देश में लगातार बढ़ रहे SC और ST के खिलाफ अपराध, यूपी, एमपी अव्वल
अनुसूचित जातियों (एससी) के खिलाफ अपराध के मामले 2018 में 42,793 से बढ़कर 2020 में 52,291 से अधिक हो गए, तीन साल में 17.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वहीं दूसरी तरफ इसी अवधि में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के खिलाफ अपराध के मामलों में भी वृद्धि हुई है। एसटी के खिलाफ इसी अवधि में यह संख्या 6,528 से बढ़कर 8,272 हो गई, जो 26.71 प्रतिशत की वृद्धि है। यह राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों में सामने आया है, जिसे गृह राज्य मंत्री (MoS) अजय कुमार मिश्रा द्वारा संसद में पेश किया गया था।
दोनों समुदायों के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में दर्ज किए गए। एनसीआरबी के अनुसार, 2020 तक, अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के 50,202 मामलों में से 39,075 में चार्जशीट दायर की गई थी, जबकि 19,696 मामलों में जांच लंबित थी। इसी तरह, 2020 में एसटी के खिलाफ अपराध के 8,268 मामलों में से 6,477 में चार्जशीट दायर की गई, जबकि 3,341 मामलों में जांच लंबित थी।
राज्यवार देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में 2018 और 2020 के बीच एससी के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले दर्ज किए। 2018 में, राज्य में 11,924 मामले आए थे, इसके बाद 2019 में यह संख्या थोड़ी कम होकर 11,829 हो गई और 2020 में यह बढ़कर 12,714 (25.2 प्रतिशत) हो गई। उत्तर प्रदेश के बाद बिहार (2020 में 7,368 मामले), राजस्थान (7,017), मध्य प्रदेश (6,899) और महाराष्ट्र (2,569) थे।
मध्य प्रदेश ने 2018 और 2020 के बीच एसटी के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले दर्ज किए। 2018 में कुल 1,868 मामले दर्ज किए गए। 2019 में यह संख्या बढ़कर 1,922 और 2020 में 2,401 (29%) हो गई। मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान (1,878) का स्थान है। महाराष्ट्र में (663), ओडिशा में (624) और तेलंगाना में (573) मामले दर्ज किए गए।
देश के विभिन्न हिस्सों में अत्याचार-प्रवण क्षेत्रों की पहचान करते हुए, MoS (गृह) ने अपने प्रस्तुतीकरण में कहा: "13 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं, जिनमें एससी और एसटी के खिलाफ अपराध की संख्या में वृद्धि देखी गई है।"
तमिलनाडु में, 38 में से 37 जिलों की पहचान "अत्याचार-प्रवण" क्षेत्रों के रूप में की गई है।
साभार : सबरंग
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