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संकट: दिल्ली में लगातार बढ़ते संक्रमण के बीच कम हुई कोरोना जांच की रफ़्तार

अगर हम देखें पिछले 15 दिनों में संक्रमण दर में 20.78 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है वहीं कोरोना के रोजाना टेस्ट में करीब 9 फ़ीसदी की गिरावट हुई है।
संकट: दिल्ली में लगातार बढ़ते संक्रमण के बीच कम हुई कोरोना जांच की रफ़्तार
Image courtesy : ThePrint

देश में आज कोरोना की दूसरी लहर का तांडव जारी है। लोग इलाज के लिए दर बदर भटक रहे हैं। इसमें सबसे बड़ी समस्या लोगों की जांच न हो पाना है। देश की राजधानी दिल्ली का भी हाल बुरा है। यहां संक्रमित लोग बेड और ऑक्सीजन के आभाव में दम तोड़ रहे हैं जबकि यहां देश की मुख्य सत्ताधीश केंद्र की सरकार भी बैठती है और दिल्ली सरकार तो है ही जिसके मुखिया रोज़ाना टीवी पर आकर बड़े-बड़े दावे करते हैं। लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त क्या है? जैसा की हर कोई टीवी और सोशल मीडिया के माध्यम से देख और सुना रहा है कि दिल्ली कोरोना से बेहाल है। इस बीमारी का अभी तक कोई भी पुख़्ता इलाज नहीं है, ऐसे में जानकारों का कहना है कि आप जितना अधिक टेस्ट करेंगे उतने ही तेज़ और प्रभावी तरीके से इस माहमारी पर काबू पा सकते हैं। लेकिन हमारे यहां सरकारे इस मूल मंत्र को ही भूल गई हैं या जानबूझकर संक्रमितों के आकड़े कम दिखाने के लिए ऐसा कर रही है।

अगर हम देखें पिछले 15 दिनों में संक्रमण दर में 20.78 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है वहीं कोरोना के रोजाना टेस्ट में लगभग 9 फीसदी यानी कुल 8.74 फीसदी की गिरावट हुई है। ये सबसे बड़ा सवाल है ऐसा क्यों?

यह संक्रमण विस्तार में एक अहम योगदान कर रहा है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार दावा कर रही है कि वो देश में सबसे अधिक टेस्ट कर रही है और 24 घंटे लगातार जांच की जा रही है।

मुख्यमंत्री साहब इसको लेकर लगातार टीवी पर प्रचार भी करते हैं कि अगर किसी को कोई भी लक्षण लगे तो सीधे जाकर पहले कोरोना जांच कराए लेकिन क्या  ज़मीन पर ऐसा हो रहा है। पिछले बाईस दिनों में लोग दिल्ली जैसे शहर में कोरोना की जांच के लिए परेशान होते दिखे हैं। दिल्ली में जांच में भारी गिरावट आई है और दूसरी तरफ संक्रमण दर में भारी वृद्धि हुई है।

जो दिखता भी है। दिल्ली में टेस्टिंग कम हो रही है जबकि संक्रमण बढ़ रहा है। दिल्ली में एक पेशंट जिन्हे कई दिनों तक इलाज सिर्फ इसलिए नहीं मिला क्योंकि कोरोना की जांच रिपोर्ट नहीं थी।

उत्तर-पूर्व दिल्ली के सोनिया विहार के निवासी 50 वर्षीय अनमोल चौधरी जो एक किराना स्टोर चलाते हैं उन्हें बुधवार से ही साँस लेने में गंभीर समस्या होने लगी और उन्हें इस दौरान बुखार भी रहा, वो इससे परेशान रहे। इस दौरान उनका परिवार उनकी कोरोना जांच करवाने के लिए परेशान रहा लेकिन नहीं करा पाया।

