाल शाह बताते हैं “उनके क्षेत्र के कई गांवों में लोग ज़ुकाम-बुखार से पीड़ित हैं। कई मौतें हो रही हैं। कल ही (5 मई) दो-तीन लोग गुज़र गए। लोग आसपास से दवाइयां लेकर घर में खुद इलाज कर रहे हैं। गंभीर होने पर अस्पताल जा रहे हैं और मौतें हो रही हैं। मेरे चचेरे भाई की भी मौत हो गई। वह 6 दिन हल्द्वानी के अस्पताल में भर्ती रहा”।
पर्वतीय क्षेत्रों में कोविड जांच के लिए आरटीपीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट आने में 6-7 दिन लग जा रहे हैं। पूरन लाल कहते हैं “सबसे बड़ी मुश्किल यही है। जितने दिनों में टेस्ट की रिपोर्ट आती है, प्रभावित व्यक्ति संक्रमण फैला चुका होता है। होम आइसोलेशन में रह रहे लोगों को भी पूछने वाला कोई नहीं। उनकी कोई निगरानी नहीं हो रही। उसका ऑक्सीजन लेवल चेक करने का यहां कोई संसाधन नहीं। हमारा सीएचसी बस रेफर सेंटर है”।
नैनीताल के पर्वतीय हिस्सों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर कोविड जांच के सैंपल हलद्वानी के लैब में भेजे जाते हैं। वहां से रिपोर्ट आने में 3-4 दिन से लेकर एक हफ्ते तक का समय लग रहा है।
‘सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कोविड मरीज़ों का इलाज नहीं’
पहाड़ के गांवों में कोरोना संक्रमण संभालने का दारोमदार होम आइसोलेशन व्यवस्था पर ही टिका है। खैरना बाज़ार से करीब 15 किलोमीटर आगे भवाली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉ. एसएस कान्याल बताते हैं “कोविड पॉजिटिव व्यक्ति को हम अपने सीएचसी में नहीं लाते। हमारे पास ऑक्सीजन सिलेंडर युक्त ऐंबुलेंस है। उसे हम सीधे करीब 40 किमी. हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल के लिए रेफर कर देते हैं। हमारे सीएचसी में वैक्सीनेशन और आरटीपीसीआर टेस्ट हो रहा है। अन्य बीमारियों के मरीज भी यहां आते हैं। हफ्ते में दो दिन मंगलवार और शुक्रवार को आरटीपीसीआर टेस्ट करते हैं। हमारे सेंटर पर एक दिन में 50-60 लोग कोविड टेस्ट के लिए आ जाते हैं”।
यदि गांव में किसी को ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पड़ी? डॉ कान्याल कहते हैं कि हमारे पास 3-4 ही ऑक्सीजन सिलेंडर हैं। हम उसे गांव के लिए नहीं दे सकते। ऐसी स्थिति में मरीज को हल्द्वानी जाना होता है।
‘पहाड़ में नहीं है कोविड मरीजों के इलाज की तैयारी’
पर्वतीय क्षेत्र के अस्पताल क्या कोरोना संक्रमण की बढ़ती स्थिति या तीसरी वेव जैसी स्थिति के लिए तैयार हैं? इस पर डॉ. कान्याल कहते हैं कि पहाड़ में भी हमको कोविड अस्पताल तैयार कर लेने चाहिए। संक्रमण को लेकर जिस तरह के हालात हैं उसे देखते हुए यही लगता है। ताकि हल्द्वानी के सुशीला तिवारी जैसे एक मात्र बड़े अस्पताल पर सारा भार न पड़े।
स्टाफ के बारे में पूछने पर डॉ. कान्याल बताते हैं कि दो स्टाफ नर्स हैं। दो अन्य नर्स की तैनाती हरिद्वार कुंभ में की गई थी। वे वहीं के कोविड अस्पताल में तैनात हैं। सेंटर पर तैनात 7 डॉक्टर में से दो कोविड पॉज़िटिव चल रहे हैं। एक-एक डॉक्टर नैनीताल और हल्द्वानी के कोविड अस्पताल भेज दिए गए हैं। हमें 24 घंटे अस्पताल देखना होता है।
नैनीताल की मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ भागीरथी जोशी भी इस समय कोरोना संक्रमित हैं। वह बताती हैं कि हमारे ज़िले में ऑक्सीजन बेड की आवश्यकता है। लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में हम सभी अस्पताल को कोविड अस्पताल नहीं बना रहे। हालांकि नैनीताल के बीडी पांडे ज़िला अस्पताल में कोविड आइसोलेशन वार्ड रखा हुआ है। लेकिन वो डेडिकेटेड कोविड अस्पताल नहीं हो सकता। हमें कोविड के अलावा अन्य मरीजों का भी ध्यान रखना है। नैनीताल में प्राइवेट सेटअप भी नहीं है। डॉ. भागीरथी कहती हैं कि कोविड के इलाज के लिए हल्द्वानी के एसटीएच समेत प्राइवेट अस्पतालों की क्षमता बढ़ाने पर कार्य किया जा रहा है।
