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निर्णायक हस्तक्षेप की पहल: किसानों ने किया आर-पार की लड़ाई का ऐलान

यह स्वागतयोग्य है कि किसानों ने अपने तबकाई हितों की लड़ाई को देश के समक्ष मौजूद केंद्रीय कार्यभार और चुनौतियों के साथ जोड़ दिया है।
Kisaan

संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने आन्दोलन के अगले कार्यक्रम की घोषणा कर दी है। 30 अप्रैल को दिल्ली में मोर्चे की राष्ट्रीय कमेटी की अहम बैठक में हुए फैसलों से साफ है कि यह 2024 चुनाव में किसान-एजेंडा के साथ निर्णायक हस्तक्षेप के पहले का warm-up और mobilisation का राउंड है।

पत्रकार वार्ता में बैठक की भावना का निचोड़ प्रस्तुत करते हुए डॉ. दर्शन पाल ने कहा कि "हमने अगले 6 महीने के कार्यक्रम की आज घोषणा की है। आज देश में जिस तरह फिरकापरस्त ताकतों का फासीवादी हमला हो रहा है, अपने मुद्दों पर लड़ते हुए हम उसके खिलाफ किसान-आंदोलन को विरोध की सशक्त ताकत ( oppositional force ) के रूप में खड़ा करेंगे, जिससे ED, CBI से डरे हुए विपक्षी दलों को भी बोलने की हिम्मत मिलेगी तथा आम जनता भी आंदोलन में उतरेगी। आज किसान-आंदोलन के कंधे पर ऐतिहासिक जिम्मेदारी है-उसके सामने चुनौती किसानों के सवालों की भी है तथा देश और लोकतंत्र को फासीवादी ताकतों से बचाने की भी है। 26 नवम्बर के बाद देश में आर-पार की लड़ाई होगी। "

किसानों ने अपने चार्टर के केंद्रीय मुद्दों में MSP कानून, पूर्ण ऋण-मुक्ति, किसानों तथा खेत-मजदूरों के लिए पेंशन, सर्वांगीण ( comprehensive ) फसल बीमा योजना, किसानों की हत्या के आरोपी केंद्रीय गृह-राज्य मंत्री अजय मिश्रा की गिरफ्तारी, किसानों पर लगे फर्जी मुकदमों की वापसी, शहीद किसान परिवारों के मुआवजे आदि मांगों को रखा है।

ज्ञातव्य है कि 20 मार्च, 2023 को रामलीला मैदान में हुई किसान महापंचायत के दिन मोर्चा के 15 सदस्यीय प्रतिनिधि-मण्डल की केंद्रीय कृषि मंत्री के साथ बैठक हुई थी। बैठक में कृषि मंत्री ने उनकी सारी मांगे पूरा करने का आश्वासन दिया था। किसानों ने चेतावनी दी थी, ' हम 30 अप्रैल तक इंतज़ार करेंगे। उसके बाद बैठक करके केंद्र सरकार के विरुद्ध आंदोलन के अगले कार्यक्रम की घोषणा करेंगे। "

30 अप्रैल बीत गया और सरकार ने एक बार फिर किसानों के साथ वायदाखिलाफी की है। मोदी सरकार की इसी वायदाखिलाफी के विरुद्ध किसानों ने फिर हुंकार भरी है।

दिल्ली बैठक में देश भर से आये हुए मोर्चे के तमाम संगठनों के 200 से ऊपर प्रतिनिधियों ने 26 से 31 मई तक सभी राज्यों में जोरदार प्रतिवाद-कार्यक्रमों और आंदोलन का ऐलान किया। इसके तहत सांसदों तथा प्रमुख नेताओं के गृह-क्षेत्र में किसानों के बड़े बड़े विरोध मार्च आयोजित किये जाएंगे और उन्हें ज्ञापन सौंपे जायेगे। उन्हें चेतावनी दी जाएगी कि किसान-चार्टर के पक्ष में न खड़े होने पर आने वाले दिनों में उन्हें और कड़े विरोध का सामना करना पड़ेगा।

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प्रचार और आन्दोलन के पहले राउंड के कार्यक्रमों का culmination सभी राज्यों की राजधानियों में 26 नवम्बर को राष्ट्रव्यापी विजय दिवस के रूप में होगा। इसी दिन 2020 में किसानों का " दिल्ली चलो " मार्च सारी विघ्न-बाधाएं पार करते हुए दिल्ली बॉर्डर पर पहुंचा था, जहां 13 महीने डेरा डालकर किसानों ने एक अनोखा इतिहास रच दिया था और अंततः महाबली मोदी को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था। उसे याद करते हुए सभी प्रदेशों की राजधानियों में 26 नवम्बर से शुरू होकर कम से कम अगले 3 दिन तक रात-दिन लगातार विशाल धरना-प्रदर्शन और विरोध-कार्यक्रम चलेगा।