उनके नौजवान बेटे हर्ष ने बताया कि सोनिया विहार में पहले दो जगह कोरोना जांच होती थी लेकिन अब एक जगह होती है और कुछ लोगों की ही जांच कर रहे है। इसलिए सरकारी केंद्र पर वो जांच नही करा सके। इसके बाद उनकी हालत बिगड़ती देख और ऑक्सीजन लेवल गिरता देख उन्होंने स्थानीय डॉक्टर से सलाह ली जिसके बाद डॉक्टर ने उन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर की तत्काल जरूरत बताई। जिसके बाद उन्होंने ब्लैक में 28 हज़ार रुपये में करीब 60 लीटर ऑक्सीजन गैस वाला सिलेंडर लिया। इसके बाद वो लगातार निजी लैब से कोरोना जांच का प्रयास करते रहे लेकिन किसी भी लैब ने जांच नहीं की जिसके बाद शुक्रवार को उनकी हालत गंभीर हो गई और उनका ऑक्सीजन लेवल गिरकर 60 पहुँच गया जिसके बाद आननफानन में वो उन्हें अस्पताल लेकर भागे। वो दिल्ली सरकार के जीटीबी, अरुणा आसिफ अली सहित कुल तीन अस्पताल गए लेकिन किसी भी अस्पताल ने न तो उनकी जांच की और न ही उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट दिया जिसके बाद उनकी हालत और गंभीर होती गई और उनके अपने निजी सिलेंडर में भी गैस खत्म हो गई थी। वो परेशान और हताश होकर ऑटो में खाली सिलेंडर और साँसों के लिए तरसते अपने पिता को लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकते रहे। इस दौरान उन्होंने सोशल मीडिया से लेकर फ़ोन से कई बड़े नेताओ से सिफ़ारिश लगाने का भी प्रयास किया लेकिन कुछ भी काम न किया। जिसके बाद अंत में वे लगभग नौ बजे पश्चिम दिल्ली स्थित मोदी नगर के आचार्य श्री भिक्षु अस्पताल पहुंचे जहाँ बहुत ही प्रयास के बाद उनका कोरोना रैपिड टेस्ट किया गया जो नेगेटिव आया। लेकिन इस दौरान उनका ऑक्सीजन लेवल लगातार गिरता रहा और वे अस्पताल से गुहार लगाते रहे है कि उन्हें कम से कम ऑक्सीजन दे दिया जाए। लेकिन वो भी नहीं मिली इसके बाद करीब 12 बजे के बाद डॉक्टरो ने हालत बिगड़ते देखे और कई सत्ताधारी नेताओं से सिफारिश के बाद रातभर के लिए ऑक्सीजन देने को तैयार हुए।

हर्ष बताते हैं डॉक्टर ने उन्हें कहा कि वो रातभर में कही दूसरी जगह बेड का इंतज़ाम कर लें क्योंकि उनके पिता नेगेटिव है और यह अस्पताल कोरोना संक्रमितों के लिए है। अगली सुबह वही हुआ जो डॉक्टरों ने कहा। उन्हें अस्पताल के ऑक्सीजन बेड से हटा दिया गया और एकबार फिर वो अपने पिता के साथ ऑक्सीजन बेड की तलाश में निकल गए। लेकिन शनिवार पूरे दिन में उनके पिता को कही बेड नहीं मिला। कोविड अस्पताल उन्हें इसलिए नहीं ले रहे थे क्योंकि रैपिड टेस्ट नेगेटिव था और सामान्य अस्पताल इसलिए नहीं ले रहा था क्योंकि सारे लक्षण कोरोना वाले थे।

ऐसे में वो परेशान और हताश हो गए। हर्ष के मुताबिक आरएमएल अस्पताल ने उन्हें शनिवार की दोपहर में कुछ देर का ऑक्सीजन सपोर्ट दिया था जिससे उनके पिता थोड़े स्थिर हुए थे। वो एक बार फिर पश्चिमी दिल्ली के नरेला स्थित राजा हरिश्चंद्र अस्पताल पहुंचे जहाँ कोरोना संक्रमितों का इलाज चल रहा है। वहां उनकी बहुत ही मिन्नतों और सिफारिश के बाद ऑक्सीजन बेड दिया गया। और वो अब पिछले दो दिनों से उसी अस्पताल में हैं। हालाँकि सोमवार सुबह तक उनके पिता की कोरोना की आरटीपीसीआर रिपोर्ट नहीं आई थी। लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें बताया है उनके पिता कोरोना संक्रमित है।

हर्ष कहते हैं उन्हें अभी यह भी पता नहीं उनके पिता को कोरोना है भी या नहीं लेकिन अभी वो ऑक्सीजन पर ही है। अस्पताल के लोग भी लगातार बोल रहे हैं कि यहां भी ऑक्सीजन की कमी है। ऐसे में वो डरे है आगे क्या होगा ?

अब सोचिए राजधानी में कोरोना इलाज़ के लिए तो भटकना पड़ ही रहा है साथ ही संक्रमण जांच के लिए भी धक्के खाने पड़ रहे है। जांच के लिए यह कोई पहला मामला नहीं है। ऐसे कई मामले है जहां पीड़ितों को जांच के लिए परेशान होना पड़ रहा है।

दिल्ली के रहने वाले जसवंत लाकड़ा जो एंबुलेंस ड्राइवर है वो कहते हैं केजरीवाल सरकार से विज्ञापन के माध्यम से मीडिया को पैसा मिलता है इसलिए कोई नहीं दिखा रहा है की उन्होंने (केजरीवाल) कोरोना टेस्ट बंद कर दिया है।