संक्रमण की स्थिति में गंभीर मरीजों के लिए ऑक्सीजन की उपलब्धता पर भी डॉ. भागीरथी हल्द्वानी के एसटीएच की क्षमता बढ़ाने की बात कहती हैं। वह बताती हैं कि नैनीताल ज़िला अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट लगाने की जगह नहीं है।
संक्रमण के चलते बढ़ रहे मौतों के मामले, नैनीताल में शवों के दाह संस्कार के लिए बनाए गए नोडल अधिकारी
कोविड मरीज़ों से लड़खड़ाया कुमाऊं का अकेला बड़ा सुशीला तिवारी अस्पताल
उत्तराखंड में गढ़वाल और कुमाऊं दो मंडल हैं। हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध सुशीला तिवारी अस्पताल (एसटीएच) कुमाऊं मंडल के गंभीर मरीजों के इलाज का एक मात्र बड़ा स्वास्थ्य केंद्र है। जबकि गढ़वाल क्षेत्र में दो सरकारी मेडिकल कॉलेज, दो निजी मेडिकल कॉलेज, एम्स ऋषिकेश के साथ कई बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल भी हैं।
हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ सीपी भैंसोड़ा 7 मई को बातचीत के दौरान कहते हैं “इस समय मैं ज़िला प्रशासन के अधिकारियों के साथ ऑक्सीजन प्लांट पर मौजूद हूं। एसटीएच में इस समय करीब 500 गंभीर कोविड मरीज भर्ती हैं। हमारे पास 5-6 ही ऑक्सीजन सिलेंडर बचे थे। ज़िला प्रशासन भी अलर्ट हो गया। हमारी हार्ट बीट रुकी जा रही है। दो मिनट भी गाड़ी लेट हो जाए तो कुछ भी हादसा हो सकता है। ऐसी स्थितियां आ रही हैं”।
डॉ. भैंसोड़ा कहते हैं “ऑक्सीजन की बहुत क्राइसेस है। हमें पूरी सप्लाई नहीं मिल पा रही है। कभी-कभी 5-10 सिलेंडर का स्टॉक ही रह जाता है। अगर दस सिलेंडर भी लेट पहुंचे तो कुछ भी हादसा हो सकता है। इस समय हमारी जरूरत प्रतिदिन 1600 सिलेंडर की है। जबकि पहले (अप्रैल 2021 से पहले) हमें 100 सिलेंडर प्रतिदिन की जरूरत भी नहीं पड़ती थी। हमारे ऑक्सीजन प्लांट ने इसी महीने काम करना शुरू कर दिया है। इससे हमें प्रतिदिन 120 ऑक्सीजन सिलेंडर मिल रहा है। जल्द ही दूसरा प्लांट भी काम करना शुरू कर देगा। जिससे हमें 250 सिलेंडर हर रोज़ ऑक्सीजन मिल जाएगी”। लेकिन ये दोनों प्लांट मिलाकर भी मौजूदा जरूरत को पूरा नहीं कर पा रहे।
राज्य की तकरीबन 40 प्रतिशत आबादी होने के बावजूद कुमाऊं में स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए कुछ भी नहीं किया गया। डॉ. भैंसोड़ा नाराज़ होते हैं “गढ़वाल क्षेत्र में सरकारी-निजी मेडिकल कॉलेज के साथ अन्य कॉर्पोरेट अस्पताल भी हैं। वह बताते हैं कि हमारे यहां कुमाऊं के साथ उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, बरेली जैसे ज़िलों के मरीज़ भी बड़ी संख्या में आते हैं। बल्कि इस समय तो दिल्ली-अलीगढ़ के अस्पतालों में जिन्हें बेड नहीं मिल रहा है, वे भी अपने परीचितों के सहारे एसटीएच में भर्ती हो रहे हैं। शहर के दूसरे नर्सिंग होम में भी कोई मरीज़ गंभीर होता है तो उसे तुरंत एसटीएच ही रेफ़र करते हैं। हमारे अपने 60-70 मेडिकल स्टाफ कोविड पॉजिटिव हो चुके हैं”।
28 अप्रैल को एसटीएच में एक दिन में सर्वाधिक 35 मौतें हुई थीं। स्थिति ऐसी हुई कि नैनीताल जैसे पर्वतीय ज़िले में मौतों के चलते शवदाह गृहों में जगह कम पड़ गई। ज़िला प्रशासन ने कृषि मंडी परिषद के और्गेनिक वेस्ट कन्वर्टर सेंटर को अस्थाई शवदाह गृह बनाया।