यह स्वागतयोग्य है कि किसानों ने अपने तबकाई हितों की लड़ाई को देश के समक्ष मौजूद केंद्रीय कार्यभार और चुनौतियों के साथ जोड़ दिया है। उनके आंदोलन का कैलेंडर " देश और लोकतन्त्र बचाने" की लड़ाई के साथ तालमेल बैठाते हुए ( synchronize करते हुए ) घोषित किया गया है।

स्वतंत्रता दिवस के मद्देनजर, अगस्त का पहला पखवारा, 1-15 अगस्त, मोदी सरकार द्वारा किसानों -मेहनतकशों के हितों को कारपोरेट के हाथों गिरवी रखने के खिलाफ जन-अभियान को समर्पित होगा। इस दौरान मजदूर यूनियनों तथा संगठनों के साथ मिलकर बड़े विरोध प्रदर्शन आयोजित किये जाएंगे।

सितंबर से मध्य नवंबर के बीच, बड़े पैमाने पर राष्ट्रव्यापी यात्राएं आयोजित की जाएंगी, जिनका नेतृत्व संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय नेता करेंगे। यात्रा विशेष रूप से उन राज्यों पर ध्यान केंद्रित करेगी जहां विधानसभा चुनाव होंगे, जैसे कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना आदि।

लखीमपुर खीरी में हुई किसानों की हत्याओं के दिन 3 अक्टूबर को राष्ट्रव्यापी शहीदी दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया गया।

यह देखना उम्मीद जगाता है कि मोर्चा किसानों के स्थायी मंच के रूप मे अपने सांगठनिक ढांचे को व्यवस्थित स्वरूप देने और मजबूत करने के प्रति सतर्क है। दिल्ली बैठक में तय हुआ कि सांगठनिक सुदृढ़ीकरण और गोलबंदी के लिए मई, जून और जुलाई के महीनों में देश के हर राज्य में किसानों और खेतिहर मजदूरों को संगठित करने के लिए राज्य और जिला स्तर के सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे।

बैठक में पारित एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव में, "पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक , जो किसान आंदोलन तथा मोर्चे के दॄढ समर्थक रहे हैं, के पीछे CBI जैसी एजेंसियों को लगाए जाने की कड़ी भर्त्सना की गई तथा उनके साहस की तारीफ की गई। यह फैसला किया गया कि श्री मलिक की आवाज कुचलने की भाजपा सरकार की कोशिशों के खिलाफ प्रतिरोध के सभी प्रयासों का समर्थन किया जाएगा। ज्ञातव्य है कि श्री मलिक पुलवामा में हमारे जवानों के जीवन को हुई अनावश्यक क्षति के सन्दर्भ में भाजपा सरकार की काली करतूत तथा सर्वोच्च स्तर पर भाजपा नेतृत्व के भ्रष्टाचार का खुलासा करते रहे हैं। "

लोकतान्त्रिक आंदोलनों के साथ अपनी एकजुटता की परम्परा को जारी रखते हुए बैठक के बाद किसान नेताओं का full panel जंतर मंतर पर बैठी महिला पहलवानों और खिलाड़ियों से मिला तथा उनके न्यायपूर्ण संघर्ष के साथ अपनी solidarity व्यक्त किया एवं यौन शोषण के आरोपी भाजपा सांसद की गिरफ्तारी की माँग की। उधर पहलवानों के समर्थन संयुक्त किसान मोर्चा ( अराजनीतिक ) ने भी 3 मई को protest का कॉल दिया है।

महिला पहलवानों के समर्थन में जंतर मंतर पहुंचे BKU अध्यक्ष नरेश टिकैत ने सरकार को चेतावनी दी कि, " सरकार किसानों को फसल की कीमत नहीं देना चाहती, न दे। लेकिन यह हमारी बहन, बेटियों के मान सम्मान की बात है, यह बर्दाश्त नहीं है और इस पर कुछ भी हो सकता है। "

पश्चिमोत्तर भारत, जो किसान आंदोलन का भी कुरुक्षेत्र है- हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश, पंजाब से लेकर राजस्थान तक-माहौल फिर सरगर्म है। ऐतिहासिक किसान आंदोलन के बाद अग्निवीर योजना के खिलाफ जबरदस्त हलचल और अब यह तीसरा मौका है जब महिला पहलवानों के आंदोलन और सत्यपाल मलिक के विस्फोटक खुलासों से फिर वहाँ उबाल आ रहा है। इधर किसानों ने भी एक बार फिर आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है। इन सारे आवेगों ( impulses ) का एक साथ convergence एक बड़े सामाजिक-राजनीतिक भूचाल की जमीन तैयार कर रहा है।

कर्नाटक के अहम चुनाव से मिल रहे संकेतों और विपक्षी एकता के तेज होते प्रयासों के बीच किसान-पट्टी में बढ़ती हलचल लोकतन्त्र के लिए शुभ है और नई उम्मीद जगाने वाली है।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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