जसवंत कहते है, "गाँव मुण्डका में पहले दो जगह कोविड टेस्ट होते थे।लेकिन अब गाँव में कोई कोविड टेस्ट नहीं होता। पता चला लोकेश सिनेमा के पास हो रहे हैं लेकिन वहाँ बताया गया कि कोविड टेस्ट किट नहीं है। फिर ज्वालापुरी 4 नम्बर वहाँ से 5 नम्बर और अंततः संजय गाँधी अस्पताल में पहले फार्म भरने करने की लाइन, दूसरी लाइन में डाक्टर एक और पर्चा उसके साथ जोड़ता है और तीसरी लाइन में जहाँ सैकड़ों एक दूसरे के समीप खड़े है वहाँ अगर आप खुशकिस्मत हैं तो 4 से 5 घण्टे में आपका नम्बर आ जायेगा वरना केजरीवाल ने सुविधा के नाम पर 24 घण्टे टेस्ट की सुविधा दे ही रखी है कभी न कभी तो आ ही जायेगा। जिसमें गर्भवती महिलाएं भी दर्दनाक स्थिति में खड़ी रहती हैं।

न्यूज़क्लिक की वीडियो जर्नलिस्ट त्रिना शंकर जो पिछले 5 अप्रैल से कोरोना संक्रमित हैं, ने भी बताया किस तरह उन्हें भी अपनी जांच के लिए परेशान होना पड़ा। उनके मुताबिक़ वो इस संक्रमण के बाद अपने घर में ही पृथकवास में थीं और जब 15 दिन बाद उन्होंने दोबारा अपनी जांच के लिए लैब को फोन किया तो कई ने फोन ही नहीं उठाया जबकि कई ने साफ बोला कि उनके पास दो-तीन दिन तक बिल्कुल समय नहीं है। क्योंकि पहले के सैंपल हैं उन्ही की जांच नहीं हो पा रही है। उन्होंने बताया लगभग सात से आठ निजी लैब को फोन करने और कुछ तीन चार दिन की मेहनत के बाद उनकी जांच हो सकी है। त्रिना ने कहा इस समय जांच कराना भी बहुत मुश्किल है।

यह सिर्फ त्रिना, अनमोल या जसवंत की नहीं बल्कि दिल्ली में अधिकतर लोग यही शिकायत कर रहे हैं लेकिन सरकार इन सबके बाद भी दावा कर रही है कि वो खूब जांच कर रही है। चलिए एकबार सरकार के खुद के आकड़ों से ही समझते है वो पिछले 15 दिनों से जब राज्य में कोरोना अपन प्रचंड रूप दिखा रहा है उस दौरान उनकी जांच कितनी हुई है।

(दिल्ली में पिछले 15 दिनों के कोरोना संक्रमण और कोरोना जांच के आंकड़े । स्रोत: दिल्ली सरकार का हैल्थ बुलेटन )

सबसे पहले कल, रविवार यानी 25 अप्रैल की बात करें तो 75912 लोगों की कोरोना जांच हुई। इसमें रैपिड एंटीजन और आरटीपीसीआर दोनों शामिल हैं। जबकि इस दौरान कुल संक्रमितों की संख्या 22933 रही। संक्रमण दर भी 30 फीसदी रही है। पिछले पांच दिनों का आँकड़ा इसी प्रकार रहा है। ये आँकड़ा 80 हज़ार से नीचे ही रहा है जबकि इस दौरान संक्रमण दर 30 फीसदी से ऊपर ही रहा है। जबकि दूसरी तरफ आज से 15 दिन पहले 11 अप्रैल को जांच का आंकड़ा एक लाख से अधिक था और संक्रमण दर भी दस फीसदी से कम ही थी। 11 अप्रैल से लेकर 20 अप्रैल तक रोज़ाना जांच भी 85 हज़ार से अधिक रही है, अधिकतर यह आकड़ा एक लाख के आस-पास ही बना हुआ था। जो पिछले पांच दिनों में गिरकर 75 हज़ार के आसपास आ गया है।

अब यह आँकड़े केजरीवाल सरकार के दावों की पोल खोलते हैं जिसमें वो कहते हैं कि वो सभी की जांच कर रहे हैं। जब इस महामारी की दूसरी लहर के पहले जब लोग अपनी जांच कराने से बच रहे थे तब दिल्ली में एक लाख के आसपास रोजाना टेस्ट किए जा रहे थे लेकिन अब इस समय जब महामारी का तांडव जारी है और लोग टेस्ट करवा रहे हैं और करवाने के लिए भटक रहे हैं तब टेस्ट की संख्या का 75 हज़ार पर गिर जाना सरकार की मंशा पर सवाल उठाता है। क्या दिल्ली सरकार भी बाकी कई राज्यों की तरह टेस्ट कम करके संक्रमितों का आकड़ा कम दिखाना चाहती है? इस पर जानकर कहते हैं अगर ऐसा है तो यह बहुत भयावह होगा क्योंकि इस महामारी पर नियंत्रण तभी किया जा सकता है जब आप खूब टेस्ट करें और संक्रमितों की पहचान कर उन्हें बाकी लोगों से पृथक करें। इस महामारी का दूसरा और कोई उपाय नहीं है। इसलिए सभी जानकर एक बात बोलते हैं कि खूब जांच करिए लेकिन सरकारें ऐसा न करके एक बड़ी आबादी को मौत के मुँह में झोक रही हैं।

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