कल्चरल सेंटर: ऑर्ट-कल्चर के शौकीन लोगों के लिए नया ठिकाना
कूचों में बसती, मोहल्लों में चलती, बाज़ारों में दौड़ती दिल्ली-6 की शोर भरी जिन्दगी से ज़रा छिटकर इमली मोहल्ला, कूचा पाती राम, सीता राम बाज़ार में एक सुकून भरी जगह मिलती है, हाल ही में इस गली में एक कल्चरल सेंटर खुला है जिसका नाम है 'कथिका' ( Kathika ) किस्सागोई या कथावाचन की पुरानी परंपरा के नाम इस हवेली ने बहुत कुछ जिंदा कर दिया है।
आमने-सामने की दो हवेलियां जिनमें से एक का नाम 'नीम की हवेली' है, इस हवेली के दरवाज़े से दाख़िल होते ही जो एक नई दुनिया खुलती है उसके दर-ओ-दरवाजों में पुराना वक़्त आज भी बसता है। आंगन में पुराना नीम का पेड़ और खुली जगह जैसे बता रही हो कि यहां के खुले आसमान की चांदनी रात, धूप और बारिश पर सिर्फ और सिर्फ उस आंगन में बैठने वालों का हक रहा होगा।
'नीम की हवेली' का आंगन
इस कल्चरल सेंटर के फाउंडर अतुल खन्ना बताते हैं कि उन्हें 'नीम की हवेली' की बदहाली के बारे में एक न्यूज़ आर्टिकल के ज़रिए पता चला था और तब उन्होंने इसे तलाश किया और उसकी थमी सांसों में नई जान फूंक दी। अतुल खन्ना खु़द भी पुरानी दिल्ली से आते हैं हालांकि अब वो यहां नहीं रहते लेकिन शाहजहांनाबाद को खु़द से निकाल पाना इतना भी आसान नहीं था इसलिए वो यहां दोबारा खींचे चले आए।
कश्मीरी हिंदुओं की रिहाइश रहे इस कूचे की जिन दो हवेलियों को कल्चरल सेंटर में तब्दील किया गया है उसके बारे में अतुल खन्ना बताते हैं कि '' 90 से 100 साल पुरानी हैं ये हवेलियां, और 'कथिका' का मतलब है शॉर्ट स्टोरिज़, stories of Havelis तो यही कनेक्शन है इन हवेलियों और इसके नाम का''।
हवेली की दीवारों पर विरासत के पन्नों से निकली शाहजहानाबाद की पुरानी तस्वीरें और जानकारी चस्पा हैं, जामा मस्जिद और ब्लैक एंड व्हाइट ट्राम की तस्वीर इस इलाके के इतिहास की कहानी सुनाती हैं - धुंधलाती गंगा-जमुनी तहज़ीब की।
वहीं एक पूरी दीवारों को राजा रवि वर्मा की तस्वीरों से ली गई प्रेरणा वाली तस्वीरें से सजाया गया है। पुरानी घड़ियां, तमाम आर्ट पीस इस म्यूज़ियम नुमा हवेली को बहुत ही ख़ास बना देती है, एक छोटी लाइब्रेरी और आए दिन होने वाले यहां ख़ास कार्यक्रम जैसे 'मेहमाननवाज़ी', 'बैठक', ग़ज़ल नाइट, क़व्वाली, कभी बुक लॉन्च तो कभी कोई ख़ास डिस्कशन, बच्चों के लिए ख़ास वर्कशॉप यहां हमेशा कुछ ना कुछ होता रहता है। इतिहासकार स्वप्ना लिडल ( Swapna Liddle ) की नई किताब 'Shahjahanabad: Mapping a Mughal City' पर चर्चा से लेकर इतिहासकार सुहैल हाशिम ( Sohail Hashmi) के ख़ास क़िस्से इस कल्चरल सेंटर में आयोजित किए गए।