पिछले वर्ष ग्राम प्रधानों को होम आइसोलेशन और प्रवासियों की देखरेख की ज़िम्मेदारी दी गई थी, इस वर्ष ग्राम प्रधानों को शामिल नहीं किया गया। फोटो साभार: द्वारका प्रसाद
पर्वतीय क्षेत्र के गांवों में कोविड मॉनिटरिंग की व्यवस्था नहीं
अल्मोड़ा के चौखुटिया में क्षेत्र पंचायत सदस्य बालम सिंह नेगी बताते हैं “गांवों में कोविड संक्रमण की निगरानी के लिए इस बार कोई व्यवस्था नहीं की गई है। पिछले वर्ष ग्राम प्रधानों को ये ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। दूसरे राज्यों से लोग आ रहे हैं। कोई होम आइसोलेशन में रह रहा है, कोई नहीं रह रहा। अगर यहां देहरादून जैसी संक्रमण की स्थिति हो जाए तो मारामारी मच जाएगी”। पौड़ी के धनपाल सिंह रावत भी यही बात कह रहे थे।
नैनीताल के खैरना गांव के पूर्व प्रधान पूरन लाल शाह के मुताबिक भी गांवों की मॉनीटरिंग की व्यवस्था बनाए जाने की सख्त जरूरत है।
उत्तरकाशी के डुंडा ब्लॉक में आपदा प्रबंधन जनमंच ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर होम आइसोलेशन, बुखार-जुकाम में लापरवाही जैसे मामलों की निगरानी के लिए स्वयं ही कोविड निगरानी समिति बनाई है।
उधर, हल्द्वानी से करीब 122 किलोमीटर उपर अल्मोड़ा के धौला देवी ब्लॉक के जागेश्वर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉ. बीबी जोशी कहते हैं “हमारे क्षेत्र में भी कोविड पॉज़िटिव केस लगातार निकल रहे हैं। इन दिनों बाहरी राज्यों में कार्य कर रहे प्रवासी भी वापस लौट रहे हैं। चंतौला गांव में दिल्ली से लौटा 32 वर्षीय प्रवासी संक्रमित था। लेकिन उसने ये बात छिपाये रखी। जब वह सीएचसी लाया गया तो उसका ऑक्सीजन लेवल 85 हो गया था। हमने उसे अल्मोड़ा बेस अस्पताल रेफ़र कर दिया। जहां उसकी मौत हो गई। उसी गांव में 23 लोग एक साथ संक्रमित निकले”।
डॉ. जोशी कहते हैं कि मौजूदा कोविड चुनौतियों से निपटने के लिए हमें अधिक स्टाफ, वाहनों और अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं की जरूरत है।
हमने कुंभ किया, चुनावी रैलियां की, ऑक्सीजन प्लांट नहीं बनाए
अल्मोड़ा के धौलादेवी ब्लॉक में मौजूद राज्य के पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. एलएम उप्रेती कहते हैं “उत्तराखंड कोविड सुनामी की तरफ जा रहा है। जिसकी हम उपेक्षा कर रहे हैं। पिथौरागढ़ में धारचुला जैसी दुर्गम जगहों पर रहस्यमी बुखार के केस सामने आ रहे हैं। महाराष्ट्र में कोविड की तीव्र लहर थी फिर भी हमने हरिद्वार में कुंभ किया। अल्मोड़ा के सल्ट में चुनावी रैलियां कीं। पहाड़ों की स्वास्थ्य व्यवस्था होम आइसोलेशन पर टिकी है। हमें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के स्तर पर बेड की व्यवस्था करनी चाहिए। सीएचसी में बेड बढ़ाने चाहिए”।
“पिछले एक साल में सभी ज़िलों के मुख्यालय पर ऑक्सीजन प्लांट काम करना शुरू कर देना चाहिए था। कुमाऊं में कहीं भी ऑक्सीजन की जरूरत होती है तो हल्द्वानी से सिलेंडर लाना पड़ता है। पिछले वर्ष हमने इस दिशा में कदम भी बढ़ाया। लेकिन नवंबर-दिसंबर से जैसे ही केस कम होने लगे, हम भूल गए कि कोरोना भी कभी आया था और रूटीन के कामों में लग गए। ये हमारी बड़ी चूक थी”।
कुंभ के शाही स्नान के बाद उत्तराखंड में तेज़ी से बढ़े संक्रमण के मामले
देश की आबादी में उत्तराखंड की हिस्सेदारी मात्र 0.8% है। देश में हर रोज़ औसतन 4 लाख के आसपास कोविड केस सामने आ रहे हैं। इस लिहाज से उत्तराखंड में औसतन 3200 केस आने चाहिए थे। लेकिन ये संख्या 8000 के आसपास है।
देहरादून में एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल कोविड आंकड़ों का विश्लेषण करते हैं। वह बताते हैं कि राज्य के कुल कोविड केस का 38% 25 अप्रैल से 8 मई के बीच दर्ज हुआ। कुल कोविड मौतों का 41 प्रतिशत भी इन्हीं दो हफ्तों में रिकॉर्ड किया गया।
12 और 14 अप्रैल को कुंभ में दो बड़े शाही स्नान संपन्न हुए थे। जिसमें देशभर से लाखों लोगों की भीड़ जुटी। अनूप अपने विश्लेषण से यह भी बताते हैं कि ये समय कोविड टेस्ट बढ़ाने का है ताकि ज्यादा से ज्यादा संक्रमित व्यक्ति चिह्नित हो सकें। लेकिन कोविड टेस्ट भी कम किए गए। 25 अप्रैल से 1 मई के बीच राज्य में 278,206 टेस्ट किए गए। जबकि 2 से 8 मई के बीच 215,281 टेस्ट किए गए। कम टेस्ट के बावजूद संक्रमण के आंकड़े इस हफ्ते में अधिक दर्ज हुए।
राज्य सरकार क्या कहती है
उत्तराखंड में कोविड सम्बंधी राज्य सरकार की व्यवस्थाओं के बारे में स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने 7 मई को बताया कि केंद्र सरकार ने राज्य के लिए 60 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की अतिरिक्त आपूर्ति की अनुमति दी है। जिसके बाद राज्य में 183 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की सप्लाई मिलती रहेगी। टिहरी के नरेंद्र नगर में ऑक्सीजन प्लांट शुरू हो गया है। अल्मोड़ा और चमोली जिला चिकित्सालय में अगले कुछ दिनों में ऑक्सीजन प्लांट शुरू हो जाएंगे। बीते 1 सप्ताह में राज्य सरकार 500 सिलेंडर विभिन्न प्रयासों से लाई है। जबकि कुछ दिनों में 500 और सिलेंडर मिलने की उम्मीद है। सीएसआर के ज़रिये ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की व्यवस्था की जा रही है।
देहरादून, ऋषिकेश, हल्द्वानी जैसे बड़े नगरों में भी रेमडेसिविर जैसी जीवन रक्षक दवाइयों, ऑक्सीजन सिलेंडर, ऑक्सीजन बेड, प्लाज़्मा, आईसीयू, वेंटिलेटर कम पड़ गए हैं और इनकी कालाबाज़ारी की ख़बरें आ रही हैं। राज्य सरकार ने सभी प्राइवेट अस्पतालों को रेमिडिसिविर इंजेक्शन और ऑक्सीजन के ऑडिट के निर्देश दिए हैं।
राज्य में रेमडेसिविर और अन्य जीवन रक्षक दवाओं, ऑक्सीमीटर और आक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी भी जमकर की जा रही है। उत्तराखंड पुलिस और एसटीएफ इसके खिलाफ अभियान चला रहे हैं। राज्य के पुलिस उप महानिरीक्षक, अपराध एवं कानून व्यवस्था नीलेश आनन्द भरणे ने बताया कि इस दौरान कब्जे में लिए जाने वाले आक्सीजन सिलेंडर, ऑक्सीमीटर और अन्य जीवन रक्षक दवाओं को पुलिस तत्काल अदालत से रिलीज कराकर स्थानीय प्रशासन के सुपुर्द कर रही है। ताकि इनका इस्तेमाल किया जा सके।
राज्य बनने के बीस साल में उत्तराखंड में पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने का कोई प्रयास नज़र नहीं आता। कोरोना के एक साल में हज़ारों संक्रमितों के आंकड़ों के बावजूद हमारी स्वास्थ्य सुविधाओं में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ। उस पर कुंभ जैसे आयोजन कर हमने अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली।
(वर्षा सिंह देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
(This research/reporting was supported by a grant from the Thakur Family Foundation. Thakur Family Foundation has not exercised any editorial control over the contents of this reportage.)
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