इस कल्चरल सेंटर के कांसेप्ट ( concept ) के बारे में और ज़्यादा जानकारी देते हुए फाउंडर अतुल खन्ना कहते हैं कि '' किसी भी देश में जाइए वे अपने कल्चर को अलग-अलग तरह से प्रदर्शित करते हैं तो मुझे भी लगा कि हमें भी अपना कल्चर दिखाना चाहिए और 'कथिका' एक ज़रिया बना, लेकिन ऐसा नहीं है कि ये कल्चरल सेंटर सिर्फ दिल्ली या फिर इंडिया के कल्चर को ही प्रदर्शित करता है बल्कि ये तो Beyond the borders है जैसे यहां पर ओपरा इवनिंग हुई, ग़ज़ल हुई तो यहां हर तरह के कल्चर और ऑर्ट के लिए जगह है, यहां स्कूल के बच्चे भी आते हैं और हेरिटेज की अहमियत को समझते हैं।
हवेली में सजाए गए आर्ट पीस
वे आगे कहते हैं कि '' इस तरह की स्पेस बहुत ख़ास है ख़ासकर जब वो पुरानी दिल्ली में हो, आज अगर आप देखिए तो सिर्फ दिल्ली के ट्रैफिक, पॉल्यूशन और क्राइम पर ही बात होती है लेकिन दूसरा पहलू भी है, ये नहीं भूलना चाहिए दिल्ली में हमारी कितनी विरासतें भी हैं, यहां के व्यापारी, नवाब और जब कहा जाता है कि ''दिलवालों की दिल्ली है'' जो इन्हीं गलियों से निकाल है''।
1639-48 के बीच शाहजहां ने बहुत ही शौक से शाहजहानाबाद बसाया था, इस पुराने शहर की अपनी एक गंगा-जमुनी संस्कृति रही है, लेकिन 1857 के विद्रोह के बाद धीरे-धीरे मुग़लिया दौर जाता रहा और अंग्रेजों का राज शुरू हो गया। वक़्त के साथ बहुत कुछ धुंधला पड़ता गया, पर उस विरासत का अपना इतिहास है।
अतुल खन्ना बताते हैं कि उन्होंने हैरिटेज से जुड़े अपने लगाव की शुरुआत राजस्थान के शेखावटी रीज़न से किया था लेकिन फिर वे पुरानी दिल्ली लौटे जहां उनका बचपन बीता था और उन्होंने 'कथिका' की शुरुआत की। इस कल्चरल सेंटर में सिर्फ सुकून से भर देने वाला वातावरण ही नहीं है बल्कि यहां पुरानी दिल्ली की विरासत का हिस्सा रहे खान-पान को भी जोड़ा गया है।
हवेली में सजाई गई पुरानी घड़ी
19 नवंबर से 25 तक हैरिटेज वीक के तौर पर मनाया जाता है, 'कथिका' में भी इस मौक़े पर कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए गए, कभी बच्चों ने आकर पुरानी दिल्ली की विरासत के बारे में जानने की कोशिश की तो कभी आर्ट से जुडे़ छात्रों ने यहां आकर स्केच बनाने की वर्कशॉप में हिस्सा लिया। अतुल खन्ना कहते हैं कि '' ये हवेली और उसका आंगन कल्चर बहुत कुछ बताता है, 'कथिका' में भी सारे कार्यक्रम आंगन में होते हैं तो ये आंगन लिविंग कल्चर का पार्ट है और पुरानी दिल्ली में तो लोगों में भी लिविंग हैरिटेज के उदाहरण मिल जाएंगे, कोई आदमी मिल जाएगा जो पुराने रिकॉर्ड की दुकान चला रहा है, या कोई परफ्यमू का काम करने वाला या फिर कोई मश्क वाला मिल जाएगा, तो ये ऐसी जगह है जहां लिविंग हैरिटेज भी है और ऑर्किटेचरल हैरिटेज भी है।
इसमें कोई शक नहीं कि जिस दौर में बात-कहने सुनने की जगह सिमटती जा रही हो उस दौर में ऐसी स्पेस बनाना बड़ी बात है जहां लोग विरासत, आर्ट- कल्चर, इतिहास पर बात कर सकें, बहुत कुछ कह सकें और सुन सकें।